औरत ही औरत की दुश्मन हैं । ये बात हमेशा कही जाती हैं ।
इस पोस्ट के जरिये हम विस्तार से अपने अपने विचार रख कर इस बात को समझ और समझा सकते हैं ।
प्रश्न हैं
क्या औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं ??
अगर आप इस बात को सही मानते हैं तो बताये वो क्या कारण हैं की औरत औरत की दुश्मन बन जाती हैं ?
वो क्या परिस्थितियाँ हैं जो औरत को औरत का दुश्मन बनाती हैं ?
आप क्या कहते हैं , अपने विचार लिखे शायद खुल कर पता चले कि क्यों नारी को ही नारी की विरोधी माना जाता हैं ?
बात समझ की है ......ma बेटी को प्यार करती है लेकिन कहीं कहीं सास बहु को पसंद नही करती है .......कहीं सास भी बहु को प्यार करती है ......कही महिला महिला को sport करती है तो कही उसकी काट भी करती है .....ये सोच पर निर्भर करता है ......बात इस सोच में badlaaw पर भी चाहिए
ReplyDeleteरचना जी
ReplyDeleteनारी अधिकांशतः प्रतिस्पर्धाओं में ही नारी की विरोधी होती है, मैं ऐसा मानता हूँ.....
यदि ऐसा हर जगह होता तो हर परिवार में कलह मच जाती.
माँ-बेटी , बहिन-बहिन में भी एकता नहीं हो पाती,
ये मैं मानता हूँ कि विरोध के अनेक और आश्चर्यजनक विषय हो सकते हैं.
- विजय
baat bilkul sahi kahi aapne...
ReplyDeleteबचपन से ही घुट्टी में पिलाये गये पुरुषवादी संस्कार
ReplyDeleteस्त्रियों और पुरुषों दोनों की ही मनसिकता निर्धारित करते हैं। कुछ लोग इन संस्कारों से मुक्त हो जाते हैं पर अधिकांश नहीं हो पाते और स्त्री के शोषण में साझेदार हो जाते हैं। मूल प्रश्न इस सामंती मानसिकता से लड़ने का है स्त्री विरोधी स्त्रियों या पुरुषों का नहीं।
मुझे नहीं लगता कि नारी कोई अलग समुदाय है और सभी नारियों को कभी आपस में नहीं झगडना चाहिए . यह सब तो प्रोपेगेण्डा है कुछ लोगों द्वारा अपनी नेतागीरी चलाने के लिए बस !
ReplyDeleteवास्तव में नारी एकता जैसी कोई चीज नहीं होती . जरा सोचिए जब मेरा झगडा आपसे होगा तो मेरी पत्नी तो मेरा ही साथ देगी ना :)
असल में जहाँ कहीं भी दो समान व्यक्तित्व मिलते हैं तो एक सौतिया डाह होता ही है . हमने देखा है कि एक विभाग के लोग आपस में इतनी अच्छी मित्रता नहीं रख पाते जितना दूसरे विभाग के लोगों से रखते हैं .
सीधी सी बात है जहाँ हितों का टकराव होगा वैमनस्य पैदा होगा ही . वह चाहे जाहिर हो या न हो ! कुछ गलत लगे तो माफ करें :)