December 14, 2009

राज्य नहीं - देश के बंटवारे की नींव खोदी जा रही है!

रचना,

तुम्हारे प्रश्नों के जवाब इतने सारे हो चुके थे की इसे पोस्ट का रूप ही देना पड़ा।

छोटे राज्यों कि राजनीति वह भी अपने नाम को अमर करने वाले कुछ अमरता लोपुप लोगों के ही काम है. छोटे छोटे टुकड़ों में बांटकर विकास कि परिकल्पना सुनाने और सोचने में अच्छी लगती है लेकिन कभी यह सोचा है कि एक नए राज्य का गठन कितने करोड़ों रुपये की बरबादी शुरू करता है. बड़े की कल्पना में UP पहले ही बांटा जा चुका है. इन नए राज्यों के लिए - राजधानी, अलग राज्य कि घोषणा के साथ ही उसके लिए करोड़ों कि स्टेशनरी बल्कि पूर्ण रूप से सारी व्यवस्थाएं क्या उसे आम लोगों से ही नहीं वसूल किया जाएगा. क्या राज्य को बांटने के बाद टैक्स , सड़कें, बिजली , रोजमर्रा कि चीजों के दामों में कमी हो जायेगी . नहीं बल्कि जो अभी यहाँ बगैर टैक्स के आ रहे हैं. दूसरे राज्य के नाम पर और महंगे बन कर आयेंगे.

आम लोगों की इन फैसलों में कितनी भागीदारी होती है? जन प्रतिनिधि निरंकुश होकर काम करता है और स्वार्थ पूर्ति में संलग्न रहता है तब भी मतदाता उसको सहने के लिए मजबूर होता है. ऐसा विधान तो अभी बना ही नहीं है की जो प्रतिनिधि चुनता है वह वैधानिक तौर पर उसको निरस्त भी कर सके. जितने एकजुट होकर हम बंटवारे के लिए आन्दोलन करते हैं कभी विकास के लिए करते हैं. शायद नहीं क्यों? क्योंकि ये आन्दोलन करके वे नेता बनने जा रहे हैं, कल को मुख्यमंत्री भी बन जायेगे. वह वही रहेंगे जो आज UP में हैं और कल बुंदेलखंड या पूर्वांचल में रहेंगे. बढ़ेगी तो केंद्र की जिम्मेदारी - और देश को बांटने जुटे लोगों के स्वार्थ की रोटियां सिकेंगी. ये ही आन्दोलनकारी नए राज्य के लिए तैयार होने वाले नए सामान के ठेके अपने रिश्ते दारों को देकर खुद कमीशन खायेंगे. आम जनता को ठग कर खुद अपनी जेबें भरेंगे और राज्य के गाँधी बन जायेंगे.
राज्य बाँट देने से न आप सूखे को रोक सकते हैं और न ही भुखमरी को. जब तक हम खुद को नहीं सुधारेंगे कुछ नहीं सुधर सकता है. प्रशासन तो तब भी चलता था जब UP और उत्तराँचल एक थे. क्या UP की समस्याएं कम हो गयीं. ४ टुकड़े कर देने से बिलकुल ही समाप्त हो जायेगी. बिलकुल नहीं. सब सहमत इसलिए हैं कि उन्हें अपनी पार्टी को सुदृढ़ करने के में आसानी रहेगी. संसद में उनका प्रतिनिधित्व और अधिक हो जाएगा. ये पार्टियाँ सारे मुद्दे अपने हिसाब से उठती हैं और समय आने पर लीपापोती करके समाप्त भी कर देती हैं. जिसे सत्ता मिल जाती है वही अपनी मनमानी करने से नहीं चूकता है. जनता तो भेड़ बकरियां हैं जिनको जिसके हाथ में सत्ता आ गयी उसके अनुसार जीना ही होगा.
कभी जो काम अंग्रेजों ने किया था , वही अब हम अपने ही देश में करने जा रहे हैं. और एक दिन वह भी आएगा की ये तथाकथित नेता अपने स्वार्थ के लिए चार राज्यों को मिला कर अलग राष्ट्र की मांग करेंगे. कश्मीर अभी इस से ग्रसित है और पता नहीं कितने पाकिस्तान मिल जायेगे हमारे देश में कश्मीर बनाने के लिए.
इस विभाजन से पहले जनमत की भी हिस्सेदारी होनी चाहिए. उन्हें बंटना मंजूर है कि नहीं.
प्रजातंत्र में सिर्फ जनप्रतिनिधि के पीछे चलने वाला सैलाब अपनी सोच रखता हो ऐसा नहीं है. उन्हें बरगला कर लाया जाता है कि मेरे पीछे चलो तुमको अच्छी नौकरी, घर मकान सब मिलेगा. और वे उनके साथ चलते हैं. क्या जगह जगह होने वाली रैलियों कि असलियत से सब लोग वाकिफ नहीं हैं. किराये पर लाये जाते हैं लोग . ये उमड़ा हुआ सैलाब ये भी नहीं जानता है कि इस रैली में क्या होने वाला है और इससे क्या फायदा होगा?

८० प्रतिशत लोग यही कहते हैं कि चुनाव के बाद प्रतिनिधि ५ साल बाद ही दिखाई देते हैं तो किस बात का विश्वास किया जाए. हमारे अन्दर जब एक राज्य में संगठित होकर रहने कि काबलियत नहीं है तो बांट कर क्या करेंगे?
ये राज्य का विभाजन नहीं बल्कि देश विभाजन के लिए तैयार कि जा रही पृष्ठभूमि है. इसको कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए.

5 comments:

  1. रेखा आप जो कह रही हैं मेरा मानना भी वही हैं । देश को बाँटने से क्या होगा ?? अगर यु पी को ले तो मान लो किसी के दो मकान हैं और बाँटने पर दो अलग प्रदेशो मे चले जाए तब ?? वो सब संसाधन जैसे बिजली कहां बनती हैं और कहां कहां दी जाती हैं , क्या होगा उन इलाको का जहाँ बिजली नहीं बनती , क्या एक दिन मे उनके लिये पॉवर स्टेशन बन जायेगे । संसाधन को बढाने के लिये बटवारा क्यूँ जरुरी है और सब से जरुरी बात " आम आदमी कैसे अपना विरोध जता सकता हैं की हमे ये नहीं चाहिये "

    ReplyDelete
  2. रचना जी से ....बिलकुल सहमत हूँ...... बहुत अच्छे लगे दोनों लेख.....

    ReplyDelete
  3. नेता अपने परिजनों की बेरोजगारी दूर करने का प्रयास कर रहे हैं , उन्हें यह अधिकार हमने ही दिया है ( हमारी व्यवस्था ही ऐसी है )

    ReplyDelete
  4. राज्यों के बँटवारे के नाम पर देश बँटवारे की ओर बढ़ रहा है ..आपसे शब्द -ब-शब्द सहमत....!!

    ReplyDelete
  5. काबिलेतारीफ बेहतरीन

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.