स्त्री सशक्तिकरण के उदाहरण में किसी नए खून, नई पीढ़ी, जींस और तेज-तर्रार जबान/कलम का होना कतई जरूरी नहीं है। आज रक्षा बंधन पर सुबह-सुबह एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला। इस घटना के बारे में पढ़ कर आप भी मेरी बात से सहमत होंगे। आज बहनें भाइयों को राखियां बांध रही हैं। सुबह से ही यह सिलसिला शुरू हो जाता है। इसीलिए कोई 10 बजे जब मैं घर से निकली तो सड़कें रोज के मुकाबले काफी खाली-खाली सी थीं।
एक लाल बत्ती पर मेरी नज़र बगल वाली गेहुंए रंग की एक लंबी गाड़ी पर पड़ी, जिसे एक बुजुर्ग महिला- कम से कम 70-75 साल की- चला रहीं थीं। मुझे हमेशा अच्छा लगता है ऐसे नजारे देखना कि औरत मोटर गाड़ी चलाए और पुरुष बगल में बैठे। मुझे समझ में आती है कि स्टीयरिंग व्हील पर बैठी औरत की ताकत। उसके हाथ में ताकत है- स्टीयरिंग के जरिए गाड़ी को मैनिपुलेट करने की, जाहे जहां ले जाने की, अपने काबू में रखने की! और साथ बैठे लोग हमेशा निर्भर-से लगते हैं।
तो उस दिन देखा उन बुज़ुर्ग महिला को जो लाल बत्ती पर रुकी कार के स्टीयरिंग व्हील पर थी और लगातार बातें किए जा रही थी, मुस्कुराती जा रही थी। बीच-बीच में कनखियों से बगल में नजर डाल लेतीं। ट्रैफिक और बत्ती पर उनका पूरा ध्यान था।
बगल की सीट पर उनसे भी ज्यादा बुजुर्ग बैठे थे, जिनके चेहरे पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिख रही थी। उनकी नजर सिर्फ लाल बत्ती वाले खंबे पर टिकी थी। एकाध मिनट तक मैं यह दिलचस्प दृष्य देखती रही। फिर बत्ती हरी हो गई। मैने उनकी गाड़ी को पहले जाने दिया। इसमें मेरा स्वार्थ भी था। उस सुंदर दृष्य को थोड़ी देर और देख पाने का लालच था।
पर जैसे ही गाड़ी कुछेक फुट आगे बढ़ी, उस दृष्य में कुछ और दिलचस्प चरित्र जुड़ गए। कार में पीछे वाली सीट पर, जिसे मैं अब तक देख नहीं पाई थी, दो युवक बैठे थे और वह महिला संभवतः उन्हीं से बातें कर रही थी। उन दो युवा, सक्षम पुरुषों के रहते उस महिला का खुद, पूरे आत्मविश्वास से कार चलाना!
रक्षा बंधन जरूर एक मीठा त्यौहार है, भाई-बहन के मिलने का, गिलों-शिकवों, मान-मनौवल, प्यार-मनुहार का। लेकिन सोचिए तो भला- क्या ऐसी महिलाओं को जरूरत है रक्षा करने वाले भाइयों की?
भाई और बहिन का सम्बन्ध रक्षा से ऊपर प्यार
ReplyDeleteसे होता हैं . और भाई बहिन का रिश्ता अधिकार
का होता हैं . अगर हम अपने बुरे वक्त मे किसी
से भी ये कह सके की हमारे लिये ये कर दो तो
वो रक्षा का ही प्रतीक हैं
लेख बढिया लगा
Mujhe bhi achchha lagaa.
ReplyDeleteहमें तो ये नज़ारा अकसर देखने को मिलता है
ReplyDeletevenus kesari
मैं कब सीखूंगी गाड़ी चलाना ...मुझे रोना आ रहा है..!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पर --
ReplyDeleteकिसी महिला के गाडी चलाने पर आप इतनी अभिभूत क्यो हुई? कही अवचेतन मे महिला के निर्बल होने का अहसास तो नही है? आज महिलाए क्या नही कर रही है.
कभी देखा है - किसी पुरूष को कार चलाता देख कोई पुरूष अभिभूत होकर एक पोस्ट लिख दे. क्षमा चाहता हूँ
आप उस उम्र पर चमत्कृत होती तो शायद कुछ अलग बात होती. मुझे डर है कही महिला सशक्तिकरण की इतिश्री गाडी चलाने तक ही सीमित न मान लिया जाय. (सन्दर्भ सादर वाणी मैडम का कमेंट)
मैने तो ऐसे पुरूषो को देखा है जो हवाई जहाज चलाते है पर अन्दर से अत्यंत कमजोर है. ऐसी महिलाओ को देखा है जो कुछ चलाना नही जानती पर अत्यंत सशक्त है.
क्षमा करे बेबाक हो गया. पर क्या करू जब बाते दिल को छूती है तो मेरा मानना है कि उसे अन्दर नही रखना चाहिये.
रचना के स्तर पर यह पोस्ट उत्कृष्ट है.
(उपरोक्त विचार मेरे वैयक्तिक विचार है.)
बहुत अच्छा लगा पर --
ReplyDeleteकिसी महिला के गाडी चलाने पर आप इतनी अभिभूत क्यो हुई? कही अवचेतन मे महिला के निर्बल होने का अहसास तो नही है? आज महिलाए क्या नही कर रही है.
कभी देखा है - किसी पुरूष को कार चलाता देख कोई पुरूष अभिभूत होकर एक पोस्ट लिख दे. क्षमा चाहता हूँ
आप उस उम्र पर चमत्कृत होती तो शायद कुछ अलग बात होती. मुझे डर है कही महिला सशक्तिकरण की इतिश्री गाडी चलाने तक ही सीमित न मान लिया जाय. (सन्दर्भ सादर वाणी मैडम का कमेंट)
मैने तो ऐसे पुरूषो को देखा है जो हवाई जहाज चलाते है पर अन्दर से अत्यंत कमजोर है. ऐसी महिलाओ को देखा है जो कुछ चलाना नही जानती पर अत्यंत सशक्त है.
क्षमा करे बेबाक हो गया. पर क्या करू जब बाते दिल को छूती है तो मेरा मानना है कि उसे अन्दर नही रखना चाहिये.
रचना के स्तर पर यह पोस्ट उत्कृष्ट है.
mai sahamat hoon.
लेख बढिया लगा
ReplyDeleteअब रक्षा बंधन का अर्थ बदल दिया जाना चाहिए । भाई बहन दोनो एक दूसरे के काम आये और दोनो में प्यार बना रहे तो अधिक अच्छा रहेगा। दोनो को बराबर ज़िम्मेदारियान और बराबर हक मिल वो अच्छा रहेगा है, बजाय इसके की एक को अबला बनाकर रखें और दूसरे से अनुचित अपेक्षा की जाए।
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