एक बार फिर से महिला आरक्षण विधेयक को उसके मूल स्वरूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल को भेज दिया गया है। गाहे-बगाहे हर साल देश की आधी आबादी के साथ यह नौटंकी चलती है और नतीजा सिफ़र. इस देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री पदों पर महिला आसीन हो चुकी हैं, पर एक अदद आरक्षण के लिए अभी भी महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक माहौल नहीं बन पाया है. यद्यपि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद में अपने अभिभाषण में कहा है कि सरकार महिला आरक्षण बिल को जल्दी से जल्दी संसद से पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। पर दुर्भाग्यवश इस प्रतिबद्धता के पीछे कोई राजनैतिक इच्छा-शक्ति नहीं दिखती है. महिला आरक्षण बिल वाकई एक मजाक बन चुका है, जिस पर हर साल हंगामा होता है. कोई तर्क देगा कि महिलाएं इतनी शक्तिवान हो चुकी हैं कि अब उन्हें आरक्षण की जरुरत नहीं, कोई पर- कटियों से डरता है, कोई आरक्षण में भी आरक्षण चाहता है, कोई इसे वैसाखी बताकर ख़ारिज करना चाहता है तो किसी की नज़र में यह नेताओं की घरवालियों व बहू-बेटियों को बढ़ाने की चाल है. बस इन्हीं सब के चलते राजनीतिक दलों में इस मसले पर आम राय नहीं बन पाने के कारण पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से यह बिल संसद की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। पर कोई यह बता पाने की जुर्रत नहीं कर पाता है कि वास्तव में यह बिल मंजूर क्यों नहीं हो रहा है. महिला-आरक्षण को एक ऐसा झुनझुना बना दिया गया है जिससे हर राजनैतिक दल व सत्ताधारी पार्टी खेलती जरुर है, पर उसे कोई सम्मानित स्थान नहीं देना चाहती. फ़िलहाल इंतजार इस बिल के पास होने का....!!!
आकांक्षा यादव
ये महिला आरक्षण बिल से आप क्या उम्मीद कर रही हैं की रातों रात महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आ जायेगा. कुछ राजनैतिक मुद्दे ऐसे हैं जो सिर्फ और सिर्फ मुद्दे बने रहने के लिए ही है. जहाँ जरूरत नहीं है वहा आरक्षण बराबर बढ़ता जा रहा है और अब हर क्षेत्र में आरक्षण के सिवा बचा क्या है? सिर्फ वोट बैंक के लिए ये इस्तेमाल किये जाते हैं. अगर इनको खत्म कर दिया जाएय्गा तो अगले चुनाव में जनता को लुभाने के लिए बचेगा क्या?
ReplyDeleteइस लिए इससे कुछ भी उम्मीद मत करिए. महिलायों को उनके हाल पर छोड़ दीजिये, वे अपनी रास्ता खुद ही बना लेंगी. फिर नेतृत्व क्षमता सभी में तो नहीं होती, वही होगा की प्रधान पत्नी बनेगी और राज पतिदेव करेंगे.
महिला-आरक्षण को राजनेताओं ने शायद कभी गंभीरता से लिया ही नहीं. बस अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए हर साल वे ये झुनझुना इस्तेमाल करते हैं. उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteआकांक्षा जी, 'इण्डिया टुडे' के नवीनतम 3 मार्च अंक में इण्डिया टुडे स्त्री परिशिष्ट में आपकी 03 कवितायेँ पढ़ीं, वाकई दिल को छूती हैं..बधाई.
ReplyDelete@रेखा श्रीवास्तव
ReplyDeleteवही होगा की प्रधान पत्नी बनेगी और राज पतिदेव करेंगे.
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एक-दो उदाराहनों से पूरी महिला-शक्ति को तो नहीं तौला जा सकता...क्या हर प्रधान पत्नी अक्षम ही होती है. महिलाएं ही जब महिला की टांग खिंचेंगीं तो फिर पुरुषों से क्या आशा ???
बड़ा सार्थक मुद्दा उठाया आकांक्षा जी ने. महिला आरक्षण बिल को शीघ्र पास होना चाहिए.इसके नाम पर नौंटकी ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी.
ReplyDeleteवाजिब मुद्दा, जिस पर गंभीर बहस की जरुरत है. आपने सही रूप में इसे प्रस्तुत किया.
ReplyDeleteरोचक विमर्श. नेता लोग अपनी बपौती छोड़ दें, मुश्किल लगता है. एक डिम्पल यादव के हारने पर अमर सिंह जैसा दिग्गज नेता आउट हो गया. फिर कहाँ से ये नेता महिला नेताओं को पचा पायेंगें.
ReplyDeleteaaranchhan ke bharose mat rahiye apane paron pe khade hoyeeye
ReplyDeleteरश्मिजी ,
ReplyDeleteये मैं महिला के कमजोर या अक्षम होने की बात नहीं कर रही हूँ. सक्षम पुरुष स्त्री को वह स्थान देने के लिए कब तैयार है? मेरा मतलब उस बात से नहीं है. आप क्या समझती हैं? ये आरक्षण किस तरह से लागू होगा. रातों रात महिला नेत्रियाँ तैयार नहीं हो जायेंगी. तब ये तथाकथित नेता अपने परिवार की महिलाओं को उस आरक्षण के नाम पर सामने ले आयेंगे और फिर राज कौन करेगा? ये महिलायें जो कभी राजनीति की परिभाषा से परिचित नहीं हैं. इस नेताओं को कथ्पुलियाँ चाहिए होंगी. जो आरक्षण के नाम पर उनके लिए सीट हासिल कर काम कर सकें. क्या राबड़ी देवी ने बिहार पर राज किया तो वह इस राजनीति से वाकिफ थीं. फिर राज कैसे चला? यह तो सर्वविदित है.
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क्या होगा एक और आरक्षण से अभी क्या कम राक्षस है .
ReplyDeleteजब तक राजनीति एक नयी दिशा नहीं लेती महिलाएँ इस दलदल से दूर ही रहें तो अच्छा है
महिलाएँ इस दलदल से दूर ही रहें तो अच्छा है
ReplyDeletesaari duniya mae agar daldal haen to mahila kehaa kehaa sae dur rahey yae koi upyaay nahin haen
महिला आरक्षण का मुद्दा औरतों को बहलाने वाला झुनझुना ही है. ये लोग ऐसे ही तमाशा करते रहेंगे, पर आरक्षण देंगे नहीं.
ReplyDelete@ रचना जी
ReplyDeleteउपाय है अगर महिलाएँ एकजुट खड़ी हो जायें तो बिना किसी आरक्षण के दिशा बदल सकती हैं . एक तरफ इतना जुड़ाव किसी भी व्यवस्था या राजनीति को हिला सकता है .
आरक्षण एक भीख है अधिकार नहीं
रेखा जी ने सही कहा है :
" ये महिला आरक्षण बिल से आप क्या उम्मीद कर रही हैं की रातों रात महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आ जायेगा."
दलदल अभी भी सीमित है इसीलिये ये दुनिया जीवित है.
राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, संप्रग की अध्यक्ष..सभी महिला ही हैं, पर देखिये ये इस बिल को पास करा सकती हैं य नहीं. नहीं तो यह मानना पड़ेगा कि महिला आरक्षण सिर्फ भुलावा है.
ReplyDeleteयहाँ तो महिला आरक्षण को लेकर संसद का नजारा है. हर कोई अपनी बात कहता है, पर यह नहीं बताता कि महिला-आरक्षण के पारित होने से नुकसान क्या है..आकांक्षा जी ने सही ही लिखा है कि इसे लोगों ने बस झुनझुना बना दिया है.
ReplyDeleteमैंने इस पोस्ट की चर्चा 'शब्द-शिखर' व 'नारी' पर इसीलिए की थी कि लोगों के विचार से रु-ब-रु हुआ जा सके. अभी भी देखा जा सकता है कि इसके पक्ष-विपक्ष में भिन्न-भिन्न मत हैं, ठीक वैसे ही जैसे राजनैतिक दलों में. योग्यता की बात अपनी जगह सही है, पर आरक्षण समाज के उपेक्षित पक्ष को अतिरिक्त अवसर देकर लोगों के समान लाने की बात करता है. आज भी भारतीय महिला का चेहरा देखना हो तो ग्रामीण क्षेत्रों में चले जाइये, असलियत अपने आप दिखने लगेगी.....जहाँ तक पत्नी के नाम पर पतियों के राज करने की बात है, हो सकता है कुछ समय तक यह स्थिति रहे, पर जैसे-जैसे महिलाएं अपनी शक्ति व अधिकार समझेंगीं, वैसे-वैसे ये रोग भी दूर हो जायेगा. तैरना सीखने के लिए पानी में तो उतरना ही पड़ेगा, भयभीत होकर तट पर खड़े होकर तैरना नहीं सीखा जा सकता.
ReplyDelete....आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार. अभी चर्चा ख़त्म नहीं हुई है, आपके मत-विमत का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteतैरना सीखने के लिए पानी में तो उतरना ही पड़ेगा, भयभीत होकर तट पर खड़े होकर तैरना नहीं सीखा जा सकता. clap clap
ReplyDeleteमहिला-आरक्षण को एक ऐसा झुनझुना बना दिया गया है जिससे हर राजनैतिक दल व सत्ताधारी पार्टी खेलती जरुर है, पर उसे कोई सम्मानित स्थान नहीं देना चाहती.
ReplyDeletebahut sahi kaha hai aapne. bas sab khel rahe hain.
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@ ersymops
ReplyDeleteआज तक जीतने आरक्षण हुए हैं उसका परिणाम क्या हुआ है जग जाहिर है 60 सालों में भी कोई बदलाव तो नजर नहीं आता . आरक्षण एक अफ़ीम के नशे के समान है जिससे न उसे सेवन करने वाले का भला होता है न किसी और का .तथाकथित धर्म निरपेक्ष्य देश में इस बीमारी ने आपसी वैमनस्य ही फैलाया है . कैसा धर्म निरपेक्ष्य राज्य है यह जहाँ जाती और जन्म को आधार बनाकर लोगों को बाँट दिया गया . क्या कभी ये खाई हम पाट पायेंगे . नेताओं के स्वप्नजाल में जीती इस देश की जनता कब जागेगी .
जितने पैसे आदिवासियों और अनुसूचित जाति के लोगों के नाम पर खर्च हुए अगर वह उन्हे दे दिये जाते तो आज इस देश में कोई गरीब नहीं होता .
नारा दिया गया गरीबी हटाओ लेकिन गरीब बढ़ते ही जा रहे हैं .
अपनी स्वयं की क्षमता से जो स्थान देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन महिलाओं ने प्राप्त किया है वही सही रास्ता है .
आकांक्षा जी, बेहतरीन पोस्ट. आरक्षण बिल का पारित होना बहुत जरुरी है.
ReplyDelete@ डॉ महेश सिन्हा
ReplyDeleteबदलाव तो बहुत आया है भाई. जिस समुदाय के लोग शासन-प्रशासन में नगण्य थे, उनकी उपस्थिति दिखने लगी है. वे लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए हैं. अब आप दलितों को पीटकर देखिये, जवाब मिलने लगेगा. पहले ऐसा नहीं था. राजनीति में तमाम दलित-पिछड़े चहरे दिखने लगे हैं. मंडल के बाद भारतीय राजनीति का चेहरा बहुत बदला है, उसे आप इग्नोर नहीं कर सकते. जिन दलितों के घर लोग पानी नहीं पीते थे, उन्हें सलाम करने वाले भी है. कम से कम अब तो कोई नहीं कहता कि- ढोर, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ! ये सब ताड़ना के अधिकारी !!
@ बाजीगर
ReplyDeleteयही तो प्रजातन्त्र का खून हो गया
गुण को पीछे छोड़ नंबर गेम हो गया
शायद ही विश्व के किसी देश में ऐसा उदाहरण देखने
को मिले की देश को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम किया गया और किया जा रहा है . आधार होना चाहिए था आर्थिक लेकिन बना दिया गया जातीय क्यों आखिर क्यों ? क्योंकि आर्थिक आधार से वोट की रोटी नहीं सेकी जा सकती थी .
अपने बौद्धिक धन का इतना अनादर किसी देश ने नहीं किया और आज भी झोली फैलाये प्रधान मंत्री माँग करते है कि वापस आ जाओ !
इन नेताओं ने जिनने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिये भ्रष्टाचार के दूसरों को देश की दुहाई देते हैं .....
आज जो प्रगति के परचम लहराये जा रहे हैं इसे किसने प्राप्त किया है
ReplyDeleteदेश के बौद्धिक धन ने, न किसी नौकरशाह न नेता ने
rajnaitik netaon kee yah bheekh naree ke swabhiman par chot hai. ise thukarakar naree aage aaye.
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