दोषी कौन है कितना और कहाँ ? क्यों है एक अनुत्तरित प्रश्न ?
रचना कि पोस्ट से बात आगे बढाते हुए ,
उपरोक्त कानून व उससे संबंधित बातें अधिकांशतः सबको मालूम है कि *दहेज़ लेना ही नहीं देना भी अपराध है. जानकारी भी है कि दोनों पक्षों के क्या कर्त्तव्य या दायित्व हैं.*
इस बात को अच्छी तरह जानते हुए भी लोग अपने घर में बेटी पैदा होने के बाद से ही उसके लिए पैसा जोड़ने के उपाय में लग जाते हैं. हम सभी इसमे जाने-अनजाने शामिल हैं.
आज भी हमारे भारतीय समाज में कई परिवारों में बेटी को पूरा लाड प्यार-सम्मान-उचित स्थान मिलता है. सब जगह उसके साथ भेदभाव होता ही हो ये जरूरी नहीं है.
पर हाँ कितनी भी सुयोग्य ,सद्गुणी ,सर्वगुण संपन्न उच्च शिक्षिता करवाने के बाद भी लोग उसका दहेजरूपी धन संग्रह भी करते जाते हैं. चाहे उच्च वर्ग हो या निम्न वर्ग हो ,अमीर हो या गरीब ,पढ़ा लिखा परिवार हो या ग्रामीण .सबकी मानसिकता ही ऐसी हो गई है की अपनी प्यारी बेटी को यदि जिंदगी भर सुखी देखना हो तो उसकी दान-दक्षिणा में कोई कमी न रहने पाए. लड़के वाले-वर पक्ष मांगे या न मांगे हमें तो देना ही है. ये हमारे समाज की एक अघोषित घातक बुराई बुरी तरह अपनी जड़ जमा चुकी है. कभी-कभी ज्यादा दहेज़ या पैसे का लालच देकर लड़के को भरमाने का काम भी होता है और एक लडकी का परिवार ही दूसरी लड़की के आगे दुश्मन(competitor) बनकर खड़ा हो जाता है. किसको दोषी माने, किसको समझाए ? एक अनुत्तरित प्रश्न सामने बार-बार आ जाता है।
योग्य युवक-युवतियों का आपसी राजीनामे से विवाह भी इसका एक प्रावधान है पर पूर्वाग्रह से ग्रसित ये कार्य अभी भी हमारे समाज में अधिकांशतः अमान्य है।
जाति के बाहर की बात तो दूर जाति के अंदर भी लड़के या लड़की की पसंद को पूरी मान्यता नहीं ही है। चाहे अपनी बेटी के लिए उसके माँ-पिता-परिवार अपने जीवन भर के लिए दुखी हो जाएँ, विपन्नता में जीना पड़े। बहुत गहरी जड़ें है ,सामाजिक परिवर्तन अवश्य होगा पर बहुत धीरे क्योंकि सारे रीति-रिवाज हमारे द्वारा ही निर्मित हैं न.
हाँ धीरज से चिंतन मनन व नियमित जागरूक चेतना से इसका निदान मिल सकेगा।
ये ही आशा व आकांशा की जा सकती है.
गहरा है अँधियारा हाँ दिया जलाना है , हमको तुमको सबको अब आगे आना है.
अलका मधुसूदन पटेल .लेखिका+साहित्यकार.
happy Holi
ReplyDeleteyes society will change but speed is very slow.
आपकी रचना बहुत ही बढ़िया लगी , आपको होली की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।
ReplyDeletenaari nahi hoti to samaaj banta bhi kaise ,sabse bada tyag to ye hi hai ki ek samaaj ko banaan e ke liye use kitne kasht jhelne padte hai kyaa koi purush ye sab kuch kar sakta tha ye bhi ek prashan hai ?or is samaj ko banaane me usne apni mamta tyag,dayaa dharm .ptivart jeewn ,yahan tak ki apne khoon kaa main hissa tak arpan kar diyaa ,kyaa maadhwi jaisa tyag koi purush kar saktaa hai
ReplyDeleteI loved your blog very much that too in Hindi.I have very emotional attachment to Hindi.
ReplyDeleteकानून तो ये भी है की लड़की का भी उसके पैतृक परिवार में हिस्सा होता है, कितनी जगह यह हिस्सा उसे मिलता है . आजकल कई जगह यह भी विवाद का कारण बन रहा है .
ReplyDeleteजहाँ जहाँ सामाजिक सुधार के लिए कानून का सहारा लिया गया विनाश ही हुआ है .
दर्द बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की.
bahut khub,happy holi.
ReplyDeletekuchh sabd hote hai jodne ke liye aur kuchh sabd hote hai todne ke liye ab kaun sa sabd hame bolna hai yah khud hi vichar karna chahiye...
''गहरा है अँधियारा हाँ दिया जलाना है , हमको तुमको सबको अब आगे आना है.''
ReplyDeletebilkul !
waise.. paise to mere parents bhi jod rahe hain.. par mere dahej ke liye nahi.. meri higher studies ke liye... aur paisa mere bhaiyo ke liye bhi barabar hi jama ho raha hai... :)
आपकी रचना बहुत ही बढ़िया लगी
ReplyDeletekanoon kya karega jab neeyat men hi khot ho?
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