नारी ब्लॉग पर प्रश्न उठाने की परम्परा शुरू से रही है और लंबे शीर्षकों की भी!!!
आजादी की इस पूर्वसंध्या पर एक सवाल, एक लंबे शीर्षक के साथ मैं भी पूछना चाहती हूँ, कि कैसे इस दिन को सार्थक तरीके से मनाया जा सकता है? एक अमूर्त भारतमाता की जे-जयकार से, एक छूट्टी की तरह, या फ़िर उत्सव धर्मिता मे रंगे त्यौहार और वर्चुअल शुभकामनाओं के आदान प्रदान से? या फ़िर ऐसे ही संकेतो से?
आज़ादी की पूर्वसंध्या पर जब देश मे बहुत से लोग स्वाइन फ्लू के आतंक से घिरे है, अपनी जेबों मे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को तलाश रहे है, और बाज़ार कुछ असली नकली मास्क और तमाम तरह की चीजों को बेचने मे लगा है, और मीडीया का काम सिर्फ़ सनसनी फैलाना भर है, मुझे लगता है की ब्लॉग जैसे सीमित मंच से ही सही, अपनी एक भूली-बिसरी परम्परा जो आजादी के आन्दोलन का मुख्य हिस्सा थी, को याद करने का ये सटीक समय है। आज़ादी की लड़ाई के साथ एक और मुहीम महात्मा गांधी ने चलाई थी। वों थी सफाई अभियान, सामाजिक सारोकार की और आमजन की भागीदारी की। पढ़े-लिखे, छात्र और नागरिको को शहरी और सार्वजानिक स्थलों की सफाई मे भागीदार बनाना। गरीब बस्तियों मे शिक्षा और स्वास्थ्य संबन्धी जानकारी इसका प्रचार करना, शिक्षा और सूचना को समाज के कमजोर हिस्सों तक पहुचना और सबके लिए सार्वजनिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करना।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए व्यक्तिगत हायजीन, मास्क, वैक्सीन, और बाज़ार मे मौजूद तमाम साधनों पर कई ब्लोगों पर बात हो चुकी है। कुछ मैंने अपने ब्लॉग स्वपनदर्शी पर भी लिखा है। एक पक्ष जो सामने नही आया है वों ये है कि अकेले अपने दम पर, अपनी जेब की दम पर इसका मुकाबिला करना सम्भव नही है। ये एक संक्रमित बीमारी है, और अमीर-गरीब, स्त्री पुरूष, काले-गोरे का भेद नही करेगी। १०० करोड़ जनसँख्या वाले देश मे व्यक्तिगत हाईजीन अगर एक चौथाई तबका फोलो भी करे तब भी ख़ुद को बचा नही पायेगा। अपने-अपने द्वीप मे हम नही रहते, और इसीलिये, अपने और अपनो को बचाने की इस मुहीम का सबसे कारगर हिस्सा, मास्क खरीदने, फ्लू के मंहगे टेस्ट के पीछे भागने की बजाय पुब्लिक हायजीन को ठीक करने मे हमारा थोडा -बहुत योगदान , सहयोग हो सकता है। और ये एक आदमी के बूते की बात नही है, बल्की कई लोगो का मिलाजुला अपने-अपने स्तर पर प्रयास हो सकता है। इतिहास की महामारियों, जिनमे प्लेग काफी कुविख्यात है, का सबसे बड़ा प्रतिरोध पब्लिक स्पेस मे लोगो की सामूहिक भागीदारी के जरिये साफ़-सफाई का ही रहा है।
क्या इस तरह की किसी पहल के लिए लोग तैयार है? ज्यादा नही, क्या एक घंटा प्रति महीने आप सार्वजानिक स्वच्छता मे किसी तरह का सहयोग कर सकते है, किसी ऐसे को स्वास्थ्य और बीमारी से बचाव की शिक्षा दे सकते है, जो पढ़ना -लिखना न जानता हो? कामगार हो? किसी स्कूल मे जाकर, खासकर गरीब स्कूलों मे, सरकारी स्कूलों मे बच्चों के साथ साफ़-सफाई की जानकारी बाँट सकते है?
सही समय पर सही आलेख आया हैं नारी ब्लॉग
ReplyDeleteपर
ji ha mai ak ghanta bant skti hoo un bachho ke sath jinka 100 krod ki janta me bhi nam nhi hai .
ReplyDeletemaine kchra beenne valo bachho ko ,mandir me bhikh mangne vale bachho ko prathmik sfai ke bare me aur school jane ke liye taiyar kiya hai aur aaj ve kaksha panchvi me pdhte hai sarkari school me .
इस काम का बीडा उठाने के लिए शोभना जी को बहुत बधाई..प्रयास अपने स्तर पर भी जरुर करेंगे..
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें. .!!
aapka prayas sukhad aur prasansaneey hai. Thanks
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