tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post7356851733811072874..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: कन्याभूण हत्या को अपराध मानने वाला ये समाज क्यों कन्यादान पर चुप्पी साध लेता हैं ??रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1785891143134522082011-03-04T11:12:25.165+05:302011-03-04T11:12:25.165+05:30दहेज घरेलू हिंसा कन्या भ्रूण हत्या यौन शोषण
rajan ...दहेज घरेलू हिंसा कन्या भ्रूण हत्या यौन शोषण<br />rajan <br /><br />yae sab kyun hotaa haen ?? kaaran wahii stri aur purush ki samajik sthiti mae samantaa nahin haen <br /><br />smantaa nahin haen to kin karnao sae nahin haen <br /><br />unkarano mae ek kaarn haen kanyadaan jiski vajah sae ladki kae abhibhavak apnae ko apmaanit samjtey haen wo varpaksh sae neechay ho jaatey haen <br /><br />aur isiiliyae log beti nahin chahtey haenरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76192647906040604742011-03-04T01:07:28.634+05:302011-03-04T01:07:28.634+05:30कन्यादान की परंपरा गलत तो है वधू से ये संकल्प भी क...कन्यादान की परंपरा गलत तो है वधू से ये संकल्प भी कराया जाता है कि अब से पति के ही कुल व गोत्र से उसकी पहचान होगी.जो बात पुरूषों धार्मिक विद्वानों को भी उठानी चाहिये थी उसे यदि केवल महिलाएँ उठा रही है तो वो बात गलत नहीं हो जाती.ये बदलाव कर देने से पुरूषों और धर्म का कोई नुकसान नहीं है.मै अंशुमाला जी से पूरी तरह सहमत हूँ कि इस प्रथा के बंद हो जाने से भी लडकियों की स्थिति में फर्क नहीं आएगा एक दो बार ये बात कह भी चुका हूँ लेकिन फिर सोचता हूँ कि यदि कोई गलत मान्यता हमारे बीच है तो उसकी तरफ से मुँह भी नहीं मोडा जा सकता.कन्यादान,अच्छा पति पाने या पति की लम्बी आयु के लिये किये जाने वाले व्रत या पति के पैर छूने या फिर पिता या पति के उपनाम का इस्तेमाल करना छोडने से भी स्त्रियों की दशा नहीं सुधरने वाली लेकिन फिर भी साहित्य में खुद महिलाएँ इन प्रश्नों को उठाती रही है क्योंकि सवाल केवल स्त्री के अधिकारों का नहीं उसके स्वतंत्र अस्तित्व और अस्मिता को बनाए रखने का भी है.फिर भले ही शुरू मे कुछ लोगों को ये मजाक लगता रहा हो.यही कारण है कि स्त्री सशक्तिकरण की जो धारा सुषुप्त होकर बह रही थी उसे थोडी गति मिली है.कल तक जिन बातों पर महिलाएँ ध्यान तक नहीं देती थी वही अब उन्हें झिंझोडने लगी है.सो ऐसी प्रथाओं के प्रति उदासीन रवैया नहीं रखा जाना चाहिये.पुरूष नहीं समझेंगे तो महिलाएँ ही सोचना शुरू करेंगी.हाँ ये मैं मानता हूँ कि पहले दहेज घरेलू हिंसा कन्या भ्रूण हत्या यौन शोषण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिये जिनसे महिलाएँ सीधे प्रभावित होती है या जिनके बीच में धर्म का सवाल नहीं आता या जिन पर आम सहमति बनाना आसान हो.<br />@अंशुमाला जी पिछली पोस्ट पर टिप्पणी के बारे में स्पष्ट करने के लिये धन्यवाद.<br />@रचना जी,उस दिन आपकी मेल थोडी देर से देख पाया था इसलिये सोचा कि सीधे पोस्ट पर ही चलूँ.स्नेह तो बना ही रहेगा.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-85141842059466926182011-03-03T10:46:25.409+05:302011-03-03T10:46:25.409+05:30.
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रचना जी,
आपकी बात सही है कि हिन्दू विवाह मे....<br />.<br />.<br />रचना जी,<br /><br />आपकी बात सही है कि हिन्दू विवाह में कन्यादान व उस से जुड़ी रस्मों जैसे वधू के पिता द्वारा वर के पैर छूना, पैर धोना, कन्या के साथ वस्त्र, जेवर, धनादि देना आदि से यह संदेश तो जाता ही है कि कन्या भी एक संपत्ति मात्र है... मैं तो यही कहूँगा कि अन्य चीजों की तरह धर्म को भी स्थितियों में आये परिवर्तन को स्वीकार कर इस सब बातों को हमारे धार्मिक कर्मकांडों से निकाल देना चाहिये...<br /><br /><a href="http://praveenshah.blogspot.com/2010/07/blog-post_14.html" rel="nofollow">"सभी धर्मों के धर्मग्रंथों में बहुत सी ऐसी बातें लिखी गई या बताई गई हैं जो उस युग के मनुष्य की अवैज्ञानिक धारणाओं, सीमित सोच, सीमित ज्ञान (या अज्ञान), तत्कालीन देश-काल की परिस्थितियों व लेखक के अपने अनुभवों या मजबूरियों पर आधारित हैं, आज के युग में इन मध्य युगीन या उससे भी प्राचीन बातों की कोई प्रासंगिकता या उपयोग नहीं रहा, यह सब बातें आज आदमी की कौम को जाहिलियत व वैमनस्य की ओर व महिलाओं को समाज में दोयम दर्जे की ओर धकेल रही हैं, इन सभी बातों को आप बेबुनियाद-बेकार-बकवास की श्रेणी में रख सकते हैं और अब समय आ गया है कि धर्माचार्यों को अपने अपने ग्रंथों की विस्तृत समीक्षा कर इन बातों को Disown कर देना चाहिये। "</a><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-42813081926825391402011-03-02T12:04:48.742+05:302011-03-02T12:04:48.742+05:30दीदी ,
मैंने तो इतिहास ही बताया था .. खैर ...
@......दीदी ,<br />मैंने तो इतिहास ही बताया था .. खैर ...<br />@....इस ब्लॉग का लिंक देकर अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखने के लिये . आपके पाठक क्या कहते हैं वहाँ आकर हम सब भी पढ़ेगे<br /><br />ये बात लोजिकल लगी और एक स्वस्थ सोच का प्रतीक भी ...... कभी समय निकाल कर (और ज्यादा रीसर्च करके ) हो सका तो पोस्ट बनाने का प्रयास रहेगा ..<br /><br />एग्रीगेटर की कमीं से भी फर्क पड़ा है , वर्ना एक नया ब्लॉग ही बनाता संस्कृति पर .. एक ही ब्लॉग पर पोस्ट शेड्यूल करना बहुत मुश्किल होता है :( <br /><br /><br />इस टोपिक को बीच में से हटाते हुए अभी तो .........<br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~<br /><b>आपको और सभी बहनों को<br />शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं </b><br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83544678956170514562011-03-02T10:56:36.978+05:302011-03-02T10:56:36.978+05:30गौरव
कन्यादान मात्र एक शब्द नहीं हैं ये एक ऐसा कार...गौरव<br />कन्यादान मात्र एक शब्द नहीं हैं ये एक ऐसा कार्य हैं जो पत्नी को पति कि संपत्ति बनाता हैं और बेटी के पिता को दामाद से नीचे का दर्जा देता हैं , लडके कि अहमियत को बढाता हैं और लड़की कि अहमियत को कम करता हैं . आप से आग्रह हैं कि आप केवल अपनी बात पोस्ट के विषय मे ही कहे . विषयांतर ना करे आप स्वतंर हैं इस ब्लॉग का लिंक देकर अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखने के लिये . आपके पाठक क्या कहते हैं वहाँ आकर हम सब भी पढ़ेगे .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30154027633345461622011-03-02T10:52:26.263+05:302011-03-02T10:52:26.263+05:30मीनाक्षी
पूरक शब्द केवल और केवल पति - पत्नी के सम्...मीनाक्षी<br />पूरक शब्द केवल और केवल पति - पत्नी के सम्बन्ध मे आता हैं .<br />आज के समय मे नारी पत्नी के अलावा भी बहुत जगह पर पुरुष के साथ काम करती हैं . बार बार पूरक शब्द कि बात करके आप उन सब नारियों को जो पत्नी नहीं हैं एक कमी का एहसास दिलाती हैं . ये सामाजिक सोच हैं जहां शादी को नियति मान लिया जाता हैं . इस ब्लॉग पर ही इस विषय मे काफी बहस हुई हैं . किसी ऑफिस मे काम करने वाली स्त्री अपने बॉस या जूनियर कि पूरक नहीं हो सकती हैं . नारी सशक्तिकर्ण "पूरक" सभ्यता से बहुत ऊपर हैं<br /><br />रही बात सम्मान कि तो मांगना क्यूँ हैं वो आप का जनम सिद्ध अधिकार हैं . संविधान और न्याय भी नारी को समान मानता हैं . सम्मान माँगा नहीं जाता हैं अर्जित किया जाता हैं . जो आप का हैं उसको अगर आप किसी और से मांगती हैं तो आप खुद को खुद ही दूसरे से छोटा बनाती हैं .<br /><br />हमारे समाज मे जरुरत हैं कि नारी अपनी सोच बदले . जो slave mentality उसको समाज कि कंडिशनिंग देती हैं उस से उबरे और बात पूरक कि नहीं बराबरी कि करे . जिस दिन हर नारी अपने को एक स्वतंत्र इकाई मान कर , शादी को अपनी नियति नहीं एक कर्म मानेगी उस दिन वो दान होने से अपने को रोक सकेगी .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-13564557985437008652011-03-02T10:03:25.630+05:302011-03-02T10:03:25.630+05:30जब सभी लोग अपने परिश्रम का अन्न खाते थे तो पिता के...जब सभी लोग अपने परिश्रम का अन्न खाते थे तो पिता के लिए पुत्र की भांति पुत्री भी उपार्जन का साधन थी. पहले कन्या के पिता द्वारा वर पक्ष से पशुधन या अन्य प्रकार का द्रव्य लेकर ही कन्या का विवाह किया जाता था. इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कहा गया कि कन्या का दान किया जाना चाहिए. दान का अर्थ बदले में बिना कुछ पाये देना होता है. हिन्दुओं में अधिकांश विवाह वर-कन्या के सगे सम्बंधियों द्वारा तय किए जाते हैं. अत: 'कन्यादान' शब्द का प्रयोग उचित है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पहले स्वयंवर की प्रथा थी जिसमें विवाह के इच्छुक युवक एकत्र होते थे तथा उनमें से मनचाहा चयन कन्या ही करती थी. जहां तक स्त्री के सम्पत्ति होने या न होने का प्रश्न है स्त्रियां अपना मूल्य बखूबी समझती हैंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-59566581160356905872011-03-02T10:01:27.972+05:302011-03-02T10:01:27.972+05:30खुबसूरत और विचारणीय लेख बहुत - बहुत बधाई दोस्त |...खुबसूरत और विचारणीय लेख बहुत - बहुत बधाई दोस्त |Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27407477526531368322011-03-02T09:54:18.400+05:302011-03-02T09:54:18.400+05:30सबसे पहले में ये कहना चाहूंगी की हम जो भी लेख लिखत...सबसे पहले में ये कहना चाहूंगी की हम जो भी लेख लिखते हैं वो हमारी सोच और हमारे अन्दर की ख़ुशी और आह का मिला जुला मिश्रण ही होता है जो बाहर आने किसी को कुछ सुनाने के लिए बैचेन रहती है बाकि ये सब एक छोटा प्रयास ही होता है हमारा पुरुष को सिर्फ ये बताने का की हमें खुद से अलग मत समझो हम आपलोगों का ही हिस्सा हैं और हमें सिर्फ सम्मान चाहिए और वो आपके सहयोग के बिना कभी पूरा नहीं हो सकता जब रहना साथ है और दोनों एक दुसरे के पूरक हैं और एक दुसरे के बिना सृष्टि आगे बढ ही नहीं सकती तो फिर झगडा किस के साथ ये लड़ाई सिर्फ प्यार और सम्मान की है और पुरुष के प्रयास के बिना ये अधुरा है | कोई माने या न माने में इस बात को मानती हूँ | क्युकी अगर पुरुष नारी के बिना अधुरा है तो नारी भी पुरुष के बिना अधूरी है इसमें कोई दो राय नहीं | <br />जन्म कुंडली का पहला भाव शिव है तो सप्तम भाव पार्वती है | यही बात नर से नारायण और नारी से नारायणी होने की कला सिखाती है |<br />बाकि आप सभी को महाशिवरात्रि की बहुत - बहुत बधाई दोस्तों |Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-29920369230731664832011-03-02T09:44:45.721+05:302011-03-02T09:44:45.721+05:30This comment has been removed by the author.Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-70471874686524894262011-03-02T09:44:30.993+05:302011-03-02T09:44:30.993+05:30तकरीबन हर देश और हर संस्कृति मे विवाह के समय...तकरीबन हर देश और हर संस्कृति मे विवाह के समय बेटी को मंडप तक पिता ही लाता हैं या कोई अभिभावक . अगर आप ध्यान से अन्य संस्कृतियों का अध्यन करेगे तो पायेगे कि बेटी के पिता का स्थान बहुत ऊँचा होता हैं क्युकी वो अपनी बेटी को किसी को देता हैं . लेकिन भारतीये संस्कृति मे बेटी को सौपा नहीं जाता हैं बाकायदा "दान " किया जाता हैं . "दान " करने कि एक प्रक्रिया हैं और दान देने वाला नहीं दान लेने वाला बड़ा होता हैं भारतीये संस्कृति मे . राजा महराजा तक छोटे माने जाते हैं अगर वो दान देते हैं उस साधू , संत से जिसको वो दान देते हैं . दान बहुधा अपने से आर्थिक रूप से कम को दिया जाता हैं लेकिन फिर भी उसको बड़ा माना जाता हैं . दान के समय अपनी सबसे प्रिय वस्तु का दान सबसे बड़ा होता हैं . कन्या दान से बड़ा दान कोई नहीं हैं और मोक्ष प्राप्ति के लिये कन्यादान कि प्रथा शुरू हुई थी . उस समय सुयोग वर का कोई माप दंड नहीं था क्युकी वर कि आयू और कन्या कि आयु मे अंतर बहुत होता था . कम उम्र कि लडकिया और वृद्ध पुरुष . दान करने कि प्रक्रिया को पुरी तरह से कन्यादान मे किया जाता हैं , इसीलिये दामाद "मान्य" होता हैं और दान देने वाला पिता उस से "छोटा " . अब इस मे लड़की कि कोई अहमियत नहीं हैं मात्र इसके कि वो केवल और केवल अपने पिता कि प्रिय वस्तु हैं जिसको दान कर दिया जाता हैं .<br /><br />जो लोग कन्यादान स्वीकार करते हैं वो आर्थिक रूप से कमतर ही होते हैं इसीलिये कन्यादान स्वीकार करते हैं क्युकी उसके साथ बहुत सी अन्य वस्तुए भी मिलती हैं .<br />अफ़सोस होता हैं कि लोग आज भी कन्या दान जैसी प्रथा को सही साबित करते हैं . जब तक कन्या दान जैसी प्रथा रहेगी लड़की के माता पिता का स्थान नीचा रहेगा और लोग लड़की ना पैदा हो ये दुआ करते रहेगे .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-68531411133545789112011-03-02T00:18:23.788+05:302011-03-02T00:18:23.788+05:30हम ये नहीं कहते की हम पुरुष है और आपका ब्लॉग नारी ...हम ये नहीं कहते की हम पुरुष है और आपका ब्लॉग नारी संचालित है अतेव हम आपके ब्लॉग पर नहीं आयेंगे<br />अपितु हम आपके इस प्रयास के लिए धन्यवाद करते है<br />कुछ पल ही सही परन्तु कुछ अच्छा सोचने का अवसर मिलता है !<br />समाज के ऐसे पहलू पर चर्चा के लिए धन्यवादअभिव्यक्तिhttps://www.blogger.com/profile/00742501086808105478noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84306817582396906602011-03-01T22:48:06.628+05:302011-03-01T22:48:06.628+05:30शादी में की जा रही सारी रस्मे कम से कम आज के युग म...शादी में की जा रही सारी रस्मे कम से कम आज के युग में तो सिर्फ प्रतिक भर रह गई है उनका कोई भी मतलब नहीं होता है न पति पत्नी एक दुसरे को दिए सात वचन निभाते है और न ही ये सात जन्मो का बंधन होता है जिस तरह से सात फेरो से लेकर अन्य चीजे बस रस्म आदायगी भर है उसी तरह कन्यादान भी बस एक रस्म आदायगी ही है | बड़ी चीज है लोगो की सोच अपनी बेटियों के प्रति , भारत में जिन जातियों और धर्मो में कन्यादान की प्रथा नहीं है क्या वह लड़कियों को वस्तु से ज्यादा कुछ समझा जाता है, नहीं वहा भी बेटियों को लेकर वही सोच है | जरुरत इस बात की है की लोगो कि सोच बदले लोग बेटी को भी अपनी संतान माने उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करे जैसे अपने बेटो के साथ करते है और विवाह के बाद अपने और अपने परिवारसे उसके अधिकारों और कर्तव्यो से उसे दूर ना करे | जो ऐसा नहीं कर सकेंगे उनके लिए ये रस्म ख़त्म भी कर दी जाये तो भी उनकी सोच नहीं बदलेगी |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-7507590389671922422011-03-01T22:18:02.613+05:302011-03-01T22:18:02.613+05:30कन्यादान एक प्रथा है, निर्दोष प्रथा। कोई मानसिकता ...कन्यादान एक प्रथा है, निर्दोष प्रथा। कोई मानसिकता नहीं। किसी बाप ने कन्यादान करके अभिमान भरा गौरव नहीं लिया।<br /><br />जैसे बिन मांगे वस्तु ले लेना चोरी कहलाता है, भले औपचारिकता से पुछें, पर पुछ कर लेना सभ्यता कहलाता है। वही बेटी को सही पति के हाथ सौपने की औपचारिकता कन्यादान कहलाता है।<br /><br />विवाह अपहरत न माना जाय अत: कन्यादान की प्रथा व्यवहार में आई।<br /><br />किन्तु यह अंधश्रद्धा है कि कन्यादान बिना मोक्ष नहीं मिलता।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-88787887888957173552011-03-01T19:48:12.701+05:302011-03-01T19:48:12.701+05:30vicharniy lekh hai aapka.vicharniy lekh hai aapka.सुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-38424865800202915822011-03-01T19:29:36.050+05:302011-03-01T19:29:36.050+05:30जिन देशों में कन्यादान नहीं होता उन देशो में महिला...जिन देशों में कन्यादान नहीं होता उन देशो में महिलाओं की सामाजिक स्थिति कैसी है ???<br /><br />हमारे पास दो ही विकल्प हैं <br /><br />१. संस्कृति सुधार २. संस्कृति से स्वतंत्रता<br /><br />एक अंजान संस्कृति की ओर जाने से बेहतर है अपनी संस्कृति में सुधार किया जाये ये सब अध्ययन के बाद ही संभव है <br /><br />सही अर्थ यहाँ देखें<br />http://religion.bhaskar.com/article/kanyadan-1118874.html<br /><br />@सुयोग्य पात्र के हवाले करते हैं उसको , अरे आज तो वो लड़की खुद ही सक्षम हैं सुयोग्य हैं<br /><br />सुयोग्य का मतलब केवल पैसे कमाना भर नहीं होता ...ये तो आप भी जानती हैं .....जीवन में और भी मोड़ आते हैं (बीमारी , वृद्धावस्था आदि)<br /><br />जितने भी लोग कन्यादान के बारे नहीं जानते हैं / नहीं जानना चाहते ..... आप से सहमती जरूर जता देंगे <br /><br />विचारणीय लेख तो है तभी तो ये विचार उठे हैंएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-63909437287551840142011-03-01T19:10:20.899+05:302011-03-01T19:10:20.899+05:30लड़की आत्मनिर्भर होने से भी उसे इस दुनिया के समंदर...लड़की आत्मनिर्भर होने से भी उसे इस दुनिया के समंदर में बिचरने के लिए कवच की जरुरत पड़ती है ,अन्यथा दुनिया के दरिन्दे चिड - फाड़ कर खा जायेंगे !<br /><br />क्यूँ होता हैं ऐसा ?? समाज मे स्त्री को क्यूँ इस लिये कवच चाहिये ? इस गंदे और घिनोने समाज मे बहुत साल रह लिये अब इसको बदले ताकि हमारी लडकिया शादी इस लिये ना करे कि उनको एक सुरक्षा कवच चाहिये . वो शादी इस लिये करे क्युकी उनको जीवन साथी चाहिये . शादी स्त्री कि नियति ना हो . अगर पुरुष को अकेले रहने का अधिकार समाज देता हैं तो स्त्री को भी वही अधिकार संविधान देता हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41800196182191673572011-03-01T18:54:24.159+05:302011-03-01T18:54:24.159+05:30आप ने जो भी तर्क दिया है वह कुछ लोगो तक ही सिमित ह...आप ने जो भी तर्क दिया है वह कुछ लोगो तक ही सिमित है ..संस्कृति मन को शांति और सुसंस्कार देती है मैने अपने जीवन में बहुत से लव मैरेज में भाग लिया हूँ ! बाद में सभी को टूटते ही देखा , जो काफी पढ़े लिखे लोग ही थे !लड़की आत्मनिर्भर होने से भी उसे इस दुनिया के समंदर में बिचरने के लिए कवच की जरुरत पड़ती है ,अन्यथा दुनिया के दरिन्दे चिड - फाड़ कर खा जायेंगे !स्त्री - पुरुष समन्वय का नाम है ! दोनों एक सिक्के के दो पहलू है ! जहा अधिकार की लडाई होती है , वही अशांति उत्पन्न होती है !संस्कार हमेश मनुष्य को परिपक्व करता है ! मजबूती प्रदान करता है ! अब रही कन्यादान की बात , तो दान देने वाला हमेश उच्चा ही होता है ! मेरे ससुर ने मेरे शादी में मेरी पत्नी को कन्यादान दिया ! तो क्या मै उनकी इज्जत करना भूल गया ? आज भी मै उनकी पैर छूकर अभिवादन करता हूँ !आप ने जो कुछ लिखा है आप की सोंच हो सकती है ,पर मै पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ .वैसे आप कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र है ! दान दिल वाले करते है ...हैवान से दान की अपेक्ष नहीं की जा सकती ! राजाहरिश चन्द्र को याद करे ? वैसे आप की लेखनी को सराहे नहीं रह सकता ! अगर आप को मेरे टिपण्णी पर एतराज हो ,तो क्षमाप्राथी हूँ ! धन्यवाद ...G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-21494017011076509302011-03-01T18:15:07.697+05:302011-03-01T18:15:07.697+05:30prakriti me pariwartan apne aap hota rahata hai ha...prakriti me pariwartan apne aap hota rahata hai har samaj apne apne riti riwajo ke anusar chalata rahata hai usi samaj ke aap bhi ek ang hai |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12874930868572823189noreply@blogger.com