काफी दिनों से एक बात बराबर मन मे हैं सो आज आप लोग के सामने एक प्रश्न के रूप मे दे रही हूँ । अगर कोई जवाब सुझाए तो जरुर बाते ।
जब भी किसी का जन्म होता हैं तो जिस देश मे वो व्यक्ति पैदा होता वहाँ का " नैचुरल सिटिजन " कहलाता हैं । उस व्यक्ति को वो देश वहाँ की "नागरिकता" प्रदान करता हैं ।
{ बहुदा ऐसा होता हैं और ये बहुदा दिस्क्लैमेर हैं क्युकी कोई न कोई ब्लॉगर बड़ी जहीनता से उस देश का नाम जरुरदेगा जहाँ ऐसा नहीं होता और पोस्ट की बात वहीं से अलग दिशा मे जायेगी !!!} ।
जब हमारा जन्म होता हैं किसी घर मे और हम वहाँ रहते हैं तो ये क्यूँ कहा जाता हैं " अपने माँ - पिता के घर मे रह रहे हो " अगर हमारी बात पसंद नहीं हैं तो निकल जाओ । क्या किसी घर मे जन्म ले लेने मात्र से ही हम उस घर के " नैचुरल सिटिज़न " नहीं हो जाते हैं ? फिर वो माता - पिता का घर क्यूँ कहलाता हैं । ये बात पुत्र और पुत्री दोनों के सम्बन्ध मे लागू होती हैं और निरंतर सुनाई देती हैं ।
जहाँ भी शादी के बाद अगर बेटा माँ -पिता सब साथ रह रहे होते हैं तो सब यही कहते हैं " अरे आप बडे भाग्यवान हैं आप का बेटा आप के साथ रह रहा हैं " और अगर किसी वजह से लड़का और बहु की रसोई अलग हैं तो सुनाई देता हैं " रह आप के घर मे रहे हैं और खाना अलग पकाते हैं ""
अगर लड़कियों की बात करे तो अविवाहित लड़की किसी भी उम्र को क्यूँ ना हो कहा यही जाता हैं अपने माँ - पिता के यहाँ ही हैं । " क्या करे बेचारी शादी नहीं हुई ना , अब सारी जिंदगी माँ - बाप साथ रहेगी " या " इसकी तो जिंदगी ही ख़राब होगई , शादी नहीं हुई , अब वृद्ध माँ - पिता के साथ रह रही हैं तो उनका ख्याल तो रखना ही होगा ""
ऐसी बातो का क्या कारण हैं , क्यूँ जहाँ हम पैदा होते हैं वो घर हमेशा हमारे माँ - पिता का ही कहलाता हैं { पुरूष और स्त्री दोनों }
और
अगर केवल स्त्री की बात करे तो बिन ब्याही , कुमारी , माँ - पिता के घर मे " नैचुरल सिटिज़न " नहीं होती और विवाहित ससुराल मे कभी "नैचुरालाईज़ड सिटिज़न " { Naturalized CItizen } का दर्जा नहीं पाती ।
मै यहाँ इस पोस्ट किसी भी कानूनी अधिकार की बात नहीं कर रही , जबकि होना चाहिये ऐसा अधिकार । मुझे पता नहीं क्यूँ लगता हैं की हमारा समाज नयी पीढी के लिये बहुत "संकुचित हैं " अपनी सोच मे ।
हम अपने बच्चो को सहजता से कुछ भी नहीं दे सकते हैं । जब जिस घर मे जो बच्चा पैदा होता हैं जब वो घर भी उसका नहीं हैं हमारी सोच और हमारे सामाजिक नियमो मे तो फिर हम क्यूँ उम्मीद करते हैं की नयी पीढी हमारे लिये सहिष्णु होगी ।
कानून भी हमारी सोच का ही नतीजा होता हैं । हम पैतृक सम्पति मे बच्चो को कानूनी अधिकार तो सहर्ष देते हैं और ये भी ध्यान रखते हैं की हमारे बच्चे को हर सुख सुविधा मिले और हम अपना सब कुछ मरने के बाद अपने बच्चो को ही दे जायेगे ये बात भी बार बार कहते हैं पर जिस घर मे जो बच्चा पैदा हुआ हैं उस घर से जब मन हो उसको निकलने का अधिकार भी रखते हैं ।
क्यूँ होता आ रहा हैं ऐसा ???
ब्लॉग टेम्पलेट बदल दी हैं अगर पढ़ने मे असुविधा हो तो निसंकोच कह दे ताकि ठीक कर सकूँ
हमको कई बार धमकी मिली और एक बार पिताजी ने घर के बाहर खडा भी कर दिया। खैर हम भी शरीफ़ नहीं थे।
ReplyDeleteबहरहाल हम गुस्से में नहीं आये और कहीं जाने के बजाय बाहर खडे रहे। थोडी देर में माताजी बाहर आयीं और साथ अन्दर ले गयीं। उसके बाद डांट पडती रही, फ़िर हम सो गये।
सारे झगड़े निजि संपत्ति के ही हैं। यह न थी तब मनुष्य समाज खूबसूरत था। जब यह न होगा तब भी खूबसूरत होगा।
ReplyDeleteफ़ॉण्ट थोड़े बड़े और सफ़ेद अक्षरों में हो जायें तो अधिक बेहतर रहेगा… लेख पर टिप्पणी बाद में…
ReplyDeleteयदि यह प्रश्न वास्तव में जानकारी के लिए पूछा गया है ( और नई पीढी के प्रति माता पिता को संकुचित प्रमाणित करने के लिए यह लिखा गया है तो मेरी प्रतिक्रिया निरस्त मानें ) तो मैं कहना चाहूँगी -
ReplyDeleteजिस प्रकार जिस देश की नागरिकता जन्म से मिलती है, उस देश के प्रति आप को संवैधानिक सारे कर्तव्य निभाने पड़ते हैं (वस्तुतः तो भावनात्मक रूप से भी होने अपेक्षित हैं), ऐसा न करने पर वह राज्य आप को दण्डित करने का अधिकार रखता है,आप को आपके अधिकारों से वंचित कर देता है/कर सकता है|
इसी प्रकार जीवन और अस्तित्व देने वाले माता पिता के प्रति यदि कोई संतान केवल अधिकार/ लेने/ प्राप्ति/कब्जा जमाने/ खसोट लेने जैसे कम या अधिक किसे भी भाव से रहे तो उसका क्या किया जाए? घर का भी तो परम्परा से चला आया एक अलिखित संविधान और आचार संहिता होती है न?
अधिकार की बात सदैव कर्तव्य के बाद आती है| अपने माता पिता के प्रति सम्पूर्ण सद्भाव से अपने सभी कर्तव्य निभाने वाली संतान को ऐसा नहीं सुनना पड़ता| न कोई माता पिता ऐसा करते कहते हैं| हाँ, न्यूनाधिक अपवाद सदैव समाज में विद्यमान रहते हैं|
" उस घर से जब मन हो उसको निकलने का अधिकार भी रखते हैं ।"
ReplyDeleteकिस जमाने की बात है? अब तो माता-पिता को बेघर किया जा रहा है। रही अधिकार की बात तो कविताजी से सहमत- अधिकार की बात सदैव कर्तव्य के बाद आती है॥
बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने ...माता पिता अपने विचारों से असहमत बच्चों को बहुत आसानी से कह देते है ..हमारा कहा मानो ...नहीं तो घर से निकल जाओ ...एक ही परिवार के सदस्यों के अलग अलग मत हो सकते हैं ...जीने के तरीके में भी अंतर होता है ...सबसे एक जैसे व्यवहार की उम्मीद करना कहाँ तक उचित है ...बहुत से संयुक्त परिवार माता पिता के ऐसे व्यवहार के कारण भी टूटते हैं ...एक दूसरा पहलू सामने लेन के लिए बहुत आभार ...!!
ReplyDeleteटेम्पलेट अच्छा है मगर गहरे रंग का बैकग्राउंड होने के कारण थोडा असुविधाजनक भी है ...!!
मैने हर नयी और पुरानी पीढी मे ये होते देखा हैं कविता । बात नई पीढी के प्रति माता पिता को संकुचित प्रमाणित करने से कोई सम्बन्ध नहीं रखती हैं हैं । और बात बच्चो के अधिकार और कर्तव्य की भी नहीं हैं बात सिर्फ़ इतनी हैं की जिस जगह हम पैदा होते हैं उस जगह से कोई हमे कैसे निकल जाने के लिये कह सकता हैं { और इसे किसी एक पीढी से ना जोड़ कर देखे } हम पीढी दर पीढी ये दोहरा रहे हैं मै इसका कारण जानना चाहती हूँ {क्युकी मै मानती हूँ ब्लोगिंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता हैं }
ReplyDeleteरचना जी थोडा विस्तृत तौर पर आपके सवाल का जबाब देना चाहता हूँ ! पहले तो यह बात पूर्ण रूप से सत्य नहीं है की बच्चा जिस देश में पैदा होता है उसका नेचुरल नागरिक होता है ! मै इसे इस उदाहरण के तौर पर आपको समझाता हूँ : मेरा कजिन, पिछले बारह- चौदह साल से अमेरिका में रह रहा है, वहा जाकर उसने कांट्रेक्ट मैरेज की, तब उसे ग्रीन कार्ड मिला और अब उसे वह की सिटिजनशिप मिल गई है ! उसने भारत आकर देहरादून में अपने माता-पिता के घर से शादी की ! (आप यहाँ पर फर्क समझने की कोशिश करना ) शादी के एकाध महीने बाद वह वापस अमेरिका चला गया बहु को माता पिता के पास छोड़ कर ! अब बहु उम्मीद से है , दिसम्बर में जब देहरादून में डिलीवरी के बाद जो बच्चा पैदा होगा वह जन्म द्वारा(बाई बर्थ ) भारत का नहीं, अमरीकी नागरिक होगा ! रही बात माता पिता का घर कहने की तो इसे मै इस उदाहरण से समझाता हूँ : प्रकृति का नियम- चिडिया घोसला बनाती है (वह घोसला उस चिडिया का ही कहलाता है ) बच्चे हुए और कुछ दिनों बाद फुर्र करके उड़ गए, वे माता-पिता के बनाए घोसले पर एकाधिकार नहीं जमाते, तो ऐसा ही इंसानों के साथ भी है !
ReplyDeleteहाँ यह सरासर गलत है कि जो अशिक्षित ( चाहे वे कहने को डिग्री धारी ही क्यों न हो ) माँ-बाप, बेटी को पराया धन कहते है ! अगर माँ-बाप औलाद को अपने बुढापे का आसरा मानते है तो मेरा तजुर्बा है कि बेटे से बढ़कर बेटी अपने माँ-बाप का ख्याल रखती है ! माँ-बाप की सम्पति बार बेटे और बेटी का बराबर का हक़ होना चाहिए और धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब यह ट्रेंड आने लगा भी है !
ये बात सही है और आपका उठाया सवाल भी जायज है।घर के मामले मे मैं सिर्फ़ इतना कह सकता हूं कि लड़को को उसे अपना घर कहने का हक़ ज़रूर मिला है और लड़कियों के साथ बहुत नाईंसाफ़ी हुई है।वो जिस घर मे पैदा होती है वो उसका मायका यानी माता-पिता का घर होता है और जब विवाह के बाद अपने पति के घर जाती है तो वो उसका ससुराल होता है यानी सास-ससुर का घर।तो उसका अपना घर कंहा है।ये सामाजिक व्यवस्था का दोगलापन नही है तो क्या है?और ये बात भी सही है, शादी ना हो तो तमाम सवाल और नसीब फ़ुटने का लेबल, हम लोगो के बारे मे बारे मे कोई सवाल नही और ब्रम्हचारी का तमगा चाहे कितना भी दुराचारी क्यों ना हो।मैं दुराचारी नही लेकिन शादी नही करने के कारण ब्रम्हचारी हूं।बहुत सी बातें है।ज्यादा कुछ नही कहना चाहता हो सकता है जितना कहा उसीपर किसी को आपत्ति हो जाये।एडवांस मे उन लोगों से क्षमा मांगते हुये सिर्फ़ इतना कि ये मेरे अपने विचार है ज़रूरी नही इससे सब सहमत हों।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का लेआउट डार्क है और फांट छोटे हैं, इसलिए पढने में बहुत दिक्कत हो रही है। कृपया इसका कुछ उपाय करें।
ReplyDelete--------------
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आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
mujhe thodi blog pdhne me tkleef ho rhi hai krpya font thode bade ho jay to achha rhega .
ReplyDeleteइस टेम्पलेट मे कुछ भी एडिट करने की सुविधा नहीं हैं !!!! एडिट हटमल मे बस टेक्स्ट का कलर ही बदला जा सकता था जो सुरेश के कमेन्ट के बाद बदल दिया । टेक्स्ट बड़ा छोटा करना तो अपने कंप्यूटर पर भी किया जा सकता हैं सो अगर तब भी बड़ा नहीं होता तो फिर पुरानी टेम्पलेट पर कर दूंगी लेकिन प्लीज़ एक बार इस को कुछ दिन ट्राई करते हैं सुविधा नहीं लगेगी तो बदल देगे अर्शिया
ReplyDeleteशोभना चौरे
ReplyDeletefont aap khud hi badaa kar saktee haen agar naa aatii ho taknik to nisankoch yahaan yaa apnae blog par punch kar daekahe jarur batayee jayaegi
regds
main kavita ji ki baat se poorntah sahmat hun........adhikar aur kartavya ka joda hamesha sath sath chalta hai aur jab hum apne adhikar pana chahte hain to usse pahle apne kartavya bhi nibhane chahiye to phir adhikar swatah hi mil jayenge.
ReplyDeleteयानी वंदना आप कहना चाहती हैं की आज तक किसी भी पीढी ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया हैं इसीलिये उस पीढी की पुरानी पीढी उसको जब चाहे अपने घर से बेदखल कर सकती हैं । मे यहाँ किसी एक पीढी की बात नहीं कर रही हूँ । क्या ये कह सकती हूँ एक बार फिर से मेरी पोस्ट देखे शायद कुछ दूसरा पहलु दिखे ।
ReplyDeleteनई पीढ़ी का प्रयोग यहाँ माता पिता के सन्दर्भ में है|
ReplyDeleteनई पीढ़ी अर्थात एव्री न्यू जेनेरेशन, इन रेफेरेंस ऑफ़ देयर पेरेंट्स ;
न कि केवल आज की अपेक्षा और सन्दर्भ में नई जेनेरेशन.
नेचुरल इन्हेरिटेन्स और सेल्फ एक्वायर्ड में यही फरक है.
ReplyDeleteसामाजिक संरचना है.
समाज के नियम न पालन करो, तो समाज निकाला से जेल तक, देश के नियम पालन करो तो देश निकाला का प्रावधान, घर के न पालन करो तो घर निकाले का..यह सब अनुशासन कायम रखने के लिए बनाये गये प्रावधान हैं, जिससे घर, समाज और देश और दुनिया सही तरीके से चलती रहे. और जब नियम हैं हमारे द्वारा ही बनाये हुए तो कुछ परीभाषायें जुड़ जाना और प्रश्न फॉर्म होजाना स्वभाविक हैं, जैसे:
पिता जी के घर में रहते हो? आदि आदि..
मैं ऐसा सोचता हूँ.