January 12, 2011

दहेज़ मृत्यु व कानूनी रुख-३

ऐसी ही स्थिति को देखते हुए अभी हाल में ५ अगस्त २०१० को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दहेज़ हत्या के मामले में आरोप ठोस और पक्के होने चाहिए ,महज अनुमान और अंदाजों के आधार पर ये आरोप नहीं लगाये जा सकते खासकर पति के परिजनों पर ये आरोप महज अनुमान पर नहीं गढ़े जा सकते कि वे एक ही परिवार के हैं इसलिए ये मान लेना चाहिए कि उन्होंने ज़रूर  पत्नी को प्रताड़ित किया होगा .जस्टिस आर.ऍम.लोढ़ा और ऐ .के. पटनायक की खंडपीठ ने यह कहते हुए पति की माँ और छोटे भाई के खिलाफ लगाये गए दहेज़ प्रताड़ना और दहेज़ हत्या के आई.पी.सी. की धारा ४९८-ए तथा ३०४-बी आरोपों को रद्द कर दिया .आरोपियों को बरी करते हुए खंडपीठ ने कहा "वधुपक्ष के लोग पति समेत उसके सभी परिजनों को अभियुक्त बना देते हैं चाहे उनका दूर तक इससे कोई वास्ता ना हो .ऐसे में मामलों  में अनावश्यक रूप से परिजनों को अभियुक्त बनाने से केस पर प्रभाव नहीं पड़ता वरन असली अभियुक्त के छूट  जाने का खतरा बना रहता है .
  इस प्रकार उल्लेखनीय है कि दहेज़ मृत्यु व वधुएँ   जलने की  समस्या के निवारण हेतु सन १९६१ में दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया था परन्तु यह कानून विशेष प्रभावी न सिद्ध हो सकने के कारण सन १९८३ में दंड सहिंता में धारा ४९८-क जोड़ी गयी जिसके अंतर्गत विवाहिता स्त्री के प्रति क्रूरता को अपराध मानकर दंड का प्रावधान रखा गया .साथ ही साक्ष्य अधिनियम में धारा ११३-क जोड़ी गयी जिसमे विवाहिता स्त्री द्वारा की गयी आत्महत्या के मामले में उसके पति और ससुराल वालों की भूमिका के विषय में दुश्प्ररण सम्बन्धी उपधारना के उपबंध हैं परन्तु इससे भी समस्या का समाधान कारक हल ना निकलते देख दहेज़ सम्बन्धी कानून में दहेज़ प्रतिषेध संशोधन अधिनियम १९८६ द्वारा महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए .साथ ही दंड सहिंता में धारा ३०४-ख जोड़ी गयी तथा साक्ष्य अधिनियम में नई धारा ११३-ख जोड़ी गयी जिसमे दहेज़ मृत्यु के सम्बन्ध  में उपधारना सम्बन्धी प्रावधान हैं .इन सब परिवर्तनों के बावजूद दहेज़ समस्या आज भी सामाजिक अभिशाप के रूप में यथावत बनी हुई   है जो अपराध विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है.
अब मैं आपसे ही पूछती हूँ कि आप इस सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण रखते हैं? जहाँ तक मैं लोगों को जानती हूँ वे बेटी के विवाह पर दहेज़ की चिंता से ग्रसित रहते हैं और इसकी बुराइयाँ करते हैं किन्तु जब समय आता है बेटे के विवाह का तो कमर कस कर  दहेज़ लेने को तैयार हो जाते हैं यही दोहरा व्यवहार हमारी चिंता बढ़ाये जा रहा है.यदि बेटे की पढाई पर माँ-बाप खर्चा करते हैं तो क्या बेटी मुफ्त में पढ़ लिख जाती है?उसे पालने पोसने में उनका कोई खर्चा नहीं होता फिर लड़की के माँ -बाप से लड़के के पालन-पोषण का खर्चा क्यों लिया जाता है?इसके साथ ही एक स्थिति और है जहाँ अकेली लड़की है वहाँ तो उसके ससुराल वाले ये चाहते हैं की लड़की के माँ=बाप से उनका जीने का अधिकार भी जल्दी ही छीन लिया जाये और इस जल्दी का परिणाम ये है कि अकेली लड़कियां दहेज़ का ज्यादा शिकार हो रही हैं.ये समस्या हमारे द्वारा ही उत्पन्न कि गयी है और कानून इस सम्बन्ध में चाहे जो करे सही उपाय हमें ही करने होंगे और हम ऐसा कर सकते हैं.
     पिछली पोस्ट में राजन जी ने जो पूछा था बता रही हूँ-
१-सजा कम से कम ७ साल और अधिक से अधिक आजीवन कारावास है,
२-सात वर्ष के बाद के मामले की  खोज कर रही हूँ जल्द ही बताने की कोशिश करूंगी.
३-मायके वालों के बयानों की पुष्टि आवश्यक है.महत्व कोर्ट हर विश्वसनीय बयान को देती है.

7 comments:

  1. इंसान को लालची बना देने वाली मौजूदा व्यवस्था के अंत तक ये अपराध नहीं थमेंगे।

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  2. सजा कितनो को मिल पाती है? और दहेज़ प्रथा लड़की के माँ बाप कि मजबूरी क्यों बन गया है? समाज सुधेर जाए तो कानून कि आवश्यकता नहीं.
    जिसके लड़का होता है वोह आँख बंद करलेता है और जिसके लड़की होती है मजबूर है दहेज़ देने के लिए इसलिए कि वो नहीं देगा तो दुसरे देके वो लड़का ले जाएँगे और उनकी लड़की बैठी रह जाएगी..
    ऐसे समाज को बदल डालो

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  3. इस महत्वपूर्ण जानकारी से भरी पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार |

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  4. महत्वपूर्ण जानकारियां दी आपने...

    दहेज़ की बात करते समय बहुधा इस पक्ष को नहीं विचार जाता कि विधि ने ही यह व्यवस्था कर दी है कि माता पिता के संपत्ति में पुत्री का भी बराबर का अधिकार है..मुझे लगता है यह दूसरा पक्ष लोगों के मन में अधिक गहरे बैठा है,तभी लोग बेटे के दहेज़ में अधिक से अधिक धन उगाह लेना चाहते हैं..

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  5. वास्तव में तो ये एक सामाजिक बुराई है जिसे हम सिर्फ कानून बना कर नहीं ख़त्म कर सकते है कानून के साथ ही समाज को भी सुधारने का काम करना पड़ेगा और कानून को और सही तरीके से तथा कड़ाई से लागु करना होगा |

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  6. शालिनी जी,
    जवाब देने का शुक्रिया .आपकी इन दोनों पोस्ट से मुझे मेरे और भी कई सवालों के जवाब मिले हैं हालाँकि पहले वाले सवाल को लेकर शायद आपको कुछ गलतफहमी हुई हैं 7 वर्ष की अवधि से मेरा मतलब उस अवधि से था जिसमें विवाहिता की संदिग्ध मृत्यु पर दहेज मृत्यु का केस बन सकता है इसे बढाया जा सकता है.जहाँ तक बात हैं इस कानून के दुरूपयोग की तो इसके बारे में बात करते ही कई लोग इसे जबरदस्ती महिला बनाम पुरूष का मुद्दा बना देते हैं जबकि यह गलत है इसके दुरूपयोग का खामियाजा महिलाओं को भी भुगतना पडता है कई झूठे केसों में तो एक साथ पाँच पाँच महिलाओं के अन्दर जाने की नौबत आ जाती है अब यदि इस ओर ध्यान दिया जा रहा है तो ये अच्छी बात हैं .आपकी पोस्ट जानकारीपरक होती है .आपको ये प्रयास जारी रखना चाहिये.शुभकामनाऐं.

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