August 10, 2008

ये अच्छी औरते नहीं हैं

एक ब्लॉग पोस्ट लेखिका जो न्यूज़ पेपर मे लिखती हैं उसका मोबाइल नम्बर खोज कर हिन्दी के एक वरिष्ठ ब्लॉगर ने उसको फ़ोन किया और कहा ...... और ...... इनसे आप दूर ही रहो । ये अच्छी औरते नहीं हैं । कल इस लेखिका ने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखी थी "ब्लाग पर क्या चल रहा है? " । लेखिका तुंरत सचेत हो गयी की उसे किस - किस से दूर रहना हैं । पहला फोन रखा तो एक दूसरा भी आया , फिर एक तीसरा भी आया । तीन फ़ोन दो औरतो के बारे मे "ये अच्छी औरते नहीं हैं " काफी थे लेखिका को बताने के लिये की कौन क्या हैं ? उस ने सोचा मेल बॉक्स भी देख ही लूँ सो एक मेल भी थी उन्ही ब्लॉगर की जिनका फ़ोन आया था सबसे पहले ।
अब लेखिका सोच रही हैं की आगे क्या लिखे ??? !!!!!! या कुछ ना लिखे !!!!

22 comments:

  1. मीडिया पर ऐसा होता है यह सुना था, पर क्या ब्लाग्स में भी यह सब शुरू हो रहा है?

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  2. हर जगह हर तरह के लोग होते हैं।

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  3. ये एक ही 'वरिष्‍ठ' ब्‍लॉगर जो भी हैं ये खुद ही तीन तीन बार 'बुरी औरतों' से दूर रहने की सलाह दे रहे थे या तीन तीन 'वरिष्‍ठ ब्‍लॉगर' इस अभिभावकत्‍व की भूमिका में आ गए हैं।

    मैं केवल खेद व्‍यक्‍त कर सकता हूँ। और हॉं इन 'बुरे आदमियों' से दूर न रहें क्‍यों इनको ही संवेदनशीलता की जरूरत सबसे ज्‍यादा है।

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  4. IN MASHASHAY KEE MAZAZMAT PAHALI FURSAT ME KARANI ZAROOREE HAI

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  5. इस पर तो खेद ही व्यक्त किया जा सकता है।

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  6. तीन ब्लॉगर हैं पर नाम ले कर बात करने के लिये केवल एक ने माना किया और उन्होने ही मेल भी भैजी . मै नाम लेकर भी पोस्ट लिख सकती थी लेकिन क्या फायदा . हाँ हिन्दी ब्लॉग्गिंग के इसी काले चेहरे को बे नाकाब करने मे लगी हूँ और निरंतर नए आने वाले ब्लॉगर से अपशब्द सुन रही हूँ क्योकि वो समझते हैं की हम पुरूष विरोधी हैं .
    ये जो भेड की खाल मे छुपे ........ हैं उनसे ही अपनी बेटियों को बचाने का सफर है " नारी " .

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  7. अत्यधिक शर्मनाक है यह। आप ने अच्छा किया जो नाम नहीं बताए। कम से कम उन्हें सुधरने का अवसर तो दिया।

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  8. sharmnaak se bhi kuch jyaada sharmnak ho sakta hai uska udaharan diya hai un teeno ne, unko benaqab karne me waqt jaya na karite aise log khud benaqab ho jaate hai apni harkaton se.salaam aapki bahaduri ko

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  9. इस घटना ने मन विचलित कर दिया..ब्लॉग जगत में भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी लिखने वाले भावहीन भी हो सकते है सोचा नहीं था..

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  10. Unfortunately the blogworld has its own contaminants and we all will have to face them from time to time. But if they become too much of a problem then you will have to name names.

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  11. ye sharmnak ghatna he....yaha sabko apni ray dene ka haq he aur ye jaruri to nahi ki sabke vichar mile ho...magar iska matlab ye to nahi he ki NAARI par jo likha ja rahe he vo galat he...hame khed he aue ham shastri ji ki baat se bhi sehmat he....

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  12. हमेशा यह बात कहता हू यहाँ फ़िर से कह दू.... आप जब किसी दूसरे के बारे में बता रहे हैं तो आप उस शख्स से कही ज्यादा अपने बारे में बता रहे होते हैं की आप कौन हैं.... इतिश्री

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  13. आप नाम न भी बतायें तो कम से कम ये तो बता दिजीए कि बुरी औरत/औरतों की परिभाषा क्या है, ताकि हम निर्णय ले सकें कि हम किस कैटेगरी में आते हैं

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  14. हम सब थोड़े अच्छे, थोड़े बुरे हैं। सो कोई बात नहीं। जो चश्मा लगाया है उसके अनुसार किसीको अच्छाई दिखेगी किसीको बुराई।
    घुघूती बासूती

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  15. ’वरीष्ठ ब्लॉगर’ आयु में या ब्लाग लेखन में या पद में? यहाँ पद का भी महत्त्व चल रहा है।
    उनकी असली वरीयता तो उनके विचार हैं।

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  16. शर्मनाक एवं अफसोसजनक. अपनी विकृत मानसिकता का परिचय दिया है उस ब्लागर ने.

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  17. हर इंसान हर बात को अपने नजरिये से देखता है ..अच्छा बुरा सब दिमाग का खेल है ..और यहाँ उनको क्या गन्दा दिखायी दिया यह उनके अपने दिमाग के सोच की हद को तय करता है ...तभी कहा जाता है कि काम रुकता नही है किसी के कहने से ..ऐसी बातें तो ताक़त है और अच्छा लिखने की ...लगे रहे हम अपना कम करने में ...यही अच्छा है ..वो भी अपना काम कर रहे हैं ..यही उनके लिए शायद अच्छा होगा ...

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  18. स्त्री के केवल लिखने से इतना खतरा ?
    च च च ...स्त्री कितना डरायेगी !!!
    अभी पेट्रनाइज़ करने वाले और भी आयेंगे वरिष्ठ भी गरिष्ठ भी ।
    कोई चिंता नही ।

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  19. अनिताजी की कमेंट को पेस्ट कर रहा हूँ..
    हमें भी तो बताइये कि बुरी औरतें कैसी होती है? उनकी परिभाषा क्या होती है?
    हम भी जानें और आगे से सचेत रहें..
    बेहद शर्मनाक!!

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  20. ---स्त्री बोध-----

    जीवन पथ के
    लम्बे गुजरते रास्तो पर,
    एक बार नही
    अनेको बार
    मुझे अपने बोध का
    अहसास हुआ है..
    पिता की
    गोद से लेकर ,
    मा के आन्चल तक .
    गाव की गली से लेकर,
    शहर की चोडी
    सडक तक.
    इस बोध के विष को
    ना जाने कीतनी ही बार
    पीना पडा है,
    फिर भी इसका भार ,
    मेरे व्यक्तीत्व को
    नही दबा पाया है ,
    क्यु की मैने तो
    उसको हमेशा ,
    हर बार काठ की तरह,
    इसके उपर ही
    तैरता पाया है .....................गुरु कवी हकीम

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