एक वार्तालाप के अंश
कुछ दिन पहले २ समधी साथ बैठ कर चाय पी रहे थे । बैठक लड़की के पिता के घर पर थी । एक मित्रवत चाय संध्या ।
दोनों समधी ७५-८० वर्ष के आस पास थे । लड़की के पिता के लडकियां ही थी और लडके के पिता के लडके ही थे ।
दोनों समधी जिन्दगी के पहलु पर बात कर रहे थे की कैसे दोनों की तनखा १९६७ में लगभग ६०० रूपए प्रतिमाह होती थी ।
लडके के पिता ने कहा आज भी उनको अपना एक प्लाट बेचना हैं जिसकी कीमत इस समय ९० लाख हैं । इससे पहले भी वो एक प्लाट बेच चुके हैं यानी उन्होने अपनी कमाई में से सावधानी से काफी कुछ बचा लिया था और जोड़ कर भी रखा हैं ।
लड़की के पिता को समझ नहीं आया वो इस गणित का क्या और कैसे जवाब दे । बचाया तो उन्होने भी था , दो प्लाट तो उन्होने भी खरीदे थे लेकिन अब उनके पास बेचने के लिये वो प्लाट हैं नहीं । दोनों प्लाट बेच कर ही तो उन्होने अपनी दोनों बेटियों की शादी की थी । २०० गज का अपना प्लाट बेच कर ही तो १९८८ में २५०००० रुपये में इन्हीं के यहाँ उन्होने अपनी बड़ी बेटी का विवाह किया था । हाँ दहेज़ "नहीं माँगा " गया था । अगर वो प्लाट आज होता तो ९० लाख से ऊपर का ही होता ।
यही फरक हैं बेटे के पिता में और और बेटी के पिता मे। बेटे के पिता को बचत कर के सम्पत्ति जोडने का अधिकार हैं और वही बेटी का पिता सम्पत्ति बेच कर बेटी ब्याहता हैं ।
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यही विडंबना है और यह भी एक मूल कारण है बेटा-बेटी में फर्क होने का...
ReplyDeleteबहुत कुशलता से सामाजिक विडंबना को उजागर किया है।
ReplyDeleteहमारे समाज की बदकिस्मती और एक कडवी सच्चाई है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सार्थक पोस्ट |
ReplyDeleteदुखद - लेकिन अधिकाँश परिपेक्ष्यों में सच |
ReplyDelete:(
रचना जी हो सकता हैं पहले ऐसा कोई स्पष्ट विभाजन हो लेकिन आज तो लड़की या लड़के के पिता की आर्थिक स्थिति का ही ज्यादा फर्क पड़ता है.आपको ऐसे बहुत से पिता मिल जाएँगे जिन्होंने बेटे की शादी के लिए गाँव की जमीन बेच दी और फिर भी कर्ज में दबे हुए है.बस फर्क ये है कि लड़का यदि लायक हुआ तो अपनी कमाई से पिता की कुछ मदद कर देगा जबकि लड़की के मामले में ऐसा नहीं होता समाज के नियमों के चलते.
ReplyDeleteसंकेतों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने।
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