July 03, 2010

भारत की वीरांगनाये - भाग २ कैलादी चेन्नमा

इंक ब्लोगिंग को बड़ा करके पढने के लिये shift+दबाये

1 comment:

  1. आपकी यह पोस्ट मुझे बहुत अच्छी लगी.. दूसरी बात इस पोस्ट में मुझे आपकी झलक मिली.. एक सुन्दर मन की झलक जो स्वयं से साक्षात्कार करने को उत्सुक है . यह सृष्टि अभिव्यक्ति का ही प्रबंधन है और कुछ नहीं.. अपनी अभिव्यक्ति को यूं कम करके नहीं आंकना चाहिए ..आपका सुमन कुमार

    नारी

    समझना
    एक नारी को
    शायद........
    मुश्किल ही नहीं,
    असंभव है.
    नारी,
    आग का वह गोला है
    जो जला सकती है,
    पूरी दुनिया.
    नारी,
    पानी का सोता है
    वह बुझा सकती है,
    जिस्म की आग.
    नारी,
    एक तूफान है
    वह मिटा सकती है,
    आदमी का वजूद.
    नारी,
    वरगद की छाया है
    वह देती है, थके यात्री को,
    दो पल का आराम.
    नारी,
    एक तवा है
    वह खुद जलकर मिटाती है,
    दूसरों की भूख.
    नारी,
    पवित्र गंगा है
    वह धोती है सदियों से,
    पापियों का पाप.
    नारी,
    मृग तृष्णा है
    जो पग बढ़ाते ही,
    चली जाती है दूर.
    नारी,
    लाजबन्ती है
    वह मुरझा जाती है,
    छु देने के बाद.
    नारी,
    सृष्टी है
    वह रचती है रोज,
    एक नई संसार.

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.