tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post3541909421967724211..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: अपने सहचर का चुनाव करने कि भी क्षमता अगर आप मे नहीं थी या हैं तो आप शादी जैसी संस्था पर बहस ही बेकार करते हैं ।रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39795180908533996832010-06-10T18:29:54.594+05:302010-06-10T18:29:54.594+05:30शादी का अर्थ जाने बिना सिफे सामाजिक मान्यता निभाना...शादी का अर्थ जाने बिना सिफे सामाजिक मान्यता निभाना मानकर करना असफलता की निशानी है।शादी क्यों,कब,किससे इन प्रश्नों को जानकर की जाए तो सफल हो सकती है।janki jethwanihttps://www.blogger.com/profile/05043315438446703629noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9109668604027257372010-04-10T00:37:42.595+05:302010-04-10T00:37:42.595+05:30देखिये मुझे तो येही समझ नहीं आता है कि आप लोग किस ...देखिये मुझे तो येही समझ नहीं आता है कि आप लोग किस दुनिया में जी रहे है। महिलाओं को ३३% आरक्षण मिलने पर जिस देश कि महिलाएं खुशियाँ मानती है, उस देश कि औरतों का भगवान ही मालिक है। क्या आपको नहीं लगता है कि इससे आपको बराबरी नहीं मिली है, ये अहसास मिला है कि आप पुरुषों से कमतर है ।?<br /><br />आरक्षण से किसी भी वर्ग का भला नहीं होता, ये सिद्ध हो चूका है।<br /><br /><br />रही बात भारतीय समाज की , तो अमेरिका के समाज को ही ले लीजिये । वहां शादी अपनी मर्जी से ही होती है पर परिवार नाम कि कोई संस्था वहां नहीं है।<br /><br />पति पत्नी का नहीं है और पत्नी पति कि नहीं है । (क्योंकि बड़े-बुजुर्गों कि शर्म नहीं है।)<br /><br />हिंदुस्तान का समाज एक वैज्ञानिक ढाँचे पर आधारित समाज है । ये बात अलग है कि समय के साथ इसमें कुछ विसंगतियां आ गयी है । पर अगर दही ज्यादा खट्टा हो जाये तो उसे फैंका तो नहीं जाता।<br /><br />और रचना जी, आपको बता दूँ कि लव मेरिज करने वालों में ८०% जोड़े ऐसे होते है जिनका रिश्ता बिखर जाता है। इसके बहुत से सबूत उपलब्ध है। आप अपने आस-पास देखेंगी तो पता लग जाये गा। और इसके लिए समाज जिमेदार नहीं है। अँधा प्यार जिम्मेदार है।<br /><br />इसके असफल होने के निम्न मुख्य कारन है:<br />१। बहुत से मामलों में लड़के कमाते नहीं होते और दोनों पढाई के दौरान शादी कर लेते है। बिना पैसे के घर कैसे चल सकता है। थोड़े दिनों में लड़की भी ये बात समझ जाती है। फिर झगडे शुरू हो जाते है और दोनों को आटे-दाल का भाव याद आ जाता है।<br />२। शादी के बाद जब घर वाले स्वीकार नहीं करते और दोनों अलग रहते है तो किसी का डर तो होता नहीं। आम शादियों में तो रिश्तेदारों का डर होता है, इसीलिए छोटो-मोती बात घर में ही सुलझ जाती है। लव मेरिज में आँख कि शर्म तो रहती नहीं। झगडे तलक में बदल जाते है।<br /><br />३। लव मेरिज में सबसे ज्यादा नुक्सान लड़की को होता है। लड़का तो लडको को छोड़ देता है, फिर से अपने घर चला जाता है और दुबारा शादी कर लेता है। लड़की अपने घर भी नहीं जा सकती है , जाती है तो घर वाले स्वीकार नहीं करते है। इसलिए उसके पास खुद को बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।<br /><br />आपने लिखा है:<br />"जहां पत्नी दहेज़ लाती हैं वो अपने सास ससुर और पति कि मन से कभी इज्ज़त नहीं करती हैं क्युकी वो कर ही नहीं सकती हैं "<br /><br />मेरी दादी, मेरी मां, मेरी बहिन सभी कि शादी दहेज़ के साथ हुई है पर ऐसा तो कभी नहीं हुआ। ये आप लोगों के मन का वहम है , और शादी में दहेज़ लेना या देना जरूरी नहीं होता । मैंने देखा है कि बहुत से लड़के वाले मना करते है फिर भी लड़की वाले कहते है कि हम तो अपनी लड़की को दे रहे है। आपको लेना पड़ेगा. जबरदस्ती मांग कर दहेज़ लेने वाले तो बहुत कम है, और ऐसा गलत भी है पर अपवाद तो हर जगह है । और दहेज़ तो बहुत समय से चला आरहा है , इसका मतलब हमारे पूर्वज और जैसे कि आपके मां-बाप एक दुसरे कि इज्जत नहीं करते?<br /><br /><br />आपने लिखा है कि<br />"अपने सहचर का चुनाव करने कि भी क्षमता अगर आप मे नहीं थी या हैं तो आप शादी जैसी संस्था पर बहस ही बेकार करते हैं"<br /><br /><br />आप ये बताएं कि एक ५० साल के मां - बाप शादी के लिए लड़का या लड़की चुनते है तो वो ज्यादा समझदार है या बच्चे खुद अपनी शादी के लिए हमसफ़र चुनेगे तो ज्यादा समझदार होंगे। और आपकी Algorithm में कहीं गुण-अवगुण या अनुभव तो है ही नहीं इसीलिए ये बेकार है। एक लड़की ने लव-मेरिज में एक शराबी, अय्याश और बेईमान आदमी को अपना पति चुना या मां-बाप ने अच्छी तरह से देख कर बढ़िया लड़का चुना तो क्या दोनों एक ही है? मां- बाप अपने बच्चों का भला चाहते है ना कि बुरा । इसिलए वो अपने बच्चों के लिए अच्छा करने कि कोशिश ही करते है।<br /><br /><br />हाँ, अगर लड़का-लड़की किसी से प्यार करते है तो उनमे अपने प्यार पर इतना विशवास तो हो कि अपनी पसंद के साथी के बारे में अपने घर वालों को बता सकें । अगर प्यार में दम नहीं हो तो भाग कर शादी कि जाती है।Adminhttps://www.blogger.com/profile/10330104035954777641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9951506781538041082010-04-04T01:39:51.796+05:302010-04-04T01:39:51.796+05:30भारतीय समाज में बनाये गये नियम कानून इतने जटिल है ...भारतीय समाज में बनाये गये नियम कानून इतने जटिल है कि किसी भी बड़े परिवर्तन की उम्मीद केवल एक मुद्दे को हल कर नहीं किया जा सकता। शादी से अगर पैसा हटा भी दिया जायें, तब भी बहुत सी बातें है, जो इस समाज में औरतों के लिए शादी की अनिवार्यता बनाये रखती हैसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-12128947486371509742010-04-01T04:59:29.755+05:302010-04-01T04:59:29.755+05:30अपने सहचर का चुनाव करने कि भी क्षमता अगर आप मे नही...अपने सहचर का चुनाव करने कि भी क्षमता अगर आप मे नहीं थी या हैं तो आप शादी जैसी संस्था पर बहस ही बेकार करते हैं.<br /><br />Yeh baat bilkul sach hai magar Bhartiya Samaz ke tathakathit niyamo ko tod kar is wakya ko sach kar pana kafi mushkil hai. Nishaya hi Naye kanoon banane ki jaroorat hai lekin us se pahle logo ka aur samaj ka shikshit hona bahut jaroori hai. Shikshit se mera matlab Ratoo tota hona bhar nahi balki , to be a follower of Excellence.<br /><br />Bahut Achhi Post..Himanshu Phttps://www.blogger.com/profile/08701634717420634603noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-19702566527790776472010-03-31T00:48:07.758+05:302010-03-31T00:48:07.758+05:30आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानद...आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती हैसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-31258534092665658812010-03-30T12:18:41.484+05:302010-03-30T12:18:41.484+05:30मुझे लगता है की जब हम भारतीय समाज/संस्कृति की बात...मुझे लगता है की जब हम भारतीय समाज/संस्कृति की बात करते हैं तो बात शायद सिर्फ मध्यम वर्ग तक ही सीमित रह जाती है . शिक्षा ने कुछ अच्छे अच्छे काम भी किए हैं तो शायद कुछ संकीर्णता भी लायी है .एक उदाहरण देना चाहूँगा , कुछ क्षेत्रों में एक परंपरा है की स्त्री या पुरुष बिना किसी विवाद या झगड़े के जिसमे कोई धन का लेन देन भी नहीं होता अपना संबंध विच्छेद कर सकते हैं और दूसरा विवाह भी कर सकते हैं वहाँ तलाकशुदा परित्यक्ता इत्यादि का भाव नहीं होता है . उन्हे दूसरा साथी भी बिना किसी रोक के उपलब्ध होता है . क्या यह परंपरा स्त्री को भी उचित स्थान नहीं दिलाती ?<br />लेकिन शिक्षा के प्रसार से यह लुप्त होती जा रही है .कौन सा समाज ज्यादा सुसंस्कृत है तथाकथित शिक्षित समाज या गरीब असिक्षित समाजडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-63228505880599208982010-03-30T11:30:14.447+05:302010-03-30T11:30:14.447+05:30भारतीय समाज में बनाये गये नियम कानून इतने जटिल है ...भारतीय समाज में बनाये गये नियम कानून इतने जटिल है कि किसी भी बड़े परिवर्तन की उम्मीद केवल एक मुद्दे को हल कर नहीं किया जा सकता। शादी से अगर पैसा हटा भी दिया जायें, तब भी बहुत सी बातें है, जो इस समाज में औरतों के लिए शादी की अनिवार्यता बनाये रखती है। शादी की जटिलता केवल पैसे के कारण नहीं। समाज में ऐसे भी लोग है जो दहेज लेकर या देकर शादी करते है, उसके बाद भी उतनी ही शिद्दत से पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के माता पिता कि इज्जत करते है। पत्नी को भी आत्मनिर्भर बनने की उतनी ही इजाजत होती है जितना पति को और यह इजाजत केवल पति द्वारा ही नहीं, बल्कि उसके माता पिता द्वारा भी मिलती है। माना कि ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम है, लेकिन है तो। यह एक सकारात्मक कदम है। इसलिए बहुत जरूरी है मानसिकता में बदलाव की। दोनों को जब एक दूसरे की जरूरत है, वाली मानसिकता स्थापित हो जाएगी, तब न तो दहेज का लेन-देन प्राथमिकता रह जायेगी औऱ न ही औरत को स्वसंपत्ति समझने की ही प्रवृति होगी। एक स्वस्थ बहस के माध्यम से मानसिकता में बदलाव की बात हो न कि किसने शादी की, किसने नहीं की यह बहस का मुद्दा बनें।मोनिका गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/10069296901095370760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22875894262975613392010-03-30T10:28:08.077+05:302010-03-30T10:28:08.077+05:30मुक्ति के अनुभवों पर आक्षेप करने से पहले इस पोस्ट ...मुक्ति के अनुभवों पर आक्षेप करने से पहले इस पोस्ट पर अपने अनुभव बांटे ताकि हमे पता लगे कि आप को कितने अच्छे अनुभव हुए । व्यक्तिगत बात अनुभव कि साथकता केवल दुसरो कि नहीं अपनी बात ब्लोगिंग मे करने से होगी यही इस पोस्ट मे लिखा हैंAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-32034866374499406702010-03-30T03:04:48.871+05:302010-03-30T03:04:48.871+05:30Lagta hai mukti ji kuchh bure anubhavon ki khatir ...Lagta hai mukti ji kuchh bure anubhavon ki khatir kai achchhe anubhavon ko bisra dene ki kasam khaye hain..दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-58700440931095839902010-03-30T00:48:02.005+05:302010-03-30T00:48:02.005+05:30किसी ने कहा है " मैरिज इस ए लीगलआइस्ड ......&...किसी ने कहा है " मैरिज इस ए लीगलआइस्ड ......" ( महिलाओं से क्षमा सहित , मैं स्वयं इस कुशब्द का विरोधी हूँ )डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72336565327818888172010-03-30T00:43:16.087+05:302010-03-30T00:43:16.087+05:30पुरुष ज्यादातर मुगालते में जीते हैं अपने झूठे दंभ ...पुरुष ज्यादातर मुगालते में जीते हैं अपने झूठे दंभ के .एक औरत जो पाना चाहती है पाकर रहती है बिना किसी ढ़ोल पीटे. जो पुरुष यह समझता है की उसे दूसरी औरत उसके कारण उपलब्ध है तो वह यह भूल जाता है की यह उसकी नहीं दूसरी औरत की उपलब्धि है जो इस समाज को ठेंगा दिखाकर जी रही है .डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-62538126699163389782010-03-29T19:51:41.526+05:302010-03-29T19:51:41.526+05:30आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशान...आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.<br />हम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/شہروزhttps://www.blogger.com/profile/02215125834694758270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61729292243188575162010-03-29T18:53:02.073+05:302010-03-29T18:53:02.073+05:30छत्र छाया और पराधीनता मे उनके लिये कोई अंतर नहीं ह...छत्र छाया और पराधीनता मे उनके लिये कोई अंतर नहीं हैं / था <br /><br />शब्दों के छलावे से इतर भी दुनिया हैंAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9351506348428244892010-03-29T18:43:20.704+05:302010-03-29T18:43:20.704+05:30Mukti ji ne to hamare man kee baat likhkar hamara...Mukti ji ne to hamare man kee baat likhkar hamara kaam aasaan kar diya... purn sahmat....<br />Aapko aur mukti ji badhai kee patra hai...<br />Bahut shubhkamnayne.कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14808789799480224352010-03-29T17:47:30.927+05:302010-03-29T17:47:30.927+05:30विवाह औरतों के लिए किसी छत्रछाया से कम नहीं -और इस...विवाह औरतों के लिए किसी छत्रछाया से कम नहीं -और इसे वे स्वीकार भी करती हैं -समाज में 'दूसरे पुरुष' की संख्या .'दूसरी औरत' की तुलना में इसलिए ही तो बहुत कम है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-78761673840619360132010-03-29T16:12:07.582+05:302010-03-29T16:12:07.582+05:30bahut acchaa lekh.kash sabhi auraten in baaton ko ...bahut acchaa lekh.kash sabhi auraten in baaton ko samajhati......arvindhttps://www.blogger.com/profile/15562030349519088493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-68892617635770677772010-03-29T13:25:52.351+05:302010-03-29T13:25:52.351+05:30शादी सिर्फ़ पैसे की वजह से बुरी नहीं होती कि उसे ह...शादी सिर्फ़ पैसे की वजह से बुरी नहीं होती कि उसे हटा दिया जाये तो शादी एक अच्छी संस्था बन जायेगी. शादी से बहुत सी चीज़ें जुड़ी हुई हैं. १.प्रतिष्ठा...जिसके कारण पति दूसरी औरत से सम्बन्ध रखते हुये भी पत्नी को नहीं छोड़ता क्योंकि समाज में उठने-बैठने के लिये पत्नी को साथ ले जाना होता है. दूसरी ओर, औरतें ये जानते हुये कि पति के सम्बन्ध दूसरी औरत से हैं, शादी नहीं तोड़तीं.<br />२. सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक सुरक्षा...पति-पत्नी दोनों ही के लिये, पर पत्नी के लिये अधिक क्योंकि इस समाज में औरत अकेली नहीं रह सकती. <br />३. सम्मान...सभी जानते हैं कि हमारे समाज में पत्नियों को जो दर्जा मिला हुआ है, वो अविवाहित, तलाकशुदा और विधवाओं को नहीं है. इसीलिये औरतें न चाहते हुये भी शादी के सम्बन्ध को ढोती रहती हैं. <br />शादी को समाज में मिली हुई प्रतिष्ठा और सम्मान के कारण ही औरतें किसी भी शर्त पर शादी करने को तैयार होती हैं और घरेलू हिंसा भी सहती रहती हैं, मात्र आर्थिक सुरक्षा के कारण नहीं. <br />अगर शादी की व्यवस्था सिर्फ़ पैसों के लेन-देन के कारण खराब होती, तो आत्मनिर्भर औरतें इसे ढोती न फिरतीं. पर देखा ये जाता है कि आर्थिक सुरक्षा से ज्यादा औरतों को प्रतिष्ठा और सम्मान की फ़िक्र रहती है. इसलिये यदि विवाह की अनिवार्यता समाप्त कर दी जाये. मेरा मतलब यह है कि कोई औरत या मर्द शादी करे या न करे ये उसी पर छोड़ दिया जाये, तो ज्यादा अच्छा होगा. तब पुरुष और स्त्री दोनों बिना किसी दबाव के निर्णय लेंगे कि उन्हें शादी करनी है या नहीं और करनी है तो कब, कैसे और किससे करनी है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.com