tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post3618631204655652309..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: पता नहीं शोषण हैं ये सब या नहीं , क्यूँ पैदा किया जाता हैं इन सब को ??रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-43075975116825018352013-01-25T12:55:43.727+05:302013-01-25T12:55:43.727+05:30"जड़ वस्तु और मन-प्रभाव" उस डॉक्टर से पूछ..."जड़ वस्तु और मन-प्रभाव" उस डॉक्टर से पूछो जो जीने की इच्छा त्याग चुके, मनोबल हीन मरीज को सटीक व सही दवाएं देता है किन्तु मरीज पर कुछ भी असर नहीं करती। उन जड़ दावाओं में जो तत्व है, जो जीवनदायी पदार्थ है, किंचित क्रियाशील ही नहीं बनते………!!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-33192776108989955172013-01-25T12:43:55.953+05:302013-01-25T12:43:55.953+05:30@पूरे मन से बिना किसी बाध्यता व शोषण के की गयी मेर...@पूरे मन से बिना किसी बाध्यता व शोषण के की गयी मेरी टिप्पणियाँ भी बहुतों को बेस्वाद लगती हैं... ऐसा क्यों आखिर... :))<br /><br />--उन बहुतों में से इस एक ना-चीज द्वारा बे-स्वाद की विवेचना और क्यों की स्पष्टता……<br /><br />आदरणीय प्रवीण शाह जी,<br /><br />@"खाना उतना पोषण अवश्य देगा जितना पोषण उसमें मौजूद है..."<br /><br />--खाने में मौजूद पोषक तत्व पूर्ण रूप से पोषण नहीं देते अगर उनके सहयोगी और समर्थक एंजाईम व रसायन हमारे अपने शरीर में स्रावित न हो। यह एंजाईम व रसायन हमारे मन की भावनाओं से सक्रिय होते है। इसलिए पोषण को आवश्यक उर्जा में परिवर्तित करने के लिए मन प्रमुख भूमिका निभाता है।<br /><br />भोजन भले जड़ वस्तु हो, लेकिन सजे धजे सुन्दर दिखते भोजन के प्रति सुरूचि उत्पन्न होती ही है। हम अक्सर भोजन का जड़ साजो सामान स्वच्छ रखते है, डिस-थाली सजाते है, टेबल सजाते है इसतरह जड़ भोज्य वस्तुओं को देख कर मन में खाने की रूचि और इच्छा बलवती बनती ही है, यह जड़ वस्तुओं के मन पर पडने वाले प्रभाव का ऊपरी साधारण सा उदाहरण है। उसी तरह कोई बे-मन से बनाए या उपेक्षा भाव से परोसे तो हमारी मनस्थित्ति में अद्भुत परिवर्तन आता है उसी के अनुरूप भावनाएं पैदा होती है और शरीर में ऐसे ही एंजाईम के स्राव होते है जो पोषण को प्रभावित करते ही करते है।<br /><br />शादी ब्याह आदि अवसरों, त्यौहारों आदि के बचे खुचे किन्तु गरिष्ठ भर पेट भोजन लेने वाले भिखारी भी अमुमन कमजोर कुपोषण के शिकार देखे जा सकते है।<br /><br />@आपको क्या लगता है कि तपती गर्मी में होटल के तंदूर पर बैठी/बैठा शख्स मनोयोग से वह काम करता है... वह भी अपने बच्चों का पेट पालने के लिये ही इस काम को करते हैं...<br /><br />भोजन-कर्मी सम्भवतया अपने कौशल-निष्ठा से काम करता है। निश्चित ही यह अपने बच्चों का पेट पालने के लिये ही 'मनोयोग' है। यह अपनी रोजी की प्रतिबद्धता है, न कि खाने वालो के लिए ममत्व भरा मनोयोग।<br />फिर भी प्रस्तुत पोस्ट में कमाई के प्रति मनोयोग उन भोजन-कर्मियों के अभिभावको का दर्शा कर यह कहने का प्रयास किया गया है कि वे भोजन-कर्मी - बच्चे-किशोर-युवा, अभिभावको की मर्जी से किन्तु बेमन से खटते है। और इस तरह बेमन से बने भोजन के प्रति सुरूचि, पुष्टि और तृप्ति नहीं होती।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-3723914384254502592013-01-25T12:34:27.037+05:302013-01-25T12:34:27.037+05:30This comment has been removed by the author.सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1329092632060231192013-01-25T11:10:45.286+05:302013-01-25T11:10:45.286+05:30प्रवीण जी
इस पोस्ट में काम देने वालो से ज्यादा उनक...प्रवीण जी<br />इस पोस्ट में काम देने वालो से ज्यादा उनके विषय में बात हैं जिनके ये बच्चे हैं .<br />और जैसे आप हाउस वाइफ़ के संगठन की बात कर रहे हैं , जहां मै इस समय हूँ वहाँ काम करने वालो का संगठन हैं जो बाकायदा हर साल पैसा बढाता हैं और जो नहीं देते हैं उनके यहाँ काम नहीं होता<br />काम देने वालो को धमकाया जाता हैं की अगर कभी पुलिस में कम्प्लेंट की तो "आप की बड़ी बदनामी होगी और आप के यहाँ कोई काम नहीं करेगा "<br /><br />आप की टिप्पणी का मुझे तो इंतज़ार रहता हैं अब आप के अन्य देव / दानवो / देवियों / रांडो / छिनालो को हैं या नहीं कह नहीं सकती , हर शब्द बकोल आप के डिक्शनरी में हैं मेरा बनाया नहीं हैं :)रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-78942960983544186632013-01-24T23:12:45.048+05:302013-01-24T23:12:45.048+05:30.
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रचना जी,
१- खाना बनाना = ऐसा श्रम जिसमें कु....<br />.<br />.<br />रचना जी,<br /><br />१- खाना बनाना = ऐसा श्रम जिसमें कुशलता (skill) की जरूरत है... दिल्ली जैसे महानगर में यह तकरीबन ३६० रू० प्रतिदिन, अथवा ६० रूपये घंटे की दर पर उपलब्ध है... (एक दिन में छह घंटे काम व दो घंटे आराम/आने जाने के)... ठीक इसी तरह बर्तन सफाई/घर की सफाई (अकुशल श्रम) आदि २४०/प्रति दिन या ४० रूपये प्रति घंटा... इस हिसाब से यदि एक घंटा खाना बनाने का कोई १८०० रू० प्रति माह व एक घंटा रोजाना साफ सफाई का कोई १२०० प्रति माह दे रहा है तो कोई शोषण नहीं हो रहा/किया जा रहा... पर होता यह है कि एक लोकेलिटी की सभी गृहिणियाँ मिलीभगत का एक गठजोड़ सा बना पारिश्रमिक की दरों को लगभग आधा रखती हैं, कोई यदि बढ़ाना भी चाहता है तो उसे 'रेट/दिमाग खराब न करने' को कहा जाता है... यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है... :)<br /><br />२- @ 'क्या इनका बनाया खाना जो बेमन से होता हैं हम सब वो पोषण देता होगा जो भोजन का काम हैं'<br /><br />खाना उतना पोषण अवश्य देगा जितना पोषण उसमें मौजूद है... खाना जड़ वस्तु है, मनोभावों के आधार पर अपना प्रभाव/स्वभाव नहीं बदलता... रही बात मन/बेमन की, आपको क्या लगता है कि तपती गर्मी में होटल के तंदूर पर बैठी/बैठा शख्स मनोयोग से वह काम करता है... वह भी अपने बच्चों का पेट पालने के लिये ही इस काम को करते हैं...<br /><br />३- वैसे मन/बेमन की आपने छेड़ी ही है तो पूरे मन से बिना किसी बाध्यता व शोषण के की गयी मेरी टिप्पणियाँ भी बहुतों को बेस्वाद लगती हैं... ऐसा क्यों आखिर... :))<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-37434514051664397922013-01-24T13:55:33.972+05:302013-01-24T13:55:33.972+05:30गृहणी के कार्य को कमतर आंकना बेवकूफी है.गृहणी के कार्य को कमतर आंकना बेवकूफी है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-18185917815210768472013-01-23T23:30:30.369+05:302013-01-23T23:30:30.369+05:30पैसा घर की लक्ष्मियों पर भारी...
उच्च वर्ग की विल...पैसा घर की लक्ष्मियों पर भारी...<br /><br />उच्च वर्ग की विलासिता की ओर बढ़ता मध्यम वर्ग...<br /><br />अपने हक़ के लिए शोर मचाते और दूसरों के हक़ को दबाते हम लोग...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-11227872459691834952013-01-23T22:49:54.342+05:302013-01-23T22:49:54.342+05:30हम आपसे सहमत है।हम आपसे सहमत है।Kartikey Rajhttps://www.blogger.com/profile/03883116315620306465noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57683396018699792402013-01-23T21:37:06.690+05:302013-01-23T21:37:06.690+05:30ऐसे ही कितने प्रश्न मेरे मन में भी लगातार उठते रह...ऐसे ही कितने प्रश्न मेरे मन में भी लगातार उठते रहते है ,मंथ न होता रहता है ।पहले के जमाने में कुछ मुट्ठी भर लोग दुसरो का शोषण करते थे आज शोषण करने वालो की संख्या बढ़ गई है और वे इसे अपनी शान समझते है ।विडम्बना ये है की शोषण करने वाले समाज सेवा के झंडे हाथ में लिए घूमते है ।शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-71158584028031471212013-01-23T20:03:56.875+05:302013-01-23T20:03:56.875+05:30बहुत दुख हुआ पढ़कर !
अनिता जी बात से पूरी तरह सहमत...बहुत दुख हुआ पढ़कर !<br />अनिता जी बात से पूरी तरह सहमत हूँ...<br />~सादर!!!Anita Lalit (अनिता ललित ) https://www.blogger.com/profile/01035920064342894452noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26530898148783394172013-01-23T14:56:11.423+05:302013-01-23T14:56:11.423+05:30बेमन से पकाया गया भोजन कभी भी स्वास्थ्यप्रद नहीं ह...बेमन से पकाया गया भोजन कभी भी स्वास्थ्यप्रद नहीं हो सकता..अपना काम जहां तक हो सके खुद ही करना चाहिए..तन व मन दोनों की खुशी के लिए..Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.com