tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post6196700562895127871..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: झूठन खाना पत्नी की नियति हैं आज भीरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91451727147512038452018-06-21T15:50:47.262+05:302018-06-21T15:50:47.262+05:30This comment has been removed by a blog administrator.Acharya JIhttps://www.blogger.com/profile/08308414467461300260noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1645106961910939022011-09-18T09:53:22.355+05:302011-09-18T09:53:22.355+05:30@मेरा उठना बैठना नहीं है उनके साथ, वो ये नहीं हैं ...@मेरा उठना बैठना नहीं है उनके साथ, वो ये नहीं हैं . पिता की नौकरी के कारण ऐसी ही सेठानियों से मिलना हो जाता था ,और सच ही हमेशा नहीं पहने रहती हीरे से जड़े गहने ...<br /><br />कहीं किसी को गलतफहमी ना हो जाये कि हमारा इन लोगों से परिचय है , इसलिए लिखना पड़ रहा है !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54382053591051959662011-09-17T10:20:21.572+05:302011-09-17T10:20:21.572+05:30---अन्न बचाने के लिए पुरुष को भी थाली में कुछ नहीं...---अन्न बचाने के लिए पुरुष को भी थाली में कुछ नहीं छोडना चाहिए....पत्नी द्वारा जबर्दस्ती रखा जाने पर उसे पत्नी को खाना ही पड जायगा ताकि अन्न बरवाद न हो ...<br />----किस करने में भी तो एक दूसरे का झूठा मुंह लगाया जाता है...सब कुछ इच्छा पर निर्भर होना चाहिए...और इच्छा .????? shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-37342906480811450782011-09-17T10:15:05.148+05:302011-09-17T10:15:05.148+05:30---क्या आजकल के नवजवान प्रेमी जोड़ों ..पति-पत्नी जो...---क्या आजकल के नवजवान प्रेमी जोड़ों ..पति-पत्नी जोड़ों को एक ही स्टिक से एक ही गिलास में जूस पीते नहीं देखा....यह क्या है...?????<br />---सब अपनी इच्छा पर निर्भर है तो ठीक है ..अनिच्छा जोर जवर्दस्ती, रिवाज़ -रवायत के नाम पर नाजायज़ है.... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-90854795973414156322011-09-16T23:04:23.706+05:302011-09-16T23:04:23.706+05:30@ नहीं रचनाजी , अब कहाँ मिलता है समय ...आपने कहा क...@ नहीं रचनाजी , अब कहाँ मिलता है समय ...आपने कहा कि सेठानियाँ नहीं देखी , तब बताया कि सेठानियाँ बहुत देखी हैं ..<br /><br />वैसे कुल मिलाकर यही ठीक लगा कि अपनी इच्छा से जूठा खाया जाए तो ठीक है , जोर- जबरदस्ती या परम्परा के रूप में नहीं !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-90807311807238905982011-09-16T14:56:39.660+05:302011-09-16T14:56:39.660+05:30शिल्पा
मैने ये एक आम दिन एक पैसे वाले परिवार में द...शिल्पा<br />मैने ये एक आम दिन एक पैसे वाले परिवार में दिनचर्या की तरह होता देखा था . इसका किसी धार्मिक अनुष्ठान से क़ोई लेना देना नहीं हैं . ये सब चल रहा आज भी बस यही सोच कर संस्मरण की तरह इस पोस्ट को दिया .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9929440176785594302011-09-16T14:38:22.602+05:302011-09-16T14:38:22.602+05:30यहाँ हर पक्ष पर काफी बातें हो गयी हैं पर कुछ पूछना...यहाँ हर पक्ष पर काफी बातें हो गयी हैं पर कुछ पूछना चाहूंगी...<br /><br />@प्रतुल जी,<br />आपने कहा <br />"हाँ कभी-कभी एक ग़लत बात जरूर बोंल देता हूँ... जब थाली में भोजन बच जाता है... "तुम्हारे लिये प्रसाद छोड़ दिया है."<br /><br />परन्तु आपकी पत्नी, कभी मजाक में भी ऐसा कह सकती है???<br /><br />@शिल्पा<br />तुमने कहा..." अगला वाक्य यह होगा कि - पत्नी जान बूझ कर ज्यादा पति की थाली में परोस देती है कि उसे एक थाल ज्यादा न धोनी पड़े "<br /><br />प्रतुल जी बिलकुल यही...ऊपर की टिप्पणियों में कह चुके हैं.<br /> <br />"धोने के बरतन भी कम होते हैं... पत्नियाँ इसलिये भी एक थाली में खाना पसंद करती हैं.."rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-83476041789781500502011-09-16T14:37:28.006+05:302011-09-16T14:37:28.006+05:30@
सेठानियाँ खूब देखी हैं , करोड़पतियों और अरबपतियो...@<br />सेठानियाँ खूब देखी हैं , करोड़पतियों और अरबपतियों की पत्नियों को भी बहुत करीब से देखा है , ताश की महफ़िलें भी खूब जमाई है उनके साथ , <br /><br />वाणी जी<br />आप बड़ी लकी हैं की आप को ताश पार्टी का समय मिलजाता हैं इन सबके के साथ :) <br /><br />@<br />हमारे राज्य की भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराजी , महारानी गायत्री देवी , उनकी पुत्रवधुएँ क्या सेठानियाँ नहीं हैं ?? वे सामान्य महिलाओं से भी कम गहने पहनती हैं!<br /><br /><br />जो खबरे अखबारों में आती हैं अगर उनको सच माने तो इनके तो कान के हीरे का एक एक हीरा ही लाखो रुपये का आता हैं . सोलिटाय्र होता हैं . लेकिन आप का उठाना बैठना हैं उनके साथ तो आप ही सही कहती होगी की वो लोग हीरा नहीं पहनती हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-62483869869528007392011-09-16T12:53:06.217+05:302011-09-16T12:53:06.217+05:30अगर कुछ परिवारों में भी ऐसी परंपरा है तो भी गलत तो...अगर कुछ परिवारों में भी ऐसी परंपरा है तो भी गलत तो गलत ही रहेगा.और पूरविया जी इस हिसाब से तो फिर किसी भी समस्या पर कोई बात ही नहीं कर पाएगा.आमिर खान अपनी फिल्म 'देहली बेली' का बचाव करते हुए कहते है कि इसमें गालियाँ उन लोगों को ही सुनाई दे रही है जिनका दिल साफ नहीं है.<br />वाह!<br />और मासूम जी आपकी बातों से तो ऐसा लग रहा है जैसे पत्नी और बच्चों की तो कोई अलग इच्छा ही नहीं होती गोया पति ये पिता होना ही कोई एहसान की बात हो.और यहाँ एक जैसा खाने न खाने की बात नहीं हो रही बल्कि परंपरा के नाम पर पत्नी के झूठन खाने की बात हो रही है.साफ क्यों नहीं बताते कि ये गलत है या नहीं.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-38925141565518341012011-09-16T12:44:03.617+05:302011-09-16T12:44:03.617+05:30@एस.एम.मासूम
Sir ji, aapki baat sahi hai, lekin j...@एस.एम.मासूम<br /><br />Sir ji, aapki baat sahi hai, lekin jo khate hain wo sab khate hain. I mean agar main roti,dal,sabji kha rahi hun to mere bhai bahan maa papa sabhi wahi khate hain. Lekin yahan kya khate hain ki baat to ho hi nahi rahi hai. Yahan kaise khate ya khialya jata hai ki baat ho rahi hai. Post ko dobara padhne ka kasht karen mahoday!<br /><br />rgdsRewa Smritihttp://rewa.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-86155748041910057532011-09-16T12:40:05.421+05:302011-09-16T12:40:05.421+05:30@Shilpa,
Well said! I agree with your opinion...A...@Shilpa,<br /><br />Well said! I agree with your opinion...Actually, bharat jaise desh mei agar log yeh kah de ki maine apni ya apne beti ke shadi mein dowry nahi diya hai to iska matlab yeh nahi hai ki dowry system khatm ho chuka hai. Dowry system to hai haan bhale hi ye ek ghar se khatm ho gaya hai lekin samaj se khatm hone mein abhi sadi lagegi. Her parampara ke sath yahi hai.<br /><br />rgdsRewa Smritihttp://rewa.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-60843178601744570992011-09-16T12:23:21.814+05:302011-09-16T12:23:21.814+05:30इंसानों मैं हमेशा यही देखा गया है कि जो पति खाता ह...इंसानों मैं हमेशा यही देखा गया है कि जो पति खाता है वही पत्नी और बच्चे भी खाते हैं.एस एम् मासूमhttps://www.blogger.com/profile/02575970491265356952noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-75580295258252781192011-09-16T11:18:58.465+05:302011-09-16T11:18:58.465+05:30रचना - यदि यह धर्म समझ कर जबरदस्ती होता है - तो - ...रचना - यदि यह धर्म समझ कर जबरदस्ती होता है - तो - सिर्फ गलत ही नहीं - सरासर अन्याय है | यही बात करवा चौथ, तीज आदि व्रतों पर भी लागू होती है |किन्तु यदि यह प्रेम जनित है - कोई किसीको प्रेम करने के कारण अपनी मर्ज़ी से करना चाहे - तो यह उस व्यक्ति का निजी डिसिशन है | परन्तु - यदि पूरे परिवार में सब ही पत्नियाँ पति के बाद उसकी झूठी थाली में भोजन कर रही हों - तो यह ज़रूर कायदा बना हुआ होगा उस परिवार का (और ऐसे कई परिवारों का ) - absolutely unfair | these things need to be stopped . but the problem is - customs start with acts of love and affection and go on to become unwritten laws .... यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है |<br /><br />agree with rewa,meenakshi<br /><br />@ vani ji - @वाणी जी - आपने अपने आस पास नहीं देखा - का अर्थ यह नहीं कि यह परंपरा नहीं है | मैं जेवेलरी नहीं पहनती - वसुंधरा सिंधिया नहीं पहनती - तो क्या यह मान लिया जाय कि कोई भी महिलाएं पहनती होंगी? वैसे भी - रचना जी इस पोस्ट में गहनों की नहीं - झूठा खाने की बात कर रही हैं | भारत बहुत बड़ा देश है - यदि तीन जन - आप, द्विवेदी जी, रतनसिंह जी कह रहे हैं कि उनके यहाँ ऐसी कोई परम्पराएं नहीं हैं - तो सभी जगह नहीं हो गयी क्या ??? बहुत जगहों पर हैं - आप जो कह रही हैं कि - माएं झूठा खाती हैं क्योंकि वे लाड के कारण ज्यादा परोसती हैं - सरासर उसी लीक पर है जिस पर अक्सर लोग कहते हैं कि "बलात्कार इसलिए होता है कि लड़कियां कपडे ऐसे पहनती हैं "| अगला वाक्य यह होगा कि - पत्नी जान बूझ कर ज्यादा पति की थाली में परोस देती है कि उसे एक थाल ज्यादा न धोनी पड़े !!!! यदि आप समस्या का कारण उसके विक्टिम को ही बता देंगे - तब तो समस्याओं के हल निकल ही नहीं सकते |<br /><br />if it is done on both sides with an intention to "not waste" तब बात अलग है - परन्तु जब यह जबरदस्ती हो और सिर्फ स्त्री के लिए ज़रूरी हो - तब बात अलग हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-65559393037870712122011-09-16T10:29:16.096+05:302011-09-16T10:29:16.096+05:30jab kuch logo ne maan hi liya hi ki naari doyam da...jab kuch logo ne maan hi liya hi ki naari doyam darje ki hai tab purus samaj kiya keh sakta hai.......<br /><br />jutha aur juthan main bahut fark hai .....aur ek baat aur SAWAAN KE ANDHE KO HARA HI HARA NAZAR AATA HAI......<br />DUNIA EK SE EK ACCHHE LOGO SE BHARI PADI HAI...AGAR AAP KA NAJARIA ACCHHA HAI ....<br /><br />JAI BABA BANARAS....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22947723509476741862011-09-16T08:40:07.534+05:302011-09-16T08:40:07.534+05:30किसी एक- दो परिवार में देखा हुआ सच सबकी नियति या प...किसी एक- दो परिवार में देखा हुआ सच सबकी नियति या परम्परा नहीं हो सकता !<br /><br />सेठानियाँ खूब देखी हैं , करोड़पतियों और अरबपतियों की पत्नियों को भी बहुत करीब से देखा है , ताश की महफ़िलें भी खूब जमाई है उनके साथ , इन परिवारों में भी डाईनिंग टेबल पर पूरे परिवार को एक साथ ही खाते ज्यादा देखा है .गहने खूब होते हैं उनके पास मगर दिखावे से लदी फंदी नहीं होती , हाँ , हमारी नानी /दादी के ज़माने में जरुर महिलाएं हमेशा सिर पर बोर , कानों में बड़े झुमके , हार आदि पहने रखती थी .आजकल महिलाएं सिर्फ तीज- त्यौहार पर ही पहनती हैं !<br /><br />हमारे राज्य की भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराजी , महारानी गायत्री देवी , उनकी पुत्रवधुएँ क्या सेठानियाँ नहीं हैं ?? वे सामान्य महिलाओं से भी कम गहने पहनती हैं!<br /><br />द्विवेदीजी और रतनसिंह जी ने भी बता ही दिया है कि ऐसी कोई परम्परा नहीं है ! जैसा कि द्विवेदी जी ने बताया , हमारे घरों में पुरुष अपनी थालियों में कुछ भी अन्न छोड़ना अपराध ही मानते रहे हैं , <br />@ घुघूती जी ,<br />जूठा तो किसी को भी किसी का नहीं खाना चाहिए , मगर माएं और पत्नियाँ खाती हैं क्योंकि लाड़ दिखाते हुए वे ही परोसती भी ज्यादा है . किसी बहुत पुराने ज़माने में जूठन खाना नियति माना जाता रहा होगा , आजकल ऐसा नहीं है . हम पति- पत्नी (हमारे जैसों की गिनती ज्यादा है) अक्सर एक साथ एक ही थाली में खाते हैं , तो जूठा तो दोनों ही खाते हैं!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39198142442582632932011-09-16T08:11:43.270+05:302011-09-16T08:11:43.270+05:30मैने प्रतुल यहाँ जो लिखा हैं वो प्रत्यक्ष देखा हैं...मैने प्रतुल यहाँ जो लिखा हैं वो प्रत्यक्ष देखा हैं । उस देखने से पहले मै भी ये सब केवल टी वी और फिल्मो की हकीकत समझती थी पर फिर और भी जगह देखा ।<br /><br />बहुत संभव हैं की रतन सिंह की आप ने जब भोजन किया हो तो वो घर के अन्दर न किया हो । मैने एक स्वाभाविक रूप से जैसे घर में रोज खाया जाता हैं रसोई के सामने उस तरह इनके के यहाँ खाना खाया था<br /><br />बहुत से घरो में जब मेहमान आते हैं तो घर की स्त्रियाँ खाना पुरुषो के साथ नहीं खाती हैं और उस दिन ये सब नहीं दिख सकता हैं<br />पर ये सब आज भी हो रहा हैं और अच्छे संपन्न घरो में हो रहा हैं ।<br />और ये अन्न बचाने वाली बात , ज्यादा परसने वाली बात उन घरो में सही हैं जो बी पी अल से हैं । बाकी जगह इसका औचित्य ही नहीं हैं क्युकी बचा हुआ खाना गाय को खिलाते मै रोज देखती हूँ । घर की काम करने वाली नौकरानी को भी दिया जाता हैं<br /><br />बजाये हम ये माने की जो मैने लिखा हैं वो होता ही नहीं हैं ये मानना जरुरी हैं की इस प्रकार की बाते हो रही हैं और एक आम बात मानी जाती हैं । टी वी इत्यादि में ये कम ही दिखता हैं जबकि होता बहुत ज्यादा हैं<br /><br />सबकी सुविधा के लिये लिंक हैं जहां मैने ये पहले पोस्ट किया था वहाँ किसी पाठक को ये गलत नहीं लगा । <br /><br /><br />http://indianhomemaker.wordpress.com/2011/05/27/were-indian-women-better-off-as-homemakers/#comment-41953रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54949984650224120852011-09-15T22:14:51.306+05:302011-09-15T22:14:51.306+05:30हमारे मिथिला में एक प्रथा है, जिस दिन शादी होती है...हमारे मिथिला में एक प्रथा है, जिस दिन शादी होती है उस दिन ही एक पान दिया जाता है। जिसमें बीवी (हो रही/ होने वाली) के मुंह के जूठे पान की सुपारी रहती है। और हम खा लेते हैं।<br />यानी बीवी के जूठन खाने से विवाहित जीवन की शुरुआत होती है। सही में प्रेम बढ़ता है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-59120832129957469152011-09-15T21:52:49.098+05:302011-09-15T21:52:49.098+05:30मुझे पत्नी के झूठन खाने में कुछ और भी नज़र आता है....मुझे पत्नी के झूठन खाने में कुछ और भी नज़र आता है... वह यह कि... अन्न बरबाद न हो.<br /> <br />पहले तो पत्नियाँ प्रेमवश .... इतना अधिक परस देंगी ... फिर पति के द्वारा थाली में झूठन छोड़ देने पर अन्न की बरबादी में गुनाह मानेंगी ... धोने के बरतन भी कम होते हैं... पत्नियाँ इसलिये भी एक थाली में खाना पसंद करती हैं.. ऐसे छोटे-छोटे कई अन्य कारण भी हैं जिसपर ध्यान नहीं जाता... इसे केवल 'पत्नी धर्म' कहना ठीक नहीं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69287859237199830272011-09-15T21:44:35.105+05:302011-09-15T21:44:35.105+05:30@ झूठन किसी भी हालत में किसी को किसी का नहीं खाना ...@ झूठन किसी भी हालत में किसी को किसी का नहीं खाना चाहिए... ऐसा ही स्वास्थ्य-चर्चाओं में मेरे गुरुजनों ने बताया था लेकिन विवाह से पहले मैं अपने पिता और भाइयों का झूठा खाना इसलिये खा लेता था कि उसे फैंका ना जाये... उसे निपटाने में माँ का सहयोग करता था.. वैसे झूठन से हमेशा बचता था. विवाह के बाद पत्नी को झूठा खाने से मना किया और स्वयं भी सप्रयास वैसा ही किया लेकिन रिश्तेदारों के बीच और ससुराल में उठते-बैठते यह परहेज भी छूट गया... आज़ पत्नी मेरा झूठा खा लेती है.. और मैं पत्नी का... सोचता हूँ इस परम्परा को जल्द छोड़ दूँ.. लेकिन छूटती नहीं. <br />हाँ कभी-कभी एक ग़लत बात जरूर बोंल देता हूँ... जब थाली में भोजन बच जाता है... "तुम्हारे लिये प्रसाद छोड़ दिया है."प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-29463404955379370892011-09-15T21:39:23.967+05:302011-09-15T21:39:23.967+05:30बीकानेर के सेठों के यहाँ तो नहीं जाना हुआ पर हाँ र...बीकानेर के सेठों के यहाँ तो नहीं जाना हुआ पर हाँ राजस्थान के कई सेठों के घर बहुत बार जाना हुआ है हमने तो ऐसा रिवाज कहीं नहीं देखा|<br />हाँ बालिका वधु धारावाहिक में इस प्रथा के बारे में पहली बार देखा और दूसरी बार यहाँ पढ़ा|Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-51114609776910979702011-09-15T20:29:59.417+05:302011-09-15T20:29:59.417+05:30pyar badhne ki baat ko mai tab hi samajh paati jab...pyar badhne ki baat ko mai tab hi samajh paati jab itne hi prem se pati bhi apni patniyo ka jhootha kha sakte..... agar ann ka feka jana bachane ke liye bhi patniya apne pati ka jhootha khati hai to fir kya kabhi mauka aane par pati aisa kar sakte hain? mere vichar se bilkul nahi... ye samarpan ye prem.. sab bahut sammaaniye hai.. lekin ek tarfa hi kyun???Rashmi Swaroophttps://www.blogger.com/profile/14615276585404778659noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-16533482534943009442011-09-15T20:15:24.861+05:302011-09-15T20:15:24.861+05:30ये किसी एक क्षेत्र की बात नहीं, पूरे भारत की है. औ...ये किसी एक क्षेत्र की बात नहीं, पूरे भारत की है. औरतों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने की मानसिकता के चलते ऐसा होता है, और बड़े घरों में कुछ ज्यादा ही होता है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-70880200314808890402011-09-15T20:10:09.031+05:302011-09-15T20:10:09.031+05:30अरे! मेरे गाँवों में भी बहुएँ अक्सर अपने पति की था...अरे! मेरे गाँवों में भी बहुएँ अक्सर अपने पति की थाली में ही खाती हैं, और अगर जूठा ना भी खाएँ, तो पति के बाद ही खाती है. कौन सी नयी बात है?muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-70678631808218906232011-09-15T20:09:44.526+05:302011-09-15T20:09:44.526+05:30पाँचों अंगुली बराबर नहीं होती है।पाँचों अंगुली बराबर नहीं होती है।SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35123174232327551722011-09-15T20:05:38.338+05:302011-09-15T20:05:38.338+05:30वाणी जी से सहमत,घटना सच हो सकती है,पर यहाँ पर कार...वाणी जी से सहमत,घटना सच हो सकती है,पर यहाँ पर कारण आलस्य या अन्न जूठा न छोड़ने की इच्छा संभव है।दुःख की बात है दुनिया का शायद ही कोई भाग होगा जहाँ कभी न कभी नारी का दोयम दर्जा स्पष्ट दिखाई न देता हो।रोहित बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/00332425652423964602noreply@blogger.com