tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post881076478385214383..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: अपने लिये भी न जिये तो क्या जिये?रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-71848488052871573052008-08-05T17:50:00.000+05:302008-08-05T17:50:00.000+05:30हर व्यक्ति का पहला कर्तव्य अपने लिए जीना है. सब अप...हर व्यक्ति का पहला कर्तव्य अपने लिए जीना है. सब अपना जीवन जी रहे हैं. दूसरों के लिए जीने में अपना जीवन जीना छोड़ देना ग़लत है. नंदिता की कहानी दुर्भाग्यपूर्ण है. उसके परिवार ने एक तरह से उसके साथ अन्याय किया. मुझे एक विज्ञापन की याद रही है. उस में नंदिता जैसी एक नारी है जो चकार्घिन्नीं की तरह इधर से उधर नाच रही है. सब तरफ़ से उसे हुक्म मिल रहे है, यह लाओ, यह करो, मेरी चाय कहाँ है? मेरी पेंट प्रेस हो गई क्या? मेरा नाश्ता कहाँ है? यह सब देख रहे हैं एक बुजुर्ग सज्जन (शायद उस के ससुर जी). अचानक वह उठ खड़े होते हैं और कहते हैं, 'बंद करो यह सब, वह कोई नौकर नहीं है तुम्हारी, अपना काम अपने आप करो'. यह याद नहीं आ रहा किस बस्तु का विज्ञापन था पर बात याद रह गई.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10037139497461799634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-49983300269587697712008-08-04T12:41:00.000+05:302008-08-04T12:41:00.000+05:30rajnu ji ne jo kaha hai...apki baat ko sport kerte...rajnu ji ne jo kaha hai...<BR/>apki baat ko sport kerte hue...<BR/>bilkul sahi kaha hai...<BR/>wakat ke saaht chalana hi hoga...<BR/>yahi wakat ki mang hai<BR/>ManivnderManvinderhttps://www.blogger.com/profile/11286649687914732408noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-36705181926713306902008-08-04T10:00:00.000+05:302008-08-04T10:00:00.000+05:30कहीं कहीं वक्त रुक जाता है कहीं कहीं आगे चलता है ....कहीं कहीं वक्त रुक जाता है कहीं कहीं आगे चलता है ..और यह अपने ऊपर है कि हम उसके साथ कैसे चलते हैं ? यदि हम जब तक ख़ुद को एक बेचारा समझते हैं तो दुनिया भी वही आपको कहती है समझती है ,पर जहाँ आप अपने अधिकारों के प्रति सजग होते हैं और एक अपनी पहचान बनाते हैं वहीँ आप दुनिया को अपने होने का मतलब समझा देते हैं ....रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4661437761586903582008-08-04T07:01:00.000+05:302008-08-04T07:01:00.000+05:30Hmmm...achha analyse kara hai aapne...kise blame k...Hmmm...achha analyse kara hai aapne...kise blame karen...hame koi lachar nahi banata ahi balki ham khud hi zimmedar hein apne lachari ka. <BR/><BR/><BR/>'हम अपने पैरों में जाने कितने भंवर लपेटे हुए खड़े हैं....'<BR/><BR/>www.rewa.wordpress.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27493545564299408732008-08-04T06:53:00.000+05:302008-08-04T06:53:00.000+05:30हम तो 33 बरस से शोभा को वाहन चालन सिखाना चाहते हैं...हम तो 33 बरस से शोभा को वाहन चालन सिखाना चाहते हैं सीखने से इन्कार कर दिया है। हाँ घर चलाना कोई उस से सीखे। वहाँ हमारी भूमिका केवल बस कंडक्टर की है। बस तेल के पैसे दिए जाओ।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com