October 20, 2012

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4 comments:

  1. nari praddhan blog par nari ka samman

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  2. Bahut achche vichaar hain. Mujhe ye sajha blog ka vichar bhi bahut pasand aya. Shubhkamnayen!

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  3. पहले सिर्फ पति और उसके घरवालों को तलाक देने का अधिकार था, बेटा नहीं जन्मा, दूसरी पत्नी ले आये , कम दहेज़, पति को सूरत पसंद नहीं आइ, पत्नी ने कुछ आदर पाने की आशा व्यक्त की, पत्नी के किसी रिश्तेदार ने उचित प्रकार से आदर नहीं दिखाया - और उसे छोड़ा जा सकता था. पत्नी के माता पिता की तो इतनी भी मजाल नहीं थी की बेटी के घर का पानी भी पीलें! पहले स्त्रियों के पास कोई चारा नहीं होता था. चाहे घुट घुट कर जियें, चाहे घरेलू हिंसा या प्रतारणा की शिकार हों, चाहे एक दिन ख़ुशी का ना मिले, चाहे बेटे की चाह में सात आठ बेटियां पैदा कर, घर पर रात दिन लगे रह कर भी ताने सुनने पड़ें - पर तलाक की धमकी और तलाक सिर्फ पति और उसके घरवाले ही दे सकते थे. बस यही एक फरक है अब. अब पत्नी के पास भी एक आप्शन है, पहले नहीं था. और जो छोटी छोटी बातो पर तलाक के किस्से सुनने में आतें है, वह अधिकतर मीडिया हाइप और लास्ट स्ट्रॉ होता है.

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  4. तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद आज नारियाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी क़ामयाबी का झंडा गाड़ रही हैं. नारी बदलावों के दौर से गुज़र रही है, लेकिन उनमें मानवीय गरिमा के साथ किसी से सामंजस्य करने की अद्भुत क्षमता होती है. काश! पुरुष प्रधान समाज नारी की कोमलतम मानवीय संवेदनाओं को महसूस कर पाता तो यह धरती स्वर्गतुल्य हो जाती.

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