" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
ये कहना सही है कि नारी ने खुद लड़ाई लड़कर अपनी सफलता की इबारत लिखी है । होना भी यही चाहिए । आपके लेखन से मै इत्तिफाक रखता हू । लिखते रहिए । मेरे ब्लांग पर भी आए ।
आप की राय अपेक्षित हैं,------ दिलों में लावा तो था लेकिन अल्फाज नहीं मिल रहे थे । सीनों मे सदमें तो थे मगर आवाजें जैसे खो गई थी। दिमागों में तेजाब भी उमङा लेकिन खबङों के नक्कारखाने में सूखकर रह गया । कुछ रोशन दिमाग लोग मोमबत्तियों लेकर निकले पर उनकी रोशनी भी शहरों के महंगे इलाकों से आगे कहां जा पाई । मुंबई की घटना के बाद आतंकवाद को लेकर पहली बार देश के अभिजात्य वर्गों की और से इतनी सशंक्त प्रतिक्रियाये सामने आयी हैं।नेताओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं। और अक्सर हाजिर जवाबी भारतीय नेता चुप्पी साधे हुए हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार नेताओं के चरित्र पर इस तरह से सवाल खङे हुए हैं।इस सवाल को लेकर मैंने भी एक अभियाण चलाया हैं। उसकी सफलता आप सबों के सहयोग पर निर्भर हैं।यह सवाल देश के तमाम वर्गो से हैं। खेल की दुनिया में सचिन,सौरभ,कुबंले ,कपिल,और अभिनव बिद्रा जैसे हस्ति पैदा हो रहे हैं । अंतरिक्ष की दुनिया में कल्पना चावला पैदा हो रही हैं,।व्यवसाय के क्षेत्र में मित्तल,अंबानी और टाटा जैसी हस्ती पैदा हुए हैं,आई टी के क्षेत्र में नरायण मुर्ति और प्रेम जी को कौन नही जानता हैं।साहित्य की बात करे तो विक्रम सेठ ,अरुणधति राय्,सलमान रुसदी जैसे विभूति परचम लहराय रहे हैं। कला के क्षेत्र में एम0एफ0हुसैन और संगीत की दुनिया में पंडित रविशंकर को किसी पहचान की जरुरत नही हैं।अर्थशास्त्र की दुनिया में अमर्त सेन ,पेप्सी के चीफ इंदिरा नियू और सी0टी0 बैक के चीफ विक्रम पंडित जैसे लाखो नाम हैं जिन पर भारता मां गर्व करती हैं। लेकिन भारत मां की कोख गांधी,नेहरु,पटेल,शास्त्री और बराक ओमावा जैसी राजनैतिक हस्ति को पैदा करने से क्यों मुख मोङ ली हैं।मेरा सवाल आप सबों से यही हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थति बदली जो भारतीय लोकतंत्र में ऐसे राजनेताओं की जन्म से पहले ही भूर्ण हत्या होने लगी।क्या हम सब राजनीत को जाति, धर्म और मजहब से उपर उठते देखना चाहते हैं।सवाल के साथ साथ आपको जवाब भी मिल गया होगा। दिल पर हाथ रख कर जरा सोचिए की आप जिन नेताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उनका जन्म ही जाति धर्म और मजहब के कोख से हुआ हैं और उसको हमलोगो ने नेता बनाया हैं।ऐसे में इस आक्रोश का कोई मतलव हैं क्या। रगों में दौङने फिरने के हम नही कायल । ,जब आंख ही से न टपके तो फिर लहू क्या हैं। ई0टी0भी0पटना
मैंने इस "फीडबैक" के बारे में सुना था, लेकिन लिंक नहीं मिल पा रहा था. लिंक के लिए शत-शत धन्यवाद रचना जी!
ReplyDeleteये कहना सही है कि नारी ने खुद लड़ाई लड़कर अपनी सफलता की इबारत लिखी है । होना भी यही चाहिए । आपके लेखन से मै इत्तिफाक रखता हू । लिखते रहिए । मेरे ब्लांग पर भी आए ।
ReplyDeleteआप की राय अपेक्षित हैं,------ दिलों में लावा तो था लेकिन अल्फाज नहीं मिल रहे थे । सीनों मे सदमें तो थे मगर आवाजें जैसे खो गई थी। दिमागों में तेजाब भी उमङा लेकिन खबङों के नक्कारखाने में सूखकर रह गया । कुछ रोशन दिमाग लोग मोमबत्तियों लेकर निकले पर उनकी रोशनी भी शहरों के महंगे इलाकों से आगे कहां जा पाई । मुंबई की घटना के बाद आतंकवाद को लेकर पहली बार देश के अभिजात्य वर्गों की और से इतनी सशंक्त प्रतिक्रियाये सामने आयी हैं।नेताओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं। और अक्सर हाजिर जवाबी भारतीय नेता चुप्पी साधे हुए हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार नेताओं के चरित्र पर इस तरह से सवाल खङे हुए हैं।इस सवाल को लेकर मैंने भी एक अभियाण चलाया हैं। उसकी सफलता आप सबों के सहयोग पर निर्भर हैं।यह सवाल देश के तमाम वर्गो से हैं। खेल की दुनिया में सचिन,सौरभ,कुबंले ,कपिल,और अभिनव बिद्रा जैसे हस्ति पैदा हो रहे हैं । अंतरिक्ष की दुनिया में कल्पना चावला पैदा हो रही हैं,।व्यवसाय के क्षेत्र में मित्तल,अंबानी और टाटा जैसी हस्ती पैदा हुए हैं,आई टी के क्षेत्र में नरायण मुर्ति और प्रेम जी को कौन नही जानता हैं।साहित्य की बात करे तो विक्रम सेठ ,अरुणधति राय्,सलमान रुसदी जैसे विभूति परचम लहराय रहे हैं। कला के क्षेत्र में एम0एफ0हुसैन और संगीत की दुनिया में पंडित रविशंकर को किसी पहचान की जरुरत नही हैं।अर्थशास्त्र की दुनिया में अमर्त सेन ,पेप्सी के चीफ इंदिरा नियू और सी0टी0 बैक के चीफ विक्रम पंडित जैसे लाखो नाम हैं जिन पर भारता मां गर्व करती हैं। लेकिन भारत मां की कोख गांधी,नेहरु,पटेल,शास्त्री और बराक ओमावा जैसी राजनैतिक हस्ति को पैदा करने से क्यों मुख मोङ ली हैं।मेरा सवाल आप सबों से यही हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थति बदली जो भारतीय लोकतंत्र में ऐसे राजनेताओं की जन्म से पहले ही भूर्ण हत्या होने लगी।क्या हम सब राजनीत को जाति, धर्म और मजहब से उपर उठते देखना चाहते हैं।सवाल के साथ साथ आपको जवाब भी मिल गया होगा। दिल पर हाथ रख कर जरा सोचिए की आप जिन नेताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उनका जन्म ही जाति धर्म और मजहब के कोख से हुआ हैं और उसको हमलोगो ने नेता बनाया हैं।ऐसे में इस आक्रोश का कोई मतलव हैं क्या। रगों में दौङने फिरने के हम नही कायल । ,जब आंख ही से न टपके तो फिर लहू क्या हैं। ई0टी0भी0पटना
ReplyDeleteSUNDAR LIKHAA HAI..
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