October 31, 2012

एक सूचना

हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 --- एक सूचना

हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 
अभी तक 50 प्रविष्टि भी नहीं मिली हैं 
अगर अंतिम तिथि तक प्रविष्टि नहीं मिली तो 

October 27, 2012

हिन्दू स्त्री की संपत्ति का उत्तराधिकार

 ये पोस्ट दिनेश जी के ब्लॉग तीसरा खम्बा से साभार कॉपी पेस्ट की गयी हैं . पोस्ट का उतना ही हिस्सा यहाँ दिया हैं जो जानकारी मात्र हैं . पूरी पोस्ट यहाँ पढी जासकती हैं  पोस्ट का लिंक 

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किसी भी हिन्दू स्त्री की संपत्ति उस की अबाधित संपत्ति होती है। अपने जीवन काल में वह इस संपत्ति को किसी को भी दे सकती है, विक्रय कर सकती है या हस्तान्तरित कर सकती है।  यदि वह स्त्री जीवित है तो वह अपनी संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को वसीयत कर सकती है।  जिस व्यक्ति को वह अपनी संपत्ति वसीयत कर देगी उसी को वह संपत्ति प्राप्त हो जाएगी। चाहे वह संबंधी हो या परिचित हो या और कोई अजनबी।
दि उस विधवा स्त्री का देहान्त हो चुका है तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-15 के अनुसार उस की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी
1. किसी भी स्त्री की संपत्ति सब से पहले उस के पुत्रों, पुत्रियों (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) तथा पति को समान भाग में प्राप्त होगी। इस श्रेणी में किसी के भी जीवित न होने पर …
2. उस के उपरान्त स्त्री के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।  पति का कोई भी उत्तराधिकारी जीवित न होने पर …
3. स्त्री के माता-पिता को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
4. स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
5. माता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
क. किन्तु यदि कोई संपत्ति स्त्री को अपने माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) न होने पर स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
ख. यदि कोई संपत्ति स्त्री को पति से या ससुर से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) न होने पर उस के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।

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 ये पोस्ट दिनेश जी के ब्लॉग तीसरा खम्बा से साभार कॉपी पेस्ट की गयी हैं . पोस्ट का उतना ही हिस्सा यहाँ दिया हैं जो जानकारी मात्र हैं . पूरी पोस्ट यहाँ पढी जासकती हैं  पोस्ट का लिंक 

October 25, 2012

कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ .........

लो दशहरा आया और चला भी गया। खूब पूजा-पाठ व्रत-उपवास किये गए, मौज-मस्ती भी खूब हुई और अंत में लंका दहन के नाम पर रावण के पुतले को जला कर पूरा समाज आत्म-संतुष्टि के भाव से भर गया। रावण-दहन केवल बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, अनीति पर निति की विजय का प्रतीक नहीं बल्कि हमारे समाज के सकारात्मक सोच की पराकाष्ठा का भी ज्वलंत उदाहरण है। हर रोज़ नज़रों के सामने बुराई, असत्य, अनीति को जीतता हुआ देख कर भी हर साल सदियों पूर्व मिले एक जीत की ख़ुशी में हम जश्न मनाना नहीं भूलते इससे बेहतर सकारात्मक सोच का उदहारण क्या हो सकता है भला? 

 क्यूँ भूतकाल को पीछे छोड़ कर हम वर्तमान में नहीं आ पा रहे? आखिर कबतक हम पुतले को जला जला कर अपनी बहादुरी जताएंगे? क्यूँ नहीं समाज के असली रावणों को पहुंचा पा रहे हम उनके अंजाम तक? क्या इसलिए की हम सब बैठ कर फिर से उस राम के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं या फिर इसलिए की रावण की कमजोरी बता कर लंका दाहने वाले विभीषण अब जन्म नहीं ले रहे? 

राम के जन्म का तो पता नहीं लेकिन अगर विभीषण का इंतज़ार है तो वो अब कभी नहीं आने वाला क्यूंकि अब कोई भी रावण किसीको विभीषण बनने नहीं देता, उस रावण के पास कमसकम इतना आत्म-स्वाभिमान तो था कि अगर सीता से उसकी वासना पूर्ति होती तो वो उसकी साम्रागी होती पर आज का रावण 'साम्रागी' नहीं 'सामग्री' मानता है वो भी सार्वजनिक, जिसका भोग वो मिल बाँट कर कर सकता है तभी तो गैंग रेप की प्रथा सी चल पड़ी है और इसलिए अब कोई विभीषण भी रावण के खिलाफ खड़ा नहीं होता। इन विभीषण-प्रिय-रावणों से थोडा नज़र हटायें तो और भी ऐसे एक से एक दुराचार-विभूतियाँ मिलेंगी जिन्हें अगर मैं रावण की संज्ञा दूँ तो अपना अपमान समझ कर रावण भी मुझपर मानहानि का दावा ठोंक देगा। जी हाँ मैं वैसे ही पिताओं की बात कर रही हूँ जो अपनी ही मासूम बेटियों को नहीं बख्शते चाहे वो छः माह की हो तीन या फिर चौदह वर्ष की इन लोगों के लिए तो शायद अब तक कोई शब्द किसी भी भाषा में बना ही नहीं। 

जिस प्रकार त्रेता युग में रावण का वध करने के पूर्व उसके सारे सहायकों का वध करना पड़ा था ठीक उसी तरह समाज से रावणों का समूल नाश करने के लिए उन विकृत सोच वाले लोगों को भी उचित दण्ड मिलना ही चाहिए जो गाहे बगाहे मेघनाद सा गर्जन करते हुए न सिर्फ सारा दोष स्त्री जाती पर मढ़ देते हैं बल्कि रावण का वेष धरे कामी पुरुषों को संरक्षण के साथ-साथ ये तसल्ली भी दे देते हैं कि जब तक मैं हूँ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जब तक रेप के कारणों को ढूंढने के नाम पर सारा दोष लड़कियों की पढाई, कभी उनके खुले विचार, कभी कपडे, कभी विवाह का उम्र, तो कभी बेबुनियादी तरीके से चाउमीन जैसी चीजों पर मढ़ने की छुट देते रहेंगे हम रावणों के पिछलग्गू मेघ्नादों को तबतक इनके पीछे छिप कर रावण अपनी कुकृत्यों को अंजाम देता रहेगा। हम सब बस परंपरा के नाम पर रावण का पुतला जलाएंगे और समाज में असली रावणों की संख्या बढती जायेगी, दहन होगा तो बस सीता और उसके परिजनों का। 












याद रखो ये त्रेता नहीं कलयुग है और कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ .........  

October 23, 2012

अधूरे सपनों की कसक

"मेरा डॉ बनने का जूनून उड़ान भरने लगा ,पर होनी कुछ और थी , मुझे दसवीं के बाद उस जगह से दूर विज्ञान  के कॉलेज में दाखिला के लिए पापा ने मना कर दिया | ये कह कर की  दूर नहीं जाना है पढने| जो है यहाँ उसी को पढो , और पापा ने मेरी पढ़ाई कला से करने को अपना फैसला सुना दिया | मैं  कुछ दिल तक कॉलेज नहीं गयी | खाना छोड़ा और रोती रही , पर धीरे -धीरे मुझे स्वीकार करना पड़ा उसी सच्चाई को |  "


"सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने  देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये ."


"जब बी ए  ही करना है तो यहीं से करो .. मैंने बहुत समझाया ...मुझे बी ए नहीं करना है वो तो एक रास्ता है मेरी मंजिल तक जाने का पर उस दिन एक बेटी के पिता के मन में असुरक्षा घर कर गई ..घर की सबसे बड़ी बेटी को बाहर  भेजने की हिम्मत नहीं कर पाए ...और मैं उनकी आँखे देखकर बहस "


"मुझे हमेशा से शौक था .... विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई पूरी करने की क्यों कि कला के कोई विषय में मुझे रूचि नहीं थी ..... लेकिन बड़े भैया के विचारों का संकीर्ण होना कारण रहे .... मुझे कला से ही स्नातक करने पड़े ..... ऐसा मैं आज भी सोचती हूँ .... कभी-कभी इस बात से खिन्न भी होती है...."


"उन्हीं दिनों मेरे दादाजी घर आये हुए थे। कॉलेज  खुलने ही वाले थे, मेरे पिताजी ने दादा जी से भी विचार विमर्श  किया और दादाजी ने निर्णय सुना दिया गया कि कॉलेज नहीं बदलना है . उसी कॉलेज में आर्ट विषय लेकर पढ़ना है , मानो दिल पर एक आघात लगा था। कुछ दिन विद्रोह किया लेकिन बाद में उनका फैसला मानना ही पड़ा।  "


"न्यायाधीश की बेटी, और हर अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प धारण करने वाली लड़की अपने प्रति होने वाले इस अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाई और जीवन भर अपनी हार का यह ज़ख्म अपने सीने में छिपाये रही !"



रेखा श्रीवास्तव अपने ब्लॉग पर एक सीरीज अधूरे सपनों की कसक पढवा रही हैं . 
आप भी पढिये और सोचिये नर - नारी समानता आने में अभी कितनी और देर आप लगाना चाहते हैं . कितनी और बेटियों को आप अधूरे सपनों के साथ अपना जीवन जीने के लिये मजबूर करना चाहते हैं और कितनी बेटियों से आप ये सुनना चाहते हैं की नियति के आगे सब सपने अधूरे ही रहते हैं . 

बेटी के लिये विवाह कब तक कैरियर का ऑप्शन बना रहेगा . कब तक आप विवाह करके लडकियां सुरक्षित हैं हैं ये खुद भी मानते रहेगे और लड़कियों से भी मनवाते रहेगे .

October 20, 2012

October 15, 2012

हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 --- एक सूचना

हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 
आज 15 अक्तूबर 2012 हैं , अंतिम तारीख इस आयोजन की प्रविष्टिया भेजने की . अभी तक 50 प्रविष्टि भी नहीं आई हैं . 

अंतिम तारीख अब 15 नवम्बर 2012 तक बढ़ा दी जाती हैं . नियमो में भी कुछ परिवर्तन किये जा रहे हैं 
अंतिम तारीख 15 नवम्बर 2012 
ब्लॉगर एक की जगह 2 प्रविष्टि भेज सकता हैं 
विषय पहले 3 थे 
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण 
अब 3 और बढ़ा दिये गए है 
बलात्कार के मुख्य कारण 
कन्या भ्रूण ह्त्या के मुख्य कारण 
लड़कियों के लिये शादी की जरुरी / गैर जरुरी .


October 14, 2012

शादी गैर जरुरी हैं या शादी ना करे , या लड़कियों को शादी नहीं करनी चाहिये इत्यादि पर ये बहस नहीं हैं ,

विवाह नारी को सुरक्षा प्रदान करता हैं इस लिये नारी को विवाह की आवश्यकता हैं .
सुरक्षा ??? किस चीज़ की सुरक्षा ? कौन सी सुरक्षा ?? किस से सुरक्षा ??

आर्थिक सुरक्षा
आज भी लड़की के माता पिता अपनी बेटी को शादी में हर वो सामान देते हैं जो एक नयी गृहस्थी के लिये जरुरी होता हैं . यानी दहेज़ , स्त्रीधन या आप जो भी नाम देना चाहे . ये चल रहा हैं सदियों से .
अगर जितना सामान इस तरह शादी पर खर्च होता हैं उतना ही किसी भी लड़की को बिना शादी के दे दिया जाए तो भी वो अपनी जिंदगी में आर्थिक रूप से सुरक्षित हो ही जायेगी . जब दिया माँ पिता ने तो ये क्यूँ कहना की लड़की को आर्थिक सुरक्षा , शादी या पति देता हैं ??

सामाजिक सुरक्षा
पति , क्या सामाजिक सुरक्षा कवच हैं की एक लड़की को अगर समाज में सुरक्षित रहना हैं तो उसको शादी करनी ही होगी . अगर ऐसा होता तो किसी भी विवाहित स्त्री के साथ ना तो घरेलू हिंसा होती , ना वो जलाई जाती .

और उन पत्नियों का क्या जिनके पति खुले आम या छुप कर विवाह से इतर सम्बन्ध बनाते हैं और फिर घर आकर पत्नी से भी दैहिक सम्बन्ध बनाते हैं और पत्नी को सामाजिक सुरक्षा / आर्थिक सुरक्षा का डर दिखा कर चुप रहने को मजबूर करते हैं .

विवाह होने के बाद कितना असुरक्षित महसूस करती होंगी ऐसी पत्निया ?? फिर शादी से सुरक्षा मिलती हैं ये कहना क्या कोई मतलब रखता हैं ??


शादी करना या ना करना व्यक्तिगत निर्णय होता हैं 
शादी से सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा का कोई लेना देना नहीं हैं 
शादी लड़कियों के लिये जितनी जरुरी हैं लडको के लिये भी उतनी ही जरुरी हैं या जितनी गैर जरुरी लडको के लिये हैं उतनी ही लड़कियों के लिये भी है 


शादी , लड़कियों के लिये जरुरी हैं क्युकी वो लड़की हैं अपने आप में एक गलत सोच हैं 

कम नुक्सान वाले नहीं ज्यादा फायदे वाले विकल्प चुन रही हैं आज की पढ़ी लिखी लडकिया . 

शादी गैर जरुरी हैं या शादी ना करे , या लड़कियों को शादी नहीं करनी चाहिये इत्यादि पर ये बहस नहीं हैं , 

नारी ब्लॉग पर ये पोस्ट 2010 में आई थी 
देखिये लिंक 
अपने सहचर का चुनाव करने कि भी क्षमता अगर आप मे नहीं थी या हैं तो आप शादी जैसी संस्था पर बहस ही बेकार करते हैं ।


आज जिन पोस्ट से इस बात को दुबारा उठाने का मन किया
उनके लिंक हैं
लिंक 1 
लिंक 2

October 12, 2012

10 Things You Can Do to Stop Violence Against Women

काश लोग ये सब समझ पाते .
यहाँ पर लिंक  ये पढ़ा और पेस्ट कर दिया हैं नारी ब्लॉग पर साभार

October 10, 2012

बलात्कार करने वाले कभी भी बलात्कार कर के शर्मसार नहीं होते हैं

बलात्कार महज एक शब्द नहीं हैं और ये महज एक यौन हिंसा भी नहीं हैं , ये पुरुष के काम वासना को शांत करने का एक माध्यम भी नहीं हैं .

बलात्कार करने वाले कभी भी बलात्कार कर के शर्मसार नहीं होते हैं क्युकी वो बलात्कार केवल और केवल अपने अहम् को तुष्ट करने के लिये ये करते हैं , उनकी नज़र में बलात्कार एक ऐसा जरिया हैं जिसको करके वो अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं , बलात्कार करने वाले किसी भी जाति , आयु , वर्ग या समुदाय के नहीं होते हैं .
ये वो लोग होते हैं जो अपने आप से घृणा करते हैं और उनकी नज़र में वो खुद एक फेलियर होते हैं , नाकाम नकारे .

कौन होते हैं अपनी नज़र में नाकाम नकारे ,
  1. वो जो जिन्दगी में कुछ कर नहीं पाते , जैसे पढाई , लिखाई नौकरी इत्यदि 
  2. वो जो जिन्दगी में अपने ही माता पिता की नज़र में गिर जाते हैं 
  3. वो जो बन ना चाहते हैं जिन्दगी में पर नाकाम रहते हैं और किसी महिला को वहाँ देखते हैं 
इस में आप को गार्ड , नौकर , ड्राइवर , गुंडे , मवाली , ड्रग एडिक्ट , शराबी , जुआरी इत्यादि मिलते हैं 
  1. वो जो देखने में सुंदर नहीं होते यानी जो पुरुष की एक बनी हुई छवि के अनुसार अपने को कमतर पाते हैं 
  2. वो जो बेमेल विवाह के शिकार होते हैं यानी जिनकी पत्नी अतिसुंदर होती हैं और वो खुद को उससे कमतर पाते है
  3. वो जिनके पिता ने उनकी माँ पर अत्याचार किया होता हैं 
  4. वो जिनके यहाँ स्त्री को गाली , गलौज  से बुलाया जाता हैं 
  5. वो जिनकी अपने घर में बिलकुल नहीं चलती हैं  
इस मे आप को डॉक्टर , इंजिनियर , पत्रकार , नेता , फिल्म स्टार , प्रोफ़ेसर इत्यादि मिल जाते हैं 

  1. वो जो बहुत पैसे वाले हैं  और जिनको लगता हैं की पैसा देकर कुछ भी ख़रीदा जा सकता हैं 
इस मे आप को हर पैसे वाले माँ बाप को बिगड़े दिल  लडके  मिलते हैं जिनको उनके माँ बाप हर काम के बाद जेल दे छुडा कर लाने की सामर्थ्य रखते हैं
  1. वो जो बेहद शालीन दिखते हैं लेकिन मन में स्त्री के प्रति यौन हिंसा का भाव  सदेव रखते हैं क्युकी उनको लगता हैं की स्त्री की जगह उनके पैर के नीचे हैं .
इस मे आप को वो सब मिलते हैं जो बलात्कार नहीं कर पाने की कमी को मौखिक और लिखित यौन हिंसा  कर के आत्म तुष्टि करते हैं . ये कहीं भी और हर जगह मिल सकते हैं . 


लोग कहते हैं की मीडिया बलात्कार का तमाशा बनाती हैं और बेफिजूल हल्ला मचाती हैं , क्युकी उनको अपना अखबार , अपना चॅनल चलाना होता हैं

नहीं मै   नहीं मानती  क्युकी मीडिया अपना कर्तव्य पूरा करती हैं और ये मीडिया की ही कोशिश हैं की ये बाते
समाज के मुंह पर  एक तमाचे को तरह लगती  . बलात्कार हमेशा से होते आये हैं लेकिन उन खबरों को दबाया जाता रहा हैं क्युकी समाज ने कभी सजा बलात्कारी को दी ही नहीं हैं , सजा हमेशा बलात्कार जिसका हुआ उसको मिली हैं उसके परिवार को मिली हैं .

आज मीडिया एक एक बलात्कार की खबर को , मोलेस्ट की खबर को हाई लाईट करके दिखाता हैं और गाली मीडिया को पड़ती हैं उसकी खबरों से सब नाराज हैं , सबको लगता हैं जैसे मीडिया "पीपली लाइव " जैसी फिल्म बनाता हैं और स्पोंसर खोजता हैं . जो लोग ये सोचते हैं वो "बलात्कार " को केवल और केवल एक क़ानूनी अपराध मानते हैं और कुछ तो इसे बलात्कार करने वाले की एक गलती मान कर उसको माफ़ करने की भी फ़रियाद करने लगते हैं


आज कल बलात्कार शब्द का प्रयोग व्यंग , सटायर में लोग करते हैं जो की गलत हैं . बलात्कार जैसा अपराध वो ही करते हैं जो स्त्री के शरीर को रौंद कर अपने को "उंचा " , सुपीरियर साबित करना चाहते हैं . इस शब्द को कहीं भी प्रयोग करने से पहले सोचिये जरुर की कहीं गलती से आप इस घिनोनी मानसिकता वालो को हंसने का मौका तो नहीं दे रहे हैं 


कुछ लोग खाप पंचायत 15 साल की उम्र में शादी करने से लड़कियों के रेप को लेकर चिंतित हैं , वो सब एक बार अपने अपने आस पास झाँक कर देखे , कितने ही घर मिल जायेगे जहां घर की अपनी खाप पंचायत हैं ,
जहां लडकियां को अँधेरा होने से पहले घर आना होता हैं ,
 जहां लड़कियों को नौकरी से पहले शादी करना जरुरी होता हैं ,
जहां लड़कियों को स्किर्ट पहनना मना होता हैं .

 जहां 3 साल की लड़की को पैंटी पहनना जरुरी समझा जाता हैं लेकिन 3 साल का लड़का बिना निकर के भी घूम सकता हैं और माँ / दादी मुस्कराती हैं , लड़का हैं 



एक घटना बताती हूँ
 बात 1990 की हैं
एक परिवार में एक 3 साल की बच्ची थी , उसके माता पिता थे और उनका एक ड्राइवर था . एक दिन माता पिता ने ड्राइवर को किसी बात पर डांट दिया . अगले ही दिन ड्राइवर ने उस बच्ची का बलात्कार किया लेकिन नौकरी नहीं छोड़ी . उसने माता पिता से कहा जो करना हो करो . पुलिस , थाना चौकी जो मन हो ,मै ये तुम्हारे घर में हूँ .  क्या बिगाड़ लोगे मेरा , बोलो ??

माता पिता , बेटी को एक प्राइवेट डॉक्टर को दिखा दिया , अस्पताल भी नहीं ले गए और  रातो रात अपना मकान छोड़ दिया . और ड्राइवर का कोई कुछ नहीं कर पाया .
और जो जानते थे वो भी यही कहते रहे अब 3 साल की बच्ची का बलात्कार तो क्या ही हुआ होगा ??? बलात्कार के लिये कुछ औरत जैसा शरीर भी तो होना चाहिये .

ना जाने उस ड्राइवर ने इसके बाद कितनी बार यही सब दोहराया होगा और ना जाने उस बच्ची ने क्या और कब तक भुगता होगा . पता नहीं मरी होंगी की जिंदा होगी .