ममता जी ने जो कहानी बताई वो लगभग दुनिया की हर नारी की कहानी है। हम सब को ठोक पीट कर इस समाज की मशीनरी में फ़िट कर ही दिया जाता है। पर मैं आज आप को एक ऐसी लड़की से मिलवाने जा रही हूँ जिसने कई बंधन तोड़ अपना और अपने परिवार का भविष्य उज्जवल किया। वैसे तो उस लड़की का मुझसे कोई रिश्ता नहीं फ़िर भी मुझे और मेरे पूरे परिवार को उस पर गर्व है। कहने को ये कथा एक बहुत सी साधारण सी कन्या की लगती है जो हमारे देश की आम औरतों की तरह जी रही है, पर अगर इस बात पर गौर किया जाए कि वो गैरकानूनी तरह से भारत में बसने वाले बांग्लादेशी हैं और यहां आए दिन पुलिस रेड पड़ती रहती है और बांग्लादेशी जेल भेजे जाते हैं, जहां औरतों के साथ मनमाना व्यवहार होता है, जहां जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद अपने पैसे बैंक में जमा करने की सुविधा से ये महरूम हैं, जहां मुस्लिम समाज की सभी रुढ़िवादियों से भारत आ कर भी औरतों को कोई छुटकारा नहीं मिला है तब ये कथा अलग हो जाती है।
तो आइए मिलें
यास्मीन मुश्किल से पंदरह सौलह साल की, छरहरे बदन वाली, थोड़ी सांवली सी एक बांग्लादेशी लड़की थी जो मेरे यहां रात का खाना बनाने आती थी। चार बहनों में वो सबसे बड़ी थी, उसकी मां मेरे यहां बर्तन मांजने का काम करती थी। मुश्किल से 10 साल की रही होगी जब उसकी मां उसे कभी कभी अपने बदले में हमारा काम करने भेज देती थी ,पहले तो यकीन नहीं हुआ कि ये हमारा पीठ तोड़ू सफ़ाई का काम कर सकेगी, पर वो काम ऐसे करती थी मानों खुदा की इबादत में लगी हो। धीरे धीरे हमें उसका काम इतना पसंद आने लगा कि हम उसकी मां के बदले उस से ही काम करवाना चाह्ते थे। उसकी अपनी मां ये सुन कर जलन के मारे कोयला हो ली और उसका हमारे घर आना बंद कर दिया।
खैर आते जाते हमारी मुलाकात अक्सर उससे हो जाती थी। पता चला कि उसने हमारे एक पड़ोसी के बच्चे संभालने का काम पकड़ लिया है। अब वो सारा दिन उनके घर रहने लगी। बच्चे क्या उस दस साल की बच्ची ने पूरा घर ही संभाल लिया। अल्मारियों की सफ़ाई से लेकर माइक्रोवेव चलाना, चायनीज बनाना, बेकिंग करना वगैरह उसने बहुत जल्द सीख लिया। वो इस बात से भी खूब अच्छी तरह से वाकिफ़ हो गयी थी कि हमारी दुनिया में सफ़ाई पसंद की क्या अहमियत है। जल्द ही अपनी मीठी जबान और कार्य मुस्तेदी से मेरी पड़ोसन का मन जीत लिया।
स्कूल कभी न जा सकने की कसक उसके मन में काफ़ी तीव्र थी, आखिर घर पर छोटी बहनों को ठ्सक से सुबह स्कूल यूनिफ़ोर्म पहन स्कूल जाते देखती थी। थकी हारी जब शाम को घर लौटती तब भी मां की यही अपेक्षा होती कि वो मां के साथ घर के काम में हाथ बटां दे, बहने नहीं, उन्हें पढ़ने के लिए छोड़ दिया जाये।
लेकिन यास्मीन की डिक्शनरी में निराशा का शब्द नही। काम खत्म कर वह मालकिन के बच्चों की किताबें ले कर बैठ जाती, और पढ़ने की कौशिश करती, दूसरी पड़ोसन के यहां काम के बदले पढ़ाई का फ़ोर्मूला अपनाते हुए उसने , पहली कक्षा से लेकर 5वीं तक सब विषय पढ़ने शुरू कर दिए, बकायदा ट्युशन लगा कर गणित पर विजय हासिल की। उसके अलावा, ड्राइंग उसका प्रिय विषय था। घर पर भी जल्दी जल्दी मां के साथ हाथ बंटा कर वो बहनों की किताबें ले कर बैठ जाती।
उसकी मां को भी अंदर ही अंदर कहीं न कहीं इस बात का मलाल तो था कि गरीबी के चलते उसने छोटी बेटियों के भविष्य की खातिर सबसे बड़ी बेटी का भविष्य स्वाहा कर दिया था। मां हर्गिज नहीं चाह्ती थी कि उसकी बेटियाँ जिन्दगी भर झाड़ू बर्तन करती रहें। उसने अपनी बेटी को कपड़े सीने का हूनर हासिल करने के लिए उकसाया पर उसमें बेटी को इतना मजा न आया। इस लिए सीख कर भी उसने उसे अपनी कमाई का जरिया बनाने से इंकार कर दिया। करते करते बिटिया पंद्रह साल की हो गयी। इस बीच बेटी को ब्युटी पार्लर का काम पसंद आने लगा और उसने लग कर मां की शह पर बकायादा दो साल ब्युटी पार्लर का काम सीखा। जिस काम में हाथ डालती है उसे इबादत की तरह करना उसके व्यक्तित्व का हिस्सा है। लाजमी है कि ये काम भी वो बखूबी कर रही है।
आज आलम ये है कि कभी मेरी ही बिल्डिंग के कम्पाउंड की दिवार के साथ झोपड़े में रहने वाली यास्मीन अपने परिवार के साथ एक पक्के साफ़ सुथरे किराए के मकान में रहती है घर में टी वी, गैस का जुगाड़ हो चुका है। दूसरे नंबर की बहन नौवीं क्लास की परीक्षा दे चुकी है और दसवीं के लिए ट्युशन की जुगाड़ में है। यास्मीन भी अब प्राइवेट रूप से दसवीं की परीक्षा देने की तैयारी कर रही है। सब बहनों ने अंग्रेजी में गिटपिटाना अच्छे से सीख लिया है। यास्मीन अब 18 साल की हो चली है।
उस के समुदाय की सस्कृंति के हिसाब से लड़कियों की शादी 12 /13 साल की उम्र में कर दी जाती है, पर 18 को पार करने के बाद भी यास्मीन का अभी शादी का कोई इरादा नहीं। शुरु शुरु में उसके पिता इस बात से काफ़ी अस्वस्थ महसूस करते रहे और बिटिया के लिए वर ढूढने का भरसक प्रयत्न किया पर हार कर उसे मां बेटी की मर्जी के आगे झुकना पड़ा। यास्मीन का अभी शादी करने का कोई इरादा नहीं, कालांतर में भी उसे अतंरजातीय विवाह से एतराज नहीं हालांकि उसकी मां खुद को इस बात के लिए राजी नहीं कर पाई।
यास्मीन की कहानी में उसकी मां की भूमिका भी कुछ कम अहम नहीं। बांग्लादेश से आने के बाद उसकी मां को इस बात का एहसास हो गया था कि अब बांग्लादेश लौटना कभी न हो सकेगा। दूसरा झटका जिंदगी का उसे तब लगा जब एक के बाद एक चार लड़कियां पैदा हो गईं और पति निठल्ला न काम का न काज का दुश्मन अनाज का, पर न वो निराश हुई न उसने अपने सपने छोड़े, न पति की धमकियों से डरी कि वो दूसरी शादी कर लेगा, बस एक ही लगन के मेरी बेटियों का भविष्य उज्जवल हो, फ़िर चाहे पति उसमें कोई भूमिका निभाए या न निभाए। उसने न सिर्फ़ सपने देखे उन्हें पूरा भी किया। कभी मेहनत से तो कभी अपने दिमाग की ताकत से। हर हाल में आशावादी और झुझारू रहना यास्मीन ने शायद अपनी मां से सीखा है।
यहां ये बताना भी शायद ममता जी की कड़ी से जुड़ना होगा कि यास्मीन की छोटी बहनें मुस्लिम समाज का हिस्सा होने और झोपड़े में रहने के बावजूद अक्सर जींस टॉप में दिखती हैं। उसका एक कारण तो उनकी मां का काफ़ी दमदार व्यक्तितव होना है और कुछ हमारी बम्बई की सस्कृंति।
"hats off to them "
ReplyDelete" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
kae liyae bikul sahii supaatr haen dono maa baeti
यास्मीन, उसकी माँ और बहनें कहीं न कहीं हम सब में छिपी है, बस पहचानने भर की देर है. यास्मीन और उसके परिवार को सलाम ..
ReplyDeleteअत्यन्त प्रेरक प्रसंग है। मैं हमेशा कहता हूँ। स्त्रियाँ अपनी आजादी का खुद और केवल खुद ही सृजन कर सकती हैं।
ReplyDeleteकरना तो खुद ही होगा पर आमीन!!
ReplyDeleteउम्दा लेखन!!
बहुत अच्छा....हमें ख़ुद ही ख़ुद को संभालना है,हम किसी और की तरफ़ क्यों देखें?
ReplyDeleteआप सब का धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा अनिता जी ..यही हिम्मत हर नारी जुटा ले तो फ़िर राह आसान हो जायेगी ..यह समाज हमारा ही बनाया हुआ है और इस में बदलाव भी हम ख़ुद ही ला सकते हैं ..बहुत ही प्रेरणा दायक है यह .शुक्रिया इसको यहाँ देने के लिए
ReplyDeleteयास्मीन का उदाहरण सशक्त है,
ReplyDeleteसमाज में ऐसी कितनी छोटी हस्तियाँ हैं-
जो अपने को बदलने का पूर्ण प्रयास करती हैं.
यास्मीन या उस जैसी अन्य ही हमे यह सीखा जाती हैं कि मन में लगन हो तो सब कुछ संभव है।
ReplyDeleteअनीता जी
ReplyDeleteबस यही हर नारी को करना है। यदि वह अपनी आत्म शक्ति जगा ले तो कुछ भी असम्भव नहीं। वह शक्ति रूपा है किन्तु अपने स्वरूप से अपरिचित सदा स्वयं को कमजोर समझती है। ऐसी नारियाँ प्रेरणा का स्रोत हैं । उनको सलाम
Anita ji, "Naari tu Narayani" means Shakti isi liye to kahte hai. Agar Naari thaan le to uske liye kuchh bhi kar pana namumkin nahi hai, bus jaroorat hai sirt us kuchh kar paane ke liye himmat joota pane ki......
ReplyDeletebhut he rochak rachna rahi
ReplyDeleteअनिता जी यास्मीन के बारे मे पढ़कर इस बात पर यकीन हो गया कि अगर मन मे हिम्मत और विश्वास हो तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
ReplyDeleteशुक्रिया इस लेख के लिए।