October 21, 2016

एक दूसरे के साथ खड़ी हो कर देखिये

आज भी जब पढ़े लिखे लोग , स्त्री और पुरुष दोनों , समानता की , बराबरी की बात को आज़ादी की बात कहते हैं तो अजीब लगता हैं।  जन्म से हर कोई "आज़ाद " ही पैदा होता हैं लेकिन उसको बराबरी का दर्जा नहीं मिलता हैं।  लोग स्त्री की बराबरी / इक्वलिटी की बात को गुलामी से आज़ादी की बात कहते हैं।  स्त्री कंडिशन्ड हो सकती हैं और उसको इस कंडीशनिंग को तोड़ना पड़ता हैं ताकि वो बराबरी की बात करे।  
जिन लोगो ने करवा चौथ नहीं रखा वो भी उतनी ही आज़ाद हैं जितनी जिन्होने रखा।  
अगर रखने वालो का मखोल उड़ाया गया हैं और उनको गुलाम और रूढ़िवादी कहा गया हैं तो 
ना रखने वालो का भी मखोल उड़ाया गया हैं और उन्हे आधुनिक और मॉडर्न इत्यादि कहा गया हैं।  
दोनों बाते कहने वाली ज्यादा नारी ही हैं। 

और दोनों ही कंडिशन्ड हैं क्योंकि दोनों अपनी पसंद दूसरे पर थोपना चाहती हैं और दूसरे का मखोल उड़ा कर और लोगो को ख़ास कर पुरुष वर्ग को ये मौका देना चाहती हैं की वो दोनों का का मज़ाक बनाये। दोनों महज और महज अपने आस पास के पुरुष वर्ग को शायद खुश करना चाहती हैं एक रीति रिवाजो को मान क्र और एक उनकी आलोचना कर के।  

एक दूसरे के साथ खड़ी हो कर देखिये , आप स्वयं को बराबर महसूस करेगी , एक दूसरे का मखोल उड़ा कर आज भी आप वही हैं जहां थी 

October 19, 2016

जबरन व्रत रखवाना या जबरन व्रत ना रखने देना दोनों में ही नारी के अधिकारों का हनन हैं।

सुबह ८ बजे का संवाद

माँ उम्र ७८ वर्ष , प्रीति  उनकी मैड उम्र २२ वर्ष

माँ " प्रीति व्रत नहीं रखा
प्रीति " नहीं रखा "
माँ " मेहंदी भी नहीं लगाई "
प्रीति " नहीं लगाई "

प्रीति " औरत ही क्यों भूखी मरे  , सजे धजे , और व्रत करे "

माँ " "........ "


अब इस संवाद के बाद क्या रहा बताने के लिये
बहुत कुछ जो प्रीति से कहा वहीँ कुछ जोड़ कर यहां कह रही हूँ

ये सब व्रत इत्यादि जिस समय शुरू किये गए थे उस समय नारी के लिये केवल घर में रहना और घर के काम करना जीवन था।  उसके लिये "सुख " का मतलब उसके पति के जिन्दा होने से ही जुड़ा था।  विधवा  का जीवन http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/09/blog-post_24.html बहुत ही निकृष्ट था उस समय इसलिये विवाहित जीवन लंबा हो इसकी जरुरत हर विवाहित स्त्री की थी।
अगर पति ना रहे तो कम से कम पुत्र तो रहे सो उसके लिये व्रत।  फिर देवी देवता रुष्ट ना हो उसके लिये व्रत।

और इन्ही व्रतों में सजना , गाना बजाना , आपस में हंसी ठिठोली  नारी का जीवन कुछ बदलाव हो जाता होगा.



आज समय दूसरा हैं , शिक्षा ने नारी को सही गलत समझने में सक्षम किया।  अब ये व्रत उपवास अपनी मर्जी से करना या ना करना इसकी समझ नारी को हैं।


वुमन एम्पावरमेंट का मतलब ही यही होता हैं की नारी को ये अधिकार हो जो वो करना चाहे करे अगर आज वो व्रत करना चाहती हैं तो हमे उसको आज के दिन केवल और केवल उसके लम्बे विवाहित जीवन की बधाई देनी चाहिये।


जबरन व्रत रखवाना या जबरन व्रत ना रखने देना दोनों में ही नारी के अधिकारों का हनन हैं।  

October 10, 2016

कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये

कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये

कुछ दिन हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी से इस लिये डाइवोर्स लेने की सहमति दे दी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ये माना की पत्नी का पति से उसके वृद्ध माता  पिता से अलग होकर रहने का आग्रह करना गलत हैं।  कोर्ट ने ये माना की अगर बेटा अपने वृद्ध माता पिता के साथ रहना चाहता हैं तो पत्नी को भी वही रहना होगा { अगर को ख़ास वजह नहीं हो तो अलग होने की } क्योंकि ये एक स्थापित सत्य हैं की पत्नी को अपने मायके से विवाह के बाद अपने पति के घर रहना होता हैं।  पति को उसके माता पिता से अलग होने के लिये ज़िद करना मानसिक कलह और मानसिक प्रतारणा हुआ और इसके आधार पर डाइवोर्स दिया जा सकता हैं

    http://www.firstpost.com/india/restricting-son-to-fulfil-duties-to-aged-parents-a-valid-ground-for-divorce-sc-3040124.html

दूसरा फैसला आया हैं जिस में अब डोमेस्टिक वोइलेंस का केस सास अपनी बहु और नाबालिग पोते पोती पर लगा सकती हैं।  कोर्ट ने ये माना हैं की डोमेस्टिक वोइलेंस बहु भी करती हैं पति पर दबाव बनाने के लिये।  अभी तक केवल बहु का अधिकार था की वो अपने पति और  परिवार की स्त्रियों पर जो की कोर्ट के अनुसार एक तरफ़ा था।  इसके अलावा "एडल्ट मेल " का कोर्ट के हिसाब से कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि डोमेस्टिक वोइलेंस ना बालिग बच्चे भी करते हैं
http://www.hindustantimes.com/india-news/daughter-in-laws-minors-can-be-tried-for-domestic-violence-says-sc/story-xyyfs2PUJRLwmCe4lte6sO.html