April 30, 2011

ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध

ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध

आभासी दुनिया हैं ये और यहाँ कौन क्या हैं और क्या दिखता हैं दोनों में अंतर हैं । लेकिन ये तो रीयल दुनिया में भी होता हैं । नकाब तो वहां भी हैं हर चहेरे पर ।

हम आभासी दुनिया में क्यूँ आये हैं ? कारण अनगिनत हैं सबके अपने अपने लेकिन जो लोग आभासी दुनिया में रिश्ते खोजने आये हैं उनसे कुछ प्रश्न हैं
क्या जब आप किसी को भाई/बहिन कहते हैं , बड़ा भाई/बहिन या छोटा भाई/बहिन तो क्या आपके मन में उसके लिये वही स्नेह , सम्मान और पवित्रता हैं जो एक भाई/बहिन के लिये होती हैं ।
क्या आप संबंधो की शुचिता को ध्यान रखते एक बार सम्बन्ध बनाने के बाद । उस से भी ज्यादा जरुरी हैं क्या आप जिस व्यक्ति से संबध बना रहे हैं उस से पूछते हैं की उसके मन में भी आप के प्रति वही भावना हैं या नहीं ? हो सकता हैं वो आप के प्रति आसक्ति रखता / रखती हो , आपके लेखो के प्रति आसक्ति रखता / रखती हो ?? तब क्या उसको भाई बहिन के सम्बन्ध में बंधना उचित हैं ? और ये भी हो सकता हैं आप का अपना व्यवहार , चैट , ईमेल इत्यादि उसके लिये भ्रामक हो रहे हो क्युकी आभासी दुनिया में शब्द दिखते हैं भावना नहीं दिखती , मनो भाव नहीं दिखते ।

क्या जिस तिस को भाई , बहिन , माँ , दीदी इत्यादि संबंधो में बांधना ब्लोगिंग हैं ? संबध बनाने में क्या बुराई हैं कोई नहीं पर बिना परखे बनाना क्या उचित हैं और अगर बना लिये हैं तो उनका बार बार उल्लेख करना पोस्ट में और टीप में कितना सही हैं ???

बहुत से महिला ब्लोगर समय समय पर बताती रही हैं अपने अनुभव लेकिन मुझे हमेशा लगता हैं गलती अपनी हैं रियल दुनिया के संबंधो से भाग कर आभासी दुनिया में आये हैं और इसी लिये यहाँ सम्बन्ध खोज रहे हैं । अपनी निजी बाते एक दूसरे से बाँट कर अपने मन हल्का करने की चेष्टा में उस दूरी को हम ख़तम कर रहे हैं जो आभासी दुनिया का शाश्वत सच हैं । जिनको रियल दुनिया की नजदीकियां जब परेशान करती हैं तो वो आभासी दुनिया में आते हैं लेकिन फिर यहाँ भी आकर वो संबंधो में बांध कर / बंध कर , प्रगाढ़ मित्र बन कर कर एक दूसरे को दंश देते हैं ।

आज ४ ऐसी ही पोस्ट नज़र में आई हैं जो आपस मे जुडी हैं और आभासी संबंधो की सचाई को बयान करती हैं । पोस्ट आप खोज कर पढले । मैने तो केवल रीवीयु दिया हैं अपनी नज़र से ।

22 comments:

  1. रचना,

    ये तुमने बहुत सही लिखा है की आभासी दुनियाँ उतनी ही रियल और फ्रौड़ हो सकती है जितनी की सामने वाली दुनियाँ. किसी से दूर बैठ कर और सिर्फ नेट से जुड़ कर उसके भावों और भावनाओं को उसकी अभिव्यक्ति से ही जाना जा सकता है. ये हम पर निर्भर करता है की हम उसको कितना गंभीरता से लेते हैं. कहीं इंसान बहुत गहरे तक जुड़ जाता है लेकिन इन रिश्तों को निभा कौन पता है ये बाद की बात है. ये जरूरी नहीं है की हम किसी रिश्ते का नाम ही दें फिर भी अगर देते हैं है तो फिर उनकी गरिमा को बनाये रखने की क्षमता होनी चाहिए. रिश्ते इतने हल्के नहीं होते हैं. अगर हम मित्र भी हैं तो उस मित्रता के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए.

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  2. एक पोस्ट तो पढ़ ली है और उस पर अपनी टिपण्णी भी दी है पर बांकी की तीन कहाँ हैं? जहाँ जहाँ खोज सकता था खोज लिया. चलो कोई बात नहीं ब्लॉगजगत में भी देर हैं अंधेर नहीं.

    ब्लोगीय संबंधों पर आपके विचारों से भी सहमत हूँ.

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  3. रचना जी की बात से मैं एक दम से सहमत हूँ.

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  4. जब नाम ही आभासी दुनिया रखा है तो आभास की तरह ही लें |और आभास तो महज आभास ही है न ?प्रत्यक्ष तो नहीं ?
    बाकि रेखा जी की बात से सहमत |
    रिश्ते बनाना जितना आसान है निभाना उससे भी कठिन |

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  5. हर कोई इस आभासी दुनिया में अलग अलग मकसद और सोच ले कर आया है कोई एक नियम कायदा या बात सभी पर लागु नहीं कर सकते है | रही बात रिस्तो के गलतफहमी की या रिश्ते बनाने की तो ये सब वास्तविक दुनिया में भी होता है यदि ये यहाँ भी हो रहा है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योकि यहाँ लिखने वाले लोग किसी और दुनिया से नहीं आये है वो भी उसी वास्तविक दुनिया से है जहा ये सब होता है | जिस तरह यहाँ लोग हर दुसरे तीसरे को अपना भाई बहन दोस्त बनाते रहते है ऐसे लोग वास्तावाविक जीवन में भी यही करते है ये तो हम पर है की हम उन्हें कितना गंभीरता से ले या उसे महत्व दे | जिस तरह यहाँ मैंने कई खासकर युवाओ को महिलाओ को दीदी संबोधित करते और फिर उन्हें ही सार्वजनिक रूप से भला बुरा यहाँ वहा लिखते पढ़ा है वैसा ही वास्तविक जीवन में भी देखा है कम से कम मेरे लिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है लोग ऐसे ही होते है वो कही भी रहे |

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  6. दुनिया प्रत्यक्ष हो या आभासी,दुनिया ही है...ब्लॉग लिखने वाले कोई दुसरे गृह के प्राणी तो हैं नहीं की प्रत्यक्ष दुनिया से अलग होंगे...जैसे यहाँ अच्छे बुरे लोग हैं,वैसे वहां भी हैं...अब जैसे अपने आस पास संपर्क को उम्र के हिसाब से हम संबोधित करते हैं और आगे बढ़कर यदि उक्त व्यक्तित्व सम्बन्ध संबोधन की गरिमा निबाहता हुआ दिखा तो सम्बन्ध आत्मीयता में बदलते हैं,नहीं तो चलो भाई राम सलाम...
    दोनों ही जगह यही हिसाब किताब चलता है और मुझे इसमें कोई हर्ज नहीं दीखता...
    हमारे आस पास चचेरे ममेरे या इसी तरह के संबंधों वाले भाई बंधू खराब नीयत वाले नहीं होते हैं क्या....
    हाँ,यह अवश्य है की अन्देखने अनजाने व्यक्तित्वों की जांच परख कर तभी कुछ गोपनीय उनसे सांझा करना चाहिए...यह स्त्री पुरुष दोनों पर लागू होती है...

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  7. बढियां रिव्य्यू -जब रक्त के सम्बन्ध मौजूद हों तो पाखण्ड के सम्बन्ध बनाए क्यूं जायं ?
    ब्लड इज थिकर दैन वाटर ...
    भाई बहन का सम्बन्ध बेटे मां का अनावश्यक सम्बन्ध क्यों ?
    दोस्त होना क्या कुछ कमतर है ?

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  8. आपकी पोस्ट में प्रश्नों की भरमार है रचना जी और जाहिर है कि उनका उत्तर एक पंक्त्ति में दिया जाना तो कतई संभव नहीं है । जहां तक आभासी दुनिया के रिश्तों की बात है तो सबसे पहली बात तो ये कि मुझे तो हिंदी ब्लॉगिंग आभासी से वास्तविकता की ओर बढती ही लगी है हमेशा । हां रिश्ते बनने बनाने , उन्हें निभाने टूटने में वही सारी प्रक्रियाएं यहां भी लागू होती हैं जो वास्तविक दुनिया में , लेकिन एक साथ ही सबको कटघरे में खडा करना भी उचित नहीं जान पडता और फ़िर ये भी जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति आभासी दुनिया में वास्तविक दुनिया से भाग कर या उससे बचने के लिए ही आया हो ..वैसे आपके प्रश्न विचारणीय तो हैं ही । शुक्रिया

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  9. विचारोत्तेजक पोस्ट।

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  10. मैं आपकी सोच से पूरी तरह सहमत हूँ , ब्लॉग अभिव्यक्ति का एक साधन है.......जहाँ तक जुड़ाव की बात है हम मनुष्य होने के नाते एक दूसरे से जुड़े तो है ही.....क्या इतना पर्याप्त नहीं है.......एक दूसरे के विचारों को समझने और उनका सम्मान करके ही अच्चा माहौल बनाया जा सकता है......बाकी सब व्यर्थ की बातें है....या चाटुकारिता है शायद (सब के लिए नहीं )

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  11. क्या बात है रचना जी ,
    इधर कुछ दिनों से मैं भी इसी विषय पर लिखना चाह रही थी .. किसी लेखक/लेखिका की रचनाओं को पसंद करने के लिए उसे भाई , बहन,बेटा ,बेटी , मित्र का संबोधन देना आवश्यक क्यों है ...किस तरह के बुद्धिजीवी हैं हम लोंग!

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  12. आपके इस विचार से मैं आंशिक रूप से सहमत हूँ. क्योंकि जहाँ कुछ लोग रिश्तों का प्रयोग सिर्फ़ किसी के पास आने के लिए आवरण के रूप में करते हैं, वहीं कुछ लोगों के मन में सम्बन्धों के प्रति आदरभाव होता है. खासकर बहनों में आपस में एक ख़ास तरह का बहनापा कायम हो जाता है.
    खैर ये इस पर निर्भर करता है कि आप सम्बन्धों को वास्तविक जगत में किस तरह लेते हैं. लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि किसी को किसी रिश्ते में बाँधने से पहले उससे पूछ लेना चाहिए. मेरे साथ दो ऐसी घटनाएं हुयी हैं और दोनों के अलग-अलग परिणाम हैं.
    एक लड़के ने मुझे दीदी कहना शुरू किया और फिर बमेरे ब्लॉग पर ऊटपटाँग के कमेन्ट करने लगा, तो मुझे भी बुरा लगा और ये बात मैंने सार्वजनिक रूप से कह भी दी कि लोग एक ओर तो दीदी कहते हैं, दूसरी ओर उलटे-पुल्टे कमेन्ट करते हैं.
    दूसरी ओर रश्मि रविजा दी को मैंने एक बार कमेन्ट में दीदी लिख दिया. फिर मुझे लगा कि पता नहीं उनके मन में मेरे लिए ऐसी भावना है कि नहीं. किसी को यूँ ही रिश्ते में बांधना ठीक नहीं. तो मैंने उन्हें फिर जी लगाकर संबोधित किया, इस पर उन्होंने मुझसे कहा कि तुमने एक बार दीदी कहा है तो दीदी ही कहा करो. तब से मैं उन्हें दी ही कहती हूँ.
    इसलिए मेरे ख्याल से हर रिश्ता बनाने के पीछे अलग-अलग लोगों का अलग-अलग मंतव्य होता है. ज़रूरी नहीं कि कोई वास्तविक दुनिया के रिश्तों से भागकर ही ऐसे रिश्ते बनाना चाहता हो. कभी-कभी ये भावना दिल से आप ही निकलती है और उस पर ऐसे तर्क नहीं किये जा सकते. मैं अपनी दीदी के बहुत करीब हूँ क्योंकि माँ के जाने के बाद उन्होंने मुझे माँ की ही तरह पाला है. मुझे इस सम्बन्ध को कहीं और ढूँढने की ज़रूरत नहीं थी, इसके बाद भी रश्मि दी के लिए मेरे मन में दीदी जैसी ही भावना आयी क्योंकि वो बहुत केयरिंग हैं.
    इसलिए मेरे ख्याल से हर मामले को एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता. हाँ जो रिश्ता मन से नहीं किसी स्वार्थवश बनता है, उसकी असलियत एक दिन खुलती ही है, चाहे वो वास्तविक जगत हो या आभासी दुनिया.

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  13. वास्तविक दुनिया के वास्तविक रिश्तेदारों की कहानियाँ भी कम सुनने को नहीं मिलतीं।
    हर रिश्ते में चाहे वह आभासी हो या वास्तविक एक सावधानी जरूरी है।

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  14. क्या कहूँ आपसे निर्भय हो?
    जिसमें ना वय संशयमय हो?
    कहने में पिय जैसी लय हो.
    जिसकी हिय में जय ही जय हो.

    या बहूँ धार में धीरज खो ?
    तज नीति नियम नूतनता को ?
    नारी में बस देखूँ रत को ?
    रसहीन करूँ इस जीवन को ?

    या सहूँ हृदय की संयमता ?
    घुटता जाता जिसमें दबता ?
    नेह श्रद्धा भक्ति औ' ममता.
    क्या छोड़ सभी को, सुख मिलता ?

    ऐ! कहो मुझे तुम भैया ही
    मैं देख रहा तुममे भावी
    सपनों का अपना राजभवन
    तुमसे ही मेरा राग, बहन!

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  15. आभासी दुनिया में लोग तो वास्तविक दुनिया के ही होते हैं...
    बाहर भी हम कई बार धोखा खा जाते हैं रिश्तों में फिर यहाँ ऐसा हो तो कोई बड़ी बात नहीं....

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  16. देखिये ,सब मनुष्य हैं .
    और सब के अन्दर गुण,दुर्गुण सब हैं
    गुण को बढ़ाना चाहिए
    दूदुर्गुण को दूर करना चाहिए..

    रचनाएं जो हम साझा करते हैं
    उसमे हमें आत्म संतुष्टि मिलती है

    और रचनाओं को पढ़कर एक सात्विक दृष्टि मिलती है

    टिप्पणियां देना और भाई,बहिन ,दीदी, आदि कहना
    में कोई बुराई नहीं है ,पर इस आलेख के द्वारा रचना जी ने
    जो बताया उससे सहमत भी हूँ हमारा मुख्य प्रयोजन

    "असतो मा सद्गमय " होना चाहिए
    और सब रचनाओं के नदियों को एक ही क्रांति के सागर में मिलना है
    तब सब मिलकर रहें ..

    रिश्ते तो बिना नाम के भी बनते हैं ..जैसे कलम से लेखक का..
    वृक्षों से माली का ....
    रचना जी की ये पोस्ट मुझे बुरी नहीं लगी ..

    क्योंकि सभी को अच्छे देखना चाहिए और
    स्वयं को निखारने का प्रयत्न करते रहना चाहिए

    परखना चाहिए दूसरों को
    पर उसे संवारने ,हौसला देने की भी कोशिश करनी चाहिए

    आत्निर्भर बन कर स्वयं पर विश्वास करनी चाहिए
    मर्यादित लेख ही लिखना चाहिए जनमंच पर ...

    रचनाएँ ही रहेंगी अमर ,टिप्पणियां नहीं ,,,,

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  17. रिश्ते चाहे वास्तविक जीवन के हों या आभासी जीवन के , पूर्ण परख के बाद ही बनने चाहिये। आभासी माध्यम से रिश्ते बनाने में ठगे/धोखित होने की संभावनाएँ सर्वाधिक रहती हैं, क्योंकि इसमें पूर्ण परख करने की संभावनाशीलता अत्यंत न्यून होती है। वास्तविक दुनिया इस ढ़ंग से ज्यादा परख का स्पेस देती है, ज्यादा आयाम देती है। फिर भी आभासी दुनिया में अच्छे रिश्ते जैसा कुछ दिख रहा है तो
    १- कोई एक पक्ष शातिर है और दूसरे पक्ष को मूर्ख बनाने की ट्रिक में कामयाब है। या..
    २- किसी एक का स्वार्थ है , जिसमें दूसरा दुहा जा रहा है। या..
    ३- कोई एक पक्ष मनोरोगी है, या दोनों पक्ष। या..
    ४- दोनों पक्ष आभासी से आगे निकल वास्तविक माध्यम में भी एक-दूसरे से परखित हैं, या समझ के किसी स्तर तक आ चुके हैं।
    ५- कोई एक पक्ष सीधा है पर आत्मसमीक्षा का भाव नहीं है उसमें। उसे दूसरे की कही बात पर विश्वास करने की आदत है, कभी बड़े हादसे न हुये हों, और बेवकूफी रिस्क लेने की हद तक उछल आयी हो। ऐसी स्थिति में दूसरा पक्ष नाटकीय शातिरी कर रहा/किया हो। ( इसका भुक्तभोगी आभासी माध्यम में मै स्वयं हूँ)
    ६- दोनों पक्ष मूर्ख हों।
    ७- दोनों पक्ष ठीक हों। ईश्वर का विरल संयोग हो, जोकि .००१ % ही पाया जाता है।

    जब इतने जोखिम हों तो आभासी माध्यम में रिश्ते काहे बनाये जाएँ भला!! बेहतर है इस माध्यम में हम एक दूसरे के बिचारों से मिलें, इस प्रक्रिया में व्यक्तित्व का विकास होगा, समय व्यर्थ न होगा, सार्थकता की संभावनाएँ सर्वाधिक होंगी, कोई दबाव या जोर - जबरदस्ती नहीं होगी किसी पर, काम-से-काम की बात होगी। अनर्गलताओं की स्थिति-अवस्थिति नहियै बनेगी। सादर..!

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  18. अमरेन्द्र का उपसंहार लाजवाब है

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  19. .
    .
    .
    रचना जी,

    विचारोत्तेजक आलेख,

    सब अपनी कह रहे हैं तो मैं भी अपना रूख बता ही दूँ, एक भरा-पूरा जीवन जी रहा हूँ, अगर मुझे कुछ और भाइयों-बहनों- गुरूओं-चाचियों-चाचाओं-आंटियों- अंकलों-माताओं-पिताओं-प्रेमिकाओं आदि आदि की जरूरत कभी महसूस होगी तो अपने आस-पास की जिंदगी में ही उन्हें तलाशूंगा... ब्लॉगिंग में मैं अपनी सोच को दुनिया पर जाहिर करने के लिये हूँ, मुझे लगता है कि इस काम में ईमानदारी बरतने के लिये किसी भी तरह के आभासी रिश्ते बाधक हैं... क्योंकि कभी कभी आपको निर्मम भी होना पड़ता है अपनी बात रखने के लिये... ब्लॉगिंग में मैं किसी को भी अपना करीबी-दूर-बड़ा-छोटा-विद्वान-अल्पज्ञ न मान सब को अपने सा ही समझता हूँ... हम सब बराबर हैं यहाँ, यह और बात है कि कई इस बात को न समझना चाहते हैं न समझेंगे... :(



    ...

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  20. यदि दोनों ही पक्ष सहज रह पाते है तो कोई दिक्कत नहीं है.लेकिन ऐसा केवल एक प्रतिशत मामलों में ही हो पाता है.

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  21. पोस्ट पर तो सब अपना-अपना विचार दे चुके हैं...
    पर मेरे मन में तो आराधना की प्यारी सी टिप्पणी ही घर कर गयी....I am touched और कुछ कहना मुश्किल है , आराधना

    मुझे तो ज्यादातर दीदी, कहनेवाले मेरी पोस्ट पे टिप्पणी भी नहीं करते...पर बिलकुल छोटे भाई/बहन जैसे हैं.

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