October 16, 2018

आज भी वो अपनी आहुति ही दे रही हैं , क्युकी ना तो समाज ने उनको पहले न्याय दिया हैं और ना अब देने को तैयार हैं।

लोग मीटू को समझ ही नहीं पा रहे हैं।  ये अभियान सजा दिलवाने के लिये नहीं शुरू किया गया हैं।  ये अभियान उन महिला ने शुरू किया हैं जिन्हे लगा की उन्होंने सही समय पर आवाज नहीं उठाई।  उन्होंने अपने अंदर के दर्द को सबसे साझा किया हैं और ये भी बताया हैं की वो क्यों नहीं बोल सकी जब वो सेक्सुअल हरस्मेंट का शिकार हुई। 
हर व्यक्ति को इस दुनिया में समान अधिकार हैं वो स्त्री हो या पुरुष या किसी और लिंग का।  विश्व भर में महिला का यौन शोषण हो रहा हैं सदियों से क्युकी पुरुष महिला को अपने बराबर नहीं मानता हैं।  वो या तो महिला का रक्षक हो सकता हैं या महिला का भक्षक।  
महिला का रक्षक होने के लिये उसके साथ किसी सम्बन्ध का होना आवश्यक हैं , पिता , भाई , बेटा , मामा , चचा , ताऊ , भतीजा , भांजा , दोस्त यही कुछ सम्बन्ध हैं जहां पुरुष स्त्री के रक्षक की मुद्रा में आता हैं।  बाकी वो सब जगह अपने को विपरीत लिंग का समझता और नारी के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाने को उत्सुक रहता हैं।  
महिला का नौकरी करना पुरुष को कभी नहीं भाता हैं क्युकी उसको लगता हैं महिला अगर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होगयी तो निरंकुश हो गयी।  
लोग कह रहे हैं अगर किसी महिला को नौकरी करते समय किसी जगह सेक्सुअल अंदेशा हो तो उसको नौकरी छोड़ देनी चाहिये।  
कभी सोच कर देखिये दो विपरीत लिंग के बच्चे एक साथ पढ़ रहे हैं , बड़े हो रहे हैं।  दोनों अपनी अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने जाते हैं।  दस साल बाद जब दोनों मिलते हैं तो पता चलता हैं समान क्वालिफिकेशन में बाद लड़का तो अपने करियर में बहुत आगे हैं पर लड़की ने घर से काम करना शुरू कर दिया हैं क्युकी उसको समझ आ गया था की एक पोजीशन पर पहुंचने के बाद अगर उसको आगे जाना हैं तो शारीरिक कोम्प्रोमाईज़ करना होगा।  उसने रास्ता बदल दिया पर जब उसने अपने सहपाठी की तरक्की देखी तो उसको लगा उसको ये ोपपरटूनिटी केवल इसलिये नहीं मिली क्युकी वो लड़की थी। 

ये अपने आप में एक हरस्मेंट हैं।  

ये कहना उन महिला ने जो मीटू पर पोस्ट दे रही हैं अपने करियर के लिये कोम्प्रोमाईज़ किया बिलकुल गलत हैं।  उनको मजबूर लिया गाया।  उनका उस समय ना बोल सकना महज अपना नाम बचाना था।  नाम के साथ उनका करियर जुड़ा था।  अगर वो उस समय बोलती तो आर्थिक रूप भी अक्षम हो जाती।  

न केवल उनके शरीर को वॉइलेट , एब्यूज किया गया अपितु उनके नाम को करियर को भी किया गया।  इसलिये उनके पास चुप रहने के अलावा कोई ऑप्शन था ही नहीं।  

आज वो इसलिये नहीं बोल रही हैं की वो सजा दिलवा देगी।  आज वो इसलिये बोल रही हैं ताकि वो समाज को बता सके उनके साथ  भीषण ज्यादती की गयी हैं क्युकी वो नारी थी।  
आज वो इसलिये बोलरही हैं ताकि वो अपने आदर के दर्द को बाहर निकाल सके।  ताकि वो दूसरी लड़कियों को इस रास्ते के कांटे कंकरो के विषय में आगाह करसके।  
सबसे ज्यादा तो दुःख तब होता हैं जब और नारियां इस अभियान को गलत बता कर उन सब विक्टिम को ही कटघरे में खड़ा कर रही हैं 

आज भी वो अपनी आहुति ही दे रही हैं , क्युकी ना तो समाज ने उनको पहले न्याय दिया हैं और ना अब देने को तैयार हैं।  

#metoo , #metooindia 

September 29, 2018

धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा।

कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नए निर्णय लिये हैं या यूँ कहिये जजमेंट दिये हैं
धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा।
देश बदल रहा हैं या समय के साथ चल रहा हैं या समय के साथ हमारी संस्कृति नष्ट हो रही हैं बड़े सारे प्रश्न गूँज रहें हैं। शायद तब भी उठे होंगे जब नारी और पुरुष की समानता की बात पहली बार हुई होगी , जब हरिजन शब्द का इस्तमाल पहली बार हुआ होगा , जब ठाकुर के कुयें से दलित को पानी भरने का अधिकार पहली बार मिला होगा और भी बहुत सी पहली बार.... .
धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा। किसी की सेक्सुअलिटी ईश्वर की देने हैं इस लिये उसके अनुरूप उसको भी जीने का उतना ही अधिकार हैं जितना हम सब को।
ये धारा १८६१ में ब्रिटिश राज्य में लागू की गयी थी और तब से इसके तहत बहुत से लोगो पर ज्यादतियां होती रही हैं।
कभी किसी ने सोचा हैं क्यों ब्रिटिशर्स इस रूल को इंडिया में लाये ? पता नहीं लोग क्या सोचते हैं पर मुझे लगता हैं की उनकी संस्कृति में ये अमान्य था सो उन्होंने इसको यहां भी अमान्य किया। वहां Buggery Act 1533, था जो इस लिये लाया गया था ताकि sodomization के लिये सजा दी जा सके। sodomization यानी समलैंगिक बलात्कार।
शायद ब्रिटिशर्स को ऐसा लगा होगा की उनके यहां के लोग जो अपने घर से महीनो और सालो दूर रह रहे हैं वो अपनी सेक्स रिलेटेड इच्छा sodomization से ना पूरी करे।
ब्रिटिशर्स तो चले गए रह गया कानून और वो सब जो हर बात में ब्रिटिशर्स को गाली देते हैं उनके बनाये कानून से चिपके रहे।
क्या समलैंगकिता हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं ?http://devdutt.com/…/did-homosexuality-exist-in-ancient-ind…
जिस देश में आशीर्वाद देने मात्र से सूर्य का पुत्र पैदा हो सकता कवच और कुण्डल पहन कर लेकिन नदी में बहा दिया जाता हैं वहाँ हम संस्कृति की किस नैतिकता और उसके नष्ट होने की बात कर रहे हैं।
नैतिकता हैं की हम अगर किसी को प्यार करते हैं तो उसकी रक्षा करे। समलैंगिकता को फैशन की तरह ना प्रदर्शित करे ना इस्तमाल करे।
कोई समलैंगिक हैं तो उसको ये अधिकार नहीं मिल जाता हैं कि वो अगर पावर में हैं तो दुसरो को sodomize करे क्युकी आपके लिये जो नेचुरल हैं वो दूसरे के के लिये अप्राकृतिक हैं।
सबसे बड़ी बात हैं की होमोसेक्सुअलिटी dicriminalized हुई हैं sodomization नहीं।
अभी कानून को बदला जाना हैं और इस में समय लगेगा।
रेनबो केवल LGBT तक सिमित नहीं हैं LGBT कम्युनिटी को ये रेनबो ऐसा बनाना होगा की इसके नीचे sodomization की जगह ही ना रहे।
बात समलैंगिक विवाह और बच्चो के एडॉप्शन तक ही सिमित नहीं हो सकती क्युकी आप एक समाज का हिस्सा हैं जहां आप की ख़ुशी के आप के अधिकार आप तक नहीं सिमित होंगे अगर आप समलैंगिक शादी करेंगे और बच्चा गोद लेंगे।
उस बच्चे के अधिकारों का क्या जिसको आप गोद लेंगे ? क्या वो समलैंगिक अभिभावक चाहता हैं ? या फिर आप किसी समलैंगिक को ही गोद लेंगे ? तब तो आप एक नया कोना बनायेगे अपने लिये। अगर आप को ये सही लगता हैं तो आप की लड़ाई सही दिशा में हैं अन्यथा मेरे दृष्टि में नहीं क्युकी आप अपनी ख़ुशी के लिये किसी और की ख़ुशी का हनन कर रहे हैं
Homosexuality is thought to be unnatural sex hence it was treated as criminal offence. Not just homosexuality all types of of sexual relations which happened between any form other than woman and man was classified as unnatural. Hence it was a criminal offence but Keeping Homosexuality in same category was what creating issues. The court has merely scrapped the criminal offence section
#377 #lgbt #धारा_377 #section377 #pride #rainbow
धारा ४९७  को यानी अडल्ट्री  को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा। 
adultery क्या थी इसकी परिभाषा।  section 497 के अनुसार अगर एक विवाहित पुरुष किसी की पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता हैं " बिना उसके पति की परमिशन के " तो वो सजा का अधिकारी होगा।  पुरुषो को ये धारा अपने लिये गलत लगी क्युकी उनके अनुसार सजा दोनों को होनी चाहिये थी।  लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज के हिसाब से इस धारा में सबसे गलत बात थी की पत्नी को पति की संपत्ति मान लिया गया था , पति उसका मास्टर था यानी अगर पति चाहता हैं तो पत्नी के साथ कोई अन्य पुरुष भी दैहिक सम्बन्ध बना सकता हैं।  इस लिए सुप्रीम कोर्ट को इसमे स्त्री पुरुष समानता नहीं दिखी जो की हमारे कंस्टीटूशन में हैं।  
सुप्रीम कोर्ट ने माना हैं की अडुल्टेरी डाइवोर्स की प्रक्रिया में मान्य होगा अन्यथा ये क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं हैं।  

भारतीये संस्कृति की बुराई को अच्छाई में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी हैं।  अपनी सोच बदले नारी पुरुष और बाकी सब जेंडर को बराबर समझे