May 25, 2012

बलात्कार क्या महज एक शब्द हैं??

 very disgusting i must say and repulsive to read

I posted a comment , i am sure it will not be published . How can someone be so insensitive

बलात्कार क्या महज एक शब्द हैं?? 
जिसको ले कर आप व्यंग के नाम पर कुछ भी परोस सकते हैं और दुसरो को मुस्कराने के लिये कह सकते हैं . 
हिंदी ब्लॉग जगत में जो ना पढने को मिल जाये .

पिछले एक हफ्ते में कम से कम 6 पोस्ट और अनगिनत टिपण्णी पढ़ चुकी हूँ जहाँ हिंदी ब्लोगिंग मे सौहार्द बनाए रखने की पुरजोर अपील हैं . लोग साधू बनगए हैं . अपने गलत आलेखों के लिये क्षमा मानकर उनको मिटाने का दावा कर रहे हैं . कुछ निरंतर अमन का पैगाम देते हैं , सामाजिक मुद्दों पर लिखने को कहते हैं पर कहीं भी जैसे लिंक मेने ऊपर दिया हैं उस पर किसी की कोई आपत्ति दर्ज होती नहीं दिखती हैं . तर्क होता हैं इग्नोर कर दिया . 
गलत को जो इग्नोर करते हैं वो कभी अपने अन्दर झाँक कर जरुर देखे की जब वो गलत का प्रतिकार करने वालो को सौहार्द और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं तो वो कितना सही हैं . 




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6 comments:

  1. बात तो सही है।

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  2. उल्लखित आलेख में जिस तरीके से बलात्कार के शिकार का मजाक उड़ाया गया है वह असामाजिक है। व्यंग्य दुधारी तलवार है। जब एक शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वह उलट कर वार करता है। यहाँ वह शिकार स्त्रियों का भद्दा मजाक बना रहा है। यह न केवल आपत्ति जनक है अपितु स्त्रियों के विरुद्ध भी है। लेखक को इस के लिए खेद व्यक्त करते हुए अपनी पोस्ट को हटा लेना चाहिए या फिर उस में पर्याप्त संशोधन करने चाहिए।

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  3. बलात्कार जैसे विषय को बहुत ही हल्के स्तर पर प्रयोग किया गया है.हालाँकि दूसरी ही लाईन में बलात्कार को लेकर उन्होने कुछ पुरुषों की सोच का जिक्र किया हैं.मुझे तो लगता हैं कि अपने व्यंग्य के जरिये वो खुद भी यही कर गए हैं.पोस्ट में आवश्यक संशोधन होने चाहिए.

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  4. संपादक जी,
    सदर नमस्कार,

    पिछले कई दशक से हमारे समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा देने के सम्बन्ध में एक निर्थक सी बहस चल रही है. जिसे कभी महिला वर्ष मना कर तो कभी विभिन्न संगठनो द्वारा नारी मुक्ति मंच बनाकर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता रहा है. समय समय पर बिभिन्न राजनैतिक, सामाजिक और यहाँ तक की धार्मिक संगठन भी अपने विवादास्पद बयानों के द्वारा खुद को लाइम लाएट में बनाए रखने के लोभ से कुछ को नहीं बचा पाते. पर इस आन्दोलन के खोखलेपन से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है शायद तभी यह हर साल किसी न किसी विवादास्पद बयान के बाद कुछ दिन के लिए ये मुद्दा गरमा जाता है. और फिर एक आध हफ्ते सुर्खिओं से रह कर अपनी शीत निद्रा ने चला जाता है. हद तो तब हुई जब स्वतंत्र भारत की सब से कमज़ोर सरकार ने बहुत ही पिलपिले ढंग से सदां में महिला विधेयक पेश करने की तथा कथित मर्दानगी दिखाई. नतीजा फिर वही १५ दिन तक तो भूनते हुए मक्का के दानो की तरह सभी राजनैतिक दल खूब उछले पर अब २०-२५ दिन से इस वारे ने कोई भी वयान बाजी सामने नहीं आयी.

    क्या यह अपने आप में यह सन्नाटा इस मुद्दे के खोख्लेपन का परिचायक नहीं है?

    मैंने भी इस संभंध में काफी विचार किया पर एक दुसरे की टांग खींचते पक्ष और विपक्ष ने मुझे अपने ध्यान को एक स्थान पर केन्द्रित नहीं करने दिया. अतः मैंने अपने समाज में इस मुद्दे को ले कर एक छोटा सा सर्वेक्षण किया जिस में विभिन्न आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक और धार्मिक वर्ग के लोगो को शामिल करने का पुरी इमानदारी से प्रयास किया जिस में बहुत की चोकाने वाले तथ्य सामने आये. २-४०० लोगों से बातचीत पर आधारित यह तथ्य सम्पूर्ण समाज का पतिनिधित्व नहीं करसकते फिर भी सोचने के लिए एक नई दिशा तो दे ही सकते हैं. यही सोच कर में अपने संकलित तथ्य आपके माध्यम से जनता की अदालत में रखने की अनुमती चाहता हूँ. और आशा करता हूँ मेरे इन विचारों को अपनी साईट के किसी उपयुक्त कालम में स्थान देने की कृपा करेगे तथा सम्बंधित विषय पर अपनी बहुमूल्य राय दे कर मुझे और समाज को सोचने के लिए नई दिशा देने में अपना योगदान देंगे.
    http://dixitajayk.blogspot.com/search?updated-min=2010-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&updated-max=2011-01-01T00%3A00%3A00-08%3A00&max-results=6

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  5. Arunesh c dave xxxxd3@gmail.com

    28 May (1 day ago)

    to me
    आदरणीय रचना जी


    व्यंग्यकार होने के नाते मुझे विरोध का सामना तो करना ही पड़ता है। परंतु निजी या लिंग के आधार पर अपमान का आक्षेप मुझे पहली बार प्राप्त हुआ है। कोई भी व्यक्ति जो मनुष्य होने का दावा करता है। वह स्त्री के अपमान के बारे मे सोच ही नही सकता। व्यक्ति जिसका जन्म स्वयं स्त्री की कोख से हुआ हो। वह किसी भी दूसरी स्त्री का अपमान करते हुये वस्तुतः अपनी ही मां का अपमान कर रहा होता है। आपने मैने क्या लिखा है वह न पढ़ कर। पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अर्थ समझा है जो कि उचित नही है। लेख के पहले ही पैरा मे मैने उन लोगो पर आक्षेप किया है। जो उपरोक्त उक्ती को विनोद के तौर पर देखते हैं।

    खैर अब चूंकि विवाद उठ ही गया है सो मै शीर्षक बदल कर "सरकारी बलात्कार न टल सके तो मजा लो" कर रहा हूं। आशा है इस हेडिंग से आपको आपत्ती न होगी। वैसे मुझे आपको धन्यवाद भी देना है कि आपकी नारी पर पोस्ट से। कई नये पाठक पाठिकाओ का मेरे ब्लाग पर आगमन हुआ है। अनुरोध है कि आगे मेरे किसी भी लेख पर आपत्ती होने की सूरत मे आप मुझसे संपर्क कर अपनी स्थिती स्पष्ट करने का मौका देंगी।

    आपका ही

    अरूणेश सी दवे

    recd via email

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