November 13, 2017

नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं। उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या हैं।

ना जाने कितनी बार डाइवोर्स पर बहस होती रही हैं लेकिन भारतीये समाज इसको एक सहज सम्भावना मानने से इंकार करता रहा हैं। 
हमेशा बच्चो का हवाला दे कर साथ रहने के समझौते को करते रहना ही शादी में बने रहने के लिये जरुरी समझ लिया जाता हैं।
कल एक नाबालिग बच्चे ने , जिसने अपने ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की निर्मम हत्या की हैं जुविनाइल बोर्ड को अपनी अन्य बातो के अलावा ये भी कहा की उसके घर का माहौल अच्छा नहीं  हैं।  माँ पिता की निरंतर लड़ाई के कारण उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता। 


क्या सही हैं इस केस में क्या नहीं लेकिन कहीं ना कहीं समाज  के पुराने नियमो को या तो  सख्ती से लागू करने का समय हैं या उन्हे  बदलने का समय हैं। 

नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं।   उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या  हैं। 

September 22, 2017

कंडीशनिंग करने में हमारा समाज कोई कसर नहीं छोड़ता हैं।

आज कल टी वी पर जितने भी सीरियल या प्रोग्राम आ रहे हैं उन सब में एक थीम बड़ा कॉमन दिख रहा हैं
अच्छी शिक्षित और नौकरी करती महिला / लड़की /नारी  को कहीं ना कहीं अपने से कम शिक्षित , कम उम्र और कम कमाने वाले लड़को से विवाह करने को प्रेरित किया जा रहा हैं।

कितनी चालकी से नारी की उलटी कंडीशनिंग शुरू हो गयी हैं।  समाज फिर नारी को कंडीशन करने में लग गया हैं।

जिस हिसाब से लडकियां पढ़ लिख कर ऊँची नौकरी कर रही हैं समाज को दिख रहा हैं की पुरुष के बराबर नहीं नारी उससे कहीं बहुत आगे जा रही हैं।  सो उसका दिमाग कंडीशन करना जरुरी हैं।

उस पर भी तारीफ़ पुरुष की हो रही हैं जो घर संभालता हैं आज भी वो नारी पर अहसान करता हैं अगर नौकरी ना करके घर सभाले तो।

कल k b c में एक डिप्टी कलेक्टर महिला हॉट सीट पर थी और उनके पति भी आये थे।  जब शादी हुई थी तो महिला स्कूल टीचर थी और पति १२ वी पास , महिला के पैर पोलियो ग्रस्त थे।
अमिताभ जी ने भी कसीदे पढ़ दिये इन सज्जन की तारीफ़ में।

एक स्कूल टीचर का विवाह एक १२ वी पास से हो गया और तारीफ़ सब पुरुष की हो रही हैं की उसने एक पोलियो ग्रस्त से विवाह किया और उसको आगे भी बढ़ने दिया।

कंडीशनिंग करने में हमारा समाज कोई कसर नहीं छोड़ता हैं।  लोगो को नहीं दिखता हैं।  

January 07, 2017

फेमिनिस्ट या माइसोजिनिस्‍ट स्त्री कहना हमेशा नारी को समझाने जैसा होता हैं कभी पुरुष को भी समझाए

किसी भी हादसे के बाद तमाम तरह के विचार , मंथन पढ़ने को मिलते हैं।  रेप या मोलेस्टेशन के बाद भी यही होता हैं।  

कुछ महिला और पुरुष इस समय एक ही सुर में लड़कियों के कपड़े और उनके रहन सेहन को जिम्मेदार मानते हैं और नसीहत देते हैं।  
कुछ पुरुष मखोल की मुद्रा में व्यंग करते हैं 
कुछ पुरुष सीरियस होकर औरत के नंगे नाच पर पोस्ट देते हैं और भारतीये संस्कृति के पतन के लिये विलाप करते हैं 
वहीं कुछ पुरुष इस सब के विरोध में लिखते हैं नॉट आल मेन का नारा  देते हैं 
और स्त्रियां कोख से पुत्री के  अन्याय से ले कर पूरी जिंदगी तक के अन्याय पर लिखती हैं 
यानी सब कहीं ना कहीं इस सब से परेशान तो जरूर हैं।  

मुझे लड़कियों को सबक की तरह सही  समय पर आना , सही कपडे पहनना इत्यादि नसीहत भरी पोस्ट से बड़ी चिढ़ होती हैं क्योंकि इन सब में दोषी को नहीं जिसके साथ  दोष हुआ उसको सजा की बात लगती हैं।  
पर मुझे ये काउंसलिंग जब स्त्रियां लड़कियों की करती हैं तो कम बुरा लगता हैं क्योंकि  हर के स्त्री कहीं ना कहीं कभी ना कभी बचपन से ले कर मरने तक में इस प्रकार के दुर्व्यवहार से गुजरी हैं , बस कम ज्यादा की  बात होती हैं।  पीढ़ी आती हैं जाती हैं बस समस्या वहीँ की वहीँ  रहती हैं। इस लिये बिना अपनी पीड़ा को बताये नारी दूसरी नारी को समझाती हैं की बेटी देर से मत आओ , तन  को ढाँक कर रखो , दूरी बना कर रखो।  नारी जानती हैं नारी शरीर को किस पीड़ा से निकलना होता हैं अनिच्छित स्थिति में और वो दूसरी नारी को काउन्सिल करना चाहती हैं।  बहुत बार हम इन स्त्रियों को mysogynist कह देते हैं , ये कुछ वैसा ही हैं जैसे नारी अधिकारों की बात करने वाली नारी को feminist कहना।  दोनों ही स्थिति में नारी की छवि को negative बना दिया जाता हैं।  
नारी , नारी को काउंसिल कर रही हैं , कंडीशन कर रही हैं गलत कर रही हैं , बदलाव आ रहा हैं नारी की सोच में और भी आएगा , दूर नहीं हैं वो समय जब आज के जनरेशन यानी २० वर्ष - २५ वर्ष की लड़की अपनी लड़की को पिस्तौल का लाइसेंस दिलवा देगी और कानून भी अपनी हिफाज़त में बेनिफिट ऑफ़ डाउट देगा।  

लेकिन पुरुषो का क्या औचित्य हैं लड़कियों को काउन्सिल करने का  . क्यों नहीं वो पुरुषो की काउंसिलिंग करते हैं , क्यों नहीं वो पुरुषो के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर पर बात करना चाहते हैं , क्यों नहीं वो आपस में डिसकस करना चाहते हैं की जब बरमूडा पहने टॉप लेस पुरुष को , सड़क के किनारे खड़े होकर अपने को हल्का करते पुरुष देख कर लड़कियां उनको रेप या मोलेस्ट नहीं करती हैं तो क्यों पुरुष क्यों करता हैं।  

क्यों नहीं पुरुष को  पुरुष द्वारा कॉउंसिल किया जाता हैं की अपनी नीड्स को कैसे कण्ट्रोल किया जाए।  हर पिता अपनी बेटी को ले कर किसी पुरुष से क्यों डरा रहता हैं।  
सोचिये   http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/08/segmentation-of-women.html