February 26, 2011

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध



पिछले दिनों मैं कानपुर में थी। हफ्तों गुजर जाते थे और वहां के पेपर के मुखपृष्ठ पर कोई राष्ट्रीय समाचार नहीं आता था। सभी मुख्य समाचार अपराधों और खासकर महिला अपराधों से जुड़े होते थे। कई बार ऐसा होता था कि चाय पीते समय पेपर परे सरका देती क्योंकि समाचार पढ़कर और समाचार के ऊपर छपी फोटो देखकर मन कसैला हो जाता। बहुत सारे प्रश्न मन में उमड़ते-घुमड़ते, पर उत्तर नहीं मिलते। क्योंकि अगले वर्ष होने वाले चुनावों के कारण हर घटना को राजनीतिक रंग दे दिया जाता और उसके सामाजिक पहलू अनछुए रह जाते। न ही उन बच्चियों पर होने वाले मानसिक आघात की कोई चर्चा होती।

महिलाओं पर होने वाले यौन अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश दो ऐसी जगहें हैं जहां महिलाएं खुद को सुरक्षित नहीं महसूस करती। खासकर किशोरियों और बच्चियों के साथ किया जाने वाला इस तरह का व्यवहार अत्यन्त शर्मनाक है। और उससे भी ज्यादा व्यथित कर देने वाला है इन घटनाओं के प्रति पुरुषों का रवैया। जो यह मानते हैं कि इन घटनाओं में वृद्धि का मूल कारण महिला सशक्तिकरण है। वे यह भी कहते है कि लड़कियों के व्यवहार में जिस तरह का खुलापन आया है, वे छोटे-छोटे कपड़ों में घर से बाहर निकलती हैं जो पुरुषों की काम भावनाओं को भड़काता है और वे उस पर नियंत्रण नहीं रख पाते जिसके कारण इस तरह की घटनाएं घटती हैं। अगर एक बार उनकी बात मान भी ली जाए, तो उत्तर प्रदेश के गांवों में घटने वाली घटनाओं के पीछे क्या कारण हो सकता है। वहां तो लड़कियां छोटे कपड़े नहीं पहनती। और छह माह वह नन्ही सी बच्ची जिसने तो अभी आँखे ही खोली थी, अपने आस-पास के लोगों को अभी वह पहचानना सीख रही थी, वह भी एक नवयुवक की हवस का शिकार बन गई। जो उसको खिलाने के बहाने घर से ले जाता है और.... । एक चार साल की बच्ची घर से स्कूल के लिए निकलती है और 52 साल के स्कूल के चौकीदार की गंदी निगाहों का शिकार हो जाती है....एक पिता अपनी किशोरवय बेटी से सिर्फ इसलिए यौन संबंध बनाता है क्योंकि एक ज्योतिषी जो इस अपराध में उसका बराबर का साझीदार बनता है उससे कहता है कि ऐसा करने से उसका भाग्योदय हो जाएगा....घटनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है। बस इतना ही कहूंगी कि इस तरह की घटनाओं की जो बाढ़ सी आ गई है। उसके न सिर्फ हमें कारण जानने होंगे बल्कि उसके निवारण भी ढूढ़ने होंगे। ताकि हमारी बच्चियां घर के बाहर ही नहीं घर के अंदर भी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।

-प्रतिभा.

11 comments:

  1. शर्मनाक और चिंताजनक!

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  2. बहुत से पुरुष ऐसा कहते हैं कि छोटे कपड़े उनकी काम भावना को भड़का देते हैं पर दो ही बातें कहना चाहूँगी...क्या इसका मतलब ये है कि जो पुरुष बलात्कार नहीं करते हैं या बलात्कार करने की नहीं सोचते हैं उनके पास क्या काम भावना नहीं होती? और दूसरी बात क्या ऐसा सोचने-कहने वाले पुरुष स्वय़ं को पशु से भी हीन प्रदर्शित करना चाहते हैं? (नर-पशु भी मादा-पशु के साथ ज़बरदस्ती नहीं करते).

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  3. ये घटनाए पहले भी होती थी और इसी मात्र में होती थी पहले इसे घर की इज्जत के नाम पर ढांक छुपा दिया जाता था आज ज्यादातर इसे बाहर ले आती है न्याय चाहती है | किन्तु उसके बाद भी अब भी कुछ महिलाए यौन शोषण से लेकर रेप तक की घटना कोप सामने नहीं लाती लोगो की इसी रवैये के कारण और अपराधी खुला घुमाता है ऐसे ही और अपराध करने के लिए |

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  4. बेहद शर्मनाक है और आपके प्रश्न भी जायज हैं…………शायद ये सब विकृत मानसिकता को दर्शाते हैं मगर इसका हल बहुत ही मुश्किल है वो भी तब जब अपनो की मानसिकता ही दूषित हो रही हो……………अब एक दूधमूंही बच्ची कैसे ऐसे लोगो का प्रतिरोध कर सकती है और उन्हे सामने ला सकती है………इसका कोई हल फ़िलहाल तो नज़र नही आता सिवाय इसके कि एक माँ अपनी बच्ची की और एक औरत अपनी अस्मिता की रक्षा खुद करे और उसके लिये जरूरी उपाय सीखे जिससे इनके चंगुल मे फ़ंसने पर आत्मरक्षा कर सके।

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  5. बेहद शर्मनाक और चिन्ता का विषय है। लेकिन इसके लिये कोई कुछ नही करेगा नारी को ही सशक्त होना होगा। धन्यवाद।

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  6. पोस्ट पर-अंशुमाला जी से सहमत हूँ कि पहले भी इतने ही अपराध होते थे लेकिन कुछ अपराध नये किस्म के है जो पहले नही होते थे जैसे धोखे से आपत्तिजनक चित्र खींच लेना mms बनाना इन्हे सीडी बना बाजार में बेच देना नेट पर अपलोड कर देना या इनके जरीये ब्लेकमेल करना नशीली दवाओं का प्रयोग कर यौन शोषण आदि.या यूँ कहें कि अपराधों के तरीके थोडे बदल गये हैं.लेकिन दिक्कत ये है कि इन पर ज्यादा बात करने से एक हौआ खडा होता है जिससे उल्टे लडकियों पर ही रोक टोक लगाई जाती है और न करने से पर्याप्त जागरुकता का अभाव रहता है इसलिये कोई संतुलित रवैया अपनाया जाना चाहिये.कपडों वाली बात पर मैं प्रज्ञा जी से सहमत हूँ.

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  8. राजनजी, लड़कियों को बीच में लाए बिना एक सामाजिक समस्या के तौर पर हम इस पर बात कर सकते है।

    पोस्ट रिमूव नहीं की गई है। अभी भी नारी ब्लॉग पर है...आप पढ़ सकते हैं।

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  9. आपने मजबूर कर ही दिया दोबारा आने के लिये.ये बताने आया कि मेरी बात उस संदर्भ में नहीं थी.फिर भी आपने जो समझा सही ही समझा होगा.और उम्मीद करता हूँ आपके साथ ही बाकियों ने भी सही ही समझा होगा .अब आज्ञा दीजिए.

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  10. नारी को ही सशक्त होना होगा !

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