April 16, 2008

कहां कहां नहीं हैं यौन शोषण पर क्यो हैं

sexual harassment यानी लिंग भेद के आधार पर सताया जाना । क्यों इतने लेख जो ब्लॉग पर आ रहे हैं यौन उत्पीड़न को केवल स्त्री पर हो रहे यौन शोषण से ही relate करते हैं । पोस्ट खोलने से पहले ही कैसे सब ये समझ लेते है की पोस्ट स्त्री के यौन शोषण के ऊपर ही होगी । हमारी ये सोच ही इस बात का सबूत हैं कि हमारे समाज मे स्त्री का यौन शोषण बहुत फेला हुआ हैं । कानूनी लड़ाई के लिये सबूत चाहीये , धैर्य चाहिये , पैसा चाहीये , ये सब तो हम "जोड़ " सकते हैं पर इस सब के अलावा चाहीये अपनों का मजबूत साथ जो बहुत ही कम मिलता है । क्या होगा कानून जान कर जब घर और समाज आप के साथ नहीं होगा । कहां कहां नहीं हैं यौन शोषण पर क्यो हैं ? इसका जवाब आज कोई नहीं देता । होता है पर बहस हैं क्यो हैं पर कभी नहीं ??
घर मे
हमारे जान पहचान मे एक दम्पति को अपनी पुत्री जो १५ साल कि थी उसके ननिहाल मे रखना पडा क्योकी पिता बहुत बीमार थे और लम्बे समय के लिये उन्हे अस्पताल मे रहना था । माता पिता को लगा कि अकेली बच्ची घर मे कैसे रहेगी सो ननिहाल मे रखना उचित होगा । और ननिहाल मे क्या हुआ , छोटी मौसी और मौसा एक दिन आये , रात मे रहे । अगले दिन बच्ची ने नानी से कहा की मौसा जी ने रात को आक़र उसको छुआ । नानी बात टाल गयी और बच्ची को कहा नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं । फिर मौसा जी का आना बढा और उनकी हरकते भी , बच्ची ने कई बार नानी से कहा पर कुछ नहीं हुआ , उसी समय बच्ची के पिता ने किसी कार्यवश बच्ची को बुलवाया तो बच्ची ने उनसे भी शिकायत की । पिता ने बच्ची को तुरंत वापस बुलवाया और जब बच्ची की माँ ने बच्ची की नानी से प्रश्न किया कि आपने क्यों कुछ नहीं किया तो जवाब मिला ये सब तो चलता रहता हैं और "मै अपने दामाद को कुछ कह कर अपने सम्बन्ध नहीं बिगाड़ सकती और ना अपनी बेटी और दामाद मे कटुता ला सकती " । जानना चाहती हूँ मै कौन से कानून का सहारा के सकती हैं ये बच्ची ?? किस किस के ख़िलाफ़ यौन उत्पीरण का मुकदमा दायर कर सकती है ? मौसा के खिलाफ ? नानी के खिलाफ यौन उत्पीरण मे साहयता देने का ?
काम पर
एक टाइपिस्ट , एक सेक्रेटरी , एक पी ऐ , जो एक निम्न मध्य वर्ग से टाइपिंग शोर्ट हैण्ड सीख कर , कंप्यूटर पर टाईप सीख कर किसी छोटी दूकान पर प्राइवेट काम करने जाती हैं या किसी प्राइवेट कम्पनी मे पार्ट टाइम काम करती हैं , या किसी सरकारी नौकरी मे temporary काम करती हैं । उसे आते जाते कोई न कोई धक्का दे देता हैं , उसकी पीठ सहला जाता हैं , बालो पर हाथ फेरता है । किस कानून का सहारा ले ये लड़की क्योकि उसकी नौकरी तो परमानेंट भी नहीं हैं । फिर घर पर उसके ही लाये पेसो से रोटी सब्जी आती हैं कैसे छोड़ दे नौकरी । किसे कटघरे मे खडा करे ?? उस बाप को जिसने पैदा कर दिया और माँ को छोड़ कर दूसरी शादी कर ली , या उस समाज को जो उसे आत्म सम्मान कि दो रोटी भी नहीं कमाने देता । विदेशो मे तो कानून हैं की अगर आप प्रेम करते हैं और उस प्रेम मे आप वादा करते हैं और उस वादे से मुकरते है तो भी आप को सेक्सुअल हरास्मेंट का दोषी माना जाता हैं । शारीरिक सम्बन्ध की परिभाषा वहाँ defined हैं ।जिस समाज मे स्त्री के कपड़ो को उसके रैप के लिये जिमेदार माना जाता हो उस समाज मे सेक्सुअल हरास्मेंट कि बात करना हास्यास्पद है । आज भी न जाने कितने ही घरो मे काम करने वाली बाई सुबह इस को भोगती है और शिकायत करने पर नौकरी से जाती हैं । कितनी पत्निया या माँ अपने पति या पुत्र को अदालत मे खडा करती है ?? न्याय , कानून सब अपनी जगह हैं , पुलिस व्यवस्था भी हैं पर दोषी जब अपने घर मे हो तो आप क्या करते हैं पहले उसकी चर्चा हो बाद मे कुछ और ।
नेट पर

मै १९९७ से इंटरनेट पर काम करती हूँ और चेट पर भी काम के लिये हमेशा उस विंडो को खुला रखती हूँ पर इसका मतलब ये नहीं हैं की मै हर तरह की बात करना पसंद करती हूँ । पर फिर भी लोग व्यक्तिगत प्रशन पूछते हैं क्यो ?? क्यो जानना चाहते है की मेरी निजी बातो के बारे मे ? एक संवाद चल रहा हैं ठीक हैं स्वागत हैं पर उस संवाद के बीच मे कोई भी व्यक्तिगत प्रश्न क्यो ? मै देर रात तक चैट पर क्या कर रही हूँ इस से आप को क्यो मतलब होना चाहीये ? चैट से आगे चले तो ब्लॉग लिखा , महिला हो कर ब्लॉग लिखा , चलो तारीफ़ कर दी जाए , कविता किस्सा कहानी ठीक है , अब औरत जात के लिये यही सब ठीक हैं । अब बहुत जयादा तारीफ हो रही हैं , इंग्लिश मे बहुत लिख रही हैं , चलो ठीक करते हैं , इंग्लिश नोट allowed का नारा बुलंद , नहीं मानी !!! औरत होकर इतनी हिम्मत चलो अनाम कमेन्ट से शील का हरण करते हैं अब तो सुधरेगी , नहीं सुधरी ख़ुद अनाम हो कर गाली देने लगी चलो नाम बात कर जलील करते हैं , अच्छा तकनिकी जानकार भी हैं चलो आई पी एड्रेस से डराते हैं । हाँ ये ही एक महिला ब्लॉगर यानी मेरा सफर इग्लिश मै कहे तो SUFFER । क्या मै अकेली हूँ नहीं सब के साथ ऐसा ही हैं । और तमगा पाती हैं बड़ी सती सावित्री बनती हैं !!
लेकिन क्यो होता हैं ये ,क्यो मानसिक यातना से निकलना होता हैं । क्यो पुरुषो को अपनी सीमाये ज्ञात नहीं हैं ?? क्यो सीमाये केवल नारी के लिये हैं ? क्यो गरिमा का ठेका नारी का होता हैं ? क्यो शोषण पुरूष करता हैं और परिणाम नारी को भोगना होता हैं ? क्यो लड़किया देर रात तक भर नहीं रह सकती ? क्यो लड़किया स्किर्ट टॉप जेंस नहीं पहन सकती ?? क्या लड़की होना गुनाह हैं ? नहीं इस ब्लॉग पर कोई पुरूष विरोधी सभा नहीं हैं और नारी की बात , नारी का रोष पुरूष से नहीं system से हैं जहाँ पुरूष के लिये flexible कयादे कानून हैं और महिला के लिये rigid ।

ये लिन्क भी देखे और कमेन्ट उन को भी शायद आप को मह्सूस हो जो हमे वक्त बेवक्त होता हें या करवाया जाता हे . हम कभी नहिन भूलते की हम नारी हे पर आप भूल जाते हें कि हम इन्सान हें

6 comments:

  1. यहां पर वही बात आती है की system को बदलने की जरुरत है और साथ-साथ लोगों की मानसिकता को भी बदलने की जरुरत है।

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  2. रचना जी
    आपकी बात शब्दतः सही है। ऐसी अनेक स्थितियों का सामना महिलाओं को करना पड़ता है और कोई कुछ नहीं करता। सब गूँगें से देखते हैं। इसके लिए नारी को ही बहादुर बनना होगा।
    १ सबसे पहले स्वयं अन्याय सहना बन्द कर दे और यदि उसके आस-पास ऐसा होता है तो नारी का साथ दे।
    २ पुरूष मानसिकता की तो अब आदत ही पड़ गई है दुख तब होता है जब नारी इसका शिकार होती है।
    नारी को भगवान ने एक दिव्य दृष्टि दी है। वह उसका प्रयोग करे और स्वयं सिद्धा बने।
    जब भी वह सहायता के लिए पुकार लगाएगी और कमजोर हो जाएगी।

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  3. जब तक सोच नही बदलेगी और स्त्री ख़ुद को यूं एक वस्तु बनने से नही रोकेगी तब तक परिवर्तन यूं ही धीरे धीरे होगा .क्यों .यहाँ नारी ही नारी का भला नही सोच पाती है ..क्यों उस नन्ही बच्ची को बात को गंभीरता से लिया जाता जब वह इस तरह की किसी हरकत का बयान करती है ..अपने को ख़ुद मजबूत बनाना होगा ..और घर से ही इस की शुरुआत करनी होगी ..

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  4. good work aur sahi baat uthayi hai apney

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  5. स्त्री के साथ यह आम बात रही,
    उसे बस एक औरत के रूप मे देखा जाता है,
    कोई उम्र हो,कोई रिश्ता हो-
    यही कहना चाहूँगी,
    सिद्धांत,आदर्श,भक्तियुक्त पाखंडी उपदेश
    नरभक्षी शेर-गली के लिजलिजे कुत्ते-
    मुश्किल है मन के मनकों में सिर्फ प्यार भरना.
    हर पग पर घृणा,आँखों के अंगारे
    आखिर कितने आंसूं बहायेंगे?
    ममता की प्रतिमूर्ति स्त्री-एक माँ
    जब अपने बच्चे को आँचल की लोरी नहीं सुना पाती
    तो फिर ममता की देवी नहीं रह जाती
    कोई फर्क नहीं पड़ता तुम्हारी गालियों से
    लोरी छीनकर तुमने ही उसे कली का रूप दिया है
    और इस रूप में वाह संहार ही करेगी!
    सिर्फ संहार!
    फिर रचना का सिद्धांत क्या?
    आदर्श क्या
    भक्तियुक्त उपदेश क्या?
    मुश्किल है मन के मनकों में सिर्फ प्यार भरना.......
    इसमें घरवालों का सहयोग चाहिए,छोटी से छोटी बात को भी अनदेखा,
    अनसुना नहीं करना चाहिए........

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