एक बहुत ही बढ़िया पोस्ट हैं पढ़िये और कमेन्ट भी दीजिये .
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
December 31, 2012
December 30, 2012
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
कौन थी तुम , किस जाति की थी , किस धर्म की थी ? कोई नहीं जानता . तुम्हारा तो नाम भी कोई नहीं जानता . बस सब इतना जानते हैं की तुम एक लड़की थी , एक स्त्री थी , एक महिला थी .
एक आम लड़की थी क्या वाकई ??
किस आम लड़की के लिये
पूरा देश
रोता हैं ,
परेशान होता हैं
दुआ करता है और
उसके बारे मे ऐसे बात करता हैं जैसे कोई परिवार का सदस्य करता हैं
आज हर कोई जानता हैं तुमको क्या पसंद था , तुम कैसी थी , क्या क्या करती थी , तुम्हारे सपने क्या थे , तुम्हारे लक्ष्य क्या थे
कमाल हैं ना ,
इसलिये
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
किस मिटटी की बनी थी तुम की तुम्हारी "मिटटी " को एअरपोर्ट पर लेने भारत का प्रधान मंत्री जाता हैं
तुम आम नहीं कोई ख़ास ही हो , एक ऐसी आत्मा तो कभी सदियों में एक बार आत्मा से शरीर बन कर इस दुनिया में आती हैं और फिर विलोम हो जाती हैं
आज तुम्हारा नश्वर शरीर अग्नि के हवाले कर दिया गया हैं . अग्नि में सब भस्म हो जाता हैं पर तुम को भस्म कर सके ये अग्नि के वश में भी नहीं हैं
तुम अमर हो ऐसा मुझे लगता हैं
तुम ख़ास हो ऐसा भी मुझे लगता हैं
यश और कीर्ति तुम्हारे हाथ में थी , बस तुम खुद उसको ना देख सकी इसका मलाल हमेशा रहेगा
एक आम लड़की थी क्या वाकई ??
किस आम लड़की के लिये
पूरा देश
रोता हैं ,
परेशान होता हैं
दुआ करता है और
उसके बारे मे ऐसे बात करता हैं जैसे कोई परिवार का सदस्य करता हैं
आज हर कोई जानता हैं तुमको क्या पसंद था , तुम कैसी थी , क्या क्या करती थी , तुम्हारे सपने क्या थे , तुम्हारे लक्ष्य क्या थे
कमाल हैं ना ,
इसलिये
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
किस मिटटी की बनी थी तुम की तुम्हारी "मिटटी " को एअरपोर्ट पर लेने भारत का प्रधान मंत्री जाता हैं
तुम आम नहीं कोई ख़ास ही हो , एक ऐसी आत्मा तो कभी सदियों में एक बार आत्मा से शरीर बन कर इस दुनिया में आती हैं और फिर विलोम हो जाती हैं
आज तुम्हारा नश्वर शरीर अग्नि के हवाले कर दिया गया हैं . अग्नि में सब भस्म हो जाता हैं पर तुम को भस्म कर सके ये अग्नि के वश में भी नहीं हैं
तुम अमर हो ऐसा मुझे लगता हैं
तुम ख़ास हो ऐसा भी मुझे लगता हैं
यश और कीर्ति तुम्हारे हाथ में थी , बस तुम खुद उसको ना देख सकी इसका मलाल हमेशा रहेगा
तुम्हारी अंतिम यात्रा के चित्र हैं लाड़ो
अंतिम विदाई का लिंक December 29, 2012
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
तुम चली गयी , इस दुनिया से जहां तुम्हारे साथ अत्याचार की हर सीमा को पार कर दिया गया . मै हर दिन प्रार्थना कर रही थी की तुम ना बचो क्युकी मै नहीं चाहती थी की फिर कोई अरुणा शौन्बौग सालो बिस्तर पर पड़ी रहती .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
December 28, 2012
ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
अभिजीत मुख़र्जी ने बयान "dented painted " लड़कियां / औरते छात्रा नहीं हैं और वो बलात्कार की घटना के बाद फैशन की तरह मोमबती ले कर विरोध प्रदर्शन करती हैं
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
December 26, 2012
December 25, 2012
कब ख़त्म होगा यह सब...

एक तरफ देश के कोने-कोने में गैंग-रेप जैसी घटनाओं के विरुद्ध जनाक्रोश है, वहीँ इस तरह की सरेआम घटनाएँ। क्या वाकई हुकूमत का भय लोगों के दिलोदिमाग से निकल गया है। प्रधानमंत्री जी अपनी तीन बेटियों और गृहमंत्री जी अपनी दो बेटियों की बात कर रहे हैं। पुलिस अफसर टी. वी. चैनल्स पर बता रहे हैं कि हमारी भी बेटियां हैं, अत: हमारी भी संवेदनाएं हैं। पर इन संवेदनाओं का आम आदमी क्या करे। कब तक मात्र सहानभूति और संवेदनाओं की बदौलत हम घटनाओं को विस्मृत करते रहेंगें।
लडकियाँ सड़कों पर असुरक्षित हैं, मानो वे कोई 'सेक्स आब्जेक्ट' हों। ऐसे में अब लड़कियों / महिलाओं को भी अपनी आत्मरक्षा के लिए खुद उपाय करने होंगें। अपने को कमजोर मानने की बजाय बदसलूकी करने वालों से भिड़ना होगा। पिछले दिनों इलाहबाद की ही एक लड़की आरती ने बदसलूकी करने वाले लड़के का वो हाल किया कि कुछेक दिनों तक शहर में इस तरह की घटनाये जल्दी नहीं दिखीं।
दुर्भाग्यवश, दिल्ली में शोर है, बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं पर इन सबके बीच भय किसी के चेहरे पर भी नहीं है। तभी तो ऐसी घटनाओं की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रही है। संसद मात्र बहस और प्रस्ताव पास करके रह जाती है, प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं हिंसा नहीं जायज है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि, तो क्या हम कानून-व्यवस्था सुधारने हेतु वर्दी पहन लें।.......जब देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों का यह रवैया है तो भला कानून और शासन-प्रशासन का भय लोगों के मन में कहाँ से आयेगा। फांसी पर तो चढाने की बात दूर है, समाज में वो माहौल क्यों नहीं पैदा हो पा रहा है कि लड़कियां अपने को सुरक्षित समझें।
और क्या लिखूं ???
क्या किसी महिला को देख कर आपने सिटी बजायी हैं , फिकरे कसे हैं , गाली दी हैं इस लिये क्युकी वो महिला हैं ??
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
December 22, 2012
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
1978 में गीता चोपड़ा - संजय चोपड़ा रेप और हत्या काण्ड { लिंक } के बाद दिल्ली विश्विद्यालय के छात्राओं ने दिल्ली में जुलूस निकाला था और अपनी आवाज को उंचा किया था , मै भी उस जूलुस का हिस्सा थी . गीता चोपड़ा अपने भाई के साथ रेडियो स्टेशन जा रही थी जब ये काण्ड हुआ .
2012 में एक 23 साल की लड़की अपने दोस्त के साथ पिक्चर देख कर आ रही थी और उसके साथ जो कुछ हुआ वो आज पूरा देश जानता हैं . आज फिर लडकियां अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और उसमे मेरी भांजी भी हैं सड़क पर एक जुलूस में .
1978 - 2012 यानी 34 साल अंतराल , एक नयी पीढ़ी और फरक "कोई नहीं " तब हमारी पीढ़ी चिल्ला रही थी आज हमारी बेटियाँ चिल्ला रही हैं .
बदलाव कहां आया हैं ???
अरुणा शौन्बौग रेप के बाद 1973 में जब कोमा में चली गयी थी और आज भी उसी बिस्तर पर हैं
2012 मे 23 साल की बेटी जीवन के लिये अस्पताल में जूझ रही हैं पर विज्ञान की तरक्की कर कारण कोमा में नहीं गयी हैं और विज्ञान की तरक्की के कारण लोग कह रहे हैं की उसकी एक आंत जो " एब्नार्मल सेक्स क्रिया " के कारण निकल दी गयी हैं वो रिप्लेस करी जा सकती हैं .
आईये ताली बजाये की विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली हैं हम एक बलात्कार की शिकार लड़की को बचा सकते , ज़िंदा रख सकते हैं . क्यूँ ताली नहीं बजाई आप ने ???
लडके के जनम पर थाली बजने से तो कभी नहीं आप को फरक पडा , सालो से बजा रहे है .
सालो से हर घर में लड़के को वंश चलाने का ठेका आप देते आ रहे हैं , तब भी आप को फरक नहीं पड़ा .
सालो से लड़की का कन्यादान आप करते आ रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा .
जब मेरी बेटी , बेटे जैसी हैं कहते रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा तो अब क्या पड़ेगा .?
आप के लिये { इस आप में स्त्री पुरुष यानी समाज शामिल हैं } बेटी का अस्तित्व ना कभी था ना होगा . बेटी आप लिये एक शर्म का प्रतीक हैं , उसके अस्तित्व की आप को कोई फ़िक्र नहीं थी नहीं हैं . आप के लिये बस बेटा ही सब कुछ हैं और उसका किया हर काम आप के लिये सही हैं .
ना ना आज आप नहीं कहेगे जो हुआ सही हुआ , पर सदियों से कह रहे और फिर दो दिन बाद यही कहेगे
34 साल का अंतराल और वही घटनाएं
जो लड़की आज अस्पताल में है जब सड़क से पुलिस उसको अपनी गाडी में उठा कर अस्पताल ला रही थी तो होश में थी , उसने पुलिस से आग्रह किया था किसी भी तरह उसके माँ पिता को ये सच ना बताया जाए की उसके साथ क्या हुआ , पुलिस के ये कहने पर की वो केवल यही कहेगे की वो सड़क दुर्घटना का शिकार हुई हैं उसको शांति पड़ी और वो चुप हुई . आज भी अस्पताल में कोई उस से रेप की बात नहीं करता , माँ पिता भी नहीं , सब सड़क दुर्घटना की ही बात करते हैं
वो लड़की शर्मसार हैं की उसका रेप हुआ , ये हैं हमारी सीख जो हम अपनी बेटियों को देते हैं . ये हैं समाज का डर जो हम अपनी बेटियों के मन में बिठाते हैं .
और इसीलिये 34 साल अंतराल विज्ञान की तरक्की तो ले आया लेकिन मानसिकता वही की वही हैं , नारी के प्रति हिंसा , जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट , यौन शोषण हमारे समाज का हिस्सा थे और आज भी हैं क्युकी
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
2012 में एक 23 साल की लड़की अपने दोस्त के साथ पिक्चर देख कर आ रही थी और उसके साथ जो कुछ हुआ वो आज पूरा देश जानता हैं . आज फिर लडकियां अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और उसमे मेरी भांजी भी हैं सड़क पर एक जुलूस में .
1978 - 2012 यानी 34 साल अंतराल , एक नयी पीढ़ी और फरक "कोई नहीं " तब हमारी पीढ़ी चिल्ला रही थी आज हमारी बेटियाँ चिल्ला रही हैं .
बदलाव कहां आया हैं ???
अरुणा शौन्बौग रेप के बाद 1973 में जब कोमा में चली गयी थी और आज भी उसी बिस्तर पर हैं
2012 मे 23 साल की बेटी जीवन के लिये अस्पताल में जूझ रही हैं पर विज्ञान की तरक्की कर कारण कोमा में नहीं गयी हैं और विज्ञान की तरक्की के कारण लोग कह रहे हैं की उसकी एक आंत जो " एब्नार्मल सेक्स क्रिया " के कारण निकल दी गयी हैं वो रिप्लेस करी जा सकती हैं .
आईये ताली बजाये की विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली हैं हम एक बलात्कार की शिकार लड़की को बचा सकते , ज़िंदा रख सकते हैं . क्यूँ ताली नहीं बजाई आप ने ???
लडके के जनम पर थाली बजने से तो कभी नहीं आप को फरक पडा , सालो से बजा रहे है .
सालो से हर घर में लड़के को वंश चलाने का ठेका आप देते आ रहे हैं , तब भी आप को फरक नहीं पड़ा .
सालो से लड़की का कन्यादान आप करते आ रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा .
जब मेरी बेटी , बेटे जैसी हैं कहते रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा तो अब क्या पड़ेगा .?
आप के लिये { इस आप में स्त्री पुरुष यानी समाज शामिल हैं } बेटी का अस्तित्व ना कभी था ना होगा . बेटी आप लिये एक शर्म का प्रतीक हैं , उसके अस्तित्व की आप को कोई फ़िक्र नहीं थी नहीं हैं . आप के लिये बस बेटा ही सब कुछ हैं और उसका किया हर काम आप के लिये सही हैं .
ना ना आज आप नहीं कहेगे जो हुआ सही हुआ , पर सदियों से कह रहे और फिर दो दिन बाद यही कहेगे
34 साल का अंतराल और वही घटनाएं
जो लड़की आज अस्पताल में है जब सड़क से पुलिस उसको अपनी गाडी में उठा कर अस्पताल ला रही थी तो होश में थी , उसने पुलिस से आग्रह किया था किसी भी तरह उसके माँ पिता को ये सच ना बताया जाए की उसके साथ क्या हुआ , पुलिस के ये कहने पर की वो केवल यही कहेगे की वो सड़क दुर्घटना का शिकार हुई हैं उसको शांति पड़ी और वो चुप हुई . आज भी अस्पताल में कोई उस से रेप की बात नहीं करता , माँ पिता भी नहीं , सब सड़क दुर्घटना की ही बात करते हैं
वो लड़की शर्मसार हैं की उसका रेप हुआ , ये हैं हमारी सीख जो हम अपनी बेटियों को देते हैं . ये हैं समाज का डर जो हम अपनी बेटियों के मन में बिठाते हैं .
और इसीलिये 34 साल अंतराल विज्ञान की तरक्की तो ले आया लेकिन मानसिकता वही की वही हैं , नारी के प्रति हिंसा , जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट , यौन शोषण हमारे समाज का हिस्सा थे और आज भी हैं क्युकी
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
December 18, 2012
अखबार पढ़ कर मेरे मन मे तो बस इतना आया ईश्वर इसे उठा लो .
"अखबार पढ़ कर मेरे मन मे तो बस इतना आया ईश्वर इसे उठा लो . "
December 17, 2012
नौकरी नारी पुरुष से तुलना करने के लिये करती हैं ये कहना भ्रान्ति हैं
नौकरी नारी पुरुष से तुलना करने के लिये करती हैं ये कहना भ्रान्ति हैं
मेरा कमेन्ट
"खुद की तुलना के लिए नौकरी करना, क्या ठीक है ???"
पोस्ट पर आप भी पढिये और संभव हो तो अपनी राय दे
December 12, 2012
क्या माता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति में बेटी का अधिकार होता है?
ये पोस्ट "तीसरा खम्बा " ब्लॉग से साभार ली गयी हैं . दिनेश जी की आभारी हूँ की उन्होने मुझे अधिकार दे रखा हैं की नारी हित में जारी उनकी पोस्ट को नारी ब्लॉग पर मै री पोस्ट कर सकती हूँ .
December 07, 2012
मुझे लगता हैं हिम्मत इसे कहते हैं
मुझे लगता हैं हिम्मत इसे कहते हैं "शिक्षा पाने के लिये लड़ी और जीती "
December 04, 2012
Lets share the ideas to give her justice!
A wife tracks her husband on Facebook - Leading a FB campaign and a procession to her husband's place, the tragic story of Dimple from Bhadohi.