September 08, 2008

फुल टाइमपास बोले तो भजन पार्टी

गाजर का हलवा तैयार हो गया। खूब मेवे-शेवे डाले गए। टिंकू ने चॉकलेट के लिए पैसे मांगे तो माता जी ने फट नयनों की कमान टेढ़ी की और सौ ग्राम किशशशमिश लाने का ऑर्डर दिया। गाजर के हलवे की टॉपिंग के लिए। टिंकू महोदय चलते बने। तैयारियां ज़ोरों पर थीं। टेलर को हड़काकर मैडम ने अपना नया पठानी सलवार वाला सूट भी मंगवा लिया था और इस बार तो गले में भी मैचिंग-मैचिंग, शीशे के सामने खड़े होकर मैडम कुछ इतराईं। पति देव ऑफिस जा चुके थे। टिंकू को वक़्त से पहले ट्यूशन का रास्ता दिखा दिया। पर्स उठाया गाजर का हलवा लिया और अब पंजाबण के घर के बाहर ट्रिन-ट्रिन। दरवाजा खुलते ही कई इतराती हुई आवाज़ें आईं ओये तू लेट कैसे हो गई। मैडम के हाथ में डब्बे पर नज़र डालने के बाद एक मोटी-बनावटी-मज़ेदार आवाज़ ने पूछा लगता है देर इसी की वजह से हुई, कोई ज़ोरदार माल लाई है, ज़रा दिखा तो सही। दूसरी पतली आवाज़ ने मोटी आवाज़ को धकियाते हुए कहा –पहले ज़रा प्रभु को याद कर लो, फिर तो हमने यही करना है, हां-हां-हां-हां कई आवाज़ों ने समर्थन की तान दी। कुछ मिनटों बाद पंजाबण के घर के हॉल गूंजने लगा। ओये ये भजन तो बीड़ी जलइले पर कॉपी किया गया है न,भजन के बीच में कुछ फुसफुसाहट, हां वो इसी बात पर तो इतना इतरा रही है, प्रतिफुसफुसाहट, यार मैंने भी सोचा था साधना चैनल पर एक वो वाला भजन आता है न, पर मैं नोट नहीं कर पाई, कोई बात नहीं अगली बार ले आना, हां इसके बीड़ी जलइले के भजन से तो अच्छा ही होगा, हुंह। कुछ सेकेंड तक फुसफुसाहट रहित भजन चलता है। फिर एक आवाज़-ओये तूने उसका सूट देखा, इतरा तो ऐसे रही है, मैंने भी लिया है एक, उसमें घेरे थोड़े ज्यादा हैं और गले पर मोतियां लगवाई हैं मैंने, अगली बार पहनकर आऊंगी, सबके होश ऊड़ जाएंगेगेगेगे। ऐसी ही फुसफुसाहटों के बीच भजन चल रहा था। एक बेचारी कोने में अकेली बैठी थी, उसकी पार्टनर आज आ नहीं पाई, उसकी तरफ कोई नहीं देख रहा था, एकाएक वो उठी और ज़ोर से ज़ोर से नाचने लगी, सब शांत, भजन की आवाज़ तेज़, उसका नृत्य तेज़, राधे-राधे, ये तो पूरी राधा बन गई, अब सब उसकी ओर देख रहे थे और वो पूरी लगन से झूम रही थी, कान्हा के भजन पर, भजन समाप्त हुआ, सब उसे देखने लगे। भजन पार्टी समाप्त असली पार्टी शुरू। छोले-कुल्छे,पकौड़े,हलवा और जाने क्या-क्या.....। सबने छककर खाया। बीच-बीच में कान्हा को याद करती रही। इस बार सबसे नए भजन लाने की डिमांड भी की गई। पुराने भजनों से थोड़ी बोरियत हो गई थी। मोहल्ले का समाचारपत्र भी खुला। किसके घर क्या हुआ। किसने क्या खरीदा। किसका-किससे झगड़ा हुआ, किसका-किससे लफड़ा। इधर-उधर की बुराईयां कर थक जाने के बाद भजन पार्टी चाय के साथ समाप्त हो गई। अब अगली पार्टी मैडम शर्मा के घर होगी। वैन्यू फिक्स, मैन्यू पर सस्पेंस। मैडम ख़ुश थीं। गाजर का हलवा भी सबको पसंद आया, उनकी पठानी सलवार भी। हफ्तेभर की गप्पें पकाने के लिए काफी मसाला भी तैयार हो गया था। घर पहुंची तो देखा मेहमान आए हैं। तुम लोग भी भजन-कीर्तन किया करो। मन को काफी शांति मिलती है। अच्छा होता है। तुम्हारी प्रॉबलम भी सॉल्व हो जाएगी। इससे फरक पड़ता है। मेरी मत मानो तो खुद करके देख लो। मैं तुम्हारी तरफ से कान्हा की छोटी सी मूर्ति ले आऊंगी। -नहीं-नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है-। इसीलिए तो तुम लोगों को इतनी दिक्कत होती है। दिक्कत किसे नहीं होती ? नहींहींहींहीं...बहुत फरक पड़ता है। मुझे तो इस बार एक भजन भी लिखना है। अरे उसमे क्या है मैं लिख दूंगी। तुम!!!!!तुम कैसे लिखोगी-छोड़ो। मैडम के चेहरे का भाव थोड़ा बदला, यार मैं तो बहुत परेशान हूं, मेरी सोनी है न, दुबली ही नहीं हो रही। कितनी मेहनत कर रही हूं उस पर मैं। एक्सरसाइज भी करवा रही हूं, खाना छुड़वा रखा है, उसकी सारी जींस टाइट हो गई है, मेरी पड़ोसनों की बेटियां कितने सुंदर-सुंदर कपड़े पहनती हैं। मेरे अरमान तो अरमान ही रह गए। मैडम का ऑलटाइम रोना यही था। उनकी बेटी का मोटापा। वो दो ही बातें करती थीं, या तो भजन की या अपनी बेटी के मोटापे की।

1 comment:

  1. बहुत सुंदर हास्य-व्यंग की वर्षा की आपने.

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