September 08, 2012

हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , विषय नारी

हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , विषय नारी

इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन दो लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1 
लिंक 2 

आप को बस इतना करना हैं की प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी  15 सितम्बर 2012 हैं की जगह 15 अक्तूबर मान  ले और अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण

ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
अंतिम तिथि के बाद एक नया ब्लॉग बना कर आप को सूचित कर दिया जायेगा और फिर आप अपनी पूरी पोस्ट वहाँ दे सकेगे
केवल और केवल एक प्रविष्टि आमंत्रित हैं जिन पाठको ने दो प्रविष्टि दी हैं उनकी पहली प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल कर दी जाएगी और दूसरी निरस्त्र मानी जाएगी . अंतिम तिथि तक आप अपनी प्रविष्टि डिलीट करके नयी भी दे सकते हैं .

अब एक राय चाहिये , मै चाहती हूँ ब्लॉग पोस्ट प्रषित करने वाले को ये अधिकार हो की वो सार्वजनिक मंच पर यानी जब आयोजन का ब्लॉग बन जाये , ब्लॉग पोस्ट उस पर संकलित कर दी जाये , अपनी पोस्ट के साथ ये बता सके की निर्णायक मंडल के किस सदस्य से वो अपनी पोस्ट आंकलित करवाने का इच्छुक हैं . 

मुझे लगता हैं , हर लेखक ये समझता हैं कौन सा पाठक उसके लिखे को वही / सही समझता हैं जो उसने लिखा  हैं , इस लिये वो निर्णायक मंडल से अपनी पसंद का पाठक चुन ले . हर निर्णायक के पास बस 25 प्रविष्टियाँ होंगी इस लिये जैसे ही प्रविष्टि संख्या पूरी होगयी किसी निर्णायक की फी ब्लोगर उसको अपना निर्णायक नहीं घोषित कर सकेगा 
इस आईडिया की कमजोरियां और और मजबुतिया { strength &threats } बता दे ताकि इस पर विचार कर सकूँ

18 comments:

  1. सारी प्रविष्टियों को सभी देखें तो मुश्किल होगी ... बेहतर हो यह चयन निर्णायक मंडल का ही रहे कि कौन किसकी पोस्ट देखेंगे ... इससे पारदर्शिता भी होगी और खामखाह कोई शिकायत भी नहीं होगी और निर्णायकों का मान बना रहेगा ...

    ReplyDelete
  2. हर निर्णायक केवल २५ पोस्ट देखने का समय निकाल पायेगा , अगर निर्णायक लेखक की पसंद का हो और पोस्ट को आकलन करे तो जिसकी पोस्ट हैं उसकी संतुष्टि सबसे ज्यादा होगा , निर्णायक को न्यूट्रल माना जाता हैं यानी निस्पक्ष वो मित्र होने के बाद भी निर्णायक बनते हैं निर्णायक पहले होगा

    ReplyDelete
  3. "अपनी पोस्ट के साथ ये बता सके की निर्णायक मंडल के किस सदस्य से वो अपनी पोस्ट आंकलित करवाने का इच्छुक हैं ."
    रचना जी, मुझे लगता है की ये सुविधा विवाद खडा कर सकती है. लोग अपने करीबी निर्णायक को ही चुनना पसंद करेंगे, और फिर निर्णायक पर उसकी रचना चुनने का दवाब भी बना सकते हैं. अगर निर्णायक ने अपने मित्र की बात नहीं मानी, और किसी भी वजह से रचना शामिल नहीं हुई, तो उन दोनों के सम्बन्ध खराब. बेहतर यही होगा, की निर्णायकों को प्राप्त प्रविष्टियों में से बराबर बराबर प्रविष्ठियां रेंडमली बाँट दी जाएँ. और फिर वे अपने विवेक से ही प्रविशितियों का चुनाव करें.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जब क़ोई पी अच् डी करता है या दोक्टरेट की उपाधि लेता हैं तो उसको अधिकार होता हैं
      की वो अपने काम का आंकलन अपने पसंद के व्यक्ति से करवा सके
      इसी प्रकार से किसी भी ग्लोबल इवेंट में भी जज को पसंद करने का अधिकार होता हैं जहां
      भी जज के नंबर का क़ोई भाग होता हैं
      इस से उस व्यक्ति को ये भरोसा होता हैं की उसके अपने संबंधो { बिगड़े / अच्छे } का क़ोई दबाव जज और खुद उस पर नहीं
      होगा .

      Delete
    2. पी एच डी कोई प्रतियोगी आयोजन नहीं होता रचना जी. सबकी व्यक्तिगत रिसर्च होती है, जो बाद में अवार्ड होती ही है. ये प्रतियोगी आयोजन है. २५ में से तीन प्रविष्ठियां चुनने की ज़िम्मेदारी, ऐसे में मुझे नहीं लगता की प्रतियोगियों को अपनी पसंद का जज चुनने का हक़ होना चाहिए. खैर फिलहाल इस व्यवस्था को प्रायोगिक तौर पर अपनाया जा सकता है.
      ऐसा मेरा व्यक्तिगत मत है.

      Delete
    3. वंदना जी पहले तो थैंक्स की आप मुझे सोचने के लिये बाध्य करती हैं
      अब पी एच डी भी एक प्रकार की प्रतियोगिता ही होती हैं , एक ही वर्ष में एक ही विश्विद्यालय में एक ही जैसे विषयों पर अनेक छात्र रिसर्च करते हैं और सबको पी अच् डी नहीं मिलती हैं केवल उनको मिलती हैं जिनका काम विषय के सबसे नज़दीक होता हैं
      right to chose your judge is very common globally

      Delete
    4. इस मुद्दे पर अभी भी सहमत नहीं हूं रचना जी :) लेकिन आपके साथ हूं, इस मिशन में, अपनी बात खुल के कहना मेरी आदत है बस :)

      Delete
  4. लेकिन ये तो शायद आपने पहले ही कह दिया न कि जिसे निर्णायक मंडल का कोई सदस्य पसंद न हो तो पोस्ट न भेजे,फिर किसीको क्यो परेशानी होगी? मेरे हिसाब से तो ये बात आप लोग अपने तक सीमित रखें तो ज्यादा अच्छा है।आप चाहें तो ऐसा कोई सिस्टम बनाए ताकि पहले ही तय हो जाए कि पहली पच्चीस प्रविष्टीया कौन देखेगा और उसके बाद दूसरी कौन।लेकिन नाम बताना शायद सही न हो।इससे तो हो सकता है कि ज्यादातर पाठक यदि एक ही निर्णायक को पसंद कर ले तो वह अकेला कितनी पोस्ट देखेगा?इससे तो किसी एक की भूमिका बहुत बढ़ जाएगी तो दूसरे की बिल्कुल कम भी हो सकती है और इसके बाद भी निष्पक्षता को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं।अच्छा हो कि आप पहले ही निर्णायकों से बात कर पूछ लें कि आने वाली पहली पच्चीस पोस्टस को कौन देख रहा है।पर ये जानकारी आप अपने तक ही रखें।हाँ बाद में शॉर्टलिस्ट होने वाली पोस्टस पर तो खुले में चर्चा होगी ही।इसमें अंक या ग्रेड प्रणाली से चयन किया जा सकता है बाकि जैसा आप ठीक समझें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जब क़ोई पी अच् डी करता है या दोक्टरेट की उपाधि लेता हैं तो उसको अधिकार होता हैं
      की वो अपने काम का आंकलन अपने पसंद के व्यक्ति से करवा सके
      इसी प्रकार से किसी भी ग्लोबल इवेंट में भी जज को पसंद करने का अधिकार होता हैं जहां
      भी जज के नंबर का क़ोई भाग होता हैं
      इस से उस व्यक्ति को ये भरोसा होता हैं की उसके अपने संबंधो { बिगड़े / अच्छे } का क़ोई दबाव जज और खुद उस पर नहीं
      होगा .

      Delete
  5. लगता है मैं जब कमेन्ट लिख रहा था उस दौरान ही वंदना जी की टिप्पणी प्रकाशित हो गई इसलिए मैं पढ़ नहीं पाया।उनकी बात से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  6. बेहद सकारात्मक पहल की आपने , अस्तु साधुवाद !

    ReplyDelete
  7. आपकी इस पोस्ट को पढ़कर मुझे ग्रेजुएशन की कुछ बातें याद हो आईं।

    जब हमारी कॉपी जंचने के लिए भागलपुर जाती थी तो हम अपना सिर पीट लेते थे, क्योंकि वहां के प्रोफ़ेसर साठ से नीचे ही अंक देते थे।

    वहीं अगर कॉपी दरभंगा गई, तो वहां के प्रोफ़ेसर कभी भी साठ से नीचे मार्क्स देते ही नहीं थे। उनके पास कॉपी गई तो सत्तर प्रतिशत की गारंटी।

    इसलिए उन दिनों हमें यह ऑप्शन दिया जाता तो हम तो अपने परीक्षक चुनना पसंद करते।

    खैर, मुद्दे से अलग इस बात के बावजूद मुझे लगता है कि जज चुनने का ऑप्शन दे देने से पारदर्शिता और बढ़ ही जाएगी।

    ReplyDelete
  8. रचना जी क्या जरूरत है कि हम निर्णायक चुनें मज़ा तब है जब हर निर्णायक की पसन्द एक ही प्रविष्टि पर हो ……और मेरे ख्याल से तो जब कोई इंसान निर्णायक बनता है तो ये उसका कर्तव्य बन जाता है कि वो अपने दोस्तों और पसन्द के ब्लोगर्स के बारे मे ना सोचकर निष्पक्ष रूप से निर्णय ले और यदि वो ऐसा नही कर सकता तो वो निर्णायक बनने के लायक ही नही है क्योंकि मायने तो पोस्ट का कंटेंट रखता है ना कि अपने दोस्त ………एक तरह से वो पंच की कुर्सी पर विराजमान हैं और पंच को हमारा समाज परमेश्वर का दर्ज़ा देता है और परमेश्वर निष्पक्ष होता है यदि सभी अपनी अपनी ईमानदारी से कार्य करें तो इससे बेहतर आयोजन कोई हो ही नही सकता ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जब क़ोई पी अच् डी करता है या दोक्टरेट की उपाधि लेता हैं तो उसको अधिकार होता हैं
      की वो अपने काम का आंकलन अपने पसंद के व्यक्ति से करवा सके
      इसी प्रकार से किसी भी ग्लोबल इवेंट में भी जज को पसंद करने का अधिकार होता हैं जहां
      भी जज के नंबर का क़ोई भाग होता हैं
      इस से उस व्यक्ति को ये भरोसा होता हैं की उसके अपने संबंधो { बिगड़े / अच्छे } का क़ोई दबाव जज और खुद उस पर नहीं
      होगा .

      Delete
  9. अनुरोध है कि पूरी प्रक्रिया को जटिल न बनाएं। आपने जो भी अंतिम तिथि रखी है, त‍ब तक जितनी प्रविष्टियां आती हैं उन सबको चार बराबर भागों में बांट कर(यानी जितने निर्णायक हैं)निर्णायकों को दे देना चाहिए।
    यह बात ठीक है कि सब निर्णायक सारी रचनाएं नहीं देख सकेंगे, लेकिन रचना के चुनने के जो आधार आप लोगों ने बनाए हैं, उन पर तो उनके बीच आपस में विचार विमर्श के बाद सहमति होनी ही चाहिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जब क़ोई पी अच् डी करता है या दोक्टरेट की उपाधि लेता हैं तो उसको अधिकार होता हैं
      की वो अपने काम का आंकलन अपने पसंद के व्यक्ति से करवा सके
      इसी प्रकार से किसी भी ग्लोबल इवेंट में भी जज को पसंद करने का अधिकार होता हैं जहां
      भी जज के नंबर का क़ोई भाग होता हैं
      इस से उस व्यक्ति को ये भरोसा होता हैं की उसके अपने संबंधो { बिगड़े / अच्छे } का क़ोई दबाव जज और खुद उस पर नहीं
      होगा .

      Delete
  10. आज नारी ब्लॉग को कुछ नए रूप में नई पोस्ट्स के साथ देखा.विचारों में भी अच्छी ताजगी भरी सुगंध नजर आ रही है. महिलाओं को सशक्त बनाने की जो मुहिम अपने छेड़ी है उसे तो हर हIल में आगे लेकर जाना है. आपके साथ में हमारे जैसे असंख्य लोग जुड़ते जाते हैं. वैसे भी अपनी फील्ड में आप एक्सपर्ट हैं व अच्छे सुचारू तरह से नारी ब्लॉग को सम्हाल कर आगे बढा रही हैं. हम साथ हैं.आगे शीघ्र ही आपके दिए सब्जेक्ट्स पर नई पोस्ट्स भेज रही हूँ स्नेह से ,
    अलका मधसूदन पटेल
    लेखिका-साहित्यकार

    ReplyDelete
  11. हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1

    आज 15 अक्तूबर 2012 हैं , अंतिम तारीख इस आयोजन की प्रविष्टिया भेजने की . अभी तक 50 प्रविष्टि भी नहीं आई हैं .

    अंतिम तारीख अब 15 नवम्बर 2012 तक बढ़ा दी जाती हैं . नियमो में भी कुछ परिवर्तन किये जा रहे हैं

    अंतिम तारीख 15 नवम्बर 2012

    ब्लॉगर एक की जगह 2 प्रविष्टि भेज सकता हैं

    विषय पहले 3 थे

    नारी सशक्तिकरण

    घरेलू हिंसा

    यौन शोषण

    अब 3 और बढ़ा दिये गए है

    बलात्कार के मुख्य कारण

    कन्या भ्रूण ह्त्या के मुख्य कारण

    लड़कियों के लिये शादी की जरुरी / गैर जरुरी .

    बाकी सब नियम आप को इस लिंक को क्लिक करते ही मिल जाएगी

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.