" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
December 29, 2010
आधुनिक बाबागिरी
2010 खत्म होने वाला है और हम उस चौराहे पर खड़े हैं यहां से यह जानना कि शांति और अमन के लिए हमें किस सड़क पर अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए नहीं मालूम। हर तरफ एक अराजकता का सा माहौल है। टीवी में बाबाओं की भीड़ है। 24-25 साल के युवाओं को जिन्हें देश के उत्थान के लिए मेहनत करनी चाहिए, मंच पर बैठ कर प्रवचन कर रहे हैं, क्योंकि जानते हैं कि पैसा कमाने का यह सबसे सरल माध्यम है। लोग उन पर फूलों की वर्षा कर रहे है और वे बैठे इस तरह मंद-मंद मुस्करा रहे हैं मानों कह रहे हो तुमसे बड़ा मूर्ख मैंने आज तक नहीं देखा, जो मुझ जैसे नकारे इंसान पर फूलों की वर्षा कर रहा हो। बाबाओं के ये तथाकथित भक्त बाबाओं पर फूल बरसाने के लिए जितने पैसे खर्च करते हैं उतने में कम से कम सौ बच्चो की पढ़ाई का खर्च उठाया जा सकता है।
आज बाबगिरी एक व्यापार बन गई है। कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का उत्तम साधन। बस आपके पास वाक् कला होनी चाहिए। आगे का काम पी आर डिपार्टमेंट देख लेता है कि लांचिग कब कहां और किस चैनल में किस तरह करवानी है, जिससे उनके क्लाइंट को हिट होने में देर न लगे। और भक्त उनकी चिंता, उनकी चिंता ही मत करिए, वो तो आसानी से मिल जाते है। चैनलों पर आने वाला लगभग हर बाबा करोड़ों में खेल रहा है। पहले बाबागिरी करने की एक उम्र हुआ करती थी, कुछ नियम थे, जिनका पालन करना होता था, परंतु आज सबकुछ खत्म हो गया है। किसी अन्य व्यवसाय की तरह यह भी एक व्यवसाय बन गया है। बाबा लोग ईश्वर प्राप्ति का साधन बताने की जगह यह बताने लगे हैं कि आपकी लाटरी कैसे निकलेगी। इसके किए बकायदा पैसे वसूले जाते हैं और लाटरी न लगने पर शिकायत करने पर ये बाबा शिकायतकर्ता के शोषण पर उतर आते हैं। एक आध हिम्मतवाली वाली महिला पुलिस में शिकायत करती है तो पुलिस हरकत में भी आती है। परंतु उसके बाद उस बाबा का क्या होता है कोई नहीं जानता।
बाबाओं के इर्द-गिर्द स्त्रियों का जमावड़ा पहले भी होता था, पर इस तरह की घटनाएं इस स्तर पर नहीं होती थी, जिस स्तर पर आजकल सुनने में आ रही है। जहां तक मैं समझ पा रही हूं आजकल के बाबा पहले के बाबाओं तुलना में ज्यादा यंग हैं। उनके लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना कठिन होता है, परंतु विवाह करके वे अपनी छवि सांसारिक व्यक्ति की भी नहीं बनाना चाहते क्योंकि इससे बाबागिरी की छवि को ठेस पहुंचती है। परंतु मानसिक रूप से वे इतने परिपक्व भी नहीं होते कि स्त्रियों के साहचर्य में रह कर भी वे स्वयं को स्त्री मोह से मुक्त रख सकें। फलस्वरूप इस तरह के हादसे होते हैं।
समय-समय पर होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति स्त्रियां इतनी पागल क्यों होती हैं कि वे घर का काम-काज छोड़ कर इनके पीछे लग जाती हैं।। मटकियां उठा कर पूरे मोहल्ले का चक्कर लगाती हैं। बाबाओं के पैर दबाती है और अन्य इसी तरह की हरकतें करती हैं। ये महिलाएं बाबाओं की जितनी सेवा करती हैं उतनी सेवा तो मैंनें कभी इन्हें अपने घर के बुजुर्गों की करते भी नहीं देखा। आखिर इस तरह से वे क्या हासिल कर लेती हैं। मन की शांति, परिवार की शांति और कुछ और। मुझे नहीं मालूम। मोहल्ले या सोसायटी में होने वाले इन अनुष्ठानों से मुझे कभी कोई शांति हासिल नहीं हुई, उल्टे तकलीफ जरूर हुई है क्योंकि गांव भर को सुनाने के लिए ये लाउडस्पीकर का प्रयोग करते है जिससे बूढ़े-बच्चे और बीमारों को बहुत तकलीफ होती है।
बाबाओं का ये नेक्सस जो बड़ी तेजी से समाज में अपने पांव पसार रहा है इसे तोड़ने और अपने घर की महिलाओं को इससे बचाने के लिए हमें खुले मन से इस विषय पर विचार करना होगा। मैं धर्म विरोधी नहीं हूं, पर नकली धर्म के नाम पर यह व्यवसाय जिस तरह अपने पांव पसार रहा है मैं उसकी विरोधी हूं। दोष सिर्फ बाबाओं का नहीं है, मानसिक रूप से असुरक्षित समाज भी कहीं न कहीं इसका दोषी है।
-प्रतिभा वाजपेयी.
सही कहा जी
ReplyDeleteदोष केवल बाबाओं का नहीं, समाज भी दोषी है।
रोष तो जब होता है जब पढे-लिखे लोग भी इनके पांव पखारते हैं।
प्रणाम
आज बाबगिरी एक व्यापार बन गई है। कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का उत्तम साधन.
ReplyDelete.
और बाबा गिरी की दुकान अन्धविश्वासी लोगों के कारण चला करती है ...शिक्षा ही इस का हल है
आप ये भी तो देखिये कि एक तरफ हम आधुनिकता के नाम पर संस्कृति और संस्कारों को भुला रहे हैं और दूसरी तरफ इन्हीं बाबाओं के सामने नतमस्तक होते जा रहे हैं. मीडिया ने तो पूरी तरह से युवा पीढ़ी को ज्योतिष, धर्म, कर्म-काण्ड में फंसा लिया है. कोई दिन ऐसा नहीं होता जब राष्ट्रीय स्तर के चैनल पर किसी दिन विशेष को किसी नक्षत्र विशेष के साथ जोड़ कर उसका विश्लेषण न किया जाता हो.
ReplyDeleteवैसे बाबागिरी बुरी भी नहीं है, बिना महनत के माल-पुआ, मेवे, धन, सुख सब तो है फिर युवा अपनी शक्ति देश हित में, मेहनत में क्यों खर्चे?
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
Bilkul sarthak post. thank you.
ReplyDeleteयह एक सामान्य पोस्ट है। इस विषय पर और पोस्टें भी आनी चाहिए। जिन में तथ्य भी हों।
ReplyDeleteमुझे लगत है की आज कल लोगों का झुकाव भी कुछ ज्यादा ही इन चीजो की तरफ हो गया है और बाबा से लेकर टीवी सभी इसको भुनाने में लगे है | लोगों को खुद अपने दिमाग लगाना चाहिए |
ReplyDeleteएक सामाजिक बुराई के खिलाफ जोरदार आवाज -सचमुच इस बढ़ती सामाजिक कुप्रवृत्ति का पुरजोर विरोध होना चाहिए !
ReplyDeleteप्रतिभाजी मैं आपकी बात से सहमत हूँ.ईश्वर को याद करना,ईश्वर की भक्ति करना अच्छा है उसका विरोध हम नहीं करते, लेकिन भक्ति के नाम पर अपने कर्त्तव्यों से बचकर हम 'सत्संग' के नाम पर प्रतिदिन घर से भागते हैं,,जिससे हम घर की जिम्मेदारियों से बच सकें । जब उनसे पूछा जाता है कि आप घर में रहकर प्रभु भजन क्यों नहीं करतीं। उनका उत्तर होता है कि यदि हम घर में ही रहेंगी तो बस घर के काम में ही उलझी रहेंगी। मैं उनके इस सोच से तनिक भी सहमत नहीं हूँ। ऐसी महिलाएँ अपने बच्चों को भी ऐसे संस्कार देती हैं,जो घर से पलायन की प्रवृत्ति को अपनाकर ही जीवन जीते हैं। मैं अपने घर के आस-पास की अनेक महिलाओं को जानती हूँ। उन्हें समझाती भी हूँ। पर मेरी बात उन्हें कड़वे नीम जैसी लगती है। पर मुझे यह भी विश्वास है कि एक दिन उनकी समझ में आएगा अवश्य। नववर्ष की बधाई।
ReplyDeleteमीना अग्रवाल
@ मीनाजी आपको एवं नारी ब्लॉग से जुड़े सभी मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..सादर।
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