February 14, 2009

आप की लड़ाई किस से हैं नयी पीढी से या नयी पीढी की लड़कियों से ?? खुल कर बात कहे ??

हर कोई हर बात अपने समय से कहता हैं चुप रह कर खून जलाने से बेहतर हैं की खुल कर कह दे क्युकी अगर अब भी हमारी पीढी की नारियों ने चुप्पी साधे रखी तो आगे आने वाली लडकियां शायद हमे ना माफ़ करे .
तर्क उनकी समझ मे आता हैं जो तर्क करना चाहते हैं यहाँ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ विद्रोह की बात होती हैं . नयी पीढी को विद्रोही कहते हैं जबकि ज्यादा विद्रोह पुरानी पीढी का होता हैं . अरे विद्रोह करे पर ये तो फैसला करे आप विद्रोह कर किस चीज़ का रहे हैं
प्यार का ? वैलेंटाइन दे पर प्यार के इजहार का ? या नारी / लड़की को प्यार करने और इजहार करने की स्वतंत्रता का ?
आई पिल का ? फ्री सेक्स का ? अबोर्शन का ? या नारी के पास उपलब्ध इन सुविधाओ का जिन से वो अपने को तकलीफ से बचा सकती हैं ?
लड़के लड़की की मित्रता का ? या लड़की की जुरर्त की लड़के से मित्रता की ??
इंग्लिश का ? या विदेशी भाषा का ?? या विदेशी कपड़ो का ? या सिर्फ़ लड़की के विदेशी कपडे पहने का ??
बाजारवाद का या नारी सशक्तिकरण की वजह से नारी के पास उपलब्ध आर्थिक साधनों का जो आज की नारी अपने पैसे से जो चाहे खरीदे ?
नारी की नौकरी का ? या नारी की नौकरी से मिली उसकी आर्थिक स्वतंत्रता का ??
पब कल्चर का ?? या पब मे लड़की क्यूँ गयी ??
प्यार करने का ? या वैलेंटाइन डे मानती पर प्यार करने वाले लोगो के इजहार का ? या वैलेंटाइन डे लडकियां क्यूँ मनाती हैं ??
क्या हैं मुद्दा विद्रोह का आप को जो भारतीये संस्कृति रसातल मे जाती हुई लगती हैं ??
आप की लड़ाई किस से हैं नयी पीढी से या नयी पीढी की लड़कियों से ?? खुल कर बात कहे ??

4 comments:

  1. हमारे समाज की लड़ाई किसी और से नहीं बल्कि अपने आपकी मूर्खता से है जिसमें हमारा समाज बाक़ायदा हार रहा है। धन्यवाद।

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  2. रचना जी के सवाल जायज हैं। संस्कृति बचाने के नाम पर गुंडागर्दी बिल्कुल असहनीय है।

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  3. मुझे लगता है कि जातिवाद सिर्फ महिलाओं के शोषण के लिए बनाई गई है-और ये तमाम पब विरोधी ठेकेदारों को मूल जो नहीं पसंद है वो ये कि कोई लड़की अपने मर्जी से जीवनसाथी क्यों चुन रही है। लुटते पिटते इसके विरोधी ये तर्क दे रहे हैं कि प्रेम विवाह भी असफल होता है लेकिन उन्हे ये एहसास नहीं होता कि 80 फीसदी से ज्यादा एरेंज्ड मेरिज सिर्फ असफल ही होता है जिसमें महिलाएं घुटती रहती हैं। पुरुष बाहर संबंध बनाते हैं, कुछ महिलाएं भी छुप के बनाती है-कुल मिलाकर आदर्श स्थिति तो कतई नहीं है। एकबार जातिवाद टूट जाए तो काफी कुछ सामान्य हो जाए...

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  4. विद्रोह करने वाले जब खुद को ही यह नहीं समझा पा रहे हैं कि यह सब क्यों? क्या सारी संस्कृति और मूल्यों कि अवमानना स्त्री जाति ही कर रही है? वे अपने गिरेबान में झांक कर क्यों नहीं देखते हैं कि इन मूल्यों कि अवमानना का साथी कौन है? क्या सिर्फ अकेले लड़कियाँ ही.
    वे सिर्फ नारी को संस्कृति के नाम पर फिर से पुरुष जाति कि अनुगामिनी बना देखना चाहते हैं और यह अब तो संभव नहीं है, फिर अपनी कुंठाओं के लिए वह सब कर रहे हैं, जिससे देश कि संस्कृति के सबसे बड़े रखवाले बनने का ढोंग कर रहे हैं. आप अपनी सोच की एक छवि तो प्रस्तुत कीजिये , कैसे नहीं उसका अनुगमन होता है. देश कि संस्कृति और मूल्यों का मान भी आने वाली पीढी में नारी ही माँ बनकर सिखाती है , शायद आप की माँ ने भी सिखाया होगा. पर उसके नाम पर किसी भी नारी का अपमान करने की सीख नहीं दी होगी. हिन्दू और हिंदुत्व की परिभाषा तो सीखिए फिर दिखाइए आइना दूसरों को. अगर नयी पीढ़ी भटक रही है तो इसके जिम्मेदार हम हैं और उसको सुधारने के लिए रास्ते भी बहुत से हैं. विद्रोह से सिर्फ विद्रोह ही पनपता है और अंकुश से जो विस्फोट होता है वह किसी भी हालत में दबाया नहीं जा सकता है, इसलिए पहले अपने विचारों की एक छवि प्रस्तुत कीजिये फिर उनपर चलने वालों को साथ लीजिये. सद्व्यवहार , सद्चरित्र और सदाशयता कभी भी बुरी नहीं होती लेकिन उसको समझाने का तरीका सही होना चाहिए. नारी भी पुरुष जितनी ही स्वतंत्रता की हकदार है , किन्तु अगर उत्श्रन्खलता उसके लिए वर्जित है तो यह सीमा पुरुष वर्ग के लिए भी जरूरी है. उठाकर पढिये ग्रंथों को , शायद इस कृत्य को करने वालों ने वे ग्रन्थ देखे भी नहीं होगे पढना तो बहुत दूर की बात है. गार्गी और अपाला के नाम सुने होंगे तो जानिए उस युग भी उन्हें नारी होने के कारण किसी बंदिश में नहीं बांधा गया था. उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए रास्ते खुद ही चुने थे. वे आज भी पूज्यनीय हैं.

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