" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
बहुत सुंदर उदाहरण, शब्दों का सुंदर चयन, और एक ज्वलंत मुद्दे पर बहस की शुरुआत! साधुवाद!
यह शादी नहीं एक तरह का "कौंट्रैक्ट" अधिक प्रतीत होता है. इस कहानी में कई बिंदु गौर करने लायक हैं.
१) हर लडकी की शादी क्यों की जाती है? यदि शादी न भी हो तो कौनसा पहाड टूट पडेगा? यदि लडकी को अपने पिता की इतनी ही चिंता थी तो पिता के घर में ही बेटी बनकर क्यों नहीं जिंदगी गुजार दी?
२) शादी दो अक्षर का एक शब्द है जिसके सामाजिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक आयाम होते हैं - इसी से इस रिश्ते की मर्यादा बनती है. यदि शादी की भी है तो इसके पीछे शादी की मानसिकता होनी चाहिये थी, न कि नौकररूपी पति या पतिरूपी नौकर की.
सच मानिये मुझे बहुत गुस्सा आता है जब किसी (लडके या लडकी) की शादी इसलिये कर दी जाती है क्योंकि "उम्र निकली जा रही है". शादी को एक सामाजिक मजबूरी मानने वालों से मेरा अनुरोध है कि अपनी सोच को खोलें.
" यदि शादी की भी है तो इसके पीछे शादी की मानसिकता होनी चाहिये थी, न कि नौकररूपी पति या पतिरूपी नौकर की.
I do not know if that conclusion is the right conclusion. Its true that this marriage has broken the middle class stereotype of marriage. The truth and reasons may be best known to the people who are directly involved in this episode.
However, I think that in Indian society the traditional plea for marriage of a boy is
1. " to get some one who can make rotee for him". 2. The parents of the boy are getting older and need a "bahu" to take care of them.
These reasons and role of a wife as a care taker of the Parents in law is Pre-requisite.
Marriage specially the arranged marriage in India is anyway is a CONTRACT, that considers -religion -Caste -economic status/dowry -bonded slavery of women for life -women has to take care of relatives, and family of the husband without pay, without the sense of gratitude, and without a choice.
If all that is moral, and right, I do not see what is wrong with this example, if the choice is being made by the adults.
However, the traditional mindset does expect that the men has to be more qualified than women, the bread winner, etc. But society will change, and so the rules too.
Anyway, a true marriage or love ideally should be beyond the prejudice of caste, religion, educational, economic and social status, or any artificial standard that is man made.
इससे लड़की ने पिता कि समस्या का निदान तो खोज लिया , लेकिन क्या वह मानसिक तौर पर उस व्यक्ति को वह सम्मान और अधिकार दे पा रही होगी , जिसको उसने आजतक एक ड्राइवर कि तरह से देखा और व्यवहार किया है? शायद नहीं यह एक समझौता है और इसमें दोनों ही जिंदगियों के साथ उपहास हुआ है? ऐसा नहीं है कि अगर वह चाहती तो कोई एक भी ऐसा लड़का न मिलता जो उसकी इस समस्या के प्रति सहभागी बनाने के लिए तैयार होता. अगर नहीं मिला तो यह हमारी बीमार मानसिकता है क्योंकि लड़की बहू बनाकर जाती है और वह नौकरी भी करती है और अपने सास-ससुर के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने के दायित्व को भी पूरा करती है ( अपवाद इसके भी है), फिर एक दामाद बेटा बनकर ऐसा क्यों नहीं कर सकता है. ऐसा भी नहीं है कि करते नहीं हैं, ढेरों ऐसे दामाद हैं , हो अपने सालों के होते हुए भी सास-ससुर के प्रति बेटों से अधिक दायित्व निभा रहे हैं. इसका निदान यही है, कि अगर किसी के बेटा नहीं है, तो दामाद को और उसके घर वालों को भी इस दायित्व के निभाने में सहयोग देना चाहिए तो इस तरह से किसी बेटी को इतना बड़ा समझौता करने के लिए बाध्य न होना पड़े.
जो लड़की एमएनसी में काम कर रही है। वह स्वतंत्र है कुछ भी करने को। उस ने जो कुछ किया वह सोच समझ कर किया। उस पर टिप्पणी नहीं होनी चाहिए। और विवाह यह तो समाज की ही दी हुई संस्था है। समाज ही किसी दिन इसे समाप्त भी कर देगा।
पाता नहीं लडकी ने क्या सोचा .....मैं ऐसी कई लड़कियों को जानती हूँ जो अकेली संतान हैं और जिनके माँ या पिता शादी के बाद भी उन्हीं के साथ रहते हैं और बहुत अच्छे से रहते हैं ...इनमें से कई तो नौकरी भी नहीं करती हैं ....और इसके पास तो नौकरी भी थी ...फिर ड्रायवर से शादी का मतलब समझ नहीं आता ....ज़माना बदल रहा है ....लड़के भी नौकरी वाली लड़किओं के साथ पूरा सहयोग करते हैं ...
KUCH TIPPANIYAN AISEE AAYEE HAIN JAISE DRIVER HONA HEE CHOTEE BAAT HO . HAM HAR EK PESHE AUR IMANDAR KAMAYEE KA SAMMAN NAHEEN KAR SAKTE ?
HAR EK VIVAH EK CONTRACT HEE HOTA HAI ANIL JEE.HINDU VIVAH ME SAPTPADEE KEE VYAKHYA JAN LEN, AUR MUSLIM NIKAHNAME KO BHEE JAN LEN .CONTRACT KO CHOTA KYON SAMAJH RAHE HAIN ? KYA USME EK VAADE KEE PAVITRATA NAHEEN HAI ?
RACHNA JEE MERE HISAB SE YEH KOYEE MUDDA NAHEEN HAI .PARASPAR SAMAJH AUR AANAND HAI .EK ALAG TARAH KEE GHATNA , LEKIN SUKHAD .
NAUKAR NUMA PATI YA PATI NUMA NAUKAR ?
YEH TIPPANEE ASWEEKARY HAI . KISEE KE VYAKTIGAT NIRNAY KO ,AMAL KO, APMAN KEE DRISTI SE DEKHA GAYA AGYYAN HAI .
बहुत सुंदर उदाहरण, शब्दों का सुंदर चयन, और एक ज्वलंत मुद्दे पर बहस की शुरुआत! साधुवाद!
यह शादी नहीं एक तरह का "कौंट्रैक्ट" अधिक प्रतीत होता है. इस कहानी में कई बिंदु गौर करने लायक हैं.
१) हर लडकी की शादी क्यों की जाती है? यदि शादी न भी हो तो कौनसा पहाड टूट पडेगा? यदि लडकी को अपने पिता की इतनी ही चिंता थी तो पिता के घर में ही बेटी बनकर क्यों नहीं जिंदगी गुजार दी?
२) शादी दो अक्षर का एक शब्द है जिसके सामाजिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक आयाम होते हैं - इसी से इस रिश्ते की मर्यादा बनती है. यदि शादी की भी है तो इसके पीछे शादी की मानसिकता होनी चाहिये थी, न कि नौकररूपी पति या पतिरूपी नौकर की.
सच मानिये मुझे बहुत गुस्सा आता है जब किसी (लडके या लडकी) की शादी इसलिये कर दी जाती है क्योंकि "उम्र निकली जा रही है". शादी को एक सामाजिक मजबूरी मानने वालों से मेरा अनुरोध है कि अपनी सोच को खोलें.
" यदि शादी की भी है तो इसके पीछे शादी की मानसिकता होनी चाहिये थी, न कि नौकररूपी पति या पतिरूपी नौकर की.
I do not know if that conclusion is the right conclusion. Its true that this marriage has broken the middle class stereotype of marriage. The truth and reasons may be best known to the people who are directly involved in this episode.
However, I think that in Indian society the traditional plea for marriage of a boy is
1. " to get some one who can make rotee for him".
2. The parents of the boy are getting older and need a "bahu" to take care of them.
These reasons and role of a wife as a care taker of the Parents in law is Pre-requisite.
Marriage specially the arranged marriage in India is anyway is a CONTRACT, that considers
-religion
-Caste
-economic status/dowry
-bonded slavery of women for life
-women has to take care of relatives, and family of the husband without pay, without the sense of gratitude, and without a choice.
If all that is moral, and right, I do not see what is wrong with this example, if the choice is being made by the adults.
However, the traditional mindset does expect that the men has to be more qualified than women, the bread winner, etc. But society will change, and so the rules too.
Anyway, a true marriage or love ideally should be beyond the prejudice of caste, religion, educational, economic and social status, or any artificial standard that is man made.
ओह ! यह तो दोबारा पोस्ट की गयी है !! आप अप्रैल फूल बना रही हैं ? या सच मे राय मांग रही हैं? आज कुछ समझ नही आ रहा !
http://mukti-kamna.blogspot.com/
mukti ji dobara post kii haen kyuki kam raay mili
पर्सनल मैटर है जी चाहे तो पत्तर से भी शादी कर लो या न भी करो
50 साल के द्राइवर से कर ली फिर उसे द्राइवर ही बनये रखा तो भि सही है इनकी मर्जी हे पिताजी भी खुस द्राइवर भि खुस लडकी भी खुस तो मेरेको क्या पलेछानी
केते है ने, जब मिया बिबि राजी तो तुम क्यो तलते भाजी
इससे लड़की ने पिता कि समस्या का निदान तो खोज लिया , लेकिन क्या वह मानसिक तौर पर उस व्यक्ति को वह सम्मान और अधिकार दे पा रही होगी , जिसको उसने आजतक एक ड्राइवर कि तरह से देखा और व्यवहार किया है? शायद नहीं यह एक समझौता है और इसमें दोनों ही जिंदगियों के साथ उपहास हुआ है?
ऐसा नहीं है कि अगर वह चाहती तो कोई एक भी ऐसा लड़का न मिलता जो उसकी इस समस्या के प्रति सहभागी बनाने के लिए तैयार होता. अगर नहीं मिला तो यह हमारी बीमार मानसिकता है क्योंकि लड़की बहू बनाकर जाती है और वह नौकरी भी करती है और अपने सास-ससुर के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने के दायित्व को भी पूरा करती है ( अपवाद इसके भी है), फिर एक दामाद बेटा बनकर ऐसा क्यों नहीं कर सकता है. ऐसा भी नहीं है कि करते नहीं हैं, ढेरों ऐसे दामाद हैं , हो अपने सालों के होते हुए भी सास-ससुर के प्रति बेटों से अधिक दायित्व निभा रहे हैं.
इसका निदान यही है, कि अगर किसी के बेटा नहीं है, तो दामाद को और उसके घर वालों को भी इस दायित्व के निभाने में सहयोग देना चाहिए तो इस तरह से किसी बेटी को इतना बड़ा समझौता करने के लिए बाध्य न होना पड़े.
बाप के मरने का इंतज़ार करना चाहिये था, शादी तो आज ना कल हो ही जाती… और अच्छा पति भी मिल जाता… दो-चार-आठ साल में क्या फ़र्क पड़ जाता अभी तो 27 की ही है…
जो लड़की एमएनसी में काम कर रही है। वह स्वतंत्र है कुछ भी करने को। उस ने जो कुछ किया वह सोच समझ कर किया। उस पर टिप्पणी नहीं होनी चाहिए।
और विवाह यह तो समाज की ही दी हुई संस्था है। समाज ही किसी दिन इसे समाप्त भी कर देगा।
पाता नहीं लडकी ने क्या सोचा .....मैं ऐसी कई लड़कियों को जानती हूँ जो अकेली संतान हैं और जिनके माँ या पिता शादी के बाद भी उन्हीं के साथ रहते हैं और बहुत अच्छे से रहते हैं ...इनमें से कई तो नौकरी भी नहीं करती हैं ....और इसके पास तो नौकरी भी थी ...फिर ड्रायवर से शादी का मतलब समझ नहीं आता ....ज़माना बदल रहा है ....लड़के भी नौकरी वाली लड़किओं के साथ पूरा सहयोग करते हैं ...
MAIN DINESH JEE KEE RAI SE POORNTAH SAHMAT HOON .
KUCH TIPPANIYAN AISEE AAYEE HAIN JAISE DRIVER HONA HEE CHOTEE BAAT HO . HAM HAR EK PESHE AUR IMANDAR KAMAYEE KA SAMMAN NAHEEN KAR SAKTE ?
HAR EK VIVAH EK CONTRACT HEE HOTA HAI ANIL JEE.HINDU VIVAH ME SAPTPADEE KEE VYAKHYA JAN LEN, AUR MUSLIM NIKAHNAME KO BHEE JAN LEN .CONTRACT KO CHOTA KYON SAMAJH RAHE HAIN ? KYA USME EK VAADE KEE PAVITRATA NAHEEN HAI ?
RACHNA JEE MERE HISAB SE YEH KOYEE MUDDA NAHEEN HAI .PARASPAR SAMAJH AUR AANAND HAI .EK ALAG TARAH KEE GHATNA , LEKIN SUKHAD .
NAUKAR NUMA PATI YA PATI NUMA NAUKAR ?
YEH TIPPANEE ASWEEKARY HAI . KISEE KE VYAKTIGAT NIRNAY KO ,AMAL KO, APMAN KEE DRISTI SE DEKHA GAYA AGYYAN HAI .
ABHEE HAMAREE MANSIKTA SUDHARNE ME VAQT LAGEGA .