October 27, 2014

कुछ खबरे पढ़ कर दिमाग बस सुन्न हो जाता हैं

कुछ खबरे पढ़ कर दिमाग बस सुन्न हो जाता हैं

October 13, 2014

होटल के मालिक हम नहीं हैं अपने घर के हैं।

 डिसिप्लिन की जरुरत हैं। जन संख्या पर रोक की। किया क्या गया हैं लड़की होने  पर सरकारी पैसे से ऍफ़ डी , किस लिये लड़की की शादी सुविधा से हो।  फिर शादी फिर वही
बच्चे।  अब सब  को लगता हैं इनको होटल में साथ खाने दो।  इस से क्या होगा।  जिस चीज़ को  वो खुद अफ़्फोर्ड नहीं  कर सकते उसकी आदत। 
होटल में दूसरे क्या  खा रहे हैं इसको देख कर लालच।  क्या पहने हैं इसको देख  कर जलन। 
होटल और माल के गेट पर भीख मांगते और खाने का सामान डिमांड करना। 

मै अकेली कही कहती हूँ तो पैक करवा कर इनमे बाहर बाँट देती हूँ और जब भी कभी घर में कन्या खिलानी होती हैं  तो पेप्सी और नूडल्स के पैकेट , चिप्स के पैके देती हूँ पूरी सब्जी हलवा इत्यादि नहीं।  अपने पापा की १३व्हीन पर आज से  २१ साल पहले मैने बच्चो को बुलावा कर जितन उनका मन था उनको पेप्सी पिलवाई और साथ में तरबूज।  पेप्सी पर घर में सबने बहुत आलोचना की " इसने तो पार्टी की " लेकिन बच्चे मगन थे.

पिछली दिवाली पर अपने यहां  काम करने वाली १६  साल की लड़की को मिठाई की जगह एक ५० रूपए का ५० टॉफी वाला  २ पैकेट , मैगी ४ वाला पैकेट दिया ४० रूपए का। 
उस लड़की ने घर  जा कर १०० टॉफी गिनी और दो दिन बाद  आकर कहा " इतनी  सारी
टॉफी तो कभी मिली नहीं , हम सब रोज गिनते और खाते हैं। 

बदलाव उनको अपने साथ होटल में बिठा कर खिलाने से भी आता हैं और उनको वही  चीज़ दे देने से भी।  होटल के मालिक हम नहीं हैं अपने घर के हैं।