August 03, 2012

बहन-रक्षा का प्रण लेने की जरुरत नहीं




अभी पिछले हीं दिन अखबार में छपी एक खबर में पढ़ा था बारहवीं की एक छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मुख्य नामजद अपराधी प्रशांत कुमार झा तीन बहनों का भाई है, उसकी बहन के बयान से शर्मिंदगी साफ़ झलक रही थी और छोटी बहन तो समझ भी नहीं पा रही उसके भाई ने किया क्या है | बस यही सोच रही थी की आज राखी के दिन क्या मनः  स्थिति होगी ऐसी बहन की जिसका भाई बलात्कार के जुर्म में जेल गया हो ...............

तेरे हिस्से की राखी आज जला दी मैंने 
इस बंधन से तुझको मुक्ति दिला दी मैंने 
अफ़सोस तेरी बहन होने के अभिशाप से छुट ना पाउंगी 
अपनी राखी की दुर्बलता पर जीवन भर पछ्ताउंगी 
मुझ पर उठी एक ऊँगली, एक फब्ती भी बर्दास्त ना थी 
सोचती हूँ कैसे उस लड़की का शील तुमने हरा होगा ?
वर्षों का मेरा स्नेह क्यूँ उस वक़्त तुम्हे रोक सका नहीं? 
क्यूँ एक बार भी उसकी तड़प में तुम्हे मेरा चेहरा दिखा नहीं?
इतनी दुर्बल थी मेरी राखी तुझको मर्यादा में बाँध ना सकी 
शर्मशार हूँ भाई, कभी तेरा असली चेहरा पहचान ना सकी
उधर घर पर माँ अपनी कोख  को कोस कोस कर हारी है
तेरे कारण हँसना भूल पिता हुए मौन व्रत धारी हैं 
सुन ! तेरी छुटकी का हुआ सबसे बुरा हाल है 
अनायास क्यूँ बदला सब, ये सोच सोच बेहाल है
छोटी है अभी 'बलात्कार' का अर्थ भी समझती नहीं 
हिम्मत नहीं मुझमे, उसे कुछ भी समझा सकती नहीं 
पर भाई मेरे, तु तो बड़ा बहादुर है, मर्द है तु 
उसको यहीं बुलवाती हूँ , तु खुद हीं उसको समझा दे 
बता दे उसे कैसे तुने अपनी मर्दानगी को प्रमाणित किया है 
और हाँ ये भी समझा देना प्यारी बहना को, वो भी एक लड़की है 
किसी की मर्दानगी साबित करने का वो भी जरिया बन सकती है 
अरे ये क्या, क्यूँ लज्जा से सर झुक गया, नसें क्यूँ फड़कने लगीं ?
यूँ दाँत पिसने , मुठ्ठियाँ  भींचने से क्या होगा ?
कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस से रक्षा कर पाओगे?
किसी भाई को बहन-रक्षा का प्रण लेने की जरुरत नहीं 
खुद की कुपथ से रक्षा कर ले बस इतना हीं काफी है 
जो मर्यादित होने का प्रण ले ले हर भाई खुद हीं 
किसी बहन को तब किसी रक्षक की जरुरत हीं क्या है?  

   

9 comments:

  1. मेरे भतीजे का राखी पर facebook status :---

    "भाई मेरी रक्षा तो मेरी दीदियाँ ही करती आयी हैं, तब से जब मैं स्कूल में मार खा कर आता था.. इसलिए मैं हर रक्षाबंधन पर वादा लेना चाहता हूँ कि जब भी मुझे मार खाने की नौबत आये तो ये कहीं आस-पास हों. मार चाहे लात-घूंसे वाली हो या फिर वक्त की मार."

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  2. मै नारी ब्लॉग पर कविता नहीं पोस्ट करने देती हूँ , पर अलोकिता मैने खुद तुम से कहा की तुम ये कविता पोस्ट कर दो क्युकी कभी कभी अपने नियम बदलने में बड़ी ख़ुशी होती . तुम नारी ब्लॉग की बड़ी प्यारी बेटी हो , बस ऐसे ही लिखती रहो

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  3. बिलकुल सही कहा... काश हम सभी यह प्राण ले पाएं!

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  4. बहुत-अच्छी, भावुक व यथार्थवादी कविता है.

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  5. आलोकिता ,
    तुम्हारे शब्दों की रोशनी दूर तक जाये !

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  6. हर माँ और बहन अपने बेटे और भाई को ऐसे ही पाठ शुरू से पढाये और उसके मनोमस्तिष्क को स्वस्थ मानसिकता प्रदान कर सके तो हर रिश्ते का एक सार्थक प्रयास होगा. आलोकित बहुत सुंदर लिखा.

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  7. bahut acchi abhiwayakti kash ki har bhai aisa karne ke pahle apni bahan ke bare me soche .....

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  8. बिलकुल सही कहा...
    स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत ............शुभकामनाएँ.........
    .............जयहिन्द............
    ............वन्दे मातरम्..........







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