बच्चियों व स्त्रियों के साथ पैदा होने से वृद्धा होने तक निरंतर दुर्व्यवहार इसीलिए होता है की उसने लड़की के रूप में जन्म लिया है. *वीकर सेक्स* या *कमजोर* कहकर उसका उपहास या निम्न श्रेणी का बर्ताव होता आया है. भारतवर्ष ही नहीं संपूर्ण विश्व में *मानव अधिकारों का हनन* का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं है. इक्कीसवीं शताब्दी में कदम रखने के बाद भी समाज की अधिकतर संस्कृतियाँ ,जातियां,अधिकांश देशों की सभ्यता में नारी शक्ति के साथ असमानता का व्यवहार होता है..शैक्षिक स्तर,आर्थिक निर्भरता,,अल्प राजनीतिक अधिकार ,बच्चों को जन्म देने का निर्णय ,उसकी स्वतंत्रता का सदा उसपर अभाव समान रूप से बना रहता है. पारिवारिक ,सामाजिक व कानून सम्बन्धी असमानता उस पर थोपी जाती है. उसको जकड कर रखा जाता है. यह भी एक प्रकार की भेद भाव की भावनात्मक हिंसा या असमानता है जो उसको बेडी में बांध कर रखती है."महिला पर महिला द्वारा हिंसा का सब जगह उल्लेख करना आवश्यक है क्योंकि ये भेदभाव घर में ही ज्यादा होते हैं ."
विशेष-----बालिकाओं व महिलाओं के विरुद्ध उनके घर से ही भेद ,असमानता व हिंसा किसी भी रूप में प्रारम्भ हो जाती है ,पर इसे व्यक्तिगत तौर पर या सजा - दंड देकर कदापि नहीं रोका जा सकता. समाज में व्याप्त धारणाओं ,विचारों को बदलकर ही इस समस्या को दूर किया जा सकता है. समाज में जनता को जागरूक करने के लिए एक मुहिम छेड़नी पड़ेगी ,जंग लड़नी पड़ेगी. पूर्वाग्रहों व अंधविश्वासों की ,झूठी परम्पराओं की जड़ें इतनी गहरी बैठ गई हैं कि अनजाने में ही महिलाओं को पुरुष से नीचा समझा जाने लगा है.स्वयं औरत ने ही अपने आप को छोटा मान लिया है. क्योंकि वह जानती है कि शारीरिक स्वरुप में वो कमजोर है व उसपर संसार का सबसे बड़ा भार संतति का है पर ये तो प्रकृति का वरदान है कोई अभिशाप नहीं. और उसकी शारीरिक कमजोरी के कारण ही उसे हर उम्र में सदैव अपने "पिता,पति, पुत्र, सही मित्र" के रूप में संरक्षक की आवश्यकता होती है. जिन पर वह सदैव गर्व भी करती है .पर अनुचित बल प्रयोग न करके उसे मानसिक रूप से स्वतंत्र कर आगे बढने देने का पूरा हक़ मिलना चाहिए .उसमे पूरी योग्यता है यह उसको जानना होगा. अगर सही मौका मिले तो. कोई कन्या या महिला जब समाज में अपना एक ऊँचा स्थान बना लेगी तब उसके साथ होने वाला हिंसात्मक रवैया एक चौकानेवाला हादसा बन जायेगा.
वर्तमान में नवीन पढ़ी लिखी युवा पीढी में नई चेतना व जागरूकता के द्वारा बदलाव की बयार लाई जा सकती है.संपूर्ण चैतन्यता लाने के लिए उनको उनके मौलिक व बुनियादी अधिकारों की जानकारी देकर जाग्रत करना होगा विचारों में बदलाव लाकर नई अलख जगाकर सामूहिक प्रयास करना होगा .
ये प्रश्न ज्यादा *महत्वपूर्ण-ज्वलंत* इसीलिए भी हो जाता है कि बचपन से हर जगह अपने विरुद्ध लगातार हिंसा देखकर नवयुवा लड़की विशेषकर "नवयुवती कही अधिक विद्रोही बनती जाती है. अपना अच्छा बुरा न सोचकर "गलत राह अपनाने को बढने लगी है" ये परिवार व समाज के लिए बहुत चिंता की बात है.
"अतः सही मार्गदर्शन होने से व घरेलू हिंसा में रोक व पारिवारिक भेद भाव मिटाने के साथ परिवारों में उसके साथ सही व्यवहार+ सम्मान किया जाये. "नारी शक्ति के बिना तो संसार चक्र ही नहीं चल सकता और उसी के साथ ये नकारात्मक व्यवहार.?" सशक्त समाज का निर्माण हम सब को ही करना होगा जहाँ कोई भेद भाव न हो. यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है. जिसमे सब एक दूसरे को पूरा उचित मान आदर देकर अपने अधिकारों की रक्षा करें साथ ही अपने पथ से भटक कर दिशाहीन न हों.
हमारे परिवारों में पुत्र व पुत्री दोनों ही तो घर के सम्मान होते है बस अपनी सोच बदल कर देखें.
*अलका मधुसूदन पटेल*
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