tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post3553840715920600656..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: बदलते समय का आह्वान एक माँ की पाती बेटी के नामरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-16324648284679525662008-04-22T10:56:00.000+05:302008-04-22T10:56:00.000+05:30नारी की विवशता की जड में स्वाभिमान की कमी है.बचपन ...नारी की विवशता की जड में स्वाभिमान की कमी है.बचपन से ही लडकी को सिखाया जाता है कि उसे पराये घर जाकर एड्जस्ट करना पडेगा.जरूरत है लडकी को स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनाने की.एक प्रश्न उठता है कि लेखिका ने बचपन से ही अपनी बिटिया को ये सब क्यूं नहीं बताया.बेटियां तो स्वभाव से ही सेन्सिटिव और समझदार होती हैं.Ila's world, in and outhttps://www.blogger.com/profile/13648932193142137941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-67617672732346868912008-04-14T21:44:00.000+05:302008-04-14T21:44:00.000+05:30कुछ माँए अपनी बेटियों को अपने पर हुए अत्याचारों के...कुछ माँए अपनी बेटियों को अपने पर हुए अत्याचारों के बारे में इसलिए नहीं बतातीं क्योंकि वे नहीं चाहती कि विवाह या स्त्री पुरुष के मिलकर साथ जीवन जीने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय,संबन्धों व जीवन पर उसपर हुए अत्याचारों की काली छाया बेटी को जीवन, व इस मधुर संबन्ध के प्रति पहले से ही गलत धारणाएं बनाने पर बाध्य ना कर दे । वे बेटी को केवल ऐसा बचपन, कैशोर्य व ग्यान देती हैं कि किसी भी हालत में बेटी कभी भी दीन हीन ना बने व अपने को किसी से पीछे ना समझे । उसे अपने जीवन को सबसे महत्वपूर्ण मानना सिखाती है व अपने सम्मान व स्वाभिमान के साथ कोई समझौता करना नहीं सिखाती । एक स्वाभिमानी व्यक्ति ही चाहे वह स्त्री हो या पुरुष विवाह में अपने व दूसरे के मान सम्मान का आदर कर पाता है । <BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-29378963257694513022008-04-14T21:35:00.000+05:302008-04-14T21:35:00.000+05:30बहुत सोचने पर बस एक ही बात जो मन में आती है जिस दि...बहुत सोचने पर बस एक ही बात जो मन में आती है जिस दिन नारी अपने आप से प्यार करना और अपने आप को सम्मान देने लगेगी, उस दिन से ही समाज का रूप बदलने लगेगा.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-78192858441036237092008-04-14T17:58:00.000+05:302008-04-14T17:58:00.000+05:30Before saying anything on the post I would ask to ...Before saying anything on the post I would ask to all women those who are commenting here. just a quest: Do you all have decision making power for yourself? How many of you have taken your own deicision while selecting the dear dear hubby for your self? Perhaps none of you or may be one or jyada se jyada two! How many of you stand and said to your parents, that I will get married without dowry? Who stoped you not to do so? And why we women always need support from male like hubby, dad, brother, beta? Don't you have guts or enuff confidence to take your own decision and do things alone? You only pass ur statement very easily that women are capable, have will power and shakti then why are you not applying it in practical life. Sirf yeh bolne se nahi hota hai ki NARI- Shakti ki pratik hai, agar hai to use that shakti. Don't always blame others like 'husband se support nahi mila' or 'papa ne support nahi kiya' ya fir beta/beti support nahi kar rahe hein. Apne weakness ko chupane ke liye ham kabtak dusre per blame karte rahenge. Hamari sabse badi kamjori hai, we women are still not thinking logically and independently. In maximum cases ek ne kah diya aur dusre uske peeche emotional hokar bhag rahe hein without using our own mind. Dear women, do not let your value goes down by your own deeds. Fight against the odd, wrong system, ghatiya thoughts and make it perfect. More important than this, if you make a mistake or miss something, the fault and responsibilities are your own. <BR/><BR/><BR/>Now coming to the real story, after reading it, we all just showing sympathy and saying "It cannot be happend with her." This statement should free us rather than making us feel we need to push faster, try harder and climb higher. Anyway, But who is responsible for her worst situation. Her own mistake not to take decision boldly for herself in spite of being educated. Ise mazboori ka naam de dete hein aur woh ban jati hai Aurat hone ki mazboori. We must learn to lead life without dropping a single ball.<BR/> <BR/><BR/>@ab inconvenient, jaisa ki sunita ji ne kaha hai pita kya khaq banega. hmmm...kitna dosharopan ka khel kheliyega, thoda rest lijiye. just kidding. Plz don't mind it. Waise Mr.inconvenientji ek achha pati or pita banna to baad ki baat hai usse pahle ek achha insan ban jaye yahi bahut badi baat hai. Agar insan ban gaya to samjho sab sudhar gaya aur her maa ka khokh sarthak ho gaya!! Fir to koi gila shiqwa hi nahi hoga aur aapke jaisa mujhe bhi itni lambi-2 comment nahi likhni padegi! hai na baat pate ki:-)<BR/><BR/><BR/>And at last this is for both men and women- Instead of working hard today on what is most important and what will make your home a love-filled place for your family. So always be honest of your heart. <BR/><BR/>Note: if anybody want to say anything on my comment, they are most welcome here. Would love to read and reply. <BR/><BR/>thnx wid rgds, <BR/>Rewa Smriti<BR/>www.rewa.wordpress.comरेवा स्मृति (Rewa)https://www.blogger.com/profile/13005191329618003468noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57905861030305198302008-04-14T17:04:00.000+05:302008-04-14T17:04:00.000+05:30यह पाती माँ ने ४५ साल की उम्र में लिखी जब वो एक ले...यह पाती माँ ने ४५ साल की उम्र में लिखी जब वो एक लेखिका है और बेटी २४ साल की है,जिन्दगी के उतार-चढ़ाव का ग्यान बेटी को इसी उम्र में हो सकता है,अगर बचपन से उसे शिक्षा देने की कोशिश भी की जाती तो शायद वह समझ नही पाती,चूँकि पिता ने एक आदर्श पिता होने की भूमिका पूरी इमानदारी के साथ निभाई है,बेटी पिता के खिलाफ़ भी कुछ नही सुन पाती...मेरा कहना बस इतना है,पुरूष अकेला ही भागी नही है औरत की दुर्दशा का...औरत खुद औरत की दुश्मन है...अत्याचार करने से अधिक अत्याचार सहने वाला दण्डनिय है वो माँ अपने बच्चों को क्या शिक्षा देगी जो अपना आत्मसम्मान खोकर जिन्दगी बिताती है...मेरे ख्याल से जिस दिन चोरी का इल्जाम लगा कर बेईज्जत किया गया उसी दिन पहला कदम क्या उठाना है सोच लेना चाहिये था...क्यों औरत ही सारे संस्कारों का हवाला देती है क्या पुरूष पर कुछ भी लागू नही होता? जब पुरूष एक अच्छा पति नही बन सकता तो पिता क्या खाक बनेगा...सबसे बडी गलती है एसे पुरूष को सहन करना...सास-ससुर या ननद तभी हावी होते है जब पति साथ नही देता...और अगर पति ही साथ न दे तो वो शादी नही खुदकुशी कहलायेगी...और खुदकुशी करना बुजदिलो का काम है अगर औरत एक शक्ति है तो वह क्यों नही अपनी शक्ति को दिखला पाती...क्यों सहन करती है सब कुछ झूठे आडम्बरों मे फ़सकर...<BR/>मै नही मानती इस पत्र की किसी भी बात को...लेखिका खुद गुनाहगार है...जब एक औरत का अपमान हो रहा है तो जरूरत क्या है वहाँ दो और कन्याओं को जन्म दिया जाये...वो घर तो संतान के लायक ही नही था...उसे उसी पल समझ जाना चाहिये था कि अपने पैरों पर खड़े होना होगा...और इस समाज से टक्कर लेनी ही होगीसुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-53718090584027886982008-04-14T16:32:00.000+05:302008-04-14T16:32:00.000+05:30har aurat ki yehi kahani hai, par use badalna hoga...har aurat ki yehi kahani hai, par use badalna hoga, aurat maa durga roop hai usme shakti hai, apne haque ke liye jhansi ki rani banna hoga aur apni kahani badalni hogi.manuhttps://www.blogger.com/profile/15305081080357206475noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-85132708088866377872008-04-14T15:17:00.000+05:302008-04-14T15:17:00.000+05:30@Vandana Pandey "लेखिका को बेटी के २४ वर्ष का होने...@Vandana Pandey <BR/>"लेखिका को बेटी के २४ वर्ष का होने का इंतज़ार क्यों करना चाहिए था? यह शिक्षा तो उन्हें बेटी को बचपन से देनी चाहिए थी, "<BR/>शिक्षा निरन्तर दी पाती तब लिखी जब बेटी २५ साल की हुइ .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69779403193882094262008-04-14T15:10:00.000+05:302008-04-14T15:10:00.000+05:30यह कहानी खासी जानी पहचानी है-आज से पचास साल पहले क...यह कहानी खासी जानी पहचानी है-आज से पचास साल पहले करीब हर दूसरे घर में दिखाई दे जाती थी।<BR/>लगभग हम सबकी माँएं इस पीड़ा से गुज़री हैं। उनमें जो हिम्मत वाली थीं उन्होंने लेखिका की तरह अपनी बेटियों को इस समाज में इज़्ज़त के साथ रहने की प्रेरणा दी और जो हार गईं उनकी बेटियों ने भी उनके उदाहरण से दब घुट कर जीने की दुख और निराशा भरी राह ही सीखी।<BR/>एक बात समझ नहीं आई- अन्याय का विरोध करना सिखाने के लिए लेखिका को बेटी के २४ वर्ष का होने का इंतज़ार क्यों करना चाहिए था? यह शिक्षा तो उन्हें बेटी को बचपन से देनी चाहिए थी, ताकि वह अपने घर में अपने पिता के माँ के प्रति अन्यायपूर्ण आचरण का प्रतिरोध कर सकतीं, माँ के साथ खड़ी हो सकती। क्या नारी अस्मिता की लडा़ई सिर्फ़ पति के घर में लड़ी जानी चाहिए? पिता और भाई के अन्याय का विरोध करने क्या कोई और बाहर से आएगा?Vandana Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02931968654615762133noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-47797467294539249472008-04-14T14:54:00.000+05:302008-04-14T14:54:00.000+05:30@ab inconvenienti 'दूसरे की बेटी पर जुल्म करने वाल...@ab inconvenienti <BR/>'दूसरे की बेटी पर जुल्म करने वाले के घर अब कोई बेटा न हो' यह सोच कितनी औरतें रखेंगी और क्यों? <BR/>बहुत सी हे , सबके अपने कारन हे . अगर कारन समझ आजयेगा तो समस्या खतम <BR/>"वह स्त्री भी लड़के की माँ होने का सम्मान कभी न पा सकेगी"<BR/>समाज मे व्याप्त ये सोच सिर्फ़ आप की नही हे . आप ने लिख हे क्योकि आप भी इसी समाज के हे . <BR/>क्या सम्मान मिलता हे लड़के की माँ को ?? <BR/>बस एक ताना नहीं मिलता की तुम ने बेटी पैदा की । आप ही बताये क्या स्पेशल सम्मान हैं इस समाज मे उसके लिये ?? कौन सा सुख या दुःख एक बेटे कि माँ को मिलता हैं जो बेटी की माँ को नहीं मिलता । ये एक मिथिया ब्रह्म है । एक रुदिवादी सोच । और आप से एक बात जरुर कहुगी आप का कोई ईमेल आईडी नहीं हैं , कोई ब्लॉग भी नहीं हैं आप ब्लोगिंग कोम्मुनिटी के मेंबर भी नहीं हैं पर आप टिपण्णी कर रहे हैं । आप जिस समाज के सदस्य नहीं हैं वहाँ पर इतनी विस्तार सोच । आप ब्लॉग भी बनाये और कुछ विचार वहाँ भी रखे ताकि हम लोग उन्हे भी पढ़ कर शेयर कर सके । हर महिला कोम्मुनिटी ब्लॉग पर ये सोचना की यहाँ पुरूष विरोधी सभा हो रही हैं आप की विस्तृत सोच को छोटा कर रहा हैं । ये बात मैने आप कि वेश्यावृत्ति संबंधित अप्रसांगिक टिपण्णी के सन्दर्भ मे कही हैं । महिला कोमुनिटी ब्लॉग क्या कर पायेगे या बंद हो जायेगे भविष्य कोई नहीं जानता और उसी तरह एक गृहणी का मूक विद्रोह क्या कर पाएगा ?? क्रांति बिना आहट आती हैं मित्र और commoner ही लाते है और फिर उसकी टंकार बहुत देर तक गूंजती हैं । लिखते रहे पर विषय से ना भटके और अपनी पसंद के विषय भी बताये ताकि उन पर भी कुछ सोच हो ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-48376144951167508722008-04-14T14:31:00.000+05:302008-04-14T14:31:00.000+05:30इसी डर पर तो विजय पानी है हमे ..जानती हूँ जो झेल ...इसी डर पर तो विजय पानी है हमे ..जानती हूँ जो झेल रहा होता है उसके लिए यह सब सहना बहुत मुश्किल होता है पर कहते हैं न की किसी न किसी को तो इसका अंत करना होगा ..ताकि आने वाली पीढ़ी कम से कम इस दर्द को न सहे ..बदलना होगा उन मान्यताओं को जो अन्दर ही अन्दर दम घोट के जीने पर मजबूर कर देती हैं ..फर्क नही आने वाला कह कर हम नही बच सकते कोशिश तो कर के देखनी होगी न रश्मि जी .आज हमे सहानुभूति नही सम्मान चाहिए और वह हमे ख़ुद ही हासिल करना होगारंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-64104340276573282072008-04-14T13:45:00.000+05:302008-04-14T13:45:00.000+05:30"आदमी जो की एक अच्छा पति साबित नहीं होता वह असाधार..."आदमी जो की एक अच्छा पति साबित नहीं होता वह असाधारण पिता साबित होता है"--------- इसका कारण बड़ा ही अजीब है, पर है सच. हमारे भारतीय समाज में, आदमी पर पहला हक़ पत्नी का न होकर माँ का माना गया है. यह बात हिंदुस्तान की हवा में ही घुली हुई है. दूसरा हक उसपर उसके बच्चों का माना जाता है. पत्नी का हक तो कहीं बाद में आता है. उसपर प्राथमिक तौर पर एक अच्छा बेटा और एक सफल पिता बनने का सामाजिक दबाव रहता है. बजाए एक अच्छा पति बनने के, माता के लिए अपनी पत्नी का परित्याग को आदर्श बताने वाली कितनी ही पौराणिक कहानियाँ हमने पढी सुनी हैं. पत्नी की उपेक्षा कर आज्ञाकारी पुत्र और महान पिता होने को यहाँ बहुत बड़े आदर्श की तरह देखा जाता है.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-11967165974083897982008-04-14T13:40:00.000+05:302008-04-14T13:40:00.000+05:30समाज को बदलने के लिए उसके ढाँचे को बदलना होगा,मुझे...समाज को बदलने के लिए उसके ढाँचे को बदलना होगा,<BR/>मुझे शिक्षित होने के बाद भी कोई फर्क नज़र नहीं आता, आज भी भय है,और भय इसलिए है की-<BR/>उंगलियाँ उठती हैं.हर सामर्थ्य के बाद भी स्त्री का वजूद नहीं बन पाता.......<BR/>विरोध किसका?कैसे?संवाद से?<BR/>दर्द को समझने से पीछे सबसे पहले स्त्री होती है,इतना डरती है कि कोई हल नहीं मिलता.<BR/>आप पूरी ज़िन्दगी कुर्बान कर डालें,<BR/>कोई फर्क नहीं आनेवाला.......जीवन कि संध्या तक एक माँ अपने फ़र्ज़ निभा लेती है,<BR/>पर क्या होता है हिसाब????????<BR/>अपने आप मे निडर होना है,एक पिता (बेकार पिता)का साथ ना हो,तो बच्चे कि शादी में रुकावट.......क्यूँ????????<BR/>बेटी,बेटा को सीख दे सकते हैं,दर्द बाँट सकते हैं,<BR/>व्यवस्था?????????<BR/>किसकी गलती थी,इसका हिसाब करके भी क्या?<BR/>समाज जिम्मेदार है.......परिवार जिम्मेदार है.....<BR/>जो ओखल में सर रखकर बैठा है,उसके बारे में कोई सुझाव निरर्थक है!रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-8758512961786066662008-04-14T13:04:00.000+05:302008-04-14T13:04:00.000+05:30यह एक विद्रोह ही है, पर सिर्फ़ (अगर ऐसा सोचने वाली...यह एक विद्रोह ही है, पर सिर्फ़ (अगर ऐसा सोचने वाली स्त्रियां समाज में सच में हैं तो) स्त्रियों के एक बहुत ही सूक्ष्म वर्ग का. कुछ औरतें विद्रोह करतीं हैं, मुखर हो कर अपनी बात नहीं रख पातीं तो कम से कम अन्दर से कोई न कोई विद्रोह्पूर्ण कामना कर के. कुछ तो ख़ुद की मौत की कामना करतीं हैं, तो कुछ अगले जन्म ऐसा पति और ससुराल न मिलने की, कुछ ये की उनके बच्चे उन्हें बड़े होकर उन्हें इस जिंदगी से उबार लेंगे, कुछ (अगर पति पर वश चलता है तो) ससुराल से अलग हो जाती हैं. यानी विद्रोह के कई रूप होते हैं, पर स्त्रीयों की सोच में लड़के को महत्व देना और लड़कियों की उपेक्षा दुर्भाग्य से कायम रहती है. आप इसे अन्यथा न लें, पर 'दूसरे की बेटी पर जुल्म करने वाले के घर अब कोई बेटा न हो' यह सोच कितनी औरतें रखेंगी और क्यों? अगर एक और पैदा हो गई तो उसपर भी पहली लड़की की तरह उपेक्षा ही बरसेगी, और वह स्त्री भी लड़के की माँ होने का सम्मान कभी न पा सकेगी. अगर पत्र में माँ की अपेथी सच में स्त्रीयों में पनप रही है तो यह शुभ संकेत है, कम से कम लड़कियों की कम होती संख्या पर लगाम तो लगेगी. एक और बात, आप भी स्त्री हैं, ज़रा सोच कर देखें, स्त्रीयों की दुर्दशा के लिए कौन ज़्यादा जिम्मेदार है? अगर समाज में पुरूष को बड़ा मनाने वाली मानसिकता विकसित हुई है तो औरतें और उनकी दूसरी औरतों के प्रति ईर्ष्या, उनपर शासन करने की चाहत, आदमियों से कहीं ज़्यादा जिम्मेदार हैं. मर्द कभी भी इतना शक्तिशाली न था की वह बिना औरत के सहयोग और समर्थन के किसी दूसरी औरत पर अत्याचार कर सके. उसकी ताकत को कुछ ज़्यादा ही आंका गया है. सन्दर्भ से हट कर एक उदाहरण, विश्वभर में वेश्यावृत्ति के अड्डों को औरतें ही संचालित करतीं हैं, लड़कियों के procurement से उन्हें पूरी तरह ट्रेन करने, वेश्यालय मेंटेन करने तक का ज्यादातर काम औरतों के ही जिम्मे होता है. आदमी इस धंधे में ग्राहक और एक्सेसरी ब्रांच की तरह होते हैं. इतिहास में औरतों ने आदमियों के बराबर ही या ज़्यादा ही जघन्य अपराध स्त्रीयों के खिलाफ किए हैं.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-42906832953875604382008-04-14T11:43:00.000+05:302008-04-14T11:43:00.000+05:30मार्मिक----मर्मस्पर्शी और समाधान मूलक पोस्ट.अच्छी ...मार्मिक----मर्मस्पर्शी और समाधान मूलक पोस्ट.<BR/>अच्छी पहल ----- ज़िंदगी की ज़मीनी सच्चाइयों का <BR/>सामना करने का ज़ज़्बा पैदा करना बड़ी बात है ,<BR/>बेटियों को मातृत्व का सही स्पर्श मिलना <BR/>उनके और समाज के जीवन के लिए भी ज़रूरी है .<BR/><BR/>श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए बधाई.<BR/>डा.चंद्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-10273544925673548142008-04-14T11:42:00.000+05:302008-04-14T11:42:00.000+05:30बहुत सी बातें इस पोस्ट में हैं जो आज भी समाज के उस...बहुत सी बातें इस पोस्ट में हैं जो आज भी समाज के उस रूप को दिखा रही हैं ..औरत ही जब औरत की दुश्मन बन जाती है तो जीना मुश्किल हो जाता है .यदि आज औरत ठान ले तो भूर्ण हत्या होनी बंद हो जाए पर हैरानी होती है जब सास ही बेटी होने का बहू को ताना देती हैं ..और बहु भी इस के लिए तैयार हो जाती है ..दूसरी बात जो समझ आती हैं यहाँ की पुरूष जिसको अपनी जीवन संगनी बना के लाता है वह उसके साथ होने वाले अन्याय या उस पीड़ा को क्यों अनुभव नही कर पाता है ...पत्नी उसके लिए क्यों सिर्फ़ एक औरत बन के रह जाती है ? उसके अपमान में वह क्यों अपना अपमान नही महसूस कर पाता है ?रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54354093675607470332008-04-14T10:45:00.000+05:302008-04-14T10:45:00.000+05:30क्यूंकि लेखिका ने महसूस किया था कि जो दुःख -दर्द उ...क्यूंकि लेखिका ने महसूस किया था कि जो दुःख -दर्द उसने झेले है एक बहु बनकर वो किसी और दूसरी लड़की को ना झेलना पड़े।वाकई हिम्मत की दाद देनी होगी लेखिका की।<BR/>पर क्या यही हल है।यहां हम एक बात कहना चाहते है कि बेटी या औरत होना कोई अभिशाप नही है। बस समाज की सोच बदलने कि जरुरत है।<BR/><BR/> एक बात और जब ये लेखिका है तो फ़िर अपना नाम क्यों छुपाना चाहती है।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-44351743823887045352008-04-14T09:25:00.000+05:302008-04-14T09:25:00.000+05:30"मैंने हर दवा लेते वक्त यही दुआ मांगी की मुझे दूसर..."मैंने हर दवा लेते वक्त यही दुआ मांगी की मुझे दूसरी भी बेटी देना ..जाने क्यों यह बात दिल मैं आई की दूसरे की बेटी पर जुलम करने वाले के घर अब कोई बेटा न हो"<BR/>@ab inconvenienti <BR/>आप की नज़र से इस लेख का ये वाक्य रह गया हे.<BR/>क्या हे इस एपेथी का कारन , और क्यो ? क्या ये सोच सही हे और अगर हा तो किस तरफ़ जा रहा हे आने वाला समाज ? क्या ये जाग रुक्ता का के पहलु हे , वो जाग रुक्ता जो किताबो मे नही आम नारी मे आ रही हे . विद्रोह का एक तरीका जो इस कथा मे हे क्या उस पर भी विचार दे . बहुत आभार होगा . ज्वाब कोइ भी दे सक्ता हे ab inconvenienti के आलावा भी की ये मौन विद्रोह क्या कह रहा हे . क्योन इस विद्रोह की आवज समाज को सुनाई नही दे रही हे ?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9143026353953252832008-04-13T22:55:00.000+05:302008-04-13T22:55:00.000+05:30इस केस में प्रताड़ना का ज्यादातर दोष ससुराल की औरत...इस केस में प्रताड़ना का ज्यादातर दोष ससुराल की औरतों का है. अक्सर होता यह है की, नई बहू के आने पर अधिकतर सास और ननद उससे खुन्नस रखने लगतीं हैं. कारण यह है की, जिस बेटे को उस माँ ने पच्चीस साल पाला पोसा और हर तरह से सेवा की, जिस भाई पर बहनें अपना पूरा हक समझती थीं, उसी पर एक बहारी लड़की ने आते ही कब्जा जमा लिया? इस लड़की के लिए मेरी पूरी जिंदगी की तपस्या भूल गया? लड़के की माँ अपने ही लड़के की सेक्सुअलिटी नहीं समझ पातीं. और उसकी उपेक्षा के लिए, उसके बेटे को अलग करने के लिए वो माँ अपनी बहू को ताउम्र माफ़ नहीं कर पातीं, और शायद बहनें भी यही भावना रखतीं हैं. बाप का अपने लड़के से उतना गहरा बन्धन नहीं रहता, पर अगर वो बहू का पक्ष ले तो उसकी पत्नी और बेटियाँ जीना मुश्किल कर दें. लड़के को क्या करना चाहिए आप ही सोचें, अरमानों के साथ आई नई नवेली पत्नी की उम्मीदों पर खरा उतरे, अपनी नई गृहस्थी को मज़बूत करने का इंतजाम करे. या फ़िर माँ और बहनों की असुरक्षा की भावना उनकी ओर ज़्यादा ध्यान दे कर दूर करे? और हाँ, संतुलन में ज्यादातर मर्द कच्चे होते हैं, अपनी आजीविका, माँ-बहने, पत्नी, बाहरी दुनिया, संतुलन साधने में कहीं न कहीं चूक हो ही जाती है. अगर औरत पर अत्याचार होते हैं तो, उसके पीछे किसी औरत का ही हाथ होता है, शायद माँ जिसने उसे सभ्य संस्कार नहीं दिए और संवेदनशील नहीं बनाया, या कोई दूसरी औरत जो किसी शादीशुदा मर्द की जिंदगी में दखल चाहती है. आपका बेटा नहीं है, नही तो आप सास के मन की कसक, उसकी अपने बेटे के प्रति पसेसिवनेस ज़्यादा बेहतर समझ पातीं.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-3379530153818539992008-04-13T22:11:00.000+05:302008-04-13T22:11:00.000+05:30"तुम्हारे पापा एक पिता बहुत अच्छे हैं ..और तुम दोन..."तुम्हारे पापा एक पिता बहुत अच्छे हैं ..और तुम दोनों इनको बहुतप्यारी हो ."<BR/><BR/>विवशता भरी हुई इस लाइन में वो सब कुछ भी है जो एक नारी होते हुये भी लेखिका नें अपने पति की तारीफ़ की है, बावजूद इसके कि वो उसे खुद को नहीं ! बल्कि उसकी बेटियों को चाहता है. <BR/><BR/>वाकई में लेखिका अपना फ़र्ज निभा रहीं हैं लेकिन उसने अपने वजूद का दायरा अपने तक सीमित रखकर अपने आपको दुर्बल ही साबित किया और उसका पति जो खुद एक कमजोर कड़ी है इस कहानी की जिसने बजाय इसके कि अपने आपको उठाने के उसने अपनी खीज हमेशा अपनी पत्नी पर उतारी है, ये भी कह सकते हैं कि गलती का रेशियो स्त्री का 35% और पुरूष का 65% का है और दोनो ने मिलकर 100% गलतिया की.kamlesh madaanhttps://www.blogger.com/profile/14947827548102778374noreply@blogger.com