" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
May 11, 2008
क्या हो हमारा कर्तव्य ?
हम सभी स्त्रियां समूचे नारी वर्ग की चिन्ता में घुली जा रही हैं. जिसे देखो, जहां देखो, एक ही डिस्कशन,नारी जाति का उत्थान कैसे हो? नारी उत्पीडन कैसे बन्द हो? समाज में नारी को बराबरी का हक कैसे दिलाया जाये? नारी, नारी नारी !!! बडे बडे सेमिनार, कॊन्फ़रेन्स,मीटिन्ग--एक ही विषय.कहीं नेता चीख रहे हैं,कहीं अभिनेत्रियां, समाज सेविकायें,पेज थ्री की शख्सियतें चिल्ला-चिल्ला कर नारी के समर्थन में नारे लगा रहे हैं.ऐसा नही कि इस दिशा में कोई काम नही हो रहा है या इन लोगों की कोशिशें व्यर्थ जा रही हैं.जो भी हो रहा है वो स्त्री की दशा को बदलने के लिये नाकाफ़ी है, काम की रफ़्तार धीमी है.सबसे बडी समस्या है आप और हम जै्सी स्त्रियों का उदासीन होना.हम नारी से सम्बंधित हर खबर को पढते हैं, उस पर चर्चा करते हैं और फिर अपनी अपनी गृहस्थी में रम जाते हैं. आपका सवाल जायज़ है, कि हम इसमें क्या कर सकते हैं?अपनी ही मुसीबतों से छुटकारा नहीं, किसी और की मदद कैसे करने जायें?मेरा ये मानना है कि बूंद-बूंद से घडा भरता है. यदि आप और हम जैसी शिक्षित नारियां थोडा थोडा ज्ञान बाटें, अपने आस पास की कमज़ोर वर्ग की महिलाओं को स्वावलम्बी बनने में सहायता दें तो बात बन सकती है. अपने हित से उठ कर सोचें , कुछ अपनी सुविधा-शौक-मनोरंजन में त्याग करके प्रयास करें तो बदलाव जल्दी आयेगा और ज्यादा मात्रा में आयेगा.मै सबसे मदर टेरेसा बनने को नही कहती.सिर्फ़ आपका थोडा सा समय और प्रयास चाहिये. इस क्षेत्र में जो मेरा प्रयास है वो मैं आप सब के साथ बांटना चाहती हूं. कृपया इसे आप मेरा बडबोलापन या उपदेश ना समझें. ना ही ये पोस्ट मैने तारीफ़ पाने के लिये लिखी है.सबसे पहले तो अशिक्षित काम वालियों को अलग से पैसे बचाने की सलाह देती हूं, चाहे वो एक रु रोज़ ही क्यों ना बचायें .इसके लिये मैने उनके लिये अलग अलग गुल्लक या बटुआ बना रखा है.आये गये के द्वारा दिये गये टिप के पैसे भी उसी में डलवाती हूं. किसी के पास यदि ५० रु महीना भी रेगुलर बचता है तो डाक खाने में खाता खुलवा देती हूं.इसके साथ ही मैं उनको परिवार नियोजन की महत्ता से परिचित करवाती हूं और उनके लिये नियमित रूप से गर्भ निरोधी गोलियां मंगवा कर अपने ही घर में खिलाती हूं.छोटी मोटी बिमारियॊं के लिये देशी नुस्खे बता देती हूं .इससे उनका परिश्रम से कमाया हुआ पैसा पानी में नही बहता. अपने तौर पर मै अपनी दोनों काम वालियों की बेटियों को घर पर बुला कर पढाती हूं. उनकी फ़ीस भी भर देती हूं.सरकारी स्कूल की एक महीने की फ़ीस २५-४० रु. होती है.इतने की तो हम मॊल में जाकर एक आइस्क्रीम या अमेरिकन कोर्न ही खा लेते हैं.मेरी धोबिन की बिटिया की पढाई छूट रही थी, मैने उसे समझाया, मेरे घर के कपडे तू प्रेस कर के पैसे बचा अपनी फ़ीस के.उसे इसी तरह ५ घरों का काम दिला दिया.बिना किसी के सामने हाथ फ़ैलाये आज वो १२वीं पास कर चुकी है.साथ ही साथ मैने उसे और दो पितृहीन लडकियों को एक साल की सिलाई कक्षा में डाल दिया.अब वो आर्थिक रूप से ना अपने पिता या भाई पर निर्भर है, ना शादी के बाद पति पर निर्भर रहेगी.हम परिवार की किसी शादी या उत्सव में सम्मिलित होने के लिये २-२.५ हज़ार की साडी खरीद लेते हैं, यदि सालाना इतना ही पैसा हम किसी लडकी को वोकेशनल कोर्स करवाने में लगा दें तो उसका जीवन संवर जायेगा. पढाई चाहे लडकी १०वीं या १२वीं तक करे लेकिन उसे कोई हाथ का हुनर सिखा दिया जाये तो वह आर्थिक रूप से सशक्त रहेगी.चाहे वो ब्यूटी पार्लर का काम हो, सिलाई, कढाई हो, खाना बनाना हो, कुछ भी करके पैसे कमा सकती है.इस से उसे भविष्य के निर्णय लेने में आसानी होगी.इस प्रकार से मैं कुल जमा १०-१२ बच्चों को या तो पढा रही हूं या कोई कोर्स करवा रही हूं. ये सब मैं आप को इसलिये बता रही हूं कि अपने स्तर पर आप नारी के लिये क्या कर सकते हैं.यदि हम महीने का अधिकतम १००० रु या न्यूनतम २०० रु इस काम के लिये अलग रखेंगे तो समाज का बहुत भला हो सकेगा.एक फ़िल्म देखने पर या बाहर रेस्त्रॊ में खाना खा कर हम १००० रु का पत्ता उडा देते हैं, थोडा सा त्याग करके हम अपने बच्चों में भी त्याग और सामाजिक उत्थान की भावना जगा सकेंगे.दोपहर में अपनी १ घण्टे की नींद छोड देंगे तो गरीब बच्चों को घर पर पढा सकेंगे या कुछ सिखा सकेंगे.ज़रूरत है बस अपने आप में और अपनी जीवन शैली में बस थोडा सा बदलाव लाने की.आपने ये तो सुना् ही होगा "CHARITY BEGINS AT HOME". हमें किसी स्लम या झोपडपट्टी में जाकर समाज सेवा नही करनी है, बस अपने आस पास नज़र उठा कर ज़रूरतमन्द को ढूंढना है.यदि आप में से किसी के पास ऐसे ही कोई और सुझाव हों तो कृपया यहां हम सबसे बाटें.हो सकता हमें कोई और नयी राह मिल जाये नारी उत्थान के लिये.
हमारे घर मे मेरी भांजी एक लौटी बच्ची हैं , अपनी चीजों से उसे बहुत लगाव हैं । कोई भी कपडा या खिलौना किसी को भी नहीं देने देती थी । एक दिन जब वह ७ साल की थी तो उसकी नानी ने { यानी हमारी माँ } ने नवरात्रि पर जब कन्या खिलाई जाती हैं उससे कहा की आज से कन्या तुम खिलाओगी और उनको जो भी तुम देना चाहती हो अपने समान मे से दो जैसे मौसी और तुम्हारी माँ देते हैं । उसके पूछने पर क्यों उसकी नानी ने कहा क्योकि तुम किस्मत वाली हो की तुम्हारे पास इतना है इस लिये उसको बाटना सीखो उनके साथ जिनके साथ भगवान् न्याय नहीं करता । फिर उस दिन से आज सात साल हो गए हैं वह बच्ची साल मे दो बार अपना समान बच्चो मे बाँटती हैं ।
ReplyDeleteआप का प्रयास प्रशंसनीय हैं । सब थोडा थोडा ही करे और उसको खुले मन से कहे तो बदलाव जरुर आयेगा क्योकि अपनी बदली हुई सोच ही बदलाव लाती हैं
लेख अच्छा लगा। यदि हम सब इसका अंशमात्र भी करें तो अच्छा बदलाव आ जाएगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
इला जी बहुत ही अच्छा लेख और ये हम सबको प्रेरणा भी देता है। वैसे हम भी अपनी खाना बनाने वाली से हर महीने ५०० रूपये उसके bank अकाउंट मे डलवाते है।
ReplyDeleteसच में यह छोटी छोटी मदद किसी के जीवन का रुख बदल सकती है ..जिस से जितना हो सके यथा सम्भव प्रयास करना चाहिए ..कुछ समय पहले एक संस्था से जुड़ी थी जो कुछ युवा लोगों ने शुरू की थी वह स्ट्रीट बच्चों को पढाते हैं अभी कुछ समय से समय अभाव के कारन इनके साथ काम नही कर पा रहीं हूँ पर आपकी पोस्ट ने आज फ़िर से यह याद दिला दिया की समय कहीं से निकाल के इन बच्चो को फ़िर से देना होगा ..शुक्रिया :)
ReplyDeleteव्यक्तिगत स्तर पर किए गए प्रयास ही आगे चलकर समूह का रूप धारण करता है , लेकिन हम परिवर्तन को लेकर इतने उतावले होतें हैं ,कि अपने छोटे से प्रयास से ही बहुत बड़े परिवर्तन कि शीघ्र आशा कर लेते हैं , जो ठीक नही है । जहाँ तक मेरा मानना है , आप का रास्ता अधिक सार्थक है। मैं ऐ नही कह रहा हूँ कि समूह स्तर पर किया गया प्रयास ख़राब है । जब हम व्यक्तिगत से समूह तक कि यात्रा करते हैं , तो व्यवहारिक समस्याओं के प्रति हमारी समझ अधिक परिपक्व होती है तथा उससे निपटने के हमारे पास कई विकल्प होते हैं । अन्यथा समूह स्तर पर अधिकतम प्रयास अपनी दुकान चलाने के लिए ( तथाकथित एन जी ओ ) ही किए जाते है ।
ReplyDeleteआप के प्रयास सराहनीय एवं अनुकरणीय है ।