tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post6699067238395246346..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: नारी सशक्तिकरण --- थोड़ा अल्पविराम !!रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-7990726406266127622008-08-08T18:49:00.000+05:302008-08-08T18:49:00.000+05:30नारी और पुरूष दोनों ने मिल कर समाज का निर्माण किया...नारी और पुरूष दोनों ने मिल कर समाज का निर्माण किया. दोनों ने व्यक्तिगत और संयुक्त जिम्मेदारी और अधिकार आपस में बांटे. फ़िर धीरे-धीरे इस व्यवस्था में बिसंगातियाँ आनी शुरू हो गईं. पुरुषों के अधिकारों का और नारियों की जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ता गया. शिक्षित नारियों में यह दायरा कुछ सीमित हुआ है पर अनपढ़ नारियों में यह दायरा बढ़ता जा रहा है. वह अनपढ़ नारियां जो खेतों में, बिल्डिंग साइट्स और घरों में नौकरी करती हैं, ऐसी नारियों की संख्या बहुत ज्यादा है. उन्हें सशक्त करने का अभियान चलाया जाना चाहिए. जब तक यह नहीं होता तब तक नारी मुक्ति की बात करना बेमानी हो जाता है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10037139497461799634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-11148538913167643112008-06-19T13:06:00.000+05:302008-06-19T13:06:00.000+05:30अकेली औरत को अकेले ही जीवन राह पर चलने की सुविधाये...अकेली औरत को अकेले ही जीवन राह पर चलने की सुविधायें जुटा रही हैं ..! नारी को आगे बढ़ते देख कर खुशी मिलती है... गर्व महसूस होता है वहीं लगता है कि ऐसी सफलता कोई मायने नही रखती है जहाँ पुरूष हीन भावना से ग्रस्त होकर अकेला हो जाए या ग़लत दिशा की ओर भटक जाए...<BR/>मीनाक्षी जी सधे और संयत शब्दों मे अच्छा लिखा है. वास्त्विकता यही है कि उत्साह में कुछ पल भले ही अकेले प्रसन्न्तादायक प्रतीत हों किन्तु दीर्घकाल में न पुरुष और न स्त्री अकेले रह सकते हैं, रह भी नहीं रहै हैं, जहां भी स्त्री को यह लगता है कि वह अकेली चल रही है, तब भी कोई न कोई पुरुष उसके साथ किसी न किसी रिश्ते से जुड्कर अवश्य ही सहयोग कर रहा होता है, ऐसा ही पुरुष के साथ भी है.डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमीhttps://www.blogger.com/profile/01543979454501911329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-64973876269380757922008-06-17T23:55:00.000+05:302008-06-17T23:55:00.000+05:30bahut sashakta post,har pankti se sehmat hai hum a...bahut sashakta post,har pankti se sehmat hai hum aapke.mehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-64792866789030127852008-06-17T15:35:00.000+05:302008-06-17T15:35:00.000+05:30मीनाक्षी सधे और संयत शब्दों मे अच्छा लिखा है ।मीनाक्षी सधे और संयत शब्दों मे अच्छा लिखा है ।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-307307003643721152008-06-17T12:27:00.000+05:302008-06-17T12:27:00.000+05:30चर्चा को आगे बढ़ने के लिये थैंक्स । और इस लिंक के ...चर्चा को आगे बढ़ने के लिये थैंक्स । और इस लिंक के लिये भी । लिंक के short form पर भी गौर करे !!!!!!! आपकी बात का पुरजोर समर्थन कर रहा हैं मीनाक्षी जी !!!!!!!!!!!!!<BR/><BR/>मेरे विचार मे <BR/><BR/>"नारी और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं " ये सन्दर्भ केवल पति पत्नी के लिये ही होता पर नारी सशक्तिकरण जब हम बात करते हैं तो हम नारी का रिश्ता नारी से , पुरूष से और समाज से तीनो को लेते हैं । पुरूष के रूप मे पति भी हैं , बेटा भी , पिता भी , दोस्त भी , प्रेमी भी , गुरु भी । और आज कल कि नारी अविवाहित भी हैं और अकेली अपने काम करने मे सक्षम भी सो " नारी सशक्तिकरण " उस नज़रिये से देखे जहाँ नारी लीक से हट कर काम करना चाहती हैं और करती भी हैं । जहाँ तक पति पत्नी के सम्बन्ध हैं मेरा मानना भी यही हैं कि इस जगह नारी और पुरूष एक दूसरे को अगर पूर्णता नहीं देते तो वह शादी ही अधूरी हैं और ऐसे संबंधो को निभाना या ना निभाना एक ही बात हैं ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-60796445294827576372008-06-17T09:54:00.000+05:302008-06-17T09:54:00.000+05:30कब उसने पुरूष के अहम् को तोडा... कब वह ख़ुद अपने ह...कब उसने पुरूष के अहम् को तोडा... कब वह ख़ुद अपने ही अहम् में डूब कर अपने ही वजूद को पाने निकल पड़ी…!! स्त्री और पुरूष दोनों ही इस बात से अनजान जब अपने आस पास देखते हैं तो<BR/>अपने आप को अकेला पाते हैं...!!! <BR/><BR/>बहुत ही सही बात लिख दी आपने मीनाक्षी जी ..मैं भी यही कहती हूँ की दोनों के बिना यह सृष्टि अधूरी है बस जरुरत है एक दूसरे के विचारों को समझने कीरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-47990178421405822882008-06-17T07:15:00.000+05:302008-06-17T07:15:00.000+05:30Meenakshi ji, Beautiful expression! Aap bahut achh...Meenakshi ji, Beautiful expression! Aap bahut achha likhi hein. Khaskar mujhe wo dono panktiyan kafi pasnd aayi..."mujhko...."<BR/><BR/><BR/>I read "Urvashi"’when I was in class 9th. I liked it very much and mujhe us book ki kuch lines ab bhi yaad hein. It is written by the poet-Ramdhari Singh dinkar. Mujhe 'Urwashi’ki ek pankti yaad aa rahi hai which I am putting here: <BR/><BR/>"देवी! ग्लानि क्या, इतिहासों में यदि प्रथित हम नहीं हुए!”<BR/>[Dinkar addresses the women to not be sad if History has denied them a Space.]<BR/><BR/>I think it says everything! :-) <BR/><BR/>Thanks and rgds.<BR/>www.rewa.wordpress.comAnonymousnoreply@blogger.com