" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
September 04, 2010
सूर्पनखा /शूर्पणखा के नाक कान राम के कहने पर लक्ष्मण ने नहीं काटे थे ।
सूर्पनखा /शूर्पणखा के नाक कान राम के कहने पर लक्ष्मण ने नहीं कांटे थे । नाक और कान चंद्र्नखा के काटे गये थे और फिर उसका नाम सूर्पनखा /शूर्पणखा हो गया था । चंद्र्नखा कहते हैं जब पैदा हुई थी तो बहुत सुंदर थी और इसीलिये उसका नाम चंद्र्नखा रखा गया था । सूर्पनखा /शूर्पणखा नाम ही नाक कान कटने से हुआ तो नकटी के नाक कान कैसे काटे जा सकते हैं ।
वैसे कलयुग मे सब संभव हैं । लोग आज कल सूर्पनखा /शूर्पणखा जिनके नाक कान है ही नहीं उनको काटने मे लगे हैं । क्या करे कलयुग के काम देव को नकटी ही सुहाती हैं अपना अपना स्तर हैं अपनी अपनी पसंद हैं ।
वैसे एक बात हैं नकटी की नाक कटने मे कौन सा पौरुष हैं समझ नहीं आता । कभी कभी किसी किसी मे इतनी दिव्य आभा होती हैं कि सामने वाले कि आंखे चौधिया जाती हैं और फिर नाक वाली और नकटी मे अंतर ही नहीं दिखता ।
दुनिया सत युग से कलयुग मे आगई हैं तभी तो चंद्र्नखा और सूर्पनखा /शूर्पणखा के बीच मे फरक ही नहीं कर पाते हैं
अब बात करते हैं कि राम ने लखन को कुमार कहा यानी कुंवारा इस दृष्टि से तो
अशोक कुमार
किशोर कुमार
अक्षय कुमार
और जितने भी कुमार हैं सब आजीवन अविवाहित ही माने जाते रहेगे ।
डिस्क्लेमर
ये पोस्ट समसामयिक ब्लॉग प्रसंगों से उपजी हुई नहीं हैं ।
लिंक १
लिंक २
लिंक ३
लिंक ४
लिंक ५
तुलसी कि मानस के इतर भी माइथोलोजी हैं पौराणिक कथा के पात्रो का चरित्र चित्रण जगह जगह दिया हैं अलग अलग तरह से । मेरी ये पोस्ट किसी भी पात्र या आस्था से जुड़ी नहीं हैं । जिन्दगी जीने और समझने के बहुत से नज़रिये हैं लिंक ६
हां इस ब्लॉग जगत मे कुछ लोग अपने को बहुत विद्वान समझते हैं शायद नहीं हैं
जिन्दगी जीने और समझने के बहुत से नज़रिये हैं ..sahi kaha aapne...
ReplyDelete.....Ramayan ho ya Mahabharat.. vistrat jaankari aur jaagrukta ke abhav mein ham jo bhi jise aam taur par sunte ya dekhte aa rahen hai usi ko sach maan baithte hai.... ispar vyapak charcha ya inse related bahut baaten ko jaanne ka aaj kee bhag-dhaud bhari jindagi mein samay hi kahan mil paata hai...
khair aapne bahut achhi jaankari ektra kar prastut kee hai.. iske liye sukira......chalo khushi hai ki kam se kam blog ke madhyam se hamen bahut see jaankari miltee rahti hai...
वीडियो देखा। लेख देखे। इनके अनुसार तो आपकी बात सच लगती है।
ReplyDeleteवैसे रामचरित मानस में " सूपनखा रावन कै बहिनी " लिखा है।
नाक-कान कटने के बाद उनका नाम सूपनखा पड़ा होगा। उनको नाक-कान कटने के पहले भी सूपनखा कहना शायद इसी तरह का हो जैसे लोग कहते हैं- आटा पिसाने जा रहे हैं।
कुमार वाली बात भी रोचक है।
हालांकि इस बात का किसी विवाद से लेना-देना नहीं है लेकिन जिस पोस्ट के जबाब में आपने इस पोस्ट को उसका भी सूपनखा से कुछ लेना-देना नहीं था। वे सिर्फ़ यह बताना चाह रहे थे कि उनका व्यवहार राम सरीखा है और उनका जिनसे पंगा हुआ वो सूपनखा सरीखी हैं।
हम लोग पौराणिक मिथकों को अपनी सुविधा के अनुसार कट-पेस्ट कर लेते हैं। अपनी बात सही साबित करने के लिये तोड़-मरोड़ भी लेते हैं और जाने-अनजाने अपनी छुद्रतायें जस्टीफ़ाई कर लेते हैं।
संयोग देखिये कि राम-सीता के सब गुण मिलते हुये भी बहुत कम समय साथ रह पाये। यह भी ध्यान आ रहा है कि राम, लक्ष्मण और सीताजी ने जिस तरह अपने शरीर त्यागे वह आज के परिप्रेक्ष्य में आत्महत्या कहलायेगा!
विवाह प्रस्ताव/प्रेम निवेदन करने पर नाक-कान काटने वाले उस समय भले मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हों लेकिन आजकल कोई ऐसा करे तो एफ़.आई.आर. की कोई न कोई धारा तो लग ही जायेगी।
डिस्क्लेमर
ReplyDeleteये पोस्ट समसामयिक ब्लॉग प्रसंगों से उपजी हुई नहीं हैं ।
-अच्छा किया वरना मैं तो पक्का कनफ्यूज हो जाता. :)
चाह कर भी अपनी मुस्कुराहट रोक नहीं पा रहा...डिसक्लेमर को पढ़कर।
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी के लिये आभार। कहीं बहस करने में इस विषय पर अब खूब मजा आयेगा।
@समीर
ReplyDeleteलो कर लो बात आप यहाँ , हम कुछ कनफ्यूज हो गए हैं पता नहीं इस समीर का रुख किस तरफ हैं समीर यानी हवा का झोका कनाडा मे भारी समीर हैं आज कल idiot box पर देखा
@अनूप
ReplyDeleteआप यहाँ आगये देख कर सुकून हुआ वरना बडकी अदालत मे परसाई और मानस का मुकदमा चल रहा हैं पता चला था
@प्रिय गौतम
ReplyDeleteतुमको यहाँ देख कर मै बहुत खुश हूँ । सीमा पार के कुत्तो को भगा कर कभी कभार हंसने यहाँ आ ही जाया करो ।
NOWADAYS PEOPLE USE TO MAKE DIFFERENT STORIES OF OUR GREAT HISTORICAL CHARACTERS OF THEIR CONVINIENCE IN TV SERIALS+PICTURES+WRITINGS.
ReplyDeleteHERE THIS IS ALSO QUITE STRANGE & INTRESTING.SEEN ALL.
NOBODY SHOULD TAKE IT SERIOUSLY. ISN'T IT.
ALKA MADHUSOODAN PATEL
ये समीर नहीं, समीर लाल हैं। या तो खुद हनुमान या उन के भाई। वे सूपनखा को अधिक अच्छी तरह जानते होंगे। वैसे सूपनखा का अर्थ सूप जैसे नख (नाखून) से है।
ReplyDeleteअभी इस ब्लौग के अच्छे से मार्क कर लिया है मैम। जब-तब समय निकाल कर आता रहूँगा।
ReplyDeleteआप कैसी हैं? मेरा मेल मिला होगा....
रामायण के बारे में नै जानकारी के लिए आभार |
ReplyDeleteएक बार हम तमिलनाडु के टूर पर गये थे तमिलनाडू टूरिज्म की बस में उसमे हम सब उत्तर भारतीय लोग ही ज्यादा थे \दो तीन परिवार आंध्र और कर्नाटक प्रदेश के थे |सबके परिचय के बाद यात्रा शुरू हुई चली बस में समय बिताने के हिसाब से मनोरंजन होता रहता था उसमे गीत भजन रामायण की चोपाई सब कुछ गाते थे एक सज्जन थे शायद बिहार से थे उन्हें रामायण के सारे प्रसंग कंठस्थ थे जब भी उनके हाथ में माइक आता वे चोपाई के साथ प्रसंग विस्तार से बताते \एक दो दिन तो सबको अच्छा लगा पर रोज रोज सुनना थोडा भारी हो गया |हम हिंदी भाषी तो फिर भी समझ कर आनन्द ले लेते कितु आंध्र निवासी सज्जन के धैर्य का बांध टूट गया और वे बीच में बोल पड़े \सीता का हरण हुआ और राम ने रावण को मार डाला |बस itni सी तो रामायण है |और आप पुरा दिन
गाते रहते है ?
आपकी पोस्ट पढ़कर अनायास ही वो वाकया यद् हो आया |
आपका ब्लाग अच्छा लगा .ग्राम चौपाल मे आने के लिए धन्यवाद .आगे भी मिलते
ReplyDeleteरहेंगें
Ek to main hamare bhagvano ke bholepan se bada pareshaan hun.koi kaam pura nahi karte.naak aur kaan kaatkar hi jane diya.isse kya khaak sabak legi bhavishay ki surpnakhayein.bechara ram.waise meri ye tippani bhi kam beachari nahi hai.raat bhar raste me hi padii rahegi.kya kiya jaye.
ReplyDeleteहे टपक गिरधारी यहां ये क्या हो रहा है? सबको सदबुद्धि देना गिरधारी।
ReplyDeleteनाचो गिरधारी नाचो
रचना जी , आपके इस ब्लॉग का लिंक ई मेल से मिला । आज पहली बार आना हुआ है ।
ReplyDeleteआपके विचार क्रन्तिकारी हैं । एक अलग सोच लिए हुए । लीक से हटकर ।
अच्छा लगा पढ़कर ।
वर्तमान परिवेश में व्यवहारिक विश्लेषण अति आवश्यक है ।
.
ReplyDeleteरचना जी,
सूर्पनखा के भाई ने अपने ब्लॉग पर , अपनी बहेन के लिए पोस्ट लगाई है। उसने पराई स्त्री का हरण [ कुतिया कहकर ], खुद को समूल नाश कराने का इंतजाम कर लिया है।
सच है--" विनाश काले विपरीत बुद्धि"
Unfortunately I didn't get confused by the disclaimer and links given to distract the readers.
Regards,
ZEAL
..
अगर वो पोस्ट मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर लगे धब्बे को मिटाने के उदेश्य से लिखी गई होती तो स्वागत था लेकिन उसका उदेश्य तो उसके ज़रिये अपनी उस घटिया टिपण्णी और गाली को justify करना प्रतीत होता है जो की एक महिला को सिर्फ इसलिए दी गई क्योंकि उसने एक भेडिये की काली करतूतें उजागर की ,ये तो सच में निंदनीय है ,एक अत्यंत वरिष्ठ ब्लॉगर से ऐसी उम्मीद नहीं थी
ReplyDeleteमहक
स्वस्ति स्वस्ति ...आपकी पोस्ट स्वयं में पूर्ण थी और अकादमीयता का तकाजा था कि मैं इस रोचक प्रसंग में भाग अवश्य लेता -वैसे सूर्पनखा शब्द की सटीक व्याख्या दिनेश जी ने कर दी है ..अब चूंकि कुछ गधे यहाँ रेंकने लगे हैं इसलिए टिप्पणियों से मूड ऑफ हो गया ..
ReplyDeleteमैंने अपने ब्लॉग पर कई मनुष्य रूपी गधों की टिप्पणियाँ डिलीट कर दी हैं ..हर बात की एक हद होती है ..
विद्वान् का अर्थ क्या होता है ? वेद विद ?
जब मैं छोटा था तो मैंने गाँव के रामलीला में एक बार राक्षस का रोल किया था. मेकअप दादा ने चेहरे पर काली लगा दी थी ताकि मैं राक्षस लगूँ. यह तब की बात है जब लोग ऐसा मानते थे कि राक्षस का चेहरा काला न रहे तो उसकी गिनती राक्षस में नहीं होगी. खैर, रात में रामलीला होती है. उधर रोल ख़त्म हुआ तो मैं घर आकर सो गया. सुबह उठा तो अम्मा ने देखा तो दो थप्पड़ रसीद कर दिया. उसके बाद से रामायण वगैरह के बारे में जानकारी नहीं ले सका. सूर्पनखा की बात एक और पोस्ट में हुई है. तो मैंने वहां जो टिपण्णी की है, वही यहाँ भी कर देता हूँ.
ReplyDeleteयह तो मानस का प्रसंग है. अब मैंने तो परसाई जी को पढ़ा है तो इस बारे में टिपण्णी करना मुश्किल है. आखिर हलके-फुल्के मन पर चिरस्थाई प्रभाव की बात जो है...:-)
हाँ यह ज़रूर कहूँगा कि कॉमनवेल्थ गेम्स अभी तक ख़त्म नहीं हुए हैं. कलमाडी जी अभी भी इसी दुनियां में हैं. ऐसे में सूर्पनखा की बात करना ठीक नहीं है.
आप मेरी पोस्ट सेलिंग वुवुज़ेला थ्रू पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम पढ़ें. आपको पता चल जाएगा कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ. पोस्ट का पता है;
http://shiv-gyan.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
.
ReplyDelete.
.
!!!
???
... :((
@ दिनेश
ReplyDeleteसूपनखा का नाम क्यूँ सूपनखा हुआ अगली पोस्ट मे सचित्रदूंगी ।
डॉ(?) अरविन्द मिश्रा,
ReplyDeleteमैं तो सोचता था कि आप सिर्फ़ महिलाओं को ही कटही कुतिया, शूर्पनखा, नकटी, कार्निवोरस मछली कहते फ़िरते हैं… लेकिन आज आपने आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करने वालों को "गधा" भी कह दिया… वेरी गुड… कम से कम अब आपका "स्तर" तो तय हो गया…
कम मैंने आपके ब्लॉग पर जो कमेण्ट किया था और आपने पब्लिश नहीं किया, वह इधर दे रहा हूं - ताकि सब पढ़ें कि मैंने उसमें कोई गाली-गलौज की थी या नहीं,
कमेण्ट इस प्रकार है -
[अधिकतर कमेण्ट्स गोल-मोल… मूल विषय को जानते-समझते हुए भी "गुडविल" बनी रहे… "पोलिटिकली करेक्ट" बने रहें सबकी यही कामना है… क्या इसे हिन्दी ब्लॉगिंग का दुर्भाग्य कहा जा सकता है? या इसे "तटस्थता की सनातन बीमारी" कहा जाये?
जहाँ तक मैं मिश्रा जी की पोस्ट का आशय समझने का प्रयास कर रहा हूं -
1) मिश्रा जी किसी को सबक देना चाहते हैं?
2) मिश्रा जी किसी की खिल्ली उड़ाना चाहते हैं?
3) मिश्रा जी अपरोक्ष रुप से किसी को धमकाना चाहते हैं?
4) कुछ लोग हिन्दी ब्लॉग जगत को अपनी-अपनी खुन्नस उतारने का ठिकाना बनाना चाहते हैं?
मिश्रा जी को भी और अन्य टिप्पणीकारों को भी, शायद मेरी कुछ बातें बुरी लग सकती हैं, लेकिन मैं मजबूर हूं… क्योंकि ऐसे मामलों में दोनों ही पक्ष कहीं न कहीं गलत होते हैं, और दोनों ही पक्षों के कुछ मजबूत तर्क भी होते हैं…
इसलिये इस पोस्ट को और गहराई से समझने के लिये मुझे ऊपर दिये गये कारणों में से एक या दो को खोजना पड़ेगा… कि आखिर ये फ़ण्डा क्या है? सॉरी… मुझे पोलिटिकली करेक्ट होना नहीं आता… और न ही अत्यधिक "भला मानुस" कहलाने का कोई शौक…
मिश्रा जी रामायण का यह प्रसंग यूं ही नहीं लिख गये हैं… सो सभी समझदार लोग जानते हैं कि जो हो रहा है अच्छा नहीं हो रहा है… बाकी जिसकी जैसी मर्जी, जैसी इच्छा…]
इस कमेण्ट से आपको पता नहीं कैसी एलर्जी हुई कि पब्लिश ही नहीं किया…। अब इस कमेण्ट में मैंने "गधा" स्तर की क्या बात कही है, इसे भी आप निश्चित ही समझायेंगे, क्योंकि आप खुद को वैज्ञानिक कहते हैं।
यानी जो पोलिटिकली करेक्ट होने का ढोंग कर सके और "भलामानुष" टिप्पणीकार बने वह तो सम्माननीय है, लेकिन जो आईना दिखाये वह "गधा" है? ऐसा वैज्ञानिक तो पहली बार देखा है मैंने… :)
@राजन
ReplyDeleteसुबह होते ही आप कि टिपण्णी गंतव्य स्थान पर हैं आशा हैं निराश नहीं होगे अब आप मुझसे
@ डॉ टी एस दराल
ReplyDeleteजी आप को लिंक मैने ही भेजा था शुक्रिया आप ने पढ़ा ।
@ दिव्या
ReplyDeleteअच्छा लगा तुमको यहाँ देख कर
@प्रवीण शाह
ReplyDeleteआप कि चुप्पी अखर रही हैं पर कोई बात नहीं
@ सुरेश
ReplyDeleteकमेन्ट के लिये थैंक्स
@शिव मिश्र
ReplyDeleteआप तो नहीं ही कुछ कहेगे जानती थी मिश्र खून का नाता होता हैं ऐसा कहीं हाल मै ही पढ़ा था ।
जब कोई तार्किक युद्ध में हारता है तो उसका झुंझलाना स्वाभाविक है । इस अवस्था में वह अपने आपे में नहीं रहता और भूल जाता है की उसका स्तर क्या है ।
ReplyDeleteशायद इसकी आशंका तुलसीदास जी को भी थे - "समरथ को नहीं दोष गुसाइ"
अरविन्द जी, आपकी बातों से लगता है जैसे आपका जन्म किसी पुरुष की कोख से हुआ है| यदि नहीं तो यकीन मानिए आपकी जन्मदाता ने यदि आपके लिखे को पढ़ लिया तो वह अपने को अभागी मान बैठेगी| लानत है-----
ReplyDeleteआप जिस तरह से नारी के प्रति भड़ास निकाल रहे हैं उससे मुझे विशवास नहीं होता कि कैसे आप घर में पत्नी और अपनी बिटिया के साथ रहते हैं| मुझे पता है कि आपने अपने इस घिनौने चेहरे को घर में छिपाया होगा| चलिए हम ही कुछ प्रबंध करते हैं कि आपके लेख और नारियों को दी गयी गालियाँ आपके घर वालों तक पहुंचे|
वैसे हमारा हिन्दी ब्लॉग जगत अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है| आज भला वो क्यों चुप है??? अरविन्द जिस राज्य के मुलाजिम है उस राज्य की मुखिया एक महिला है| कोई तो यह खबर दे बहन मायावती जी को फिर देखते हैं अरविन्द कैसे जबान खोलते हैं महिलाओं के विरुद्ध? बस एक सन्देश भेजने की जरूरत है| मैंने कुछ पल पहले ही एक सन्देश ड्राफ्ट किया है| इसकी एक प्रति उस विभाग के मंत्री को भी भेजी जा रही है जिसके अन्तरगत अरविंद का विभाग आता है|
विज्ञान प्रसार के नाम पर जो सरकारी पैसा खाए ,बकौल त्रिपाठी जी, उसे वैज्ञानिक कहकर वैज्ञानिकों को शर्मिन्दा न करे|
रचना जी, आप अपनी आवाज बुलंद रखें|
सुरेश जी , इस तथाकथित या कहे स्वयंभू वैज्ञानिक की साढ़े साती चल रही है| कन्या राशि वाले हैं| जितना बुरा करेंगे शनि महाराज सौ गुना लौटायेंगे| आप देख ही रहे हैं ;)
आप का इस ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगा व्योम शुक्रिया
ReplyDeleteरचना जी क्युकी आप कहती हैं आप को हिंदी का ज्ञान कम हैं सो बता रही हूँ स्वस्ति स्वस्ति का भावर्थ हैं साधुवाद । जानकारी तो आप की बढ़िया हैं ही और नाक अब बच नहीं रही हैं !!!!! सो स्वस्ति स्वस्ति
ReplyDeleteरावण वेद पुराण का ज्ञाता महापंडित था..शिव उसके उपाश्य थे,जिनकी कृपा उसे प्राप्त थी,कैलाश पर्वत वह खेल खेल में उठा लेता था...सभी देवी देवता उसके घर में चाकरी करते थे..उस युग में रावण सा ज्ञानी और कोई नहीं माना जाता था. इस लिहाज से तो उसे पूज्य होना चाहिए..परन्तु पूज्य होने के लिए क्या इतना ही पर्याप्त है ???
ReplyDeleteआज किसी नास्तिक को भी यदि यह स्थिर करने के लिए कहा जाय कि राम रावण में से पूज्य किसे माना जाना चाहिए .....तो निश्चित है कि रावन को तो पूज्य नहीं ही ठहराएगा वह...
आज यदि अपनी तुलना करने,अपने को सही साबित करने का अवसर आये तो बहुधा ही लोग राम, सीता, अर्जुन ,कृष्ण इत्यादि इत्यादि पत्रों का ही अवलंबन लेते हैं...क्यों ??? रावण से अपनी तुलना क्यों नहीं करता कोई ,वह भी तो पंडित ही था...
क्या इसे गंभीरता से नहीं सोचना पड़ेगा ????...
बात कुल मिला जुलकर इतनी ही है,व्यक्ति अपनी विद्वता से नहीं अपने आचरण से पूज्य होता है..
वैसे मुझे बड़ा ही दुःख हो रहा है यह देख कर कि बौद्धिक जगत अब इस स्तर पर उतर आया है कि आपसी दुराव को, क्षुद्र राजनीति को, राम कृष्ण राधा सीता जैसे पात्रों के नाम का अस्त्र रूप में प्रयोग कर लड़ रहा है...
बहुत बहुत बहुत ही गलत बात है यह.....
प्रकरण का पटाक्षेप हो जाना चाहिए...बहुत हुआ अब....और नहीं !!!
शूर्पनखा के विषय में बढ़िया जानकारी दी आपने...आभार !!!
रंजना जी
ReplyDeleteआपने जो यह टिप्पणी दी है कुछ इसी तरह के भाव मेरे मन मेभी निरंतर आते थे किन्तु उन भावो को एकत्रित कर शब्द नहीं दे पा रही थी |
आपने बहुत ही संतुलन बनाकर टिप्पणी दी है बहुत अच्छा लगा |आभार |
डिस्क्लेमर
ReplyDeleteये पोस्ट समसामयिक ब्लॉग प्रसंगों से उपजी हुई नहीं हैं ।
जो भी हो .... हम तो ज्ञान धार्मिक बढाने की द्रष्टि से ही पढ़ते है
जो कुछ समझ में न आये... सवाल भी पूछ डालते हैं :))
कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर
अच्छा लेख है , आपने जो हाइपरलिंक्स दिए बेहतरीन हैं
और टिप्पणियों के बारे में तो "नो कमेंट्स" :)
आभार
डिस्क्लेमर
ReplyDeleteये पोस्ट समसामयिक ब्लॉग प्रसंगों से उपजी हुई नहीं हैं ।
जो भी हो .... हम तो ज्ञान धार्मिक बढाने की द्रष्टि से ही पढ़ते है
जो कुछ समझ में न आये... सवाल भी पूछ डालते हैं :))
कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर
अच्छा लेख है , आपने जो हाइपरलिंक्स दिए बेहतरीन हैं
और टिप्पणियों के बारे में तो "नो कमेंट्स" :)
आभार
हा हा हा.. आज भी लोग ब्लॉगजगत की बातें कर रहे हैं.. वह ब्लॉगजगत तो ब्लॉगवाणी के साथ ही दफ़न हो चला.. जो भी विवाद हुआ, कुछ लोगों ने ही पढ़ा, पांच-दस फीसदी लोगों ने बहस(झगडा नहीं कह रहा हूँ) किया, फिर रूठ-वूठ कर बैठ गए.. :)
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