रुचिका के केस के बारे मे पता नहीं था । दो दिन पहले जब इस केस का फैसला आया तो पता लगा कि एक लड़की / बच्ची थी रुचिका उम्र मात्र १४ वर्ष , एक उभरती टेनिस कि खिलाड़ी । उसका मोल्सटेशन १९९० मे किया गया था । किसने किया था एक सम्मानित सरकारी पद पर आसीन हरयाना के उस समय के आ ई जी अस पी अस राठोर । जी हाँ आप का मुह भी श्याद खुल गया होगा ये पढ़ कर क्युकी मेरा तो खुल ही गया था जब इस केस कि डिटेल पढ़ी ।
आप अंदाजा लगा सकते माननिये आ ई जी साहिब कि उम्र का उस समय ४८ वर्ष थी । बात यहीं नहीं थमी , तीन साल तक उस बच्ची और उसके परिवार वालो के नाक मे दम कर दिया गया और अंत मे उस बच्ची नए आत्महत्या कर ली ।
रुचिका कि एक सहेली गवाह थी इस सब का , उस सहेली अनुराधा ने इस केस को आगे बढया जिसका खामयाजा अनुराधा के पिता को भी भुगतना पडा ।
आ ई जी साहिब अपने रुतबे से आगे बढते गए और मोल्सटेशन का चार्ज लगाने के बाद भी उनको तरक्की मिलती गयी और १९ साल तक ये केस चलता रहा ।
अनुराधा और उसके माता पिता नए बिना हिम्मत हारे इस लड़ाई को लड़ा लेकिन १९ साल बाद राठौर जी को इस लिये ६ महीने कि सजा देकर छोड़ दिया गया क्युकी वो एक सीनियर सिटिज़न थे और केस पहले ही काफी समय ले चुका था !!!!!!!!!! वह क्या न्याय हैं !!!
कभी कभी लगता हैं हम सब नपुंसक से भी गए बीते हैं जो उन सब का महिमा मंडन करते हैं जो किसी भी प्रकार का अत्याचार करते हैं और वो भी बच्चो पर , महिला पर या अपने से कमजोर पर । मोल्सटेशन को रेप नहीं माना जाता सो उसकी सजा मात्र २ साल हैं वो भी अगर साबित हो जाए । साबित कैसे होगा क्युकी राठोर जी कि पत्नी खुद अपने पति कि इज्जत बचा रही थी और उनका केस खुद लड़ रही थी । छि !!!
एक बच्ची मात्र १४ साल कि उम्र मे अपने से ३४ वर्ष बड़े आदमी से क्या लड़ सकती थी ???
वो आदमी जो पुलिस मे बड़ा अफसर था और जिसकी बीवी कानून कि वकील थी ??
रुचिका तो चली गयी , अनुराधा कि हिम्मत से से से से लेकिन सिखाना सब कहा हैं जो बार बार नारी के प्रति अत्याचार करने वालो को महिमा मंडित करते हैं और कहते हैं कि जब तक उनका क्राइम साबित नहीं होता वो गुनहगार नहीं हैं ।
यौन शोषण , यौनिक गाली , यौन का बार बार एहसास कराया जाना अपने आप मे एक मानसिक अत्याचार हैं । लेकिन लोग तो इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाना चाहते हैं क्युकी जो ये सब करता हैं वो एक सम्मानित पद पर हैं या उसकी उम्र ६० के ऊपर हैं या वो बहुत पढ़ा लिखा हैं ।
कभी कभी मन होता हैं कि "सम्मान" , "आत्म सम्मान " इत्यादी क्या केवल पुरुषो कि जागीर हैं क्या बच्चो और महिलाओ का इन पर कोई अधिकार नहीं हैं ।
धिक्कार हैं उन सब लोगो पर जो ये सब करते हैं और उसके ऊपर से ये भी कहते हैं नारी कितना नीचे गिरेगी । क्या नारी कि स्वतंत्रता का मतलब पुरुष कि बराबरी करना हैं । क्या अगर पुरुष नगन घूमता हैं तो नारी भी घूमेगी , क्या पुरुष अब बच्चे पैदा करेगा और नारी बाहर का काम करेगी ?? और सबसे बढ़िया "नारी स्वतंत्रता किस से sae चाहती हैं पिता , भाई , पति या पुत्र से ??
मुझे लगता हैं हमे अपनी बेटियों को अपने शरीर कि शुचिता से ऊपर उठ कर सोचने के लिये तैयार करना होगा , उनको सिखाना होगा कि जो तुमको नंग्न करता हैं वो तुमको नहीं खुद को नगन कर रहा हैं । तुम्हारी अस्मिता तुम्हारा शरीर नहीं हैं जी किसी के छू देने से गन्दा हो जाता हैं । तुम अपने शरीर को भूल जाओ और अपनी जिंदगी को जियो । आत्म हत्या मत कर बेटी , ये जिंदगी ईश्वर ने जीने के लिये दी हैं
भगवान् से कामना हैं कि रुचिका कि आत्मा को शांति दे और अनुराधा को और साहस दे ताकि वो इस लड़ाई को आगे ले जा सके । हम कुछ कर सकते हैं , हां क्यूँ नहीं कम से कम इस पर अपना विरोध तो दर्ज करा सकते हैं । अपने अपने ब्लॉग पर अपनी आपतियां दर्ज कराये जब भी ऐसा कुछ सुने .
aapka kahan jaayaj hai.....kabhi kabhi ham sab napunsak se bhin gaye gujare ho jate hain.
ReplyDeleteruchika case ke baare me suna to tha lekin adhik jankri kal mili'=.
doshi ko saja kam milim hai use aur saja milani chahiye thi
जी हाँ इस शर्मनाक घटना पर हर एक को विरोध करना ही चाहिए..शायद हमारी आवाज़ कहीं सुनी जाये..
ReplyDeletegrt pace of yours !
ReplyDeletewe must do something... we have to turn the table...
it's really very very much dissapointing...!
रुचिका के मामले को मीडिया देश के सामने ले आया है। वरना न जाने कितनी बच्चियाँ, स्त्रियाँ इस तरह के हादसों की नित्य शिकार होती हैं। मुख्य कारण है हमारे हाथी जैसे बड़े देश की चूहे जितनी बड़ी न्यायपालिका। नतीजा यह कि निर्णय में बरसों बरस लग जाते हैं। यदि यही निर्णय दो बरस में अपील साल भर या छह माह में निर्णीत होने लगे और अन्वेषण करने वाली पुलिस प्रशासनिक पुलिस से बिलकुल अलग हो तो ही इन समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। यह इन दोनों की संख्या बढ़ाने से संभव हो सकेगा। लेकिन सरकारें ये सब क्यों करने लगीं? फिर नेताओं और अफसरों का क्या होगा?
ReplyDeleteहमारी आपति दर्ज की जाए.
ReplyDeleteऐसे अधिकारी से ज्यादा इसको प्रश्रय देने वाले ज्यादा दोषी हैं ...जिनकी वजह से इसकी हिम्मत इतने बढ़ गयी ....... !
ReplyDeleteन जाने कितनी रुचिकाएं इसके द्वरा बर्बाद की गयी हों ?
कैरिअर के चक्कर में ना जाने कितने शिकार अपमान का घूँट पी कर रह गएँ हों?
हमारा भी तीक्ष्ण विरोध दर्ज किया जाय !
ReplyDeletesabse pehle to anuradha aur fir media ka dhanyewad deti hu ki is baat ko publically kiya gaya. jo 60 saal ki police adhikari apni izzet ke tamge apne seene par lagaye ghoomta tha ab be-ijjati ke daago se uska muh to kala hua...hamare desh ki adalat ek baar ko yathasambhav saja na bhi de payi to kam se kam media ne uska mukhota utaar kar use puri zindgi apmaan ki saja to di hai aur saath me hamare naitao ko jinke naam aa rahe hai.
ReplyDeleteruchika jaise anginat ladkiya hai jo aise dansh seh rahi hai. meri samvaidnaye uske saath hai. aur me bhi usko nyaye mile iske liye praarthna karti hu.
रचना, सच लिखा है आपने. मुझे भी इस केस में जो बात सबसे ज़्यादा खराब लगी वह है उस पुलिस ऑफ़िसर की पत्नी का उसके बचाव में आगे आना. ऐसा और भी केसों में हुआ है जब पत्नियाँ अपने पति के बचाव में आगे आती हैं यह जानते हुये भी कि उनके पति ने कितना बड़ा अपराध किया है. और इससे भी ज़्यादा वह समाज दोषी है, जो एक मासूम बच्ची के साथ हुये शोषण के लिये उसे ज़िम्मेदार ठहराता हैं. मैं आपकी इस बात का पूरी तरह से समर्थन करती हूँ कि हमें अपनी बच्चियों को बहुत मजबूत बनाना होगा जिससे कि वे स्वयं को देह-शुचिता के पूर्वाग्रह से मुक्त कर सकें.
ReplyDeleteये सुर्ख़ियों में आ रही न्यूज को पढ़ रही हूँ, लेकिन सत्ता और शक्ति से जीतना आसन काम नहीं है. लड़ने वालों से पूछिए कि क्या क्या सहा है उन्होंने? इसके लिए हर वह इंसान हो वाकई इंसानी संवेदनाओं से पूर्ण है आपत्ति दर्ज करेगा. फिर परिणाम क्या है? क्या बम्बई में बड़ी ३६ साल से मृतप्राय महिला की दशा और कथा इसका एक सशक्त उदारहण नहीं है कि हमारा क़ानून सबूत चाहता है और ऐसे कारनामों के कोई सबूत नहीं होते.
ReplyDeleteदिनेश द्विवेदी जी से पूर्णतः सहमत . मैं तो देश की बेटियों से कहूँगा की आत्म हत्या नहीं ,जरूरत पड़े तो ऐसे नराधम राक्छासों का बध करें . भले ही देश की नाकाम , नपुंसक न्याय व्यवस्था उन्हें फांसी पर ही क्यूं न चढ़ा दे .
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