April 22, 2011

एक कहानी और ख़तम हो जाती हैं

स्थान गाज़ियाबाद
एक ५ साल की बालिका का बलात्कार उसका १९ साल का कजिन करता हैं
बालिका की माँ वारदात होते हुए देखती हैं और ईट मार कर बलात्कारी को भागती हैं
बालिका के माता पिता बिरादरी के बड़ो के पास जाते हैं
बड़े बलात्कारी को २ -४ चांटे रसीद कर देते हैं ।
बलात्कारी से माफ़ी मंगवाते हैं
बलात्कारी का पिता १.५ लाख रुपया लड़की मे माँ बाप को देता हैं
बालिका के माँ बाप को सख्त हिदयात दी जाती हैं की बिरादरी और परिवार के मान के लिये वो चुप रहे

बालिका को अगले दिन स्कूल भेज दिया जाता हैं
बालिका को स्कूल मे उलटी होती हैं
टीचर बालिका को कुछ बच्चो के साथ घर भिजवा देती हैं और हिदायत देती हैं की इसकी माँ को साथ लाना क्युकी उलटी की गन्दी साफ़ करनी हैं
बालिका को अकेला छोड़ कर माँ स्कूल जा कर सफाई करती हैं और १ आध घंटे मे वापस आती हैं
बालिका को अवचेतन पाती हैं
पास के अस्पताल ले जाती हैं
अस्पताल वाले भारती नहीं करते हैं सरकारी अस्पताल जाने को कहते हैं
सरकारी अस्पताल ले जाती हैं
अस्पताल वाले " लाने पर मृत " कह देते हैं
पोस्ट मार्टम रिपोर्ट मे मृत्यु का कारण "गला दबाने से " लिखा जाता हैं

पुलिस को कार्यवाही नहीं करती क्युकी किसी ने शिकायत दर्ज नहीं करवाई
मृत्यु के बाद बालिका के माता पिता शिकायत दर्ज करवाते हैं
बलात्कारी को पकड़ा जाता हैं
आरम्भिक जाच से पता चलता है बलात्कारी का पिता भी एक नाबालिक लड़की के रेप मे १४ साल की जेल काट चुका हैं

एक कहानी और ख़तम हो जाती हैं
हम बेकार ही कन्या भुंण ह्त्या की खिलाफत करते हैं
जब मारना यों भी तो पैदा होने से पहले ही मारना अच्छा और बेहतर उपाय हैं

आप क्या कहते हैं कौन दोषी हैं ???

13 comments:

  1. bahut marmik hai ye...is tarah ki mout milane se to janm se pahle marna ...pahli nazar me theek lagta hai par ye koi jangle raj nahi hai...nabalig ke sath hone vale is tarah ke apradh fast track melade jaye aur doshiyon ko fansi ki saja hi ekmatra pravdhan ho fir chahe paristhiti koi bhi kyon na ho...bahut bade andolan ki jaroorat hai iske liye...

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  2. शर्मिदा करता है यह सब होना हमारे समाज में............. न जाने कब तक चलेगा यह निर्ममता का खेल ......

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  3. रचना जी बच्चों का उनके निकटवर्ती लोगों द्वारा शारीरिक शोषण कोई नयी बात नहीं है. आप माने या न मानें बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की दोनों का सामान रूप से शारीरिक शोषण होता है. मुझे नहीं लगता की कोई कानून इस समस्या से कभी निजात दिला पायेगा. ये मानव के भीतर छिपी पाशविकता है जिसे मिटाने के लिए तो इन्सान के जींस में ही फेर बदल करना पड़ेगा. इस समस्या पर यथार्थवादी तरीके से विचार करें. जिस खेत को उसकी बाद ही खाने लगे उस खेत का कुछ नहीं हो सकता. आपने समाज के निम्न वर्ग में बच्चों का शारीरिक शोषण देखा है जबकि मैंने इसी समाज के उच्च वर्ग में भी ऐसा ही शारीरिक शोषण होता खुद अपनी आँखों से देखा है.(अब ये न कहियेगा की अगर देखा था तो पुलिस को रिपोर्ट क्यों नहीं की? ) ऐसे मामलों में मुझे सबसे ज्यादा दोषी बच्चों के माता पिता ही लगते हैं जिनको बहुत बार इन घटनाओं का पता ही नहीं चलता या कभी पता लगता भी है तो भय या लालच वश वो चुप्पी साध लेते हैं. ये एक घटना सामने आई है पर ऐसी लाखों घटनाएँ जाने कब से होती चली आ रही हैं और आगे भी होती ही रहेंगी और आप और हम जैसे लोग बस यूँ ही हैरान परेशान होते रहेंगे. उपरी तौर पर आपको मेरा ये रवैया पलायनवादी जरुर लगेगा पर अगर जरा भी गहराई से विचार करेंगी तो पाएंगी की मेरी बात में सच्चाई है. इस विषय पर मैं आपने विचार विस्तृत रूप से अवश्य ही सबके सामने रखूँगा.

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  4. कब तक दबाते रहेंगे? कभी तो ये अंगार दावानल बनेंगे।

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  5. सदियों से ये ब्याभिचार चला आ रहा है ! आज क्या देंखे ,क्या सुने या क्या बोले पर कोई अंकुश नजर नहीं आता ! मीडिया में एक से एक अशोभनीय प्रचार आते रहते है , जिन्हें परिवार में बैठ कर देखने में भी शर्म आती है ! आखिर इसका प्रभाव रंग तो लायेगा ! सीता जी भी नहीं बची , द्रौपदी जी नहीं बची ! पर आज - कल न वह सीता है , न द्रौपदी !

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  6. सदियों से ये ब्याभिचार चला आ रहा है ! आज क्या देंखे ,क्या सुने या क्या बोले पर कोई अंकुश नजर नहीं आता ! मीडिया में एक से एक अशोभनीय प्रचार आते रहते है , जिन्हें परिवार में बैठ कर देखने में भी शर्म आती है ! आखिर इसका प्रभाव रंग तो लायेगा ! सीता जी भी नहीं बची , द्रौपदी जी नहीं बची ! पर आज - कल न वह सीता है , न द्रौपदी ! न राम है ,न कृष्ण ! वश आह ही आह और तड़पन , चाहे पुरुष हो या नारी !

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  7. धिक्कार है ऐसे मां-बाप पर भी...

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  8. अब ऐसी घटनाएँ आम हो गयी हैं लोग कहते हैं कि मीडिया ऐसी खबरों को अधिक तवज्जो देकर सुर्ख़ियों में लगा रही है. न भी लाये तो क्या ऐसे जघन्य अपराध क्षम्य हैं. आज मानसिक तौर पर विक्षिप हो रहे लोग, उनके विवेक और जमीर मर चुका है. उनके लिए बच्ची बच्ची नहीं सिर्फ एक विपरीत लिंग का प्राणी समझ आता है इससे उनको कोई सरोकार नहीं कि वह किस उम्र की है. ऐसे लोगों के खिलाफ मुक़दमा लिखा भी दिया जाता है तो पुलिस कौन सा तीर मार लेती है. खुले आम घूम रहे है ऐसे अपराधी और घर वालों को धमकाते हुए पुलिस को साथ लेकर घूम रहे हैं. किस से शिकायत कीजाय और किसके खिलाफ. यहाँ सब बिकाऊ है न्याय से लेकर इंसान तक. बस जेब गरम होनी चाहिए फिर आप कुछ भी करने के इए स्वतन्त्र हैं.

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  9. vichaar shunya
    mae aap ki baat kaa pura samarthan kartee hun aur yae jaantee hun ki sodomisation bahut badh gaya haen yaani bachcho kaa yaun shoshan kewal balika kaa nahin

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  10. hum jinda kyu hain.....mar jate to tar jate....

    pranam

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  11. aaj ye soch kar bhi shrmindgi hoti hae ki ham aazad hae, kya yhi aazadi hae.ham apne bachchon ko surkshit nhin rakh sakte?wo bhi apne desh men, apnon ke beech men......mujhe ye lagta hae ki bachchon ko khas taur par ladkiyon ko bachpn se hi jhasi ki rani ka roop dena chahiye,jisse kisi ki himmt avm takt na ho ki unki tarf nazr utha kar bhi dekh sake....iske liye sbko milkar aage aana hoga......

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  12. जी रही हूँ मैं, गम-ए-राह ना करो,
    खिलती हुयी कली हूँ,जला के राख ना करो..!

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