May 06, 2008

किसके खिलाफ़ आवाज उठाऊँ...

जवाब चाहिये.....
कौन है जिसके खिलाफ़ हम आवाज़ उठायें...
खुद अपने खिलाफ़ कि हम आँख बंद नही कर पाते?
-या इस समाज के खिलाफ़?
-या उस औरत के खिलाफ़ जो मजबूर हो जाती है और हमें भी कर देती है रोने को मजबूर?
-या आज की हमारी न्याय-व्यवस्था के खिलाफ़ जहाँ मुजरिम को नाबालिग या पागल का सर्टिफ़िकेट मिलते ही बाइज्जत बरी कर दिया जाता है ?
-या हमारी पुलिस जो अक्सर पैसा खाकर छोड़ देती है असली गुनाह्गारों को?

आज एक और किस्सा मै लेकर आई हूँ...यह बात कुछ साल पहले की है...आज मुजरिम तिहाड़ जेल से छूट कर अपने घर आ गये है,बेटे की दूसरी शादी भी हो गई,कारोबार पहले वाला तो न रहा मगर चल रहा है...
राजस्थान पिलानी मेरे मोहल्ले में ही एक प्रतिष्टित परिवार रहा करता था...सब सम्मान से उन्हे गुप्ता जी कहा करते थे...कई नौकर और कपड़े की दुकान....चारों तरफ़ उनके पैसे का डंका बजता था...दो बेटे और दो बेटी का परिवार एक सुखी परिवार....एक बेटा अपंग था परंतु पैसे के बल पर उसकी शादी हो चुकी थी...बहने भी ब्याही गई...एक ही बेटा एसा था जो सुन्दर और स्वस्थ था...उसकी शादी भी पास ही के सूरजगड़ क्षेत्र में कर दी गई...बहू सुन्दर सुशील....कुछ समय बीता...घर में बहू के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी...मोहल्ले वालो को पता चला कि बहू को पीटा जाता है...मगर सब गुप्ता जी के पैसे को देख कर कुछ न बोल पाये...ये समाज भी अजब है...यह नही समझता की जब घर की आवाज़ बाहर सुनाई दे तो वह घर की बात नही रहा करती...और पैसे से बढ़कर तो नही है एक इंसान की जिंदगी...
रोज-रोज की मारा-मारी से तंग आकर बहू ने पडोसी के हाथ अपने माता-पिता को पत्र दिया कि मुझे रोज मारा जाता है यह कह कर की घर सही नही है...हम अपने बेटे की दूसरी शादी करेंगे...हो सकता है मै कल का दिन भी न देख पाऊँ आपको जैसे ही यह खत मिले आप आकर अपनी बेटी को ले जाओ...
बेटी का पत्र पाकर उसके परिवार में हल्ला मच गया...तुरंत गाड़ी निकाल सभी भाई और पास-पडोसी लाठीयां ले कर पिलानी के लिये निकल पड़े...
और इधर दिल दहला देने वाला कांड हुआ...बहू के मुँह में कपड़ा ठूसकर मारा गया...वो रोती रही ...मगर नर-पिशाचो कि तरह सास-ससुर मारते रहे...उसकी एक न सुनी...कपड़ा पीटने वाले मोगर से उसे तब-तक पीटा गया जब तक की वो बेसुध न हो गई... सारे कुकृत्य को अन्जाम देकर गाड़ी में डालकर बहू को अस्पताल ले जाने की तैयारी हुई...मगर रास्ते में ही बहू के घर वालो ने उन्हे घेर लिया...जब नब्ज पकड़ कर देखा तो उनकी बेटी मर चुकी थी...तुरंत पुलिस में रिपोर्ट हुई जहाँ ससुराल वालों ने बताया की उसे पैर फ़िसल कर चोट लग गई है...लेकिन परिवार के लोगो ने बताया कि हमारी बेटी की चिट्ठी आई थी कि कल उसे मारने की साजिश की जा रही है...वो शायद न बचे...उन्होने चिट्ठी हवलदार को दिखाई...तुरंत पोस्टमार्टम हुआ...जिसकी रिपोर्ट ने दिल दहला दिया...रिपोर्ट में साफ़ लिखा था कि बहू को बेदर्दी से मारा गरा था उसके शरीर पर वहशियाना हमला किया गया था...बहू को दो महिने का गर्भ था जिसे उन्होने किसी राक्षस की तरह उसके गुप्तांग पर प्रहार कर मार डाला...पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट सुन भाई-माँ पिता सकते में आ गये...और उन्होने गुप्ता और गुप्ता कि पत्नी को सरे बाजार पीट डाला...गुप्ता की पत्नी की साड़ी फ़ाड़ डाली गई,एसा ही हाल गुप्ता और उसके बेटे का हुआ...मोहल्ला दहल गया इस करतूत पर कि बेटी जिस घर को अपना घर समझती है...माँ-बाप अनजान घर में अपनी बेटी ब्याह देते है क्या सोच कर???
गुप्ता परिवार को जेल हुई...तिहाड़ जेल मगर छूट गये...आज बेटे की दूसरी शादी भी कर डाली...इसी समाज में रह रहे है...वही कपडे़ की दुकान मगर फ़िके हो गये पकवान...
आज समाज में कोई बोलबाला नही उनका...फ़िर भी क्या आपको नही लगता कि सजा बहुत कम हुई है...क्या जान लेने कि इतनी छोटी सजा होगी...और वो भी दो-दो जाने...नृशंस हत्या...!!!
जवाब दें...मेरे सवाल को इन्तजार है आपके जवाब का...वरना बेटीयाँ ब्याहते वक्त माँ-बाप शक करेंगे कि यह उसकी अंतिम विदाई तो नही....

सुनीता शानू

8 comments:

  1. Aise logo ko sare Bazar fasi deni chahiye.... sale insaan nahi hai yeh insaan ki shakl mein rakshak hai.. kamine hai sale. aise logo ko zinda rehne ka koi adhikar nahi

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  2. जब तक समाज मे ये माना जाता रहेगा की लड़की /बेटी की शादी करना एक कर्तव्य हैं जिसे पूरा करना हैं किसी भी तरह , किसी भी कीमत पर क्योकि बेटी बोझ हैं घर पर समाज पर तब तक ये होता ही रहेगा । कन्यादान करो , मोक्ष का रास्ता खोलो और मुक्ति पायो । जब तक बेटी दान की वस्तु , पत्नी भोग्या और बहु एक परिवार से बाहरी प्राणी रहेगी ये ही होगा । कोई किसी को जवाब नहीं दे सकता और माँगना भी बेकार ही हैं क्योकि समाज हम बनाते हैं , ये सब ढकोसले हमनी ख़ुद बनाए हैं की जाओ अब ससुराल ही तुम्हारा घर हैं । अरे जो अपनी बेटी को दूसरे घर को अपना कहने के लिये कहते हैं वह बेटी के पेर के नीचे से ज़मीन तो पहले ही निकाल लेते हैं ।
    ख़ुद अपने पड़ोस मे मेने ऐसा देखा हैं डॉ बेटा , डॉ बहु और उसको भी गर्भवती अवस्था मे मारा । तिहाड़ जेल मे रहे सास ससुर पति देवर नन्द नन्दोई १० साल आज फिर दूसरी शादी करके जिन्दगी बसर कर रहे हैं । लड़की के माता पीता से पूछा था आप ने पहले क्यों नहीं कुछ किया जो अब मुकदमा लड़ रहे हैं । जवाब था १० लाख देकर तो शादी की थी वापस बुला लेते तो दूसरी की कैसे करते और अब मुकदमा लड़ कर समान तो वापस मिल गया , दूसरी के काम आ जाएगा । धन्य हैं हम , हमारी सोच ।

    लड़की पैदा कर और कुएं मे डाल

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  3. सुनीता जी
    बहुत ही मार्मिक वर्णन है। इस प्रकार का अपराध करने वालों को बड़ी से बड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। ऐसे पापियों के लिए कोई भी सज़ा कम है। किन्तु हमारे समाज की व्यवस्था इतनी दोष पूर्ण है कि सब बच जाते हैं। मुझे तो लगता है कि स्त्री को यह अधिकार मिलना ही चाहिए कि अपने अपराधी को स्वयं दंड दे सके।

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  4. सुनीता जी दिल दहला देने वाला वर्णन है। ऐसे लोगों को तो जितनी सजा दी जाए कम है। पर अफ़सोस ये लोग हमेशा बच ही जाते है।

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  5. इस तरह की ख़बरों का सिलसिला थमने को नही आता है और पढ़ पढ़ के दिल दहल जाता है ..कई बार सोचती हूँ कि क्या इस तरह के इंसान सच में इंसान कहलाने लायक हैं ..?सच में दोष हमारे समाज के उन नियमों का है जिसका जैसा जब चाहे ऐसे लोग इस्तेमाल करते हैं ..बदलाव आएगा क्या ? यह अभी तो एक बहुत बड़ा सवाल है .,..क्यूंकि मुझे तो अभी कोई ख़ास परिवर्तन दिखायी नही देता इस तरह के केस में .रोज ही अखबार का एक पन्ना जरुर इस तरह की घटना से भरा होता है ..हत्या या आत्महत्या ......और फ़िर आसानी से ऐसे लोगों का बच के निकल जाना ..!!!!!!

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  6. किसीको भी दोष देना सरल है। हम जब तक अपनी सोच नहीं बदलते तब तक समाज में बदलाव की आशा नहीं कर सकते। समाज हम ही बनाते हैं । यदि किसी भी प्रकार से अपनी बेटी को हम किसीके मत्थे मढ़कर उसके प्रति उदासीन हो जाएँगे तो हम कैसे आशा कर सकते हैं कि वे उसका आदर करेंगे। जब वह स्वयं हमारे घर में हमपर बोझ थी तो वह दूसरे के घर में भी वही मानी जाएगी। संसार का कोई कानून हमारी सहायता नहीं कर सकता क्योंकि कानून का दुरुपयोग करने वाले भी हैं।
    उपाय केवल यही है कि पुत्री को सशक्त बनाएँ, उसमें त्याग, संयम व सहनशीलता की भावना उतनी ही भरें जितनी कि अपने बेटे में। न उसे देवी बनाएँ ना दासी, केवल मनुष्य ही बने रहने दें। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग बनाएँ। जहाँ तक हो सके विवाह अपनी इच्छा से करने दें। यदि ऐसा ना हो सके तो कमसे कम अपने ही शहर या उसके जान पहचान के शहर में ही उसका विवाह करें। उसे यह कहकर ही विवाह करें कि यह घर सदा तुम्हारा रहेगा। विदाई व कन्यादान जैसी रस्मों का बहिष्कार करें।
    घुघूती बासूती

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  7. what ahorrible incident,and again the people who did the crime r libing out of jail?ya to sari umar ke liye jail mein rakha jaye ya,siddha phiansi?they hv taken lives of 2 people,there bahu and her child.
    how can any other family give their daughter in that house again?ladke ka phir bhyah bhi ho gaya,thats truly disgusting.

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  8. घुघूति जी की बात से मै पूर्णतः सहमत हूँ...
    आप सभी ने अपने विचार प्रस्तुत किये बहुत-बहुत धन्यवाद!

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