राम कृष्ण हरिजन ने एक दस माह की बच्ची के साथ मुंबई में बलात्कार किया था । १० जनवरी २००६ की बात हैं ये । अपने पडोसी की बच्ची को वो उठा कर लेगया था । बच्ची की रोने की आवाज सुन कर उसकी माँ ने जब उसको खोजा तो उसको पास के एक मैदान में बच्ची मिली और राम क्रिशन हरिजन वहाँ से भाग गया । बच्ची के निजी अंगो से खून बह रहा था ।
पुलिस ने इसको बलात्कार का मामला ना बनाया केवल sodomy कह कर शिकायत दर्ज की ।
लोअर कोर्ट ने १० साल की सजा सुनाई रेप मान कर लेकिन
मुंबई हाई कोर्ट ने सजा को ७ साल कर दिया क्युकी
राम कृष्ण हरिजन उत्तर प्रदेश से दूर मुंबई में रहता था
वो अपने घर परिवार से दूर था
अपनी बीवी से दूर था
इस लिये उसका "कण्ट्रोल " अपने ऊपर से ख़तम होगया
हाई कोर्ट मे राम कृष्ण के वकील अरफान साईट की दलील की "कंट्रोल " ख़तम होगया को सही मानते हुए जस्टिस ऍम अल तहलियानी ने राम कृष्ण का जुर्म
बलात्कार नहीं माना
सजा १० साल से घटा कर ७ साल कर दी
और क्युकी वो ६ साल सजा काट चुका हैं इस लिये उसको भी ध्यान मे रखना चाहिये पर जोर दिया
इसके अलावा जस्टिस का मानना था की लोअर कोर्ट के सामने भी अगर ये तथ्य रखा गया होता तो वहाँ भी इतनी सजा ना मिलती ।
इस नाइंसाफी के खिलाफ एक अभियान चल रहा हैं जहां तमाम लोग इस सजा को कम करने का विरोध कर रहे हैं
आप भी वहाँ जा कर अपना विरोध दर्ज करवा ही सकते हैं
विरोध दर्ज करवाने के लिये लिंक हैं http://www.ipetitions.com/petition/justice-for-child-abuse-victims/
कितनी अजीब बात हैं की अगर क़ोई पुरुष इस प्रकार का दुष्कर्म करे तो हम उसको माफ़ कर दे क्युकी उसके पास अपनी काम वासना की पूर्ति के लिये उसकी पत्नी की देह उपलब्ध नहीं थी ।
एक तरफ हम नोर्वे सरकार की आलोचना कर रहे हैं जहां बच्चो के हित में कानून बने हैं और दूसरी तरफ हम ऐसे लोगो को माफ़ करना चाहते हैं । इनलोगों को माफ़ी देने का मतलब हैं की इनको छोड़ देना ताकि ये अपने कुकर्म दोहरा सके ।
एक दो साल की बच्ची फलक १ महीने से अस्पताल में हैं
उसको लाने वाली १४ साल की बच्ची सेंटर में हैं
हम कितना भी भावना मे बह कर बच्चो के प्रति अपनी संरक्षण की बात को जस्टिफाई कर ले लेकिन आज भी एक २ साल की बच्ची फलक को १४ साल की बच्ची अस्पताल लाती हैं , फलक का शरीर लहू लुहान हैं और १४ साल की बच्ची का शोषण होता रहा हैं
भारत में प्रवति हैं की हम बातो को छुपाने में माहिर हैं , हमारे यहाँ बच्चो की सुरक्षा के लिये कोई कानून नहीं हैं . बच्चो को मरना पीटना और उनसे काम करवाना आम बात हैं और उनका यौन शोषण करना भी अब आम बात ही हो जायेगी अगर राम कृष्ण हरिजन जैसे लोग खुले घुमेगे ।
आज एक हैं कल ना जाने ये संख्या कितनी होगी
विनम्र आग्रह हैं इस लिंक पर अपनी आपति दर्ज करवा दे
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sach mei ye shame shame hai humare kanoon or inko man ne walo pe, aise logo ko fasi de di jaye, jo balatkar jaisa jaghanya apradh krte h
ReplyDeleteसजा कम करने की दलील बहुत ही घटिया है... बच्चो को साथ इस तरह की घिनौनी हरकत करने वालों को 10 साल की सज़ा कम करके 7 साल नहीं बल्कि बढ़ा कर सज़ा-ए-मौत मिलनी चाहिए.
ReplyDeleteहमने अपनी आपत्ति दर्ज कर दी है...
जितना हिंसक-दानवी कृत्य रामकिशन ने कियी है, उससे कम हिंसक फ़ैसला जजों का नहीं है. इस घिनौने जघन्य कृत्य पर यदि कोर्ट इस बात पर छूट देती है कि रामकिशन की पत्नी वहां नहीं थी तो समझिये कि पूरी न्यायपालिका ऐसे गुनाहों की पक्षधर है. कल के दिन फिर कोई रामकिशन पांच महीने की बच्ची के साथ पत्नी न होने के एवज़ में दुराचार करेगा. सिलसिला रुकने की जगह बढता ही जायेगा. बहुत शर्मनाक है.
ReplyDeleteजहां तक नॉर्वे का मामला है, तो जितना पक्ष दिखाई दे रहा है, वो जायज़ नहीं है.
कंट्रोल न रहने की दलील निहायत बेहूदा है...इस दलील पर चले तो किसी भी लड़की या महिला का देश में रहना मुश्किल हो जाएगा...कड़े शब्दों में मेरी आपत्ति दर्ज की जाए, ऐसे नरपिशाच को दस साल नहीं कम से कम आजीवन कारावास दिया जाए...
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जय हिंद...
sach much ye galat baat hai
ReplyDeleteबेबुनियाद तर्क है कंट्रोल ना कर पाने की विवशता कतई तार्किक नहीं है!
ReplyDeleteइट्स शेमफुल!
कोलकाता में एक गुजराती परिवार की बच्ची के साथ ऐसा ही हुआ था.. बलात्कार और ह्त्या.. पीड़ित परिवार न्याय के विलम्ब के कारण गुमनामी के अँधेरे में छिप गया.. अपराधी को फाँसी हुई (बलात्कारी को नहीं मिलती, हत्यारा था इसलिए मिली सज़ा).. जिस सुबह उसे फाँसी डी जानी थी, उसके पिछली रात लोग मोमबत्तियाँ जलाए उसकी रिहाई की दुआ मांग रहे थे.. अलीपोर जेल के सामने!!
ReplyDeleteबेहिस समाज!!
ये निर्णय और इसी तरह के और निर्णय यह सिद्ध करते हैं कि हमारे न्यायालय भी पितृसत्तात्मक सोच से मुक्त नहीं हैं. सच में, ऐसे लोगों को आजीवन कारावास का दंड दिया जाना चाहिए ताकि वो दोबारा ऐसे घृणित अपराध ना कर सकें.
ReplyDeleteकमाल है, ऐसा तर्क(?)!
ReplyDeleteऐसे भेडिये को सिर्फ सजा ए मौत ही नहीं बल्कि उससे पहले कठोर यातनाएँ देनी चाहिए.
ReplyDeleteअपनी आपत्ति दर्ज करवा दी है...
पोस्ट के विषय में कुछ और कहना चाहूँगा.
बच्चों के लिए कानून बनाए गए हैं और यदि जरूरी हो तो और बनाए जाने चाहिए,मुझे नही लगता कि इससे किसीको भी एतराज होगा लेकिन कानून कैसे हों इसको लेकर सभी के विचार अलग अलग हो सकते हैं.नार्वे सरकार वाला मामला अलग था उसके बारे में यहाँ कुछ कहना सही नहीं होगा.
और रचना जी...आप किसीसे भी पूछकर देख सकती हैं बल्कि आप तो खुद भी देख रही होंगी कि बच्चों को लेकर समाज में जागरुकता और संवेदनशीलता पहले की तुलना में बढी ही हैं उनकी इच्छा अनिच्छाओं का ज्यादा रखा जाता हैं और अब बच्चों की पिटाई पहले जितनी नहीं होती.खासकर शहरी मध्यमवर्गीय माता पिता बच्चों को लेकर कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं.ऐसे ही बच्चों से घर का काम भी अब पहले जितना नहीं कराया जाता.मीडिया की सक्रिय भूमिका के कारण हमें लगता हैं कि बच्चों पर ज्यादती के मामले बढ रहे हैं जबकि पहले की तुलना में अब बहुत परिवर्तन आया हैं.और मुझे नहीं लगता कि इसमें कानून की कोई भूमिका रही हैं.
कानून बनाए जाने चाहिए लेकिन यदि घरवाले ही बच्चों के प्रति लापरवाह हैं तो कानून ज्यादा कुछ कर पाएगा इसमें संदेह हैं.
IndianHomemaker के ब्लॉग पर भी यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
ReplyDeleteसर्वसम्मति से इस फ़ैसले की भर्त्सना की गई है।
Petition हमने भी sign की।
जी विश्वनाथ
रचना जी, मेरा कमेंट फिर गायब है :(
ReplyDeleteहद हो गई बेशर्मी की यह कोई बात हुई की कंट्रोल नहीं हुआ एक बार को यह बात मान भी ली जाये तो ऐसे कंट्रोल के लिए बाज़ार में बहुत सी सुविधाएं है। उसके बावजूद भी एक मासूम बच्ची के साथ ऐसा दुर व्यवहार.... उसे तो ऐसी कोई सजा मिलनी चाहिए की कोई और यदि इस विषय में ऐसा कुछ सोच भी रहा हो तो,तो वो एक बार नहीं सौ बार 100 सोचे।
ReplyDeleteयह तो बहुत बेहूदा तर्क दिया है...... ऐसे तो लाखों लोग अपने परिवारों से दूर रहकर कमाते है तो क्या ऐसा करना उचित माना जायेगा ?
ReplyDeleteयह तो एक मज़ाक़ लगता है, कोर्ट का न्याय नहीं।
ReplyDelete(न्यायाधीश के बैकग्राउंड का पता लगाना चाहिए। )
इस दलील के आधार पर सोचिए यह स्थिति यदि आए कि पत्नी मर ही जाए तो ऐसे लोगों को और भी सहानुभूति दिखाएगी हमारी अदालतें।
जिनका खुद पर कण्ट्रोल नहीं रहता उनके लिए भी खास जगहें बनी हुई हैं, जैसेकि जेलें या पागलखाने|
ReplyDelete//जिनका खुद पर कण्ट्रोल नहीं रहता उनके लिए भी खास जगहें बनी हुई हैं, जैसेकि जेलें या पागलखाने|//
Deleteएकदम सही बात कही आपने!
पहले तो वह बेचारा, पत्नी से दूर अकेला, साल में एक बार तो छुट्टी लेकर मनभर पत्नी का बलात्कार कर आता होगा. फिर भी कंट्रोल नहीं था. अब ७ साल बाद जब जेल से निकलेगा तो क्या हाल होगा? स्त्री जाति ही नहीं शायद वह छोटे लड़कों को भी न छोडेगा. सो उसके जेल से निकलते समय 'सावधान कंट्रोलविहीन बेचारे जी खुले घूम रहें हैं' की घोषणा करवा देनी चाहिए या फिर बच्चियों,स्त्रियों, बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनकी पत्नी को बुलवा कर उन्हें तुरंत हनीमून के लिए भेज देना चाहिए. पत्नी साथ न जाना चाहें तो भी.आखिर वह चाहने न चाहने वाली कौन होती है?
ReplyDeleteदिन रात ऐसी ख़बरें सुनते सुनते हम पत्थर होते जा रहें हैं.
घुघूतीबासूती
कम से कम स्त्री की चिंताओं से लैस मंचों पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए "दुष्कर्म" या "कुकर्म" जैसे शब्दों का प्रयोग न केवल बंद हो, बल्कि इसके खिलाफ अभियान भी चलाया जाए। बलात्कार को कृपया जेब काटने जैसे "दुष्कर्मों" के बराबर करके न देखें, इसके बारे में ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है। गुस्से में यह न भूलें कि एक शब्द से एक व्यवस्था बनती है। "दुष्कर्म" या "कुकर्म" जैसे शब्द बलात्कार शब्द की भयावहता को हम करने के लिए गढ़े गए हैं और धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जा रहे हैं, समूचे मीडिया में और जिस पुरुष सत्तावाद को यह सुविधाजनक लगता है, उन सबकी भाषा में।
ReplyDeleteइस मसले पर आराधना चतुर्वेदी मुक्ति ने अपने ब्लॉग पर लिखा भी है-
http://feminist-poems-articles.blogspot.in/2012/02/blog-post.html
इस पोस्ट में जहाँ दुष्कर्म शब्द का प्रयोग हुआ हैं वहाँ कर्म को लेकर हुआ हैं यानी किया हुआ गलत काम या वो काम जो गलत है और किया गया हैं
Deleteबलात्कार शब्द को बलात्कार और रेप ही कहा गया हैं
मेरा आग्रह है कि "बलात्कार" और "दुष्कर्म" के घालमेल के खिलाफ सक्रिय होने की जरूरत है।
ReplyDeleteइस लेख में यह लाइन है-
"कितनी अजीब बात हैं की अगर क़ोई पुरुष इस प्रकार का दुष्कर्म करे तो हम उसको माफ़ कर दे क्युकी उसके पास अपनी काम वासना की पूर्ति के लिये उसकी पत्नी की देह उपलब्ध नहीं थी ।"
इसमें "इस प्रकार दुष्कर्म" का अर्थ बलात्कार ही है। कुकर्म का प्रयोग भी इसी अर्थ में किया गया है।
लेकिन कई बार यह असावधानीवश और चलन में होने की वजह से होता है। इससे न सिर्फ बचने की जरूरत है, बल्कि जहां ऐसे प्रयोग हों, उस पर आपत्ति जताया जाना चाहिए।
व्यवस्था बेहद बारीकियों में अपना खेल खेलती है और खुद को बनाए रखने का यह उसका एक बड़ा हथियार है। यह साजिश शब्दों के प्रयोग के स्तर सबसे गहरी है।