September 14, 2012

एक प्रश्न शिखा वार्ष्णेय से ???

एक प्रश्न शिखा वार्ष्णेय से ???

मैडम
ज़रा ये तो बताये , किसी सम्मान समारोह में आप को मंच पर बैठने का अधिकार किस ने और कब दिया ???

क्या आप ने जरुरी नहीं समझा की आप मंच पर बैठने से पहले अपने चारो तरफ नज़र डालती ये देखती की आप से उम्र में कितने बड़े लोग खड़े हैं ,
कितने सभागार में बैठे हैं .
फिर क्या आप को ये नहीं देखना चाहिये था की आप से पहले कितने लोग ब्लॉग लिखते हैं / थे यानी जो वरिष्ठ ब्लॉगर "हैं" कहीं वो खड़े तो नहीं हैं ??
उनमे से एक भी कहीं खडा था तो आप किस अधिकार से मंच पर आसीन होगयी .
देखिये मैडम , ये सब विदेश में चलता होगा , भारतीये संस्कृति में आप का स्थान कहां हैं ये आप कैसे भूल गयी ?? 
 ये आप क्या कहें रही हैं ? की मंच पर जितने आप के साथ बैठे थे उनसे भी उम्र में , ब्लॉग लेखन में वरिष्ठ ब्लॉगर , सभागार में खड़े थे ?
नहीं मैडम ऐसे नहीं चलता हैं , नैतिकता की बात को आप महिला होकर नहीं समझेगी तो कौन समझेगा ??
आप को भारतीये संस्कृति को देखते हुए उन लोगो की उम्र और योग्यता पूछने का अधिकार हैं ही नहीं जो आप के साथ बैठे थे . आप ये नहीं पूछ सकती की उनमे से किसी ने उठ कर रवि रतलामी "जी" को सीट क्यूँ नहीं देदी क्युकी सबसे ज्यादा वरिष्ठ तो वही थे वहाँ ब्लॉग लेखन के आधार पर . आप के अलावा मंच पर बैठे अन्य ब्लॉगर  मे कोई उठ कर क्यूँ नहीं सभागार में गया और अपने को सीनियर . वृद्ध , योग्य समझने वाले लोगो को मंच पर लाया .
देखिये मैडम , आप को अधिकार नहीं हैं की आप ये पूछ भी सके की बाकी जो बैठे थे उनके कर्त्तव्य क्या थे 
हां मैडम एक बात की तारीफ़ करनी पड़ेगी की आप भारतीये पोशाक में थी वर्ना हम को  आप को मंच से नीचे उसी समय उतार देते . सम्मेलन ख़तम होने के बाद आयी हुई ब्लॉग पोस्ट और कमेन्ट का इंतज़ार भी ना करते .
और मैडम अगली बार मंच पर बैठने की जुर्रत करने से पहले ये आप का नैतिक कर्तव्य हैं की आप अपने आस पास खड़े हर ब्लॉगर से उसकी उम्र , क़ाबलियत और ब्लॉग कब बना पूछ ले उसके बाद बैठे वैसे आप के लिये गेट पर खड़े होकर सबको फूल देकर स्वागत करने का करना ही सही काम था .

अब मैडम इस भ्रम में ना रहे की दो चार कविता , लेख और किताब लिखने से आप को स्वत: ही ये अधिकार की मिल गया की आप "बराबरी" से बैठे . आप की "सही जगह " कहां हैं ये दिखाना जरुरी था , इस लिये दिखा दी गयी हैं .
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दिस्लैमेर
अगला सम्मलेन जहां भी , जो भी कर रहा हो कृपा कर के कुर्सी की जगह सभागार में तखत डलवा दे ताकि सब मंचासीन हो .
हम शिखा वार्ष्णेय को एक काबिल महिला मानते हैं जिन्हे मंच पर बिठा कर मंच की गरिमा को बढ़ाया गया हैं , उन्होने मंच पर बैठने  का अधिकार , खुद अपनी क़ाबलियत से अर्जित किया हैं .

34 comments:

  1. आपकी बात से सहमत हूँ... वैसे भी काबिलियत और उम्र का क्या वास्ता?

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  2. बात दो चार लेख,कविताओं की नहीं होती. ना ही शिखा ने कहा होगा कि 'मुझे मंच पर बिठाया जाए'... सौभाग्य हमारा कि हमें कोई सम्मान से बुलाता है . नीचे कुर्सी से ना उठना किसी बुज़ुर्ग के सम्मान में गलत हो सकता है, निःसंदेह गलत है...पर मंच से उतर जाना तो बुलानेवालों का अपमान होता! प्रतिभा न उम्र की मोहताज है,न समय की. इसमें शिखा की क्या गलती ?

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  3. इस प्रकरण की डिटेल तो नहीं मालूम लेकिन ऐसा कुछ हुआ है तो बिलकुल गलत है मुझे नहीं लगता कि शिखा जी इस तरह के लोगों की ज्यादा परवाह करेंगी।और इस सोच से तो मुझे वैसे भी एक चिढ सी रही है कि कोई उम्र में बड़ा है तो केवल इसी वजह से वह सम्मान का और छोटे को कुछ भी कहने का अधिकारी हो जाता है।क्या उम्र में जो छोटे है उनका कोई आत्मसम्मान नहीं होता? शायद इसी सोच के कारण भारत में अभिभावक अपने बच्चों को किसीके सामने कुछ भी कह देते है।व्यक्ति के विचार क्या हैं यही महत्वपूर्ण है।

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  4. ये बात जिस समय और स्थिति के बारे में कही जा रही है उसे समझे बिना कुछ कहना ठीक नहीं होगा पर ये ब्लॉगिंग में वरिष्ठ और उम्र और काबिलियत का रायता कुछ समझ नहीं आया... पहली बात कि फोटो वोटो खिंचवाते समय इतना देखा नहीं जाता कि कौन बैठा और कौन खड़ा.. किसी को इतनी परवाह नहीं होती... बड़े लोगों को भी नहीं... और फिर कौन बड़ा है यह कौन तय करेगा जबकि आपने खुद ही तीन तरह के पैमाने रख दिए हैं... उम्र तो चलिए पता चल जायेगी... लेकिन कई बड़े-बूढ़े ऐसा भी मानते हैं कि महिला उम्र में छोटी भी हो तो पहले उसे स्थान मिलना चाहिए... दूसरा ब्लॉग कौन कब से लिख रहा है यह भी पता चल जायेगा... लेकिन जरूरी नहीं कि जो भी आपसे पहले से ब्लॉग लिख रहा हो वह आपसे वरिष्ठ हो गया और आप उसके चरण छुएं... काहे का वरिष्ठ और कनिष्ठ? मुझे किसी का लेखन अच्छा लगे तो उसने आज ही अपनी पहली पोस्ट लिखी हो तो भी मैं उसको ज्यादा भाव दूंगा... कोई बीस साल से इंटरनेट पर कलम घिस रहा है तो वह मार्क ज़ूकरवर्ग नहीं हो गया... और काबिलियत का कोई निश्चित पैमाना है नहीं... कौन ज्यादा काबिल है कौन कम यह कौन तय करेगा...
    शिखा जी को मंच पर बैठना चाहिए था, खड़ा हो जाना चाहिए था या उतर जाना था इससे मुझे कोई मतलब नहीं और न ही मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है... बस बात कुछ उल्टी-पुलती लगी तो लिख दिया...

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  5. यदि मै अच्छे से याद करू तो परिकल्पना सम्मान को लेकर मैंने बस मनोज जी की लम्पट वाली पोस्ट पर ही टिप्पणी की थी , इस सम्मान को लेकर अभी तक मैंने कोई भी एक राय नहीं बनाई है सो उस बारे में कुछ भी नहीं कहूँगी , हा पोस्टे तो जरुर पढ़ी है और ये देख कर आश्चर्य भी हुआ था की आखिर शिखा जी का ही नाम क्यों लिया गया मंच से उतरने के लिए , इस मामले में महिला वाला कोण कितना है मुझे नहीं पता किन्तु ये बड़ी आम बात है की अक्सर महिलाओ की क्षमता बुद्धि को सम्मान नहीं दिया जाता है और मंचो पर उनकी उपस्थिति काफी कम देखने को मिलती है और वरिष्ठ कनिष्ठ और बुजुर्ग वाली बात से तो मै भी सहमत नहीं हूं जहा आप की काबीलियत की बात है वहा ये सब मायने नहीं रखते है |

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  6. अति हो गयी है ……अरे प्रतिभा तो स्वंय बोलती है क्या लोगों को इतना नही पता और फिर ये तो बुलाने और बैठाने वाले का काम है ना कि शिखा का कि वो ये देखे कौन खडा है और कौन बैठा और कौन वरिष्ठ है ………पता नही क्यों अब तक लोगों की मानसिकता नही बदली?

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  7. बढ़िया व्यंग्य है.

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  8. नारी ब्‍लॉग का नाम बदलकर आरी ब्‍लॉग रख देना चाहिए
    आरी तख्‍त पर ही चलाई जाती है और वह चला ही रही हो।

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    1. अगर पोस्ट समझ ना आये तो कमेन्ट करने से पहले किसी से समझ ले

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    2. आपसे होनहार और कौन होगा, समझाने के लिए। वैसे भी मैं नारियों को समझाईश देने के नाम पर अव्‍वल ही मानता-स्‍वीकारता आया हूं।

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  9. इस जगह मैं सहमत नहीं हूँ, क्योकि आगंतुक को कुछ भी पता नहीं होता है और उसको आयोजकों ने जहाँ बिठा दिया बैठ गए. किसको कहाँ स्थान देना है ये काम तो आयोजकों का होता है इसलिए शिखा से प्रश्न करना व्यर्थ है.

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    1. कभी समझ का फ़र्क पड जाता है और लोग अर्थ का अनर्थ कर बैठते हैं आपने भी पक्ष मे ही लिखा है शिखा के रचना जी मगर व्यंग्यात्मक रूप मे जिसे शायद एक दम से सब ना समझ सकें मगर साफ़ दिख रहा है कि आपने शिखा का पक्ष ही लिया है ………कोई बात नही कभी कभी इस तरह की गलतफ़हमियाँ हो जाया करती हैं।

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    2. नहीं ... शुरू में ही विशेष सूचना से स्पष्ट है कि रचना जी किसी और की टिप्पणी यहाँ रख रही हैं, यूँ भी वे नारी विरोधक नहीं है.

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  10. हर होने में कमियां ढूंढना ठीक नहीं ... बात को बढ़ाना भी ठीक नहीं होता ...
    सामान के हकदार जो भी होते हैं वो होते ही हैं ... किसी एक को सम्मान देने से दूसरा छोटा नहीं होता ...
    आखिर मंच पे तो कुछ ही लोग बैठ सकते थे ... इसलिए जो नहीं बैठ पाए वो भी और जो बैठे वो सभी सामान लायक ही हैं और रहेंगे ...

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    1. ये प्रश्न मेरे नहीं हैं नसावा जी , मुझे तो जगह जगह शिखा के लिये ये सब लिखा दिखा हैं

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    2. रचना जी आपकी बात लोग समझ नहीं पा रहे हैं शायद.....व्यंग की धार ज्यादा ही पैनी है...व्यर्थ में लोग आपसे ही सवाल कर रहे हैं.ये आपके ही विचार समझ रहे हैं.स्पष्ट कर दीजिए.
      सादर

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  11. कभी समझ का फ़र्क पड जाता है और लोग अर्थ का अनर्थ कर बैठते हैं आपने भी पक्ष मे ही लिखा है शिखा के रचना जी मगर व्यंग्यात्मक रूप मे जिसे शायद एक दम से सब ना समझ सकें मगर साफ़ दिख रहा है कि आपने शिखा का पक्ष ही लिया है ………कोई बात नही कभी कभी इस तरह की गलतफ़हमियाँ हो जाया करती हैं।

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  12. रचना जी, मुझे बहुत अफ़सोस है, उन लोगों पर, जो इस पोस्ट को समझ ही नहीं पा रहे :( मजे की बात तो ये, कि शायद वे डिस्क्लेमर को भी नहीं पढ रहे :( वरना कुछ तो उनकी समझ में आता ही. मुझे बहुत तकलीफ़ हुई थी, जब लोगों ने शिखा के मंचासीन होने पर धिक्कारना शुरु किया था.
    बढिया बल्कि बहुत बढिया व्यंग्य है रचना जी, बधाई.

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  13. मंच की व्यवस्था , पूर्णतया आयोजकों की जिम्मेदारी होती है . इसमें मंच पर आमंत्रित विशिष्ठ अतिथियों से कैसी शिकायत !
    शिखा जी अति सम्मानीय ब्लॉगर्स में से एक हैं . उनके बारे में कुछ भी गलत लिखना गैर जिम्मेदाराना हरकत ही कहलाएगी .

    इस सटीक व्यंग लेख के लिए बधाई .

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  14. आपने जबरदस्त व्यंग्य मारा है.
    और चूंकि आपने मुझे जबरन वरिष्ठ मानते हुए मेरा जिक्र किया है तो जो बात मैंने फुरसतिया के पोस्ट - http://hindini.com/fursatiya/archives/3326/comment-page-1#comment-57571 पर कही थी, उसे ही फिर से यहाँ चिपका रहा हूँ - यह कहते हुए कि ब्लॉग जगत में हर किस्म के निम्नस्तरीय-उच्चस्तरीय सोच वाले लोग होते हैं. किन किन की बातों का रोना रोएंगे और किन किन को जवाब देंगे?
    --
    दरअसल जो जेनुइन मुद्दे आपने अपने पिछले पोस्ट में उठाए थे, उनपर किसी ने तवज्जो ही नहीं दी और लोगों ने मामले को हाईजैक कर लिया और टेबल राइटिंग कर अनाप-शनाप बातें कहने लगे.

    उदाहरण के तौर पर एक तथाकथित बड़े पत्रकार बंधु जिन्होंने इस आयोजन की बेहद कटु आलोचना की, उन्हें ये ही नहीं पता कि पूर्णिमा वर्मन कौन हैं! (यह बात उन्होंने अपनी टिप्पणी में स्वीकारी है!) फिर भी इस आयोजन के विरुद्ध खम ठोंक कर लिख रहे हैं. आयोजन से पहले उन्होंने अपने किसी पोस्ट में प्रतिभागियों के बेसलेस एयरफेयर मिलने की बात भी कही थी! हद है!

    एक नॉनसेंस किस्म का मुद्दा उठाया गया कि शिखा वार्ष्णेय मंचासीन हैं और वरिष्ठ पीछे खड़े हैं – तो जो ब्लॉग और उसकी प्रवृत्ति को नहीं जानते वे ही ऐसी बात कह सकते हैं. ब्लॉग में कोई छोटा-बड़ा वरिष्ठ गरिष्ठ नहीं होता. और किसी के लिए होता भी होगा तो वो एक फोटोसेशन का चित्र था जो प्रेस के लिए खासतौर पर आयोजित था जिसमें प्रथम सत्र के मंचासीन अतिथियों के साथ पुरस्कृतों का था.

    एक नामालूम से अखबार की सुर्खी – लम्पट शब्द को लेकर भी हो हल्ला मचाया गया. जबकि यह अखबारी सुर्खियाँ बटोरने की शीर्षकीय चालबाजी से अधिक कुछ भी नहीं था.

    इस आयोजन के लिए बेसिर-पैर और खालिस टेबल राइटिंग जैसी निम्नस्तरीय आलोचनाओं की बाढ़ सी आई है जिसमें शीत निद्रा से जागा हर ब्लॉगर अपना हाथ धो लेना चाहता है. इसी तरह की निम्नस्तरीय आलोचनाएँ प्रतिष्ठित इंडीब्लॉगीज पुरस्कारों को बंद करने में एक बड़ा कारण रही हैं. जबकि मेरा ये मानना है इस तरह के आयोजन होते रहें तो ब्लॉगिंग में तेजी भी आती है. हालिया उदाहरण को ही लें. बहुत से ब्लॉग शीत निद्रा से उठे और बहुत से नामालूम किस्म के ब्लॉगों की रीडरशिप – क्षणिक ही सही, तेजी से बढ़ी!

    जो भी हो, इस नामालूम से आयोजन को, जिसकी खबर एक दिन में फुस्स हो जानी थी, उस पर आपके पिछले पोस्ट ने स्ट्रीसेंड प्रभाव डाल दिया और इस लिहाज से यह बेहद सफल रहा – सप्ताह भर से लोग रस ले ले कर इसकी जमकर लानत-मलामत भी कर रहे हैं तो घोर प्रशंसा भी, जो शायद अगले एक महीने तक जारी रहेगी.

    एक बेहद सफल आयोजन का यह शानदार प्रतीक है

    मैं आयोजकों को फिर से बधाई देना चाहूंगा और निवेदन भी – भविष्य के आयोजनो में, इस आयोजन की जो जेनुइन कमियाँ गिनाई गई हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करें और इससे भी बढ़िया, बेहतर आयोजन करें.

    मेरा मानना है कि ऐसे आयोजन होते रहने चाहिएं – एक नहीं, दर्जनों – ताकि हिंदी ब्लॉग जगत में तो हलचल मची ही रहे और साथ ही उस शहर के निवासियों को ब्लॉगिंग में और भी दिलचस्पी जागे.

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  15. दिगंबर नवासा जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ।

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  16. समस्या यही है रचना जी जान लड़ाकर व्यंग्य लिखो फिर समझाओ कि मैने व्यंग्य लिखा है।:)

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  17. वैसे भी ग्रुप फोटोग्राफ बहुत अनौपचारिक होते हैं इन समारोहों में ! आयोजक की मर्जी जिसको जहाँ बैठा दे!

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  18. देवेन्द्र पाण्डेय
    समस्या यही है रचना जी जान लड़ाकर व्यंग्य लिखो फिर समझाओ कि मैने व्यंग्य लिखा है।:)
    आपके इस चुटकुले पर हँसना है या केवल मुस्कराना ?:-)

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  19. सचमुच यह एक समस्या है कि जान लड़ाकर व्यंग्य लिखो फिर समझाओ कि मैने व्यंग्य लिखा है।:)

    शिखा जी तो मेहमान थीं.
    मेज़ की बात मेज़बान के ज़िम्मे होती है.

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  20. at first i got scared reading the title and afew lines - only then culd i understand the vyangya in it

    By the way
    the ppl who r teaching "bhaarteey sanskriti" by telling shikha ji to "give respect" to age etc - i advice them to just begin reading our puranas etc - where age is not the criterion - ability is.

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  21. i hardly comment on blogs.. Bt this title has snatched my attention..

    See being a girl i would say its our inherent quality to respect elders, but elder in terms of age not in terms of blogging or writting.. Its all about talent.
    Though my personal experience wid shikha ji wasnt good enough but i disagree wid u, since you have not mentioned the complete scenario..
    If an elder in terms of age is standing in front of u, you are supposed to offer them a seat. But when u r invited for an event, it becomes the responsibility of the organizer to arrange for seats for everyone.

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  22. व्यंग भी समझाना पडे ..........।

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  23. वैसे मैं तो श्री रविशंकर जी से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि आयोजनों का होना चाहिए, और रही बात दीगर तो भई यह तो बड़ी एनर्जी वाला मुआमला है देखिए अभी भी चल ही रहा है।

    एक बात और है कि यदि ऐसे आयोजन का जिम्मा जिन्होंने उठाया और उसे कर दिखाया इसके लिए उन्हें बधाई देनी चाहिए और एक लांड्री लिस्ट की तरह से सभी कमियों को समाहित कर एक विस्तृत सुधार कार्ययोजना की आवश्यकता है कि अगले कार्यक्रमों में इन कमियों को दूर किया जा सके।

    सादर,

    मुकेश कुमर तिवारी

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  24. बढ़िया व्यंग्य

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