tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post6441320230007563921..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: क्या पुरूष का कोई शील , कोई अस्मत नहीं होती ?रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83203238162866082452019-02-28T16:19:03.121+05:302019-02-28T16:19:03.121+05:30स्त्री का शील इसलिए रक्षणीय है कि वही अनचाहे-अवांछ...स्त्री का शील इसलिए रक्षणीय है कि वही अनचाहे-अवांछित गर्भाधान की शिकार हो सकती है! जबकि पुरुष के लिए ऐसी कोई जोखिम नहीं होती! <br /><br />स्त्री जब भी गर्भधारण करती है, तब गर्भस्थ शिशु को जन्म देने, प्रसव बाद पोषण-रक्षण की जरूरत, बच्चे के पालन-पोषण में सहायता आदि के लिए उस पुरुष की निरंतर सहायता की जरूरत होती है, जो संतान का पिता बनता है! <br /><br /> चूँकि संतान के रूप माँ-बाप अपने आपको जारी (continuous) रखते हैं और संतान ही जैनेटिकल अमरत्व की वाहक होती है! <br /><br />स्त्री चाहती है कि जिस पुरुष को उसने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया हो, सेवा और यौनसुख दिया हो, वह भी उसका अनन्य रूप से अपना हो! लेकिन पुरुष के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह केवल अपनी ही संतान का पालन-पोषण करे! मूर्ख कौवे की तरह कोयल के बच्चे को न पाले! <br /><br />पुरुष प्रधान समाज ने पुरुष के वर्चस्व के लिए ही स्त्री पर शीलवान बने रहने का अनुशासन थोपा! खुद उस अनुशासन से मुक्त रहा! यह अपेक्षा जायज है! <br /><br /> क्योंकि परिवार और समाज आपसी विश्वास की बुनियाद पर टिके होते हैं! स्त्री में पराया गर्भ-धारण की रिस्क बनी रहती है, इसलिए केवल उसे "शील के मूल्य से सील्ड* किया जाता है! <br /><br />लेकिन हम यहाँ शील के संकुचित अर्थ पर ही विमर्श कर रहे हैं! <br /><br /> महाभारत में *शीलं प्रधानं पुरुषे!* कहा गया है, जो व्यक्ति से सामाजिक व्यक्ति बनने के अपेक्षित गुण है! <br /><br />शील : स्थिर वैयक्तिक सद्गुणों का कुल योग है! शील के तहत व्यक्ति द्वन्द्व को सहेज कर मूल्यों की रक्षा करता है! <br /><br /> हर व्यक्ति स्वाभाविक विपरीत आवेगों की ओर सहज ही आकर्षित हो जाता है, ऐसे विपरीत आवेगों को स्थगित रखकर मूल्यों की रक्षा करना ही शील है! <br /><br />स्त्री के शील-भंग का मतलब ,उसके दांपत्य धर्म के शील को भंग करना! स्त्री के पति के द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध समागम कर लेना शीलभंग नहीं कहलाता!<br /><br />लेकिन अति सर्वत्र वर्जयेत्! लंपट पुरुष भी अपनी पत्नी से उसके प्रति अनन्य निष्ठावान बने रहने के लिए बाध्य कर सकता है! क्योंकि पुरुष प्रधान समाज में पुरुष अपराधी है और खुद जज की भूमिका पर काबिज हो जाता है! <br /><br />प्राकृतिक सहज आवेगों को स्थगित रखकर मूल्यों की रक्षा करना पुरुष और स्त्री दोनों के लिए आवश्यक है! ManglaRam Bishnoiehttps://www.blogger.com/profile/14579927640702217057noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41305555237774403432017-12-29T16:00:49.262+05:302017-12-29T16:00:49.262+05:30शील की परिभाषा -
*व्यक्ति द्वारा अपने विपरीत आवेगो...शील की परिभाषा -<br />*व्यक्ति द्वारा अपने विपरीत आवेगों को स्थगित रखकर, किसी मूल्य की रक्षा करना ही शील है!*ManglaRam Bishnoiehttps://www.blogger.com/profile/14579927640702217057noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35335951988060668202010-08-05T16:25:10.660+05:302010-08-05T16:25:10.660+05:30mai ye to nahi kehta ki purush ki asmat nahi hoti ...mai ye to nahi kehta ki purush ki asmat nahi hoti kyonki bahut se aisai time aya hai ki purusho ki bhi asmat luti gayi hai,lekin mahila ki asmat lutna bahut hi saram ki baat hai kyonki ye hind ki sanskriti menahi hai......Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07889902986605840465noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-81307411909792197832010-03-10T17:24:43.057+05:302010-03-10T17:24:43.057+05:30शील और अस्मत पुरुष के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैशील और अस्मत पुरुष के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-67097230174152694512009-04-27T15:03:00.000+05:302009-04-27T15:03:00.000+05:30sheel to istri-purush dono ki hoti he magar hamne ...sheel to istri-purush dono ki hoti he magar hamne yani ki samaj ne kabhi samjha hi nahi,thik buniyad ki tarah jamin me dava hota koi iski taraf dekhta bhi nahi .najar aata he to bas mahlen jo niche ki foundation pe tiki hoti he.hamare parivar ne purush ko maan -samman dene ki jaruri nahi samjha.ladko ka apmaan mahaj ek jaadu he jo turant khatam ho jata he .kisi mahila ya ladki ne kabhi ladko ya purush ko uchit samman nahi dete paya.vo to bas yahi samajhti he ladke ek aisa patthar he jise baar-baar uchhalo use chot nahi lagti aur lagti he to dard nahi hota aur hota he to ho iski parvah koi naari kyon kre kyonki emotional atyachaar-balatkar karna jaise ladki ka param kartav heaur janmsidhdh adhikaar bhiSUNIL KUMAR SONUhttps://www.blogger.com/profile/11191165434727544898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61123537330008368182009-04-27T00:17:00.000+05:302009-04-27T00:17:00.000+05:30bhiut hi damdar vishay haii
chintan karne ko mjbur...bhiut hi damdar vishay haii<br />chintan karne ko mjbur kar deta haशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30567149929042026652009-04-23T23:15:00.000+05:302009-04-23T23:15:00.000+05:30रचना जी इस बार भी आप कुछ नया करतीं दिखीं, बधाई। इस...रचना जी इस बार भी आप कुछ नया करतीं दिखीं, बधाई। इस तरह के सवाल पर एक बात स्पष्ट करनी होगी कि शील का अर्थ क्या लगाया जाता है-स्त्री-पुरुष- दोनों के संदर्भ में? <br />शील जैसी शब्दावली यदि चरित्र के हरण से है तो वह तो क्षण-प्रतिक्षण हर व्यक्ति का हो रहा है। <br />शील हरण का तात्पर्य यदि शारीरिक शोशण से है तो वह भी स्त्री और पुरुष दोनों का हो रहा है। <br />शील भंग का अर्थ यदि शारीरिक समागम के संदर्भ में है तो यकीनन वह स्त्रियों का अधिक और पुरुषों का कम होता है, पर होता अवश्य है। <br />रही बात महिला के शील भंग होने की तो हमारी मीडिया और समाज का ऐसी घटनाओं के प्रति रवैया ही कुछ अलग है। समाचार यह नहीं बनता कि एक पुरुष ने महिला के साथ बलात्कार किया। खबर बनती है कि एक दलित महिला की इज्जत लुटी, नाबालिग लड़की की इज्जत लूटी, दबंगों ने महिला की अस्मत लूटी...वगैरह, वगैरह। क्या वाकई इज्जत लुटना-लूटना जैसी शब्दावली जायज है? स्त्री के शारीरिक शोषण को दर्शाना ही माकूल नहीं? और तो और इन खबरों को बड़ी ही चटपट बना कर पेश भी किया जाता है। <br />रही बात पुरुष शील हरण की तो यदि इसका तात्पर्य शारीरिक समागम से है, यौनिक सुख से है तो इसकी अवधारणा को व्र महिलायें, स्त्रियाँ, लड़कियाँ भली-भांति प्रस्तुत कर सकतीं हैं जो हास्टल में रहतीं रहीं हैं, रह रहीं हैं। <br />आये दिन तांगे वाले, रिक्शे वाले गरीब आदमी इनका शिकार होते हैं पर कहा जाता है न कि दोष भी कमजोर को और सुनवाई भी कमजोर की....राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगरhttps://www.blogger.com/profile/16515288486352839137noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-86015652054884344652009-04-23T19:06:00.000+05:302009-04-23T19:06:00.000+05:30बहुत सार्थक बहस की शुरुआत की है आपने...
नीरजबहुत सार्थक बहस की शुरुआत की है आपने...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30324757316293207502009-04-23T18:23:00.000+05:302009-04-23T18:23:00.000+05:30आप के इस प्रश्न का सीधा संबंध शास्त्री जी के आलेख ...आप के इस प्रश्न का सीधा संबंध शास्त्री जी के आलेख से है। मैं ने वहाँ एक टिप्पणी छोड़ी है संदर्भ के लिए उस के कुछ तथ्य यहाँ भी रख रहा हूँ....<br /><br />सारा विवाद अस्मत शब्द में छिपा है। केवल स्त्री के लिए अस्मत शब्द का प्रयोग होता है। वस्तुतः समाज विकास के दौर में जब संग्रहणीय संपत्ति अस्तित्व मे आई और उस के उत्तराधिकार का प्रश्न खड़ा हुआ तो स्त्री की संपत्ति का अधिकार तो उस की संतानो को दिया जा सकता था। फिर यह प्रश्न उठा कि पुरुष की संतान कौन? इस प्रश्न के निर्धारण ने बहुत झगड़े खड़े किए। जब तक गर्भ धारण से संतान की उत्पत्ति तक स्त्री किसी एक पुरूष के अधीन न रहे तब तक संतान के पितृत्व का निर्धारण संभव नहीं था। इसी ने विवाह संस्था के उत्पन्न होने की भूमिका अदा की और स्त्री की अस्मत को जन्म दिया। <br /><br />अब स्त्री भी वैसे ही व्यवहार की अपेक्षता पुरुषों से करती है। तो पुरुषों और पितृसत्तात्मक समाज के लिए संकट पैदा हो जाता है। वे खुद को कठगरे में खड़ा महसूस करते हैं। यह वर्तमान सामाजिक व्यवस्था का बड़ा अंतर्विरोध है। इसे हल होने में बहुत समय और परिवर्तन चाहिए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76568018821482666482009-04-23T15:30:00.000+05:302009-04-23T15:30:00.000+05:30thank you very much for you blog and discussion . ...thank you very much for you blog and discussion . i want to discuss many matters about NARI . but i have a problem that i don't know how i can use the hindi fonts . so please anybody may help me . <br />mukesh pandey "chandan"<br />mp5951@gmail.comमुकेश पाण्डेय चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06937888600381093736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-82511262384655432242009-04-23T15:24:00.000+05:302009-04-23T15:24:00.000+05:30abla hotihai nari hind ke samvidhan me ,
warna bin...abla hotihai nari hind ke samvidhan me ,<br />warna bina sheel ke nahi paida hota purush is jahaan me . <br />par gar than le nari pratishodh apne apmaan me , <br />to ho jyega parivartan sheel haran ka hind ke samvidhaan me .<br />mukesh pandey "chandan "<br />mp5951@gmail.comमुकेश पाण्डेय चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06937888600381093736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14897202871811788612009-04-23T13:20:00.000+05:302009-04-23T13:20:00.000+05:30बहुत ही जायज सवाल उठाया है आपने, इसके लिए आप बधाई ...बहुत ही जायज सवाल उठाया है आपने, इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं। हमें याद है आज से कोई 23 साल पहले 1986 में जब हम लॉ कालॅजे में पढ़ते थे तो हमने एक बार अपने प्रोफेसर से एक सवाल किया था कि अगर कोई महिला या फिर महिलाओं का समूह किसी पुरुष के साथ बलात्कार कर दे तो उसको क्या सजा मिलेगी। हमारे इस सवाल पर प्रोफेसर ने जवाब दिया था कि भारतीय संविधान में ऐसी कोई धारा नहीं है। तब हमने उनके सामने उस समय जलगांव और भिलाई में हुए दो ऐसे मामले रखे थे जिसमें कुछ लड़कियों ने मिलकर एक-एक लड़के का बलात्कार किया था। ऐसे और कई मामले होते हैं जब लड़कियों की तरह की कुछ लड़कों के साथ गंैगरेप होते हैं, पर ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते हैं। जलगांव और भिलाई के मामले इसलिए सामने आए थे क्योंकि उनमें लड़कों की मौत हो गई थी। इन मामलों में आरोपी लड़कियों पर बलात्कार की कोई धारा नहीं लगी थी सिर्फ हत्या का धारा 302 लगी थी। हमने इन उदाहरणों के साथ प्रोफेसर से एक सवाल यह भी किया था कि आखिर भारतीय संविधान में ऐसे मामलों के लिए सजा क्यों नहीं है, तब उन्होंने जवाब दिया था कि भारत में पुरुष को बलशाली माना गया है इसलिए ऐसा कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। यह बात वास्तव में गले नहीं उतरती है कि पुरुष तो बलशाली हैं इसलिए उनकी शील का हरण नहीं हो सकता है। अगर पुरुष को जलगांव और भिलाई कांड की तरह ही एक साथ कई महिलाएं घेर लें तो वह अकेले बेचारा पुरुष क्या अबला नारी की तरह अबला पुरुष नहीं हो जाएगा। पुरुष की शील का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर काफी लंबी-चौड़ी बहस हो सकती है। इस बहस को छेडऩे के लिए एक बार फिर से आपका आभार रचना जी।राजकुमार ग्वालानीhttps://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-6859301866824614802009-04-23T13:02:00.000+05:302009-04-23T13:02:00.000+05:30पुरुषों का शीलहरण भी होते सुना है। तब्बू की एक फिल...पुरुषों का शीलहरण भी होते सुना है। तब्बू की एक फिल्म थी, जिसमें १३-१४ साल के एक लड़के का शीलहरण दर्शाया गया था।<br /><br />नारी द्वारा पुरुष के "शीलहरण" के भी मौके होते हैं, लेकिन वे दूसरे तरह के होते हैं, जैसे कि थप्पड़ या सैंडलों का प्रयोग।Anil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/06680189239008360541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-15854245668229140992009-04-23T11:52:00.000+05:302009-04-23T11:52:00.000+05:30शील और अस्मत पुरुष के लिए भी महत्त्वपूर्ण है लेकिन...शील और अस्मत पुरुष के लिए भी महत्त्वपूर्ण है लेकिन सिर्फ उन पुरुषो के लिए जो नारी के शील और अस्मत को मान देते हैं.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57312714652415537952009-04-23T09:15:00.000+05:302009-04-23T09:15:00.000+05:30होती है ना पुरुष की अस्मत -उसकी माँ ,बहिन ,पत्नी, ...होती है ना पुरुष की अस्मत -उसकी माँ ,बहिन ,पत्नी, बेटीdhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35109673541607647712009-04-23T07:58:00.000+05:302009-04-23T07:58:00.000+05:30शील दोनों का हरण होता है बस इतना समझ ले।
प्रश्न मौ...शील दोनों का हरण होता है बस इतना समझ ले।<br />प्रश्न मौजू है कि अँगुली इक तरफ क्यों उठ रही है?<br /><br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं। <br />कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।। <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61026554337381554982009-04-23T07:41:00.000+05:302009-04-23T07:41:00.000+05:30अपनी एक अंग्रेजी किताब में ’शील’ शब्द को समझाने के...अपनी एक अंग्रेजी किताब में ’शील’ शब्द को समझाने के लिए लोहिया ने कहा था 'continuity of character' - चरित्र का सातत्य !अफ़लातूनhttp://kashivishvavidyalay.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83262497196248993042009-04-23T06:58:00.000+05:302009-04-23T06:58:00.000+05:30बहुत ही अच्छा सवाल उठाया है आपने "पुरुष का शील", श...बहुत ही अच्छा सवाल उठाया है आपने "पुरुष का शील", शी्ल पुरुष का भी होता है पर समाज और कानून यह सोचता है कि चूँकि पुरुष शक्तिशाली होता है और नारी अबला इसलिये पुरुष के शील का कोई सम्मान नहीं है।<br /><br />क्या आपने कभी सुना है कि किसी महिला ने फ़लाने पुरुष का शीलहरण कर लिया नहीं ना, वो इसलिये क्योंकि यह जनधारणा है कि पुरुष का कोई शील नहीं होता है वो तो कहीं भी अपना मुँह काला कर सकता है और उसकी आत्मा भी कलंकित नहीं होती, क्योंकि आत्मा भी पुरुष की ही शक्तिशाली होती है, परंतु अगर नारी का शीलहरण होता है तो नारी की आत्मा कलंकित हो जाती है और वो जी नहीं पाती है और हमारा समाज उसे जीने लायक नहीं छोड़्ता। वहीं जो शक्तिशाली पुरुष नारी का शीलहरण करता है वह कुख्यात हो जाता है हालांकि समाज उसे भी सम्मान नहीं देता है।<br /><br />अस्मत पुरु्ष की कोई नारी लूट ले तो वह अवैध संबंध या मजा ले रहे हैं कहकर हमारे तथाकथित समाज के ठेकेदार उस पुरुष और नारी को भी जीने नहीं देंगे। स्वतंत्रता के ६० सालों के इतिहास में झांककर देख लें तो शायद ही किसी कोर्ट या पुलिस स्टेशन में इस तरह का मामला मिले।<br /><br />शादी के बाद अगर पुरुष नारी के साथ जबरदस्ती करे तो नारी उस पर शीलहरण का दावा कर सकती है, हमारी सामाजिक और कानूनी व्यवस्था ही ऐसी है कि अगर यही सब पुरुष के साथ होता है तो समाज तब भी नारी का ही साथ देगा और नारी तब भी दा्वा ठोक सकती है कि इसमें पौरुष नही है। और सबका फ़ैसला नारी के समर्थन में ही होगा।<br /><br />शील पुरुष का भी होता है और भंग भी होता है परंतु जरुरत है समाज और का्नून के नजरिये के बदलने की ।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.com