कुछ मुद्दे हैं जिन पर प्रैक्टिकल बन कर / हो कर बात करना आवश्यक हैं।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
December 21, 2013
December 14, 2013
समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों..?
समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों..?
http://tootifooti.blogspot.in/2013/12/blog-post_12.html
समलैंगिक भी इस लोकतांत्रिक समाज
का एक हिस्सा हैं, जिन्हें अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का पूरा अधिकार है।
जबतक उनसे इस समाज और देश का कोई नुकसान नहीं होता तबतक उनकी यौनिक पसन्द
पर आपत्ति नहीं की जा सकती। समलैंगिकता अपराध तब है जब कोई व्यक्ति किसी
अन्य के साथ अप्राकृतिक ढंग से जबरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास करे।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस वर्ग के लोगों के लिए कदाचित उचित नहीं है
क्योंकि समलैंगिक प्रवृत्ति, आप इसे गुण कहे या दोष; यह भी प्रकृत प्रदत्त
ही है जो हार्मोन पर निर्भर करता है न कि समाज में किन्हीं अराजक तत्वों
द्वारा उत्पन्न हुआ है। एक स्त्री का किसी अन्य स्त्री के प्रति आकर्षण या
एक पुरुष का किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षण उतना ही संभव है, जितना एक
पुरुष अथवा स्त्री का विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है। प्रकृति में
ऐसे मनुष्यों का आविर्भाव भी हो सकता है जिसे ठीक-ठीक स्त्री या पुरुष की
श्रेणी में ही न रखा जा सके। प्रकृति प्रदत्त ऐसे विशिष्टियों के लिए किसी
को अपराधी ठहरा देना कहाँ तक न्यायसंगत हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने
अप्राकृतिक यौनाचार और समलैंगिक संबंधों को अपराध करार दिया है, जिसकी सजा
में उम्रकैद तक का प्रावधान है।
इस तरह से देखा
जाय तो इस यौनवृत्ति को अवैधानिक घोषित कर सजा का प्रावधान गलत है। इसको
सामान्य प्राकृतिक लक्षणों से अलग एक आंशिक विकृति मानकर मनोवैज्ञानिक
विश्लेषण कर उपचारात्मक प्रक्रिया की बात तो समझ में आती है। लेकिन इसे
अपराध की श्रेणी में रखकर देखा जाना उचित नहीं समझा जा सकता है। अगर
लोकतंत्र मे सेरोगेसी को स्थान मिल सकता है, लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता
मिल सकती है तो समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों है? समलैगिकता को एक
दायरे में सीमित कर देना तो उचित हो सकता है ताकि यह इस समाज में एक अपराध
बनकर न उभरे; लेकिन इसे स्वयं एक अपराध घोषित कर देना ज्यादती होगी।
(रचना त्रिपाठी)
December 13, 2013
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता
समलैंगिकता को कानूनी मान्यता
http://ghughutibasuti.blogspot.in/2013/12/blog-post.html
एक पढ़ी लिखी नौकरी करती बेहद निपुण स्त्री ने जो पारम्परिक अरैन्ज्ड विवाह में विश्वास करती थी, जिसने एक से एक अच्छे अन्तर्जातीय रिश्ते ठुकराकर अपने माता पिता के द्वारा चुने सुन्दर, सुशील, अच्छे घर के सजातीय पुरुष से विवाह किया।
वह पहले ही दिन पति के मित्र ( प्रेमी) का अपने ससुराल में पूरा दखल, घर में महत्व, पति पर उसका इतना प्रभाव कि वह जो कहे वह पति मान ले देख दंग रह गई। पति उसके साथ मायके जाने को मना कर दे, किसी रस्म को निभाने से मना कर दे, उसके साथ कमरे में रहने को ही मना कर दे तो हर मर्ज का एक इलाज वह मित्र था। सास ससुर उस मित्र को गुहार लगाते और वह कहे तो पति सर के बल खड़े होने को भी तैयार हो जाता।
खैर बाद में पता चला कि जिसकी वह पत्नी है उसका भी पति है, और पति का पति वह मित्र है। उसका पति तो खैर नाम का ही था। इस असम्भव से रिश्ते को भी पति में बदलाव का अवसर दे निभाने की कोशिश जब पूरी तरह से असफल हो गई तो स्त्री ने तलाक दे दिया। किन्तु वह स्त्री उस पूर्व पति को कभी कोसती नहीं थी। उसका कहना था कि वह भी समाज का शिकार एक पीड़ित था। उसे क्या दोष देना। उससे तो सहानुभूति होनी चाहिए।
यदि वह स्त्री उस समलैंगिक के साथ सहानुभूति रख सकती थी तो हम क्यों नहीं? यदि हम स्वयं को उनके स्थान पर रखकर देखें तो शायद हम इतने कठोर नहीं होंगे। शेष समाज से अलग होना, अचानक अपने बारे में यह जानना कि अन्य मित्रों की तरह वह विपरीत लिंगियों की बजाए अपने ही लिंग वालों की तरफ आकर्षित है। बार बार कोशिश करना कि अन्य मित्रों या सहेलियों की तरह व्यवहार करें, विपरीत लिंगियों से दोस्ती व लगाव रखने की असफल कोशिश करना, किन्तु उनमें कोई आकर्षण न पाना। जिनसे आकर्षित हो उनसे कह नहीं सकना, अपराध भाव, हीन भावना से किशोरावस्था से ही ग्रसित होना। यह सब कितना कठिन होता होगा। अपने आकर्षण, अपने सत्य को परिवार से छिपाकर रखना, झूठ ही विपरीत लिंगियों में नकली रुचि दिखाना यह सब क्या कम सजा है उनके लिए जो समाज और हम उन्हें और सजा देना चाहें?
हममें कुछ तो मानवीय संवेदनाएँ होनी ही चाहिएँ।
घिनौने बलात्कार के लिए कम सजा और सहमति से बने समलैंगिक सम्बन्धों के लिए उम्र कैद क्या कहीं से भी उचित है?
यदि उस पति का परिवार अपने बेटे का सत्य सामने होने पर भी उसको देखने से इनकार न करता, उसे विवाह के लिए बाध्य न करता तो उस स्त्री के जीवन में इतनी उथल पुथुल, इतना दुख, एक नकली विवाह को करने में और फिर तोड़ने में शक्ति, धन, समय की बरबादी न होती, विवाह के लिए जो मन में रोमान्टिक कल्पनाएँ होती हैं वे चूर चूर न होतीं।
मुझे तो माता पिता, व समाज उस स्त्री के कष्ट के लिए उस कमजोर पुरुष से अधिक उत्तरदायी लगते हैं।
यदि आपको समलैंगिकों से सहानुभूति नहीं है तो भी उनसे धोखे, अज्ञान में विवाह करने वाले अभागों को इस दुर्भाग्य से बचाने के लिए ही सही हमें, आपको, समाज को समलैंगिकों को अपनी तरह, अपने जैसों के साथ जीने का अधिकार देना होगा।
घुघूती बासूती
December 03, 2013
Better Safe Than Sorry अब भी चेत जाए
बैटर सेफ देन सॉरी
काश तरुण तेजपाल , आसाराम इत्यादि इस बात को समझ सकते तो वो आज उस जगह ना होते जहां हैं
आज भी लोग यही सोचते हैं ही नारी का शोषण करना उनका अधिकार हैं और नारी उनकी सम्पत्ति हैं नारी का शरीर उनकी काम वासना कि पूर्ति का साधन मात्र हैं।
तरुण तेजपाल अपनी एक ईमेल में उस पत्रकार को जिसके रेप के वो दोषी हैं लिखते हैं " अगर तुम चाहो तो मै तुम्हारे बॉय फ्रेंड से माफ़ी मांग सकता हूँ "
पत्रकार का जवाब था " क्या मै अपने बॉय फ्रेंड कि सम्पत्ति हूँ ? "
समय बदल रहा हैं और इस ब्लॉग पर इस बात को इंगित कर के मैने बहुत सी पोस्ट दी हैं और उन सब के लिये मुझे पुरुष विरोधी माना गया हैं जबकि उन पोस्ट में बार बार यही कहा गया हैं कि पुरुष को सावधान होने कि जरुरत हैं।
अब भी चेत जाए
ना को ना ही समझे
काश तरुण तेजपाल , आसाराम इत्यादि इस बात को समझ सकते तो वो आज उस जगह ना होते जहां हैं
आज भी लोग यही सोचते हैं ही नारी का शोषण करना उनका अधिकार हैं और नारी उनकी सम्पत्ति हैं नारी का शरीर उनकी काम वासना कि पूर्ति का साधन मात्र हैं।
तरुण तेजपाल अपनी एक ईमेल में उस पत्रकार को जिसके रेप के वो दोषी हैं लिखते हैं " अगर तुम चाहो तो मै तुम्हारे बॉय फ्रेंड से माफ़ी मांग सकता हूँ "
पत्रकार का जवाब था " क्या मै अपने बॉय फ्रेंड कि सम्पत्ति हूँ ? "
समय बदल रहा हैं और इस ब्लॉग पर इस बात को इंगित कर के मैने बहुत सी पोस्ट दी हैं और उन सब के लिये मुझे पुरुष विरोधी माना गया हैं जबकि उन पोस्ट में बार बार यही कहा गया हैं कि पुरुष को सावधान होने कि जरुरत हैं।
अब भी चेत जाए
ना को ना ही समझे
December 02, 2013
नौकरी छोड़ दो दूसरी जगह भी वही माहोल हो तब क्या करो
क्यूँ नौकरी महिला को क्यूँ छोड़नी चाहिए जबकि गलती boss
कि थी। आप को विशाखा गाइड लाइन्स का पता नहीं हैं शायद ज़रा कानून और
संविधान को ध्यान में रख कर पोस्ट लिखे
नौकरी छोड़ दो दूसरी जगह भी वही माहोल हो तब क्या करो http://www.yuvarocks.com/2013/12/letter-to-tarun-tejpal-tehlaka-media-social.html?showComment=1385964974399#c167877526415897697