May 16, 2008

सफलता का मापदंड अलग क्यों ?

समाज जिसे बनाने मे स्त्री और पुरूष दोनों की ही समान रूप से भागीदारी होती हैक्या किसी समाज की कल्पना बिना स्त्री या बिना पुरूष के की जा सकती है आज स्त्री हर क्षेत्र मे पुरुषों के साथ बराबरी से काम कर रही है पर तब भी अकसर देखा जाता है कि जहाँ पुरूष की सफलता का श्रेय उसकी मेहनत और काम के प्रति ज़ज्बे को दिया जाता है वहीं स्त्री की सफलता को ये कह कर कम और छोटा बना दिया जाता है कि इन्हे स्त्री होने का फायदा मिला है वरना इनमे काबलियत कहाँ ऐसे कितने ही उदाहरण देखने को मिल जायेंगे

ऐसा क्यों ?

5 comments:

  1. मैं ज्यादा कुछ तो नहीं कहना चाहूंगा मगर मुझे इतना तो याद जरूर है कि जब मैं बीसीए कर रहा था तब मेरी कक्षा में पढने वाली 2-3 लड़कियां ऐसी थी जिसके हर सेमेस्टर में 5 में से 2-3 पेपर लटकते थे मगर उनके इंटरनल मार्क्स 100 में से 95-98 तक होते थे.. और मेरे जैसे 1-2 लड़के ऐसे भी थे जिनके एक्सटरनल में पूरे यूनिवर्सिटी में सबसे ज्यादा नंबर होते हुये भी इंटरनल में कम होते थे.. मैंने अपने चौथे सेमेसटर में इसके खिलाफ बहुत आवाजें उठायी थी जिसके फलस्वरूप मुझे भी 95-98 तक नंबर मिले थे और पांचवे सेमेसटर में मैं अपने विश्वविद्यालय में टॉप किया था..

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  2. ममता जी, बात तो आपने सही कही है, पर यह पूरे नारी या पुरूष वर्ग पर लागू नहीं होती. सफलता के मापदंड अलग होने के पीछे वर्ग मानसिकता और व्यक्तिगत मानसिकता दोनों हैं. इस मानसिकता को बदलना होगा. पर इस की आशा करना एक दिवास्वप्न जैसा होगा.

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  3. ममताजी, आपने सटीक प्रश्न उठाया है, किन्तु अब जबकी लडकियां हर क्षेत्र में अपाना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं, यह प्रश्न धीरे धीरे अपना वजूद खो रहा है.

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  4. बहुत सही प्रश्न हे ममता , हमारा समाज आज भी ये ही सोचता हे । नारी किसी भी जगह पहुचे कहा यही जाएगा "महिला हैं " । पुरूष काम से देर से आए तो काम कहा जाता हैं । महिला आये तो काम नहीं मस्ती कर रही थी । और कुछ हद तक जैसा pd ने कहा महिला ख़ुद अपने आप इस मानसिकता को लाती हैं । बेवजह सबको बार बार ये एहसास दिलाना के क्योकि मै महिला हूँ मुझे महत्व दो सब से बड़ी प्रॉब्लम हैं । महिला को ख़ुद को अपने आकर्षण और सम्मोहन से मुक्त करना होगा । और साथ मे अगर उसे कुछ भी इसलिये मिलता हैं कि वह महिला हैं उसे नहीं लेना चाहिये । कानून जो अधिकार हैं उनके अलावा हमे हर उस चीज़ को accept नहीं करना चाहीये जो हमे "महिला हो" कह कर दी जाती हैं ।
    स्त्री को अपनी क्षमता पता हैं है अगर एक स्त्री सूमो पहलवान बनना चाहती हैं तो क्या आप उसे रोक देगे । लिंग कभी भी किसी भी विभाजन का आधार क्यों होना चाहीये । मै १९९२ मै पहली बार जर्मनी गयी थी और वहाँ मैने रात को ३ बजे के लिये टैक्सी बुक कराई होटल से एअरपोर्ट के लिये और मुझे बहुत सुखद आश्चर्य हुआ जब रात मै उस टैक्सी की ड्राइवर महिला थी । वह महिला आज भी मुझे याद हैं क्योकि उसकी कद काठी बहुत अच्छी थी । उससे बात करने पर पता चालला की वहाँ की सरकार ने नियम बना रखा हें की रात मे एकल महिला सवारी को महिला ड्राइवर ही मिलेगी । हमे क्या व्यवसाय करना हैं , क्या काम करना हैं ये बताना गलत है हमे हमारी क्षमता पता हैं और अगर कोई महिला अपनी क्षमता से ऊपर काम करना चाहती हैं तो वह परितोशक की अधिकारी है । महिला जो भी काम करे उसमे महिला ही ना बनी रहे । । नारी कोमल हैं इस वज़ह से उस पर नियम दूसरे हो ये ग़लत हैं अगर काम एक सा तो नियम भी एक सा अन्यथा ये लिंग भेद उल्टा होगा जो आगे चल कर एक परेशानी बनेगा
    but i fully agree that our society never gives credit to woman when it comes to "work"

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  5. ममता जी कम नही आँका जाता है बस कुछ इसी तरह की मानसिकता बन गई है ..कुछ चांस की बात है मेरी अगली पोस्ट पर इसी बात पर आधारित है ..नारी किसी बात में पुरूष से कम नही हैं बलिक उससे कहीं आगे हैं ...बस उसको यह बात पहले ख़ुद समझनी है और फ़िर अपने कामो से समझानी है ...

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