आज प्रवीण शाह की पोस्ट पढी । एक लम्बा कमेन्ट देने का मन हुआ पर फिर लगा अपनी बात यहाँ कहूँ । प्रवीण शाह की पोस्ट को पढ़ कर बस एक "आह " जैसा कुछ निकला ।
आज कल डी डी ऐ फ्लेट के फॉर्म भरे जा रहे हैं सो कुछ दिन सोच रही थी की अगर डी डी ऐ फ्लेट के फ्लैट केवल ३० वर्ष के लिये ही दिये जाये और फिर वो सरकार को वापस हो जाए तो क्या ये संभव हैं की जो ब्लैक मनी का धंधा होता हैं वो ख़तम हो जाए । जो इल लीगल कंस्ट्रक्शन फ्लैट के अन्दर किया जाता हैं वो बंद हो जाए । और जो माता पिता का शोषण होता हैं वो बंद हो जाए ।
३० साल के लिये सरकार रहने की सुविधा उपलब्ध करा दे और उसके लिये एक मुश्त पैसा लेले । लेकिन जो पैसा दे मिलकियत उसकी ही रहे ३० वर्ष तक । हां बहुत से लूप होल हैं मेरी सोच मे पर वो सब administrative हैं ।
कहीं पढ़ा था भारत मे संचित वेअल्थ बहुत हैं और ये एक प्रकार का दुर्गुण होता हैं । हमारे यहाँ बच्चे माँ पिता की चीजों पर अपना अधिकार समझते हैं और उनके लिये आपस मे लडते हैं चाहे लड़की या लड़का । मेरा मानना हैं की जो चीज़ हमने कमाई ही नहीं वो हमारी हुई कैसे ??
हमारे यहाँ विवाह के समय मायके का आर्थिक रुतबा देखा जाता हैं ताकि लड़की को कब तक मिलता रहेगा ये सुनिश्चित किया जा सके । अगर लड़की के भाई नहीं हैं { यानि ३ बहने या २ बहने } तो कयी बार शादी नहीं होती हैं क्युकी माँ पिता के बाद कौन करेगा ??
पिछले ३० साल मे जो लोग माँ पिता बने हैं उनकी सोच मे "कम संतान " जरुरी थी ना की लड़का या लड़की । हम दो और हमारे दो । अब जिनके दो लडकिया हैं और वो उनकी शादी कर चुके हैं तो अपनी परम्परागत सोच के तहत वो लड़की के घर नहीं रहते । दोनों बहने अगर अपनी बुद्धि से चलती हैं तो संभव हैं झगडा ना हो पर अगर दोनों के पतियों मे नहीं बनती हैं तो बहुत संभव हैं झगडा हो । अगर दोनों मे से कोई एक भी माँ पिता का ख़याल रखता हैं तो उनकी सम्पत्ति पर अपना अधिकार समझता हैं ।
उसके विपरीत अगर एक बेटा और एक बेटी हैं तो बेटा और बहु को लगता हैं की सम्पत्ति उनको मिलनी चाहिये और क्युकी बेटी की शादी मे दहेज़ दिया गया सो उसको तो बिलकुल नहीं ।
ऐसे मे अगर सम्पत्ति पर सरकार का अधिकार हो मृत्युं के बाद तो क्या आप को लगता हैं कुछ सुधार होगा ?? क्या हम अपने बच्चो के लिये "जुटा जुटा " कर उनको अपने ही लिये एक "समस्या " बना रहे हैं ।
मेरे अपने घर मे मेरे बड़े मामा जी एक लम्बे समय तक अविवाहित रहे । ५६ वर्ष की आयु मे उन्होने विवाह किया और ६० वर्ष की आयु मे एक बच्चे को अनाथालय से गोद लिया । ७२ वर्ष की उम्र मे मामा जी नहीं रहे पर उन्होने अपनी चल और अचल संपत्ति की विल अपनी पत्नी के नाम की लेकिन उसमे साफ़ लिखा हैं की केवल पत्नी के जीवित रहने तक , उसके बाद सब कुछ उनके दत्तक पुत्र का होगा । हमारे मामा जी अपने सगे भाई के भी बच्चे हैं और अपनी बहिन के भी पर उन्होंने हमेशा कहा थी की वो अपनी सम्पत्ति किसी अनाथ को देकर जायेगे और उन्होंने दी । घर मे इस बात को ले कर बहुत नुक्ता चीनी हुई थी पर मुझे व्यक्तिगत रूप से हमेशा उनकी बात सही लगी और आज एक ऐसा बच्चा जिसके कोई नहीं हैं उनके पैसे से पढ़ लिख कर अपनी जिन्दगी बना रहा हैं ।
हम हमेशा अपने बारे मे सोचते हैं । संग्रहण करके अपने परिवार को देने की सोचते हैं और शायद यही कारण की हमारे परिवार हो कर भी पारिवारिक धरातल पर हम सब के हाथ खाली होते होते हैं । एक मुखोटा लगा कर हम अपने बच्चो के अवगुणों पर { जो की कभी हमारे भी थे क्युकी बच्चे हम भी थे किसी के } पर्दा डालते रहते हैं
बेटा या बेटी से कोई फरक नहीं पढ़ने वाला हैं । समस्या बहुत गंभीर हैं ।
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ReplyDelete.
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रचना जी,
सही हैं आप... येन केन प्रकारेण अधिकाधिक धन संग्रहण करने की लोलुपता ही इन सारे मामलों के पीछे है... कहाँ जायें बेचारे ये बुजुर्ग ?
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बहुत अच्छा लेख कुछ सोचने को मजबूर करता हुआ ........वाकई मे हमारा जीने का दायरा बहुत संकीर्ण है उसे बड़ा करने की जरुरत है ..
ReplyDeleteएक कहावत है की
ReplyDeleteपूत सपूत तो क्यों धन संचय और पूत कपूत तो क्यों धन संचय |
हा जब बेटे बेटी ऐसे होंगे तो धन संचय करना ही पड़ेगा उनके लिए नहीं अपने लिए अपने बुढ़ापे के लिए |
निजि संपत्ति के अधिकार को क्यों न सीमित किया जाए?
ReplyDeleteआम आदमी फिर भी झेल लेगा, नेता क्या करेंगे.
ReplyDeleteविचारणीय बात है.
ReplyDeleteआपकी बात सही या गलत के लिहाज से नहीं बस एक जरूरत के हिसाब से कहने आये हैं. हो सकता है कि सम्बंधित व्यक्ति के बेटा होता तो भी ये सब होता. क्या होता क्या न होता ये सब समय की बात है पर एक बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है कि आज भी समाज में एक माध्यम वर्ग के व्यक्ति को बेटे का बहुत सहारा होता है.
ReplyDeleteहमने अभी कुछ माह पहले अनुभव किया था कि हमारे एक परिचित के घर में शादी थी और उनके कोई लड़का नहीं था. कई बार रात में अथवा किसी काम के लिए हम भाइयों को, अथवा हम मित्रों को उनकी मदद के लिए जाना पड़ता था.
शादी के अलावा भी कई काम जो लड़कियां कर भी सकतीं हैं इसके बाद भी लगता है लड़कों के द्वारा ही सही है, मसलन-- टेंट हॉउस से भट्टी को उठा कर लाना, फर्श-कुर्सियां-मेजें-जेनरेटर आदि की व्यवस्था करना, खींच कर लाना...........
बहरहाल, लड़का हो या लड़की........शाह जी ने जो घटना दिखाई है वो मानसिकता के कारण है. हमने कई परिवार ऐसे भी देखे हैं जहाँ लड़के अपने पिता और माता पर अच्छा खासा जुल्म करते हैं.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
और मेरे माता-पिता कई बार मुझे उलाहना दे चुके हैं कि हमारी संपत्ति को तुम ऐसे ट्रीट करते हो जैसे ये तुम्हारा नहीं है..
ReplyDeleteमतलब कुल मिला कर पूरे समाज के नजरिये को ही बदलना होगा..