September 06, 2012

प्रविष्टियों के लिये समय सीमा नहीं हैं आप अपने ब्लॉग पर पब्लिश की हुई नयी या पुरानी प्रविष्टि भेज सकते हैं

पिछली पोस्ट से आगे , 
अंशुमाला , रश्मि प्रभा और निर्णायक मनोज जी चाहते हैं की इस कार्यक्रम में ब्लॉग पोस्ट को समय से ना बंधा जाये .
इस लिये अगर आप ने
विषय
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
लेख और कविता , कहानी की विधा इस बार नहीं रखी जाएगी 
एक ब्लॉगर किसी भी विषय मे बस एक प्रविष्टि भेजे, 
 100 प्रविष्टि का अर्थ हुआ 100  ब्लॉग पोस्ट { लेख और कविता विधा की } 

पर
कभी भी अपने ब्लॉग पर कोई भी पोस्ट पब्लिश की हैं तो उसका लिंक आप यहाँ दे सकते हैं
अगर हमारे पास 100 पोस्ट आगयी तो ये  कार्यक्रम / आयोजन नारी ब्लॉग करेगा . लेकिन अगर 100 प्रविष्टियाँ नहीं आती हैं तो फिर पहले इन विषयों पर और चिंतन और पोस्ट की आवश्यकता हैं .

नारी ब्लॉग की सदस्य नारी ब्लॉग से अपनी कोई भी पोस्ट दे सकती हैं बस मेरी कोई भी पोस्ट इस आयोजन के  लिये नहीं हैं . मेरे अलावा कोई भी निर्णायक अपनी पोस्ट शामिल नहीं कर सकता हैं .

आप को संभावित निर्णयको के नाम इस लिये बता दिये हैं ताकि आप जान सके की आप की पोस्ट को कौन आंकलित कर सकता हैं . अगर आप को निर्णायक ना पसंद हो , या आप को लगता हैं वो इस इस काबिल नहीं हैं हैं की आप की पोस्ट का आंकलन कर सके तो आप से विनम्र आग्रह हैं पोस्ट का लिंक ना दे


इस आयोजन को किस नाम से किया जाये इस पर सुझाव आमंत्रित हैं
आप इस मे पोस्ट देने के अलावा किस प्रकार से जुड़ना चाहते हैं वो अवश्य बताये .



 प्रविष्टियों के लिये समय सीमा नहीं हैं आप अपने ब्लॉग पर पब्लिश की हुई नयी या पुरानी प्रविष्टि भेज सकते हैं 
 

23 comments:

  1. संभव है कि किन्हीं कारणों से ऐसी पोस्टों के लिंक न भेजे जाएं जो आपके हिसाब से इस आयोजन के लिए उत्तम हैं। ऐसी प्रविष्टियों को आप स्वयं नामित कर सकती हैं।

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    1. राधारमण जी
      प्रविष्टि ब्लोगर खुद ही भेजे ताकि उनकी सहमति रहे की उनकी प्रविष्टि शामिल की जाए
      दूसरी बात अगर निर्णायक या आयोजक चुनाव करेगे शामिल करने का तो उनकी अपनी पसंद शामिल हो जाती हैं और पारदर्शिता नहीं होती
      यहाँ बात पुरूस्कार की नहीं हैं यहाँ विषय पर क्या काम हुआ हैं और कितना उसकी हैं

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  2. आशा है आप पारदर्शिता के नए आयाम कायम करेंगी ...
    शुभकामनायें आपको !

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    1. आप से आग्रह हैं २००७-२००८ के बीच में आप ने अपने ब्लॉग पर काफी पोस्ट दी थी आप उनमे से एक इस मे शामिल कर दे अगर सही समझे
      शुब्कमाना से कुछ नहीं होगा काम करना होगा सो सबसे पहले नाम सुझाये

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  3. वाह... यह तो बहुत अच्छी पहल है.... बहुत-बहुत स्वागत है और हार्दिक शुभकामनाएँ!

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    1. क्या हमारिवानी पर किसी जगह इस की चर्चा की जासकती हैं , जिस से की नारी blog पाठको के अलावा भी लोग इससे जुड़ सके

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  4. अनंत की मरीचिका ...इस आयोजन को कह सकते हैं

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  5. मैं भी अपनी कोई प्रविष्टि नहीं भेजूँगी. आपने समय सीमा हटाकर अच्छा किया. अब ज्यादा से ज्यादा प्रविष्टियाँ सम्मिलित की जा सकती हैं.

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  6. समय सीमा हटाकर अच्छा किया मगर यदि हमने कोई पोस्ट अभी लिखी हो और ब्लोग पर ना हो तो क्या वो भी भेजी जा सकती है?और जिन्होंने पहले अपना लिंक दिया हो और अब आपकी योजना मे बदलाव के बाद वो दूसरा लिंक या कविता देना चाहें तो कौन सी स्वीकार्य होगी कृपया स्पष्ट करें।

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    1. वंदना जी आप पहले ब्लॉग पर पोस्ट कर दे और फिर लिंक यहाँ दे दे
      पिछली पोस्ट का लिंक डिलीट कर दे
      अंतिम तिथि तक जो पोस्ट आ जाएगी वही सम्मिलित होगी

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  7. रचना जी , आपने तो बहुत कन्फ्यूज़ कर दिया ! इस विषय पर बहुत से आलेख लिखे हैं , निर्णय नहीं ले पा रही हूँ कौन सी प्रविष्टि शामिल करूँ...कृपया मदद करें !

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    1. मै इंतज़ार में थी की आप कुछ कहेगी या चुप ही रहेगी
      आप अपनी पसंद की बेहतरीन दे दे

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  8. रचना जी, पता नहीं कितनी पोस्ट लिखीं, सभी सामजिक विषयों पर हैं, लेकिन अफ़सोस की दिए गए विषयों पर मैंने कोई पोस्ट नहीं लिखी :( इस आयोजन में सक्रिय रूप से शामिल न हो पाने का दुःख रहेगा. चुनी हुई पोस्ट पद्धति रहूंगी, साथ में जुडी तो हूँ ही.

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    2. अंतिम तिथि तक प्रकाशित पोस्ट सम्मिलित की जा सकती हैं वंदना जी और अंतिम तिथि में अभी एक महीने से ज्यादा हैं

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  9. रचना जी, अपनी एक कविता 'आक्रोश' की लिंक भेज रही हूँ ! यह 'नारी सशक्तिकरण' विषय के अंतर्गत है ! यदि पसंद आये तो इसे भी आयोजन में सम्मिलित कर लीजियेगा ! मुझे इस आयोजन के साथ जुड कर हार्दिक प्रसन्नता होगी !

    http://sudhinama.blogspot.in/2012/03/blog-post_09.html

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  10. अपनी रचना आत्म्द्ग्धा जो २०१० में लिखी थी की लिंक भेज रही हूँ |यह महिला हिंसा के लिए है |
    यदि पसंद आए तो मुझे इस आयोजन के साथ जुड कर हार्दिक प्रसन्नता होगी |http://akanksha-asha.blogspot.in/2010/01/blog-post_20.html
    आशा


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  11. कविता का नाम है "आत्मदग्धा " पहले गलत टाइप हो गया था |
    आशा

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  12. मेरी समझ में नहीं आ रहा की मैं इसमें अपनी रचना कैसे भेजूँ। इसलिए यहा दे रही हूँ। आप इसे लगा दें, यह अनुरोध। लिंक है- http://chhammakchhallokahis.blogspot.in/2012/07/blog-post_11.html और रचना- मेरे पापा!

    मेरे पापा,
    मैं आपकी आफरीन, फ़लक, रचना, पूजा, आमना, नाजनीन! आप मुझे अपना न मानें, मगर मैं आपको अपना ही समझती हूँ। कितना बड़ा सहारा होते हैं आप हमारे लिए- बरगद के पेड़ की तरह। सुना है कि बरगद अपने नीचे किसी को फलने-फूलने नहीं देता। यह भी सुना है कि बरगद अपनी जड़ें अपनी डालियों से ही फैलाता-बढ़ाता चलता है। हम तो आपकी ही जड़ें हैं न पापा? लोग कहते हैं कि जब जान दे नहीं सकते तो लेने का कोई अधिकार नहीं। यह शायद गैरों के लिए होता होगा! आप तो हमारे अपने हैं, शायद इसीलिए सोचा होगा कि जान देनेवाले आप, तो उसे ले लेने का पूरा अधिकार भी आपका।

    लेकिन मेरी समझ में नहीं आया पापा कि आपने हमारी जान क्यों ली? मैं इतनी नन्हीं! आँखें तक खोलना नहीं आया था मुझे। आपको पहचानना भी नहीं। आप तो साइंस को जानते -मानते होंगे पापा। बाकी में भले न मानें, इलाज- बीमारी में तो मानना ही पड़ता है। तो आप यह भी जानते होंगे कि किसी बच्चे का जन्म भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया ही है। विज्ञान ने साबित कर दिया है कि हम बेटियों का जन्म आपके ही एक्स-एक्स से होता है। अब जब आपने ही हमें एक्स-वाई नहीं दिया तो हम खुद से अपने एक्स को वाई में कैसे बदल लेते? काश, साइंस इतनी तरक्की कर गया होता कि आप खुद ही मेरी माँ को एक्स-वाई दे देते या मैं ही उसे एक्स-वाई में तब्दील कर के आपकी बेटी के बदले बेटा बनकर जनमती और आपकी मुराद पूरी कर देती।

    बताइये पापा कि जब आपको ही नहीं मालूम कि आप अपने अंश से क्या रचनेवाले हैं तो उसका खामियाजा हमारे मत्थे क्यो? बताइये पापा कि हम किसलिए आपकी नाराजगी सहें? क्या इसलिए कि आप हमारे पापा हैं, हमसे अधिक ताकतवर हैं, हमारे पालनहार हैं? यदि आप सचमुच ही हमारे पापा और पालनहार हैं, तो कोई भी बाप इतना निर्दय नहीं हो सकता कि वह अपनी ही संतान को माँर डाले और ना ही कोई माली इतना मूर्ख कि अपने ही लगाए पौधे कि जड़ों में मट्ठा डाले!

    शायद आप ताकतवर हैं। दुनिया के आगे भले ना हो, हमारे लिए हैं। भूल गए पापा कि सभी धर्म अपने से कमजोर की रक्षा करने को कहता है। आप सब तो धर्म के बड़े- बड़े पैरोकार हैं। इतनी छोटी बात भूल गए? भूलना ही था। धर्म और मजहब या तो उचारने के लिए है या हम निरीहों को उससे बांधने के लिए। सभी ताकतवर अपने से कमजोर को दबाकर- कुचलकर चलते हैं। सीधी जबान में कहूँ तो अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। माफ कीजिएगा पापा ऐसी तुलना के लिए। लेकिन मैं भी क्या करूँ? कभी हमारा लिंग जानकार पेट में ही हमें मार देते हैं, तो कभी तमाचे और जलती सिगरेट हम पर छोड़ देते हैं। बताइये पापा, क्या आपके मर्दाना थप्पड़ को सहने की ताकत हम आसन्न जन्मी जान में है? सोचिएगा पापा! हम तो विदा ले रही हैं, ले चुकी है, लेती रहेंगी। मगर बेटियाँ और भी आएंगी। आपके ही एक्स- एक्स से आएंगी। पहले अपनी कमजोरी पहचानिए पापा! फिर अपनी ताकत हम पर आजमाइए।

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    1. विभा जी
      ये कमेन्ट हटा कर आप केवल अपनी पोस्ट का लिंक छोड़ दे इस लिंक पर और ये जरुर बता दे की किस विषय के { तीन विषय दिये हैं } लिये ये प्रविष्टि हैं

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  13. आपके नारी ब्लॉग के लिए मैने कुछ समय (वर्षों) पूर्व आपके अभी दिए विषयों पर ही लगातार ७(सात) दिनों तक अपने लेख भेजे थे.अभी आपके ब्लॉग में देखा कि आपने आपने विषय के लिए पुराने प्रकाशित लेख भी पुनः भेजने कहा है तो पुराने लेखों के साथ इन्ही दिए गए विषयों पर नए लेख भी पूरे डाटा के साथ शीघ्र भेज रही हूँ.
    आपके इस विशिष्ट आयोजन हेतु एक नया नाम भी भेजती हूँ ,पसंद आये तो अच्छा.
    अलका मधसूदन पटेल
    लेखिका-साहित्यकार

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  14. आपने अपने आयोजन द्वारा सभी लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है.
    आयोजन का नाम-----*चैतन्या*----- कैसा है.
    अलका मधुसूदन पटेल
    लेखिका - साहित्यकार

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  15. आपने अपने आयोजन द्वारा सभी लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है.
    आयोजन का नाम *चैतन्या*----- कैसा है.
    अलका मधुसूदन पटेल
    लेखिका - साहित्यकार

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